क्या हर मुस्लिम पब्लिक ट्रस्ट को वक्फ माना जाएगा?
Himanshu Mishra
11 March 2025 11:14 AM

सुप्रीम कोर्ट ने Maharashtra State Board of Waqfs v. Shaikh Yusuf Bhai Chawla (2022) मामले में यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि क्या सभी मुस्लिम Public Trusts को Waqf Act, 1995 के तहत स्वचालित रूप से Waqf माना जाना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर Muslim Public Trust को Waqf नहीं माना जा सकता, जब तक कि यह कानूनी रूप से Waqf की आवश्यक शर्तों को पूरा न करता हो।
कानूनी ढांचा (Legal Framework)
इस विवाद में दो प्रमुख कानूनों की व्याख्या की गई:
1. Waqf Act, 1995 – यह उन संपत्तियों (Property) को नियंत्रित करता है जो स्थायी रूप से धार्मिक (Religious) या समाजसेवी (Charitable) कार्यों के लिए समर्पित होती हैं। यह Waqf Board का गठन करता है, Waqf की जांच करने का आदेश देता है और विवाद समाधान (Dispute Resolution) की प्रक्रिया प्रदान करता है।
2. Bombay Public Trust Act, 1950 – यह सभी Public Trusts को नियंत्रित करता है, चाहे वे धार्मिक हों या समाजसेवी।
मामला इस सवाल पर केंद्रित था कि क्या 1950 Act के तहत पंजीकृत (Registered) मुस्लिम Public Trusts को स्वचालित रूप से Waqf Act के दायरे में लाया जा सकता है।
अदालत द्वारा उठाए गए मूलभूत प्रश्न (Fundamental Issues Addressed by the Court)
1. Public Trust और Waqf के बीच अंतर (Distinction Between Public Trust and Waqf)
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि Muslim Public Trust को स्वचालित रूप से Waqf नहीं माना जा सकता। Waqf में संपत्ति (Property) को स्थायी रूप से धार्मिक या समाजसेवी कार्यों के लिए समर्पित किया जाता है और उसका स्वामित्व (Ownership) समाप्त हो जाता है। वहीं, Public Trust के मामले में ऐसा कोई कड़ा नियम नहीं है।
कोर्ट ने Nawab Zain Yar Jung v. Director of Endowments मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि एक बार Waqf बन जाने के बाद वह हमेशा Waqf ही रहेगा, जबकि Trust को समाप्त किया जा सकता है या बदला जा सकता है (Modified)।
2. Waqf Board और Charity Commissioner की भूमिका (Role of Waqf Board and Charity Commissioner)
इस मामले में यह सवाल भी उठा कि क्या Waqf Board को यह अधिकार (Authority) है कि वह सभी Muslim Public Trusts को Waqf घोषित कर दे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह बिना किसी जांच (Inquiry) के नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि Waqf Act, 1995 की Section 43 सभी Public Trusts को स्वचालित रूप से Waqf घोषित नहीं करती। बल्कि, प्रत्येक मामले की अलग-अलग जांच करनी होगी।
3. "एक बार Waqf, हमेशा Waqf" सिद्धांत (Doctrine of "Once a Waqf, Always a Waqf")
कोर्ट ने इस प्रश्न पर भी विचार किया कि क्या कोई संपत्ति (Property) जो एक बार Waqf घोषित हो गई हो, वह बाद में Waqf का दर्जा खो सकती है। अदालत ने कहा कि एक बार Waqf बनने के बाद, वह हमेशा Waqf रहेगा, जब तक कि सरकार उसे Public Purpose के लिए अधिग्रहण (Acquisition) न कर ले।
4. High Court की Article 226 के तहत शक्ति (Powers of High Court Under Article 226)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी देखा कि क्या हाई कोर्ट को Article 226 के तहत हस्तक्षेप (Intervene) करना चाहिए था, जबकि विवाद हल करने के लिए Waqf Tribunal पहले से मौजूद था।
कोर्ट ने Radha Krishan Industries v. State of H.P. (2021) का उल्लेख किया और कहा कि आमतौर पर, जब कोई वैकल्पिक उपाय (Alternative Remedy) मौजूद हो, तो हाई कोर्ट सीधे हस्तक्षेप नहीं करता। लेकिन, कुछ अपवादों (Exceptions) में हाई कोर्ट को अधिकार है।
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाई कोर्ट ने Waqf Tribunal को नजरअंदाज करके गलती की थी और उसे सीधे मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी।
महत्वपूर्ण फैसले (Key Precedents Discussed)
कोर्ट ने अपने निर्णय को समर्थन देने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया:
1. Vidya Varuthi Thirtha Swamigal v. Baluswami Ayyar (1922) – इस मामले में कहा गया कि Waqf एक ट्रस्ट (Trust) नहीं है, बल्कि इसे ईश्वर (God) के स्वामित्व वाली संपत्ति माना जाता है।
2. Mohd. Khasim v. Mohd. Dastagir (2002) – इसमें दोहराया गया कि Waqf को सिर्फ इसलिए Trust नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी प्रशासनिक व्यवस्था (Administration) ट्रस्ट जैसी है।
3. State of Kerala v. Mar Appraem Kuri Co. Ltd. (2012) – इसमें Article 254 के तहत Repugnancy Doctrine पर चर्चा की गई कि कैसे केंद्रीय कानून (Central Law) राज्य के कानून (State Law) को हटा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि सभी Muslim Public Trusts को Waqf Act, 1995 के तहत नहीं लाया जा सकता, जब तक कि वे कानूनी रूप से Waqf की आवश्यक शर्तों को पूरा न करते हों।
कोर्ट ने यह भी कहा कि Waqf Board को सभी Muslim Public Trusts को स्वचालित रूप से Waqf घोषित करने का अधिकार नहीं है। प्रत्येक ट्रस्ट की सही तरीके से जांच (Proper Inquiry) की जानी चाहिए।
इसके अलावा, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई Special Tribunal उपलब्ध हो, तो हाई कोर्ट को सीधे मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।
इस फैसले का प्रभाव यह होगा कि अब किसी भी Muslim Public Trust को Waqf घोषित करने से पहले पूरी कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) का पालन करना होगा। इससे न केवल Waqf की सुरक्षा (Protection) होगी, बल्कि उन Public Trusts को भी गलत तरीके से Waqf घोषित होने से बचाया जा सकेगा, जो असल में Waqf नहीं हैं।