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न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को सूचना देने से संबंधित प्रावधान : धारा 19 राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act) के अंतर्गत न्यायालय शुल्क (Court Fee) और विषय-वस्तु के मूल्यांकन (Valuation of Subject-matter) से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और न्यायसंगतता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं। इस अधिनियम की धारा 19 एक ऐसा ही महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह उचित समझे तो राज्य सरकार को ऐसे मामलों में सूचना दे सकता है जिनमें न्यायालय शुल्क के निर्धारण या विषय-वस्तु के मूल्यांकन से जुड़ी कोई...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 407 से 412 तक मृत्युदंड की पुष्टि के लिए सत्र न्यायालय से हाईकोर्ट तक की पूरी न्यायिक प्रक्रिया
मृत्युदंड (Death Penalty) भारतीय आपराधिक कानून के तहत सबसे कठोर सज़ा मानी जाती है। इसकी गंभीरता को देखते हुए कानून में यह स्पष्ट रूप से तय किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति को Sessions Court (सत्र न्यायालय) द्वारा मृत्युदंड की सज़ा दी जाती है, तो वह सज़ा तब तक लागू नहीं की जा सकती जब तक High Court (उच्च न्यायालय) उसकी पुष्टि (Confirmation) न कर दे।Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 (बीएनएसएस) के अध्याय 30 में इसी प्रक्रिया का पूरा विवरण दिया गया है। इस अध्याय में Sections 407 से 412 तक कुल...
NI Act में Presentment किस कंडीशन में जरूरी नहीं
परक्राम्य लिखत अधिनियम धारा 76 में उन परिस्थितियों को उपबन्धित किया गया है जिसके अन्तर्गत संदाय के लिए लिखतों का Presentment अनावश्यक होता है और लिखत देय तिथि पर अनादृत मान लिया जाता है। धारा 64 का अपवाद धारा 76 है जहाँ संदाय के लिए लिखतों का Presentment आवश्यक बनाया गया है।जहाँ Presentment को निवारित किया जाता है : [ धारा 76(क) ] -जहाँ लिखत का रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता साशय Presentment का निवारण करता है। ऐसा निवारण साशय लिखत के रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता के अभिव्यक्त या विवक्षित कार्य...
NI Act में Presentment के रूल्स
हर लिखत में एक निश्चित धनराशि के संदाय की अपेक्षा होती और ऐसी धनराशि का संदाय तभी होता है जब उसे संदाय के लिए उपस्थापित किया सिवाय माँग पर देय वचन पत्र जिसे किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर देय नहीं बनाया गया है। अतः एक विधिमान्य उन्मुक्ति या संदाय के लिए लिखत का Presentment की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लिखत को संदाय के लिये सम्यक् रूपेण है।उपस्थापित किया जाना चाहिए अन्यथा ऐसे धारक के प्रति लिखत के पक्षकार आबद्धता से उन्मुक्त हो जाएंगे। संदाय के लिए नियमों का उपबन्ध अधिनियम की धारा 64 से 73 तक की गयी...
क्या घरेलू हिंसा की शिकायत Limitation के कारण खारिज की जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने Kamatchi बनाम Lakshmi Narayanan (2022) मामले में एक अहम सवाल का जवाब दिया कि क्या घरेलू हिंसा कानून (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत दायर शिकायत Section 468 CrPC (Code of Criminal Procedure – आपराधिक प्रक्रिया संहिता) में तय Limitation (समय सीमा) के आधार पर खारिज की जा सकती है।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की शिकायतों पर Limitation का नियम लागू नहीं होता, और इस निर्णय ने महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत किया है। घरेलू हिंसा कानून की धारा 12 का...
धारा 410 से 412 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: मृत्युदंड की पुष्टि की प्रक्रिया में हाईकोर्ट की प्रक्रियात्मक जिम्मेदारियाँ
Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) के अध्याय XXX में मृत्युदंड से जुड़ी न्यायिक प्रक्रिया का बहुत गहराई से वर्णन किया गया है। इस प्रक्रिया के पिछले हिस्सों को धारा 407, 408 और 409 में रखा गया है। अब हम अध्याय के अंतिम चरण में प्रवेश कर रहे हैं, जहां High Court के भीतर की प्रक्रिया और उसका Sessions Court को आदेश भेजना शामिल होता है।धारा 410: निर्णय पर दो न्यायाधीशों के हस्ताक्षर आवश्यक (Confirmation or New Sentence to be Signed by Two Judges)जब कोई मामला...
न्यायालय शुल्क निर्धारण की जांच और मूल्यांकन प्रक्रिया : धारा 17, 18 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के अंतर्गत न्यायालयों में प्रस्तुत वादों, अपीलों और अन्य कार्यवाहियों में न्यायालय शुल्क (Court-Fee) की सही गणना और संग्रहण एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।इस प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सटीक बनाने के लिए अधिनियम में धारा 17 और 18 को शामिल किया गया है। इन धाराओं का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी न्यायिक कार्यवाही में न तो कम शुल्क लिया जाए और न ही अधिक मूल्य का गलत मूल्यांकन किया जाए। अब हम इन दोनों धाराओं को सरल हिंदी में...
किराया न्यायाधिकरण और अपीलीय किराया न्यायाधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियाँ – धारा 21 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) के अंतर्गत स्थापित Rent Tribunal (किराया न्यायाधिकरण) और Appellate Rent Tribunal (अपीलीय किराया न्यायाधिकरण) का कार्य केवल विवादों का निपटारा करना ही नहीं, बल्कि समयबद्ध और न्यायसंगत प्रक्रिया अपनाकर पक्षकारों को राहत देना भी है। धारा 21 इन न्यायाधिकरणों की प्रक्रिया और शक्तियों (Procedure and Powers) को विस्तार से समझाती है।1. गवाहों की गवाही केवल हलफनामे द्वारा (Witness Evidence through Affidavit)धारा 21 की उपधारा (1)...
NI Act में पेमेंट के लिए किसी इंस्ट्रूमेंट का Presentment
अधिनियम की धारा 64 यह अपेक्षा करती है कि सभी लिखत अर्थात् वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक संदाय के लिए अवश्य उपस्थापित किए जायेंगे। इसका व्यतिक्रम की दशा में उसके अन्य पक्षकार ऐसे धारक के प्रति उस पर दायी न होंगे।संदाय के लिए Presentment धारक द्वारा या उसकी ओर से उपस्थापित किए जाने होंगे। धारक को ही संदाय के लिए उपस्थापित करना होता है। इसके लिए वह किसी अन्य व्यक्ति को अधिकृत कर सकता है। धारक का अभिकर्ता भी उसकी ओर से उपस्थापित कर सकेगा। किसे Presentment संदाय के लिए Presentment लिखत के रचयिता,...
NI Act में Presentment का स्थान और समय
प्रतिग्रहण का स्थान एवं समय- यदि विनिमय पत्र में कोई विशेष समय एवं स्थान निर्देशित है तो प्रतिग्रहण के लिए उसी समय एवं स्थान पर उपस्थापित किया जाना चाहिए और यदि ऊपरवाल उस समय एवं स्थान पर युक्तियुक्त खोज द्वारा नहीं पाया जाता है, तो विनिमय पत्र अनादृत माना जाता है। (धारा 69)जहाँ कोई विनिमय पत्र के प्रतिग्रहण के लिए कोई स्थान विहित नहीं है तो वहाँ, जहाँ कहाँ भी ऊपरवाल पाया जाता है, Presentment किया जा सकेगा और यदि वह युक्तियुक्त खोज से नहीं पाया जाता है तो विनिमय पत्र अनादूत माना जाएगा। (धारा...
NI Act में चेक का Presentment क्या है?
