हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 2023 के तहत धारा 30 में उल्लिखित दंड

Himanshu Mishra

10 March 2025 3:29 PM

  • हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 2023 के तहत धारा 30 में उल्लिखित दंड

    हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम, 2023 (Himachal Pradesh Rent Control Act, 2023) मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच संबंधों को नियंत्रित करता है।

    यह सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्ष इस अधिनियम के प्रावधानों (Provisions) का पालन करें और किराये से जुड़े नियमों का उल्लंघन न करें। इस अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए Section 30 में उन लोगों के लिए दंड (Penalty) निर्धारित किया गया है जो इसके प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। इन दंडों में जुर्माना (Fine) और कारावास (Imprisonment) शामिल हैं, जो अपराध की गंभीरता के आधार पर तय किए जाते हैं।

    Section 30 के तहत दंड मुख्य रूप से Section 7, 8, 10, 11, 12, 15 और 29 का उल्लंघन करने पर लागू होते हैं। यह अनुभाग यह भी बताता है कि इन मामलों की सुनवाई (Hearing) किस अदालत (Court) में होगी और कितने समय के भीतर शिकायत (Complaint) दर्ज की जानी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) सुचारू रूप से चले और अनावश्यक देरी न हो।

    इस अनुभाग में उल्लिखित दंडों को विस्तार से समझना ज़रूरी है ताकि मकान मालिक और किरायेदार किसी भी कानूनी कार्रवाई से बच सकें। इस लेख में हम इस अनुभाग के प्रत्येक उपखंड (Subsection) को उदाहरणों (Illustrations) के साथ सरल भाषा में समझाएंगे।

    Section 30(1): Section 10, 11, 12 या 29 का उल्लंघन करने पर दंड

    यदि कोई व्यक्ति Section 10, Section 11, Section 12 या Section 29 का उल्लंघन करता है, तो उसे अधिकतम एक हज़ार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। ये अनुभाग किराये की संपत्ति (Rented Property) से संबंधित महत्वपूर्ण नियमों को निर्दिष्ट करते हैं, जैसे कि मकान मालिक और किरायेदार की ज़िम्मेदारियां (Responsibilities), किराये के समझौते (Rent Agreements) और संपत्ति से संबंधित जानकारी देना।

    उदाहरण के लिए, Section 29 के अनुसार, मकान मालिक और किरायेदार को किराये की संपत्ति से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी Controller को प्रदान करनी होती है। यदि कोई मकान मालिक यह जानकारी देने से इनकार करता है या कोई किरायेदार गलत जानकारी देता है, तो उसे Section 30(1) के तहत एक हज़ार रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।

    यह दंड सुनिश्चित करता है कि मकान मालिक और किरायेदार पारदर्शी (Transparent) रहें और किराये से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी सही तरीके से उपलब्ध कराएं।

    Section 30(2): Section 7(a) या Section 8 का उल्लंघन करने पर दंड

    यदि कोई व्यक्ति Section 7(a) या Section 8 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो उसे अधिकतम दो साल की कारावास (Imprisonment) और जुर्माने (Fine) की सजा हो सकती है।

    Section 7(a) जबरन बेदखली (Illegal Eviction) से संबंधित है, जबकि Section 8 मकान मालिक की संपत्ति के रखरखाव (Maintenance) से संबंधित ज़िम्मेदारियों को निर्धारित करता है।

    उदाहरण के लिए, अगर कोई मकान मालिक बिना कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) का पालन किए किरायेदार को ज़बरदस्ती घर से निकाल देता है, तो उसे Section 30(2) के तहत सजा हो सकती है।

    इसी तरह, अगर मकान मालिक संपत्ति की मरम्मत (Repairs) करने के लिए बाध्य है, लेकिन वह मरम्मत नहीं कराता, तो उसे कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है।

    इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मकान मालिक और किरायेदार कानून का सम्मान करें और किसी भी तरह की गैरकानूनी गतिविधियों (Illegal Activities) में शामिल न हों।

