Transfer Of Property में गिफ्ट का रजिस्ट्रीकरण
Shadab Salim
8 March 2025 1:39 PM

यदि गिफ्ट की विषयवस्तु अचल सम्पत्ति है तो उसका रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होगा तथा इस धारा के अन्तर्गत एक वैध गिफ्ट का सृजन होगा लेकिन एक मुसलमान द्वारा किया गया गिफ्ट मौखिक हो सकेगा तथा एक रजिस्ट्रीकृत विलेख की आवश्यकता नहीं होगी गिफ्ट की वैधता के लिए यदि पक्षकारों के अशिक्षित होने के कारण दान-विलेख रजिस्ट्रीकृत नहीं हुआ है तो इस गिफ्ट के फलस्वरूप आदाता में किसी प्रकार का हित सृजित नहीं होगा। कालान्तर में यदि इस दान-विलेख को रजिस्ट्रीकृत किया जाता है जिससे कि गिफ्ट सम्पत्ति का भविष्य में संव्यवहार न हो सके तो रजिस्ट्रीकरण की यह प्रक्रिया प्रभावहीन होगी, आदाता सम्पत्ति का स्वामी नहीं बन सकेगा तथा दाता उक्त सम्पत्ति का विक्रय कर सकेगा।
यदि किसी सम्पत्ति का अन्तरण रजिस्ट्रीकृत दान-विलेख द्वारा किया जाता है तथा आदाता उसे स्वीकार कर लेता है और दानविलेख में यह स्पष्ट वर्णित है कि दाता सम्पत्ति में अपना आत्यन्तिक हित आदाता को अन्तरित करता है तथा अपने जीवनकाल तक सम्पत्ति के उपभोग का मात्र अधिकार अपने पास रोके रखता है तो इन परिस्थितियों में दाता गिफ्ट का प्रतिसंहरण कर गिफ्ट को विषयवस्तु का अन्तरण विक्रय विलेख निष्पादित कर किसी अन्य के पक्ष में नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा करता है तो गिफ्ट का संव्यवहार शून्य होगा।
पर्दा नशीन स्त्री द्वारा गिफ्ट कपट, उत्पीड़न एवं वास्तविक असम्यक् प्रभाव से सम्बन्धित प्रारम्भिक विधि यह है कि जो व्यक्ति इन तत्वों का आरोप लगाता है उसे हो इन्हें साबित करना पड़ता है। परन्तु भारत में, अपवाद स्वरूप पर्दानशीन महिलाओं को विशेष संरक्षण दिया गया है तथा यह साबित करने का दायित्व उस व्यक्ति पर होता है जो उस दस्तावेज को वैध घोषित कराना चाहता है। उसे यह साबित करना होता है कि पदानशीन स्त्री ने सभी बातों को भली-भांति समझते हुए संव्यवहार किया था तथा दस्तावेज निष्पादित किया था। इस भार का उन्मोचन तभी होगा जब यह साबित हो जाए कि दस्तावेज के तथ्यों को पर्दा नशीन स्त्री को स्पष्ट कर दिया गया था तथा उसने उन्हें भलीभांति समझ लिया था। इसके अतिरिक्त अन्य साक्ष्य भी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रस्तुत किए जा सकेंगे।
वृद्ध स्त्री द्वारा जो अशक्त या पर्दा नशीन न हो के द्वारा दान-पर्दा नशीन स्त्री द्वारा किए जाने वाले गिफ्ट के सम्बन्ध में जो सिद्धान्त लागू होते हैं वहीं सिद्धान्त वस्तुतः एक वृद्ध स्त्री द्वारा किए जाने वाले गिफ्ट के सम्बन्ध में भी लागू होते हैं। यदि स्त्री अशक्त नहीं है तो भी कृष्ण प्रसाद बनाम गोपाल प्रसाद के वाद में एक 90 वर्ष की महिला ने जो कि न तो आशक्त थी और न ही पर्दानशीन, अपने पौत्र के पक्ष में एक सम्पत्ति का गिफ्ट किया। वह एक विवेकशील महिला थी इन तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि यह साबित करने का कि महिला ने कपट के प्रभाव में आकर सम्पत्ति का गिफ्ट किया था, उस व्यक्ति पर होगा जो यह अभिकथन करता है कि गिफ्ट का संव्यवहार स्वैच्छिक नहीं है, अपितु कपट प्रपोड़न या असम्यक प्रभाव से ग्रसित है। दाता ने कपट के प्रभाव में आकर सम्पत्ति को गिफ्ट किया था, यह साबित करने का दायित्व उस व्यक्ति पर होता है जो इस आशय का आरोप लगाता है। यह भार आदाता पर विस्थापित नहीं हो जाएगा।
जब एक वृद्ध स्त्री अपनी सम्पत्ति का गिफ्ट करती है तो यह सुनिश्चित करना उपयुक्त होगा कि उसने सम्पत्ति का गिफ्ट स्वविवेक से किया था अथवा प्रपीड़न, असम्यक् प्रभाव, मिथ्या व्यपदेशन, कपट अथवा भूल के कारण किया था। सम्पत्ति का गिफ्ट करने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति एवं सुसंगत परिस्थितियाँ इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इस सन्दर्भ में केरल हाईकोर्ट द्वारा निर्णोद वाद, मणिराजन पिल्लई एवं अन्य बनाम के० के० करुणाकरन नायर एवं अन्य महत्वपूर्ण दिशानिर्देश प्रस्तुत करता है। इस वाद में तथ्य इस प्रकार थे। प्रतिउत्तरदाता करुणाकरन एवं अन्य का यह अभिकथन था कि उनके माम ने एक गिफ्ट विलेख का निष्पादन उनके पक्ष में किया था जिसका विरोध अपीलार्थियों एवं निष्पादक की दो अन्य बहनों के पुत्रों एवं उनके भाई के पुत्रों ने किया।
अपीलार्थियों का कथन था कि गिफ्ट विलेख का निष्पादन कपट एवं मिथ्या व्यपदेशन के फलस्वरूप किया गया था। मूलगिफ्ट विलेख सदैव निष्पादक के कब्जे में था, जिसने कालान्तर में यह एहसास होने पर कि गिफ्ट विलेख का निष्पादन कपट एवं मिथ्या व्यपदेशन से प्रभावित है गिफ्ट विलेख को निरस्त कर दिया तथा एक दूसरा गिफ्ट विलेख अपनी बहनों एवं भाई के पक्ष में निष्पादित कर दिया, गिफ्ट की सम्पत्ति में अपना आजीवन हित आरक्षित करते हुए निष्पादक की मृत्यु के उपरान्त आदाताओं ने पाश्चिक गिफ्ट विलेख के अन्तर्गत सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त कर लिया जिसे वर्तमान प्रतिउत्तरदाता ने चुनौती दी।
विचारण के दौरान कोर्ट ने यह पाया कि निष्पादक एक विधि स्नातक थी एवं तत्समय अपनी देख-भाल करने के लिए चिकित्सीय मानकों के अनुसार, स्वस्थ थी, यद्यपि वह पर्याप्त रूप में वृद्ध (बुजुर्ग) थी एवं बहुधा उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाता था चिकित्सीय लाभ हेतु विशेष कर तब जब उन्होंने गिफ्ट विलेख का निष्पादन किया था। कोर्ट ने सभी सुसंगत तथ्यों एवं परिस्थितियों का अवलोकन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि केवल इस आधार पर कि जिस समय गिफ्ट विलेख का निष्पादन किया गया था निष्पादक पर्याप्त रूप में वृद्ध थी एवं उन्हें बार बार अस्पताल में भर्ती कराया जाता था चिकित्सीय उपचार हेतु अपने आप में यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत नहीं करता है कि उन्होंने कपट या मिथ्या व्यपदेशन के फलस्वरूप गिफ्ट विलेख का निष्पादन किया था।
वह विधि स्नातक थी एवं अपनी देख-भाल करने में समर्थ थी, इस बात का प्रतीक है कि वह मानसिक रूप में स्वस्थ थी, अतः गिफ्ट विलेख निष्पादित करते समय वह कपट, मिथ्या व्यपदेशन अथवा असम्यक् प्रभाव से पीड़ित थीं यह निष्कर्ष निकालना उपयुक्त नहीं है। कोर्ट ने यह भी अभिप्रेक्षित किया कि इस प्रकार के मामलों में सबूत का भार आदाता पर हस्तान्तरित नहीं होता है कि वह साबित करे कि गिफ्ट इसे प्रदूषित करने वाले कारकों से मुक्त था।
एक पर्दानशीन स्त्री द्वारा किए जाने वाले गिफ्ट से सम्बन्धित सिद्धान्त एक निरक्षर स्त्री द्वारा किए जाने वाले गिफ्ट के सम्बन्ध में भी लागू होता है। विधि ऐसी स्त्री के इर्द गिर्द एक विशिष्ट संरक्षण व्यवस्था स्थापित करती है। ऐसी स्त्री द्वारा किये जाने वाले गिफ्ट का उसे पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। वह उसे भलीभांति समझती हो। गिफ्ट का संव्यवहार उसके अपने मन को उपज हो जिस प्रकार निष्पादन निष्पादित करने वाले व्यक्ति का एक मौलिक कृत्य होता है। कोर्ट का इस बात से सन्तुष्ट होना आवश्यक है कि स्त्री की अपनी स्वतंत्र इच्छा थी गिफ्ट विलेख निष्पादित करने की; वह पर्याप्त रूप में बुद्धिमान थी संव्यवहार की स्थिति को समझने में यह भी साबित होना आवश्यक है कि लिखत की बातें जिस रूप में उसके समक्ष प्रकट की गयी थीं उसने उन्हें उसी रूप में समझा था एवं इस पूरी प्रक्रिया में किसी प्रकार के असम्यक् प्रभाव या मिथ्या अभिकथन का उपयोग हुआ था कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि के निरक्षर स्त्री जो गिफ्ट विलेख निष्पादित कर रही है वह स्त्री थी जिसे सम्यक् रूप में सूचना दी गयी थी कि वह क्या कर रही है पर क्या करने जा रही है।
दाता की मृत्योपरान्त गिफ्ट विलेख का रजिस्ट्रीकरण-
गिफ्ट की वैधता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि गिफ्ट का रजिस्ट्रीकरण स्वयं दाता द्वारा ही हो । दाता की मृत्यु के पश्चात् भी गिफ्ट विलेख का रजिस्ट्रीकरण हो सकेगा एवं गिफ्ट वैध होगा। इस सन्दर्भ में यह महत्वपूर्ण नहीं होगा कि आदाता दाता का एक निकटवर्ती सम्बन्धी है अथवा एक अजनबी। भवतोष बनाम सुलेमान के वाद में एक पति ने अपनी पत्नी के पक्ष में एक सम्पत्ति गिफ्ट द्वारा अन्तरित किया। इससे पूर्व कि गिफ्ट का रजिस्ट्रीकरण हो, पति दाता की मृत्यु हो गयी। पति की मृत्योपरान्त विधवा ने गिफ्ट विलेख का रजिस्ट्रीकरण स्वयं कराया। कोर्ट ने यह अभिनिर्णीत किया कि यह एक वैध गिफ्ट विलेख हैं तथा धारा 123 द्वारा पूर्णतया आच्छादित है।
गिफ्ट की वैधता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि गिफ्ट विलेख का रजिस्ट्रीकरण दाता के जीवनकाल में ही हो। दाता की मृत्योरान्त उसके विधिक प्रतिनिधियों द्वारा गिफ्ट विलेख के रजिस्ट्रीकरण का वही प्रभाव होता है जो प्रभाव गिफ्ट विलेख का होता यदि उसका रजिस्ट्रीकरण स्वयं दाता द्वारा अपने जीवनकाल में कराया गया होता। यदि गिफ्ट विलेख के निष्पादन के पश्चात् दाता की मृत्यु हो जाती है तथा आदाता उक्त विलेख की रजिस्ट्री कराने हेतु कई प्रभावी कदम नहीं उठाता है, तो यह गिफ्ट विफल हो जाएगा।
