क्या कोर्ट किसी अतिरिक्त आरोपी को CrPC की धारा 319 के तहत कभी भी बुला सकता है?

Himanshu Mishra

12 March 2025 1:13 PM

  • क्या कोर्ट किसी अतिरिक्त आरोपी को CrPC की धारा 319 के तहत कभी भी बुला सकता है?

    सुप्रीम कोