जानिए हमारा कानून
भाग 1: आरोपों को किस तरह से तैयार किया जाना चाहिए, उनके कानूनी आवश्यकताएँ क्या हैं? धारा 234, BNSS, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, ने पुराने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) को बदल दिया है और कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। इस संहिता का एक महत्वपूर्ण अध्याय अध्याय 18 (Chapter XVIII) है, जो न्यायालय में आरोप (Charges) दर्ज करने की प्रक्रिया और उसके रूप को समझाता है।आरोप का विचार आपराधिक प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाता है, क्योंकि यह उस आरोप को परिभाषित करता है जो आरोपी पर लगाया गया है और जो अपराध वह करने का आरोपित है। इस लेख में, हम भारतीय नागरिक सुरक्षा...
पब्लिक सर्वेंट द्वारा गिरफ्तारी में विफलता: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 259
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को प्रतिस्थापित किया है। इसमें सार्वजनिक सेवकों (Public Servants) की ज़िम्मेदारियों और उनके कर्तव्यों को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।धारा 259 उन सार्वजनिक सेवकों से संबंधित है, जो किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने या उसे हिरासत में रखने में जानबूझकर विफल रहते हैं, जब कानून उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य करता है। यह प्रावधान इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि पुलिस...
Online FIR अपलोड करने का न्यायिक निर्देश: पारदर्शिता सुनिश्चित करना
सुप्रीम कोर्ट ने यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2016) केस में यह स्पष्ट किया कि नागरिकों को FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) तक समय पर पहुँच प्राप्त होना उनका बुनियादी अधिकार है।कोर्ट ने माना कि FIR का समय पर ऑनलाइन उपलब्ध होना न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Liberty) की रक्षा करता है बल्कि पुलिस जांच में पारदर्शिता (Transparency) भी लाता है। इस फैसले के जरिए कोर्ट ने FIR अपलोड करने के नियम तय किए, जिसमें संवेदनशील (Sensitive) मामलों में गोपनीयता (Privacy) बनाए रखने का प्रावधान...
कितनी तरह की होती हैं कानून की किताबें?
हालांकि किताबें तो सिर्फ किताबें होतीं हैं लेकिन कानून की किताबों के मामलों में थोड़ी डिफरेंट टर्मिनोलॉजी रहती है। आमतौर पर यह किताबे किसी अदालत, किसी लॉ कॉलेज लाइब्रेरी और वकीलों के दफ्तरों में नज़र आती हैं। इन किताबों में अनेक तरह की किताबें होती हैं जैसे लॉ जर्नल्स, ऑल इंडिया रेकॉर्ड, कमेंट्री, बेयरेक्ट इत्यादि।बेयर एक्टबेयर एक्ट उस किताब को कहा जाता है जिसमे केवल संसद द्वारा बनाया गया अधिनियम होता है। कानून मुख्य रूप से संसद और राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाया जाता है। किसी भी कानून को मुख्य...
BNS सेक्शन 85 पर सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 पति और उसके घर के सदस्यों द्वारा पत्नी और बहू के साथ क्रूरता करने को अपराध बनाती है। इस धारा के अंतर्गत एक महिला अपने पति के साथ साथ सुसराल के अन्य लोगों के विरुद्ध भी प्रकरण पंजीबद्ध करवा सकती है यदि उसके साथ कोई अपराध घटा है।इस धारा में पति और उसके रिश्तेदारों को 3 वर्ष तक की सजा से दंडित किए जाने का प्रावधान है। कोई भी पीड़ित महिला संबंधित थाना क्षेत्र में इस अपराध की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे सकती है। अनेक मामलों में यह देखा गया है कि इस धारा का दुरुपयोग...
1382 जेलों में अमानवीय स्थितियों पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कैदियों की मौतों पर चिंतन
रे: इनह्यूमन कंडीशंस इन 1382 प्रिज़न्स (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जेलों में कैदियों के साथ होने वाली हिंसा और मौतों के गंभीर मुद्दों पर गौर किया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों की खराब स्थितियों, जैसे भीड़भाड़, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और आत्महत्या के बढ़ते मामलों को उजागर किया।कोर्ट ने कैदियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया और उन प्रणालीगत समस्याओं (systemic issues) को संबोधित किया, जो हिरासत में होने वाली अप्राकृतिक मौतों का कारण बनती हैं। मुख्य...
डिफॉल्ट बेल' कब मिल सकती है? : राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य मामले का विश्लेषण
राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य का मामला डिफॉल्ट बेल और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) की धारा 167(2) की व्याख्या पर आधारित है।इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उन परिस्थितियों पर ध्यान दिया जब जांच समय पर पूरी नहीं होती और अभियुक्त को बिना चार्जशीट (Chargesheet) दाखिल किए हिरासत में रखा जाता है। इस मामले का मुख्य बिंदु यह था कि जब अभियोजन पक्ष जांच पूरी करने में असफल रहता है, तो क्या अभियुक्त को डिफॉल्ट बेल का अधिकार मिलना चाहिए। मुख्य प्रावधान (Key Legal...