यदि गिफ्ट विलेख का रजिस्ट्रीकरण दाता की इच्छा के विरुद्ध होता है तो भी गिफ्ट विलेख वैध होगा। इसी प्रकार यदि दाता ने गिफ्ट विलेख निष्पादित कर विलेख आदाता को परिदत्त कर दिया तथा आदाता ने बाद में उसकी रजिस्ट्री कर लिया तो भी संव्यवहार एवं दस्तावेज वैध होंगे। दाता आदाता को गिफ्ट विलेख की रजिस्ट्री कराने से रोकने हेतु व्यादेश नहीं ला सकेगा गिफ्ट विलेख के निष्पादित एवं आदाता को परिदत्त होते ही गिफ्ट पूर्ण हो जाता है। अतः बाद की किसी कार्यवाही का संव्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। सम्यक् रूप में किया गया गिफ्ट एवं आदाता द्वारा उसकी स्वीकृति केवल इसलिए अवैध नहीं होगी क्योंकि बाद में दाता की इच्छा के विरुद्ध उसका रजिस्ट्रीकरण कराया गया। दाता की मृत्यु के पश्चात् गिफ्ट विलेख का रजिस्ट्रोकरण आदाता द्वारा मृत दाता के विधिक प्रतिनिधियों की सम्मति के बिना भी कराया जा सकेगा तथा यह रजिस्ट्री वैध होगी।
जहाँ गिफ्ट विलेख आदाता को संदत्त कर दिया गया है तथा दाता ने, गिफ्ट को प्रभावी बनाने हेतु, कुछ भी उसकी सामर्थ्य में था, वह समस्त कार्य कर दिया है, तो दाता की मृत्यु अथवा उसके जो द्वारा प्रति विखण्डन या प्रत्संहरण का कोई प्रतिकूल प्रभाव रजिस्ट्रीकरण पर नहीं पड़ेगा तथा रजिस्ट्रीकरण अधिकारी इनमें से किसी भी आधार पर रजिस्ट्रीकरण करने से मना नहीं कर सकेगा। अचल सम्पत्ति के गिफ्ट से सम्बन्धित विलेख जो धारा 123 के उपबन्धों के अनुसार सम्यक् रूप में निष्पादित है, पर जिसके विषय में आशयित आदाता को कभी कोई सूचना नहीं दो गयी तथा वह विलेख सदैव दाता के कब्जे में रहा, ऐसे विलेख से वैध गिफ्ट का सृजन नहीं होगा और न ही वह विलेख आदाता के अनुरोध पर अनिवार्यतः रजिस्ट्रीकृत होगा।
यदि गिफ्ट की विषयवस्तु में अचल एवं चल दोनों ही प्रकार की सम्पत्तियाँ सम्मिलित हैं पर अचल सम्पत्ति के सम्बन्ध में गिफ्ट विफल हो जाता है तो सम्पूर्ण गिफ्ट को अवैध घोषित नहीं किया जाएगा यदि चल सम्पत्ति का गिफ्ट इस शर्त पर नहीं किया गया था कि चल सम्पत्ति का गिफ्ट अचल सम्पत्ति के गिफ्ट की वैधता अथवा उसको सफलता पर निर्भर करेगा। दूसरे शब्दों में एक हो विलेख द्वारा अचल एवं चल सम्पत्ति का गिफ्ट किया गया है तो एक के सन्दर्भ में गिफ्ट को विफलता से दूसरे पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक कि चल सम्पत्ति का गिफ्ट अचल सम्पत्ति के गिफ्ट की वैधता पर आश्रित न हो।
मौखिक गिफ्ट या अरजिस्ट्रीकृत गिफ्ट विलेख
धारा 123 यह पूर्णतया सुस्पष्ट करती है यदि गिफ्ट की विषयवस्तु अचल सम्पत्ति है तो उसका अन्तरण केवल तभी वैध होगा जब गिफ्ट के सम्बन्ध में एक अन्तरण विलेख तैयार किया गया हो, जिसे कम से कम दो व्यक्तियों ने अनुप्रमाणित किया हो तथा जिसका रजिस्ट्रीकरण हुआ हो। अचल सम्प का मौखिक गिफ्ट अथवा बिना रजिस्ट्री के गिफ्ट बंध नहीं होगा। केवल सम्पत्ति के परिगिफ्ट मात्र से आदाता को अन्तरित सम्पत्ति में कोई भी हित या स्वत्व प्राप्त नहीं होगा। केवल चल सम्पत्ति का ही वैध गिफ्ट सम्पत्ति के परिगिफ्ट द्वारा हो सकेगा।