परक्राम्य लिखत अर्थात् वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक एक निश्चित धनराशि को संदाय करने का वचन या आदेश अन्तर्निहित करते हैं। वचन पत्र में वचन एवं विनिमय पत्र या चेक में निश्चित धनराशि भुगतान करने का आदेश होता है। विनिमय पत्र या चेक में ऊपरवाल को इस आदेश की कोई जानकारी नहीं होनी है। वचन पत्र इसका अपवाद होता है, क्योंकि वचनदाता अर्थात् रचयिता स्वयं इस प्रकार का वचन देता है। अधिनियम में विनिमय पत्र की दशा में प्रतिग्रहण के लिए एवं सभी लिखतों में संदाय के लिए Presentment ा को अपेक्षा की गई है।अधिनियम की...
NI Act में इंस्ट्रूमेंट के टाइम पीरियड के संबंध में प्रावधान
इस एक्ट का आवश्यक लक्षण उसकी परक्राम्यता होती है। यह प्रश्न है कि परक्राम्य लिखत की यह परक्राम्यता कितने समय रहती है? अधिनियम की धारा 60 यह उपबन्धित करती है कि परक्राम्य लिखत की परक्राम्यता अर्थात् वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक की परक्राम्यता होती है।उसके संदाय एवं सन्तुष्टि तकरचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता द्वारा परिपक्वता पर या के पश्चात् परन्तु ऐसे संदाय एवं सन्तुष्टि के पश्चात् नहींइस प्रकार, लिखतों की परक्राम्यता (अन्तरण) की अवधि उसके परिपक्वता पर या के पश्चात् संदाय या सन्तुष्टि तक होती...
NI Act में सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र
सौकर्य विनिमय पत्र एवं वचन पत्र को परक्राम्य लिखत अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है, परन्तु इसे धारा 59 में प्रयुक्त किया गया है। व्यापारिक समुदाय इसे प्रायः अपने व्यवहारों में प्रयोग करता है और इसे सामान्यतया साख के माध्यम के रूप में प्रयुक्त करता है। इसके द्वारा जरूरतमन्द व्यक्तियों को वित्तीय सहयोग एवं सहायता प्रदान की जाती है।इंग्लिश विधि के अन्तर्गत आंग्ल विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 में सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र के सम्बन्ध में निम्नलिखित विशिष्ट उपबन्ध किया गयाविनिमय पत्र का सौकर्य...
NI Act में Dishonor के बाद प्राप्त हुआ इंस्ट्रूमेंट
इस एक्ट की धारा 59 किसी लिखत को अनादर के पश्चात् या अतिशोध्य होने के बाद अभिप्राप्ति के प्रभाव को स्पष्ट करती है। यह सामान्य नियम है कि लिखत के एक सम्यक् अनुक्रम धारक का स्वत्व अन्तरक के स्वत्व में किसी दोष से प्रभावित नहीं होता है। यह नियम हालांकि निम्नलिखित दो शर्तों के अधीन है जहाँ धारक इसे-अनादर की सूचना के साथ अभिप्राप्त करता हैअतिशोध्य होने के पश्चात् अर्थात् परिपक्वता के बाद अभिप्राप्त करता हैअनादूत लिखत का परक्रामण- जहाँ कोई लिखत अप्रतिग्रहण या असंदाय द्वारा अनादृत हो गया है कोई भी...
अपील, याचिकाओं और अन्य कार्यवाहियों पर शुल्क - धारा 15 और 16 राजस्थान कोर्ट फीस मूल्यांकन अधिनियम, 1961
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 न्यायिक कार्यवाहियों में शुल्क की गणना और संग्रहण (Collection) को सुव्यवस्थित करने के लिए एक विस्तृत कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम में पहले ही वादपत्र (Plaint) पर शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया को विस्तार से समझाने के लिए धारा 10 से लेकर धारा 13 तक के प्रावधान दिए गए हैं।इन धाराओं में यह स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार वादी को वाद की विषय-वस्तु (Subject Matter) का मूल्यांकन प्रस्तुत करना होगा, न्यायालय द्वारा इस मूल्यांकन की समीक्षा कैसे...