शिकायत और पुलिस रिपोर्ट के मामलों का एकीकरण : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 233 का विस्तृत विवरण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुआ है, ने भारत में आपराधिक जांच और ट्रायल (Trial) की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इस अधिनियम की धारा 233 एक अहम प्रावधान है, जो उस स्थिति से निपटने का तरीका बताती है जब एक शिकायत मामला (Complaint Case) मैजिस्ट्रेट के सामने चल रहा हो और यह पता चले कि पुलिस भी उसी अपराध की जांच कर रही है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि ऐसे मामलों में न्याय प्रक्रिया सुचारू और प्रभावी रहे, और मामलों में अनावश्यक विलंब न हो। शिकायत मामले और...
न्यायिक शक्ति का दुरुपयोग: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 257 और 258
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, ने भारतीय दंड संहिता को बदलकर भारत के लिए एक नया कानूनी ढांचा पेश किया। इस कानून के कई प्रावधान हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सार्वजनिक अधिकारी (Public Servants) अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न करें।धारा 257 और 258 विशेष रूप से उन भ्रष्ट (Corrupt) या दुर्भावनापूर्ण (Malicious) कार्यों पर केंद्रित हैं, जिनमें सार्वजनिक अधिकारी न्यायिक और हिरासत (Confinement) से जुड़े मामलों में शक्ति का गलत उपयोग करते हैं। ये प्रावधान पहले के धारा 255 और...
फैमिली कोर्ट की एक्स पार्टी डिक्री कब रद्द की जा सकती है?
जब किसी भी सिविल मुकदमे में प्रतिवादी उपस्थित नहीं होता है तब कोर्ट प्रतिवादी को एक्सपार्टी कर देती है और केवल वादी के साक्ष्य लेकर मामले में अपना फाइनल डिसीजन दे देती है।कोर्ट का यह मानना रहता है कि यदि उसने किसी व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित होने हेतु बुलाया है और ऐसे बुलावे के बाद भी संबंधित व्यक्ति कोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं होता है, तब कोर्ट उस व्यक्ति को एकपक्षीय कर केवल एक पक्षकार को सुनकर कोई आदेश और डिक्री पारित कर देता है।कभी-कभी कोर्ट द्वारा दिया गया ऐसा एकपक्षीय आदेश न्याय के अनुरूप...
चेक बाउंस केस में कब मिलता है इंटरिम कंपनसेशन?
चेक बाउंस केस में जब फरियादी द्वारा मुकदमा कोर्ट में लगाया जाता है तब फरियादी को कोर्ट फीस अदालत में जमा करनी होती है तब ही मुकदमा कोर्ट में रजिस्टर्ड होता है। लेकिन फरियादी को भी इंटरिम कंपनसेशन मिलता है। जब अभियुक्त अदालत में उपस्थित होता है तब उससे फरियादी को इंटरिम कंपनसेशन दिलवाए जाने के प्रावधान हैं।चेक लेनदेन के बाद अनेक मामलों में धोखाधड़ी भी देखने को मिलती है। जहां लोग चेक दे देते हैं लेकिन उनके खाते में चेक जितनी रकम उपलब्ध नहीं होती है या फिर वह गलत साइन कर देते हैं या फिर कोई ऐसा चेक...
मेंटेनेंस केस में क्या जटिलताएं हैं?
मेंटेनेंस का केस यूं तो साधारण प्रकरण है और जल्दी से समाप्त भी हो जाता है लेकिन इस केस में कुछ ऐसा भी स्थितियां हैं जब अनेक जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं और यहाँ तक व्यक्ति को जेल भी जाना पड़ जाता है।पत्नी बच्चे और माता पिता के भरण पोषण नहीं करने पर आश्रित संबंधित मजिस्ट्रेट को एक आवेदन देकर भरण पोषण प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान समय में माता पिता के मामले में भरण पोषण नहीं देने जैसी चीज कम देखने को मिलती है। लेकिन पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण से संबंधित मामले बहुत देखने को मिलते हैं। शादी होती है...
पैरेंट्स किसी स्थिति में वयस्क संतान को घर से निष्कासित कर सकते हैं?
ऐसी बहुत बहुत सी स्थितियां हैं जहां माता-पिता अपनी वयस्क संतान को अपने खरीदे हुए घर से निष्कासित कर देते हैं। जैसे कभी-कभी यह देखने में मिलता है कि संताने माता-पिता के साथ बुरा व्यवहार करती हैं और माता-पिता को अपमानित करती हैं। कई संताने ऐसी हैं जो नशा इत्यादि भी करती हैं और नशे के रुपए माता-पिता से मांगती हैं। कई बार देखने में यह भी आता है कि संतान की वैवाहिक मुकदमेबाजी चल रही हो और संतान अपने माता-पिता के घर में रह रही हो तब माता-पिता ऐसी संतान को भी घर से निष्कासित कर देते हैं। इस प्रकार अनेक...