चल सम्पत्ति के सम्बन्ध में किसी लिखित अथवा रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती है। दाता द्वारा आदाता को सम्पत्ति का कब्जा प्रगिफ्ट करना तथा आदाता द्वारा उसे स्वीकार करना चल सम्पत्ति के वैध गिफ्ट के लिए पर्याप्त है। यदि गिफ्ट को विषयवस्तु अचल एवं चल दोनों है तो लिखित, अनुप्रमाणित एवं रजिस्ट्रीकृत गिफ्ट विलेख द्वारा ही वैध गिफ्ट का सृजन हो सकेगा।
यदि मुस्लिम विधि के अन्तर्गत गिफ्ट का सृजन किया जा रहा हो तो मौखिक गिफ्ट एवं वस्तु का परिगिफ्ट दाता से आदाता को एक वैध गिफ्ट के सृजन के लिए पर्याप्त होगा, परन्तु यह आवश्यक होगा कि दाता अपना स्वामित्व एवं अधिकार गिफ्ट की विषयवस्तु से हटा ले, समाप्त कर दे। आदाता के लिए यह साबित करना अनिवार्य होगा कि न केवल दाता ने गिफ्ट की विषयवस्तु से अपना स्वामित्व हटा लिया है अपितु उसे यह भी साबित करना होगा कि उसने आदाता के रूप में उक्त सम्पत्ति को स्वीकार कर लिया है। सम्पत्ति का कब्जा उसे प्राप्त हो गया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मतानुसार धारा 123 में उल्लिखित सिद्धान्त आज्ञापक एवं अनिवार्य है। एक अचल सम्पत्ति के सम्बन्ध में वैध गिफ्ट का सृजन केवल इसके अनुसरण में हो हो सकेगा। अचल सम्पत्ति का मौखिक गिफ्ट केवल संकल्प द्वारा नहीं हो सकेगा। केवल संकल्प, न तो दाता को उसके अधिकारों से वंचित कर सकेगा और न ही आदाता को उक्त सम्पत्ति में स्वामित्व प्रगिफ्ट कर सकेगा। विधि की दृष्टि में दाता सम्पत्ति का स्वामी बना रहेगा।
कुँवरजी बनाम म्यूनिसपिलिटी ऑफ लोनावाला के वाद में वादी ने प्रतिवादी के पक्ष में जमीन का एक खण्ड गिफ्ट के रूप में देने का वचन दिया, किन्तु प्रतिवादी के पक्ष में धारा 123 के अनुसार कार्यवाही नहीं सम्पन्न हुई। किन्तु म्यूनिसपिलिटी ने उक्त जमीन को अपने कब्जे में लेकर उस पर सड़क का निर्माण कर दिया। वादी ने जब प्रतिवादी के इस कार्य को चुनौती दी तो प्रतिवादी ने तर्क दिया कि वादी ने उक्त भूमि म्यूनिसपिलिटी को गिफ्ट के रूप में देने का वचन दिया था तदनुसार म्यूनिसपिलिटी ने उपरोक्त कार्यवाही की बम्बई हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि इस मामले में गिफ्ट का सृजन हुआ ही नहीं था, क्योंकि धारा 123 में उल्लिखित उपबन्धों का अनुपालन ही नहीं हुआ था। फलतः म्यूनिसपिलिटी द्वारा वादी की भूमि पर सड़क का निर्माण अवैध है।
मात्र सड़क के निर्माण से म्यूनिसपिलिटी को उक्त भूमि पर अधिकार नहीं प्राप्त होगा एवं संव्यवहार वैध नहीं हो जाएगा। अचल सम्पत्ति का मौखिक गिफ्ट वहाँ भी वैध नहीं होगा जहाँ आदाता, दाता के पक्ष में मौखिक गिफ्ट स्वीकार करते हुए एक विलेख निष्पादित करता है। यदि दाता अपनी अचल सम्पत्ति का मौखिक गिफ्ट सृजित करते हुए आदाता को परिदत्त कर देता है, तत्पश्चात् यह गिफ्ट विलेख निष्पादित करता है, किन्तु विलेख को रजिस्ट्री से पूर्व ही दाता की मृत्यु हो जाती है। इन तथ्यों पर यह अभिनिर्णीत कि वैध गिफ्ट का सृजन नहीं हुआ था।