मृत्युदंड की पुष्टि से जुड़ी प्रक्रिया : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 407 और 408
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) जो अब भारत की नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) है, ने कई अहम बदलाव लाए हैं। इनमें से सबसे गंभीर मामलों में से एक है — मृत्युदंड (Death Sentence) से जुड़ी प्रक्रिया।इस विषय पर अध्याय XXX (Chapter 30) में दो महत्वपूर्ण धाराएं हैं — धारा 407 और धारा 408, जो यह बताती हैं कि जब किसी व्यक्ति को Sessions Court द्वारा मृत्युदंड दिया जाता है, तो उसे सीधे लागू नहीं किया जा सकता। पहले उस फैसले की High Court...
धारा 20 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: आदेशों की पालना और कब्जा वसूली की प्रक्रिया
राजस्थान राज्य में किराया नियंत्रण और मकान मालिक-किरायेदार संबंधों को विनियमित करने हेतु लागू किया गया राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001), विशेष रूप से त्वरित और न्यायसंगत समाधान प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया है।यह अधिनियम किराया विवादों में पारंपरिक दीवानी अदालतों की अपेक्षा अधिक प्रभावी, सरल और गति से न्याय दिलाने वाली प्रणाली प्रदान करता है। केवल न्यायादेश (Judgment) प्राप्त होना पर्याप्त नहीं होता, जब तक वह प्रभावी ढंग से लागू न किया जा सके। इसी...
क्या शिक्षा का मौलिक अधिकार उचित शैक्षणिक वातावरण और आधारभूत संरचना सुनिश्चित करने के लिए सीमित किया जा सकता है?
Dental Council of India v. Biyani Shikshan Samiti मामले में यह प्रश्न उठाया गया कि भारत में दंत चिकित्सा शिक्षा (Dental Education) को नियंत्रित करने का अधिकार पूरी तरह से Dental Council of India (DCI) के पास है या नहीं।इस केस में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह तय किया कि क्या DCI की स्वीकृति (Approval) के बिना राज्य सरकार या विश्वविद्यालय (University) अपने स्तर पर दंत चिकित्सा संस्थानों (Dental Institutions) से जुड़े फैसले ले सकते हैं। यह मामला इस बात को स्पष्ट करता है कि किसी पेशेवर नियामक...
क्या राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 कानून के आने से पहले दिए गए स्वामित्व आदेश पर कोई असर पड़ेगा?
शंकरलाल नदानी बनाम सोहनलाल जैन (2022) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब कोई नया कानून लागू होता है, तो पहले से चल रहे स्वामित्व (Possession) के दावों और विवादों पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। इस मामले में मुख्य प्रश्न यह था कि क्या राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) के प्रभाव में आने के बाद भी सिविल अदालत द्वारा दिया गया स्वामित्व का आदेश वैध और प्रभावी रहेगा।यह लेख इस मामले में कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए कानूनी सिद्धांतों को समझाने का...
न्यायालय के निर्णय का अनुवाद और जिला मजिस्ट्रेट को भेजने की प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 405 और 406
न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए अभियुक्त (Accused) और अन्य पक्षकारों (Parties) को यह जानने का अधिकार होता है कि न्यायालय ने क्या निर्णय दिया और वह निर्णय किस आधार पर दिया गया। कई बार न्यायालय की आधिकारिक भाषा अभियुक्त या अन्य पक्षकारों की भाषा से भिन्न होती है। ऐसे मामलों में निर्णय (Judgment) का अनुवाद (Translation) आवश्यक हो जाता है ताकि सभी संबंधित पक्ष न्यायिक प्रक्रिया को पूरी तरह समझ सकें।इसके अतिरिक्त, न्यायिक प्रशासन (Judicial Administration) में समन्वय...