पितृसत्ता और भेदभाव: कानूनी और संवैधानिक प्रावधान
पितृसत्ता, एक सामाजिक संरचना है जिसमें पुरुषों को महिलाओं पर वर्चस्व (Dominance) प्राप्त होता है। यह व्यवस्था संविधान में निहित समानता और व्यक्तिगत गरिमा (Dignity) के सिद्धांतों के विपरीत है। भारतीय संविधान हर व्यक्ति को समानता (Equality) और भेदभाव रहित व्यवहार का अधिकार देता है। लेकिन उत्पीड़न (Harassment) और मानसिक शोषण जैसी प्रथाएं इन मूल्यों को कमजोर करती हैं।यह लेख इस बात की गहन समीक्षा करता है कि कैसे संविधानिक प्रावधान और न्यायालयों के ऐतिहासिक निर्णय पितृसत्ता और महिलाओं के प्रति भेदभाव...
लोक सेवकों के कर्तव्यों के उल्लंघन के कानूनी परिणाम: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 255 और 256
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की जगह ले ली है, और भारत में एक नया कानूनी ढांचा प्रस्तुत किया है।इस संहिता की विभिन्न धाराओं में से, धारा 255 और 256 उन लोक सेवकों (Public Servants) के दुराचार (Misconduct) को संबोधित करती हैं जो जानबूझकर अपनी आधिकारिक कर्तव्यों (Official Duties) का उल्लंघन करते हैं जिससे न्याय को नुकसान पहुंच सकता है या कुछ व्यक्तियों या संपत्ति को अवैध रूप से लाभ हो सकता है। इन धाराओं का उद्देश्य यह...
सेशन कोर्ट को रिकॉर्ड और साक्ष्य भेजना : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के सेक्शन 232 का विश्लेषण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई, ने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की जगह ली है। इसका उद्देश्य आपराधिक प्रक्रिया को अधिक कुशल और न्यायसंगत बनाना है।सेक्शन 232 विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है जो सत्र न्यायालय (Court of Session) द्वारा विशेष रूप से सुनवाई योग्य होते हैं। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि गंभीर मामलों को उचित न्यायालय में स्थानांतरित किया जाए और सावधानीपूर्वक निपटारा हो। सेक्शन 232 के तहत आवश्यकताएँ (Requirements Under Section 232) जब किसी...
क्या आत्महत्या के लिए स्पष्ट उकसावे को साबित किए बिना आत्महत्या का अपराध साबित किया जा सकता है?
यह लेख पवन कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (Pawan Kumar v. State of Himachal Pradesh) के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाता है। इस निर्णय में अदालत ने आत्महत्या के लिए उकसाने (Abetment of Suicide) के तहत दोष सिद्ध करने के लिए आवश्यक कानूनी सिद्धांतों को गहराई से समझाया है।इसमें भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 306 और धारा 107 पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो आत्महत्या के लिए उकसाने की परिभाषा और उसकी सीमा स्पष्ट करती हैं। इस मामले में न्यायालय ने यह भी बताया कि कैसे मानसिक उत्पीड़न...
जानिए दानपत्र से संबंधित कानून
किसी भी संपत्ति का अंतरण अनेक प्रकारों से किया जा सकता है। उन प्रकारों में एक प्रकार दान भी है। दान में बगैर किसी प्रतिफल के संपत्ति का अंतरण कर दिया जाता है। ऐसे व्यवहार में जो दस्तावेज तैयार होता है उसे दानपत्र कहा जाता है। दान की परिभाषा संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 के अंतर्गत प्रस्तुत की गई है, जहां पर दान के कुछ तत्व बताए गए हैं।दान में पक्षकारों का सक्षम होना आवश्यक होता है। पक्षकारों का सक्षम होना संविदा अधिनियम के अंतर्गत माना जाता है। संविदा अधिनियम में कोई व्यक्ति संविदा करने हेतु...
एक बेटी के प्रति पिता की कितनी हैं कानूनी जिम्मेदारियां
इंडिया का लॉ सभी नागरिकों और गैर नागरिकों को जीवन के हर क्षेत्र में अधिकारों के साथ जिम्मेदारी भी देता है जिन्हें पूरा करना हर व्यक्ति के लिए ज़रूरी है। इस ही प्रकार पिता को अपनी संतानों के भरण पोषण की भी ज़िम्मेदारी है और एक अविवाहित बेटी के भारत पोषण की ज़िम्मेदारी भी पिता की है। भरण पोषण से संबंधित कानून घरेलू हिंसा अधिनियम में भी मिलते हैं, जहां महिलाओं को भरण-पोषण दिलवाने की व्यवस्था की गई है। इसी के साथ हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत भी भरण-पोषण के प्रावधान मिलते हैं। जहां पर एक पत्नी अपने...
सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में त्वरित सुनवाई और राहत पर क्या निर्देश दिए?
Meters and Instruments Pvt. Ltd. बनाम Kanchan Mehta (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत चेक बाउंस (Cheque Dishonour) से जुड़े मामलों पर महत्वपूर्ण मुद्दों का विश्लेषण किया।कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों के त्वरित निपटान (Speedy Disposal) की आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि अधिभारित न्यायपालिका (Overburdened Judiciary) से निपटने के लिए समय पर न्याय दिलाना क्यों जरूरी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन अपराधों के प्रतिपूरक और...