वरदा पिल्लई बनाम जोवरम्मत के वाद में मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष एक विचित्र स्थिति थी। एक व्यक्ति ने कोई विलेख सम्पत्ति के अन्तरण के सम्बन्ध में निष्पादित नहीं किया था, परन्तु अपने आप को दाता घोषित करते हुए जिलाधिकारी के समक्ष एक पिटीशन प्रस्तुत किया यह उल्लेख करते हुए कि उसने कतिपय गाँवों को गिफ्ट के रूप में आदाता के पक्ष में अन्तरित कर दिया है, अतः प्रार्थना है कि उन गाँवों को आदाता के नाम से अभिलिखित करने हेतु आदेश पारित कर दिया जाए। उसी तिथि को आदाता ने भी इसी आशय का एक पिटीशन जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया। इस संव्यवहार को चुनौती दी गयी। प्रिवी कौंसिल ने अभिनिर्णीत किया कि चूँकि लिखित एवं रजिस्ट्रीकृत गिफ्ट विलेख निष्पादित नहीं किया गया था अतः वैध गिफ्ट का सृजन हुआ नहीं समझा जाएगा। धारा 123 में वर्णित शर्तों का अनुपालन होना आवश्यक है। पिटीशन में लिखित तथ्यों को गिफ्ट के साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकेगा। संव्यवहार को गिफ्ट के संव्यवहार के रूप में कोर्ट ने मान्यता नहीं दी।
यदि मौखिक गिफ्ट के अन्तर्गत आदाता 12 वर्ष या इससे अधिक अवधि तक सम्पत्ति का कब्जा धारण किए रहता है तो उसके स्वत्व को प्रतिकूल कब्जा या अनधिकृत कब्जा के आधार पर संरक्षण प्राप्त होगा। परिणामस्वरूप दाता अपनी सम्पत्ति वापस नहीं ले सकेगा।
पंजाब में जाट समुदाय में यह परम्परा है कि यदि कोई विधवा करेवा प्रकार का विवाह अपने मृत पति के भाई से करती है तो वह मृत पति से प्राप्त सम्पत्ति में अपना अधिकार खो देती है। ऐसी सम्पत्ति का अन्तरण यदि दाता द्वारा किया जा रहा है तो धारा 123 में उल्लिखित उपबन्ध का अनुपालन होना आवश्यक होगा। मौखिक अन्तरण नहीं हो सकेगा।
गिफ्ट विलेख का प्रमाण
गिफ्ट विलेख का प्रमाण साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 या 69 के अन्तर्गत किया जाता है। यदि गिफ्ट विलेख घारा 68 या 69 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुरूप नहीं है तो गिफ्ट विलेख साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं होगा।
यदि उपरोक्त प्रावधानों में उल्लिखित शर्तें पूर्ण हो रही हैं तो गिफ्ट विलेख को सम्यक् रूप में साबित हुआ कहा जा सकेगा भले ही एक अनुप्रमाणक साक्षी को दस्तावेज के निष्पादन को साबित करने हेतु आमंत्रित न किया गया रहा हो।
यदि दाता गिफ्ट विलेख के निष्पादन को स्वीकार कर रहा हो तथा एक अनुप्रमाणन साक्षी का परीक्षण भी हुआ हो तो गिफ्ट विलेख को साबित करने हेतु इसे पर्याप्त साक्ष्य माना जाएगा।
यदि किसी तथ्य की अभिकथन में स्वीकृति की गयी है तो उसे सबित करने की आवश्यकता नहीं होती है। गिफ्ट विलेख का अनुप्रमाणन अपेक्षित होता है। अतः यदि स्वीकारोक्ति निष्पादन एवं अनुप्रमाणन दोनों से सम्बद्ध नहीं है तो दाता द्वारा निष्पादन की स्वीकारोक्ति मात्र पर्याप्त नहीं होगी गिफ्ट विलेख के अनुप्रमाणन को साबित करने के लिए।
यदि प्रतिवादी ने दाता द्वारा गिफ्ट विलेख के निष्पादन को स्वीकार किया है तथा लिखित अभिकथन में निष्पादन को नकारा भी नहीं गया है तो ऐसी स्थिति में गिफ्ट विलेख को साबित करने की आवश्यकता नहीं होगी। दस्तावेज को साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को नकारा नहीं जाएगा।