    Section 30(3): बेदखली के बाद संपत्ति का उपयोग न करने पर दंड

    अगर कोई निर्दिष्ट मकान मालिक (Specified Landlord) जैसे कि विधवा (Widow), विधुर (Widower), माता-पिता, संतान (Child), पोता-पोती (Grandchild) या विधवा बहू (Widowed Daughter-in-law) किरायेदार को Section 15(2) के तहत बेदखल (Evict) कराता है, लेकिन खुद उस संपत्ति में लगातार तीन महीने तक नहीं रहता, तो उसे अधिकतम छह महीने की कारावास या एक हज़ार रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

    यह प्रावधान उन मकान मालिकों को रोकने के लिए बनाया गया है जो किरायेदारों को गलत कारणों से निकालकर बाद में संपत्ति को दूसरों को किराये पर दे देते हैं।

    उदाहरण के लिए, अगर कोई विधवा दावा करती है कि उसे अपने मकान में रहने की ज़रूरत है और वह इस आधार पर किरायेदार को बेदखल कर देती है, लेकिन बाद में उस मकान को किसी और को किराये पर दे देती है, तो यह Section 30(3) का उल्लंघन होगा। ऐसे मामले में उसे कानूनी कार्रवाई (Legal Action) का सामना करना पड़ेगा।

    यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि मकान मालिक ईमानदारी (Good Faith) से कार्य करें और बेदखली के कानूनों का दुरुपयोग न करें।

    Section 30(4): मामलों की सुनवाई के लिए उपयुक्त अदालत

    Section 30(4) के अनुसार, इस अधिनियम के तहत किसी भी अपराध की सुनवाई (Trial) प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (Magistrate of First Class) से कम दर्जे की अदालत में नहीं होगी।

    इसका अर्थ यह है कि छोटे स्तर की अदालतें किराये से जुड़े गंभीर मामलों की सुनवाई नहीं कर सकतीं। केवल अनुभवी और उच्च न्यायिक अधिकारी (Judicial Officers) ही इन मामलों पर निर्णय ले सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई किरायेदार मकान मालिक के खिलाफ जबरन बेदखली (Illegal Eviction) की शिकायत दर्ज करता है, तो यह मामला द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट (Magistrate of Second Class) के पास नहीं जाएगा, बल्कि केवल प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट ही इसकी सुनवाई करेगा।

    Section 30(5): शिकायत दर्ज करने की समय सीमा

    Section 30(5) के अनुसार, अदालत किसी भी अपराध की सुनवाई तभी करेगी जब उस अपराध के होने की तारीख से तीन महीने के भीतर शिकायत दर्ज की गई हो।

    इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानूनी कार्रवाई समय पर हो और अनावश्यक देरी न हो। अगर शिकायत दर्ज करने की कोई समय सीमा नहीं होगी, तो इससे मामलों में अनिश्चितता (Uncertainty) बनी रहेगी और न्याय मिलने में देरी होगी।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी मकान मालिक ने 1 जनवरी को अवैध रूप से किरायेदार को बेदखल कर दिया, तो किरायेदार को 31 मार्च तक शिकायत दर्ज करनी होगी। अगर वह इस अवधि के भीतर शिकायत दर्ज नहीं करता, तो अदालत इस मामले को स्वीकार नहीं करेगी।

    हालांकि, अगर किसी विशेष कारण से शिकायतकर्ता (Complainant) देरी कर देता है, जैसे कि स्वास्थ्य संबंधी समस्या, तो अदालत विशेष परिस्थितियों में शिकायत स्वीकार कर सकती है।

    Section 30 हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम, 2023 को प्रभावी ढंग से लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह यह सुनिश्चित करता है कि मकान मालिक और किरायेदार अधिनियम के प्रावधानों का पालन करें और कोई भी व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करने से बचे।

    यह अनुभाग किरायेदारों को गैरकानूनी बेदखली से बचाने और मकान मालिकों को उनकी कानूनी ज़िम्मेदारियों का पालन करने के लिए मजबूर करता है। इसके तहत अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग दंड निर्धारित किए गए हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि छोटे अपराधों पर जुर्माना लगाया जाए और गंभीर अपराधों पर कड़ी सजा दी जाए।

    अगर इस अनुभाग को सख्ती से लागू किया जाए, तो यह हिमाचल प्रदेश में किराये की संपत्तियों को अधिक पारदर्शी (Transparent) और संगठित (Organized) बनाने में मदद करेगा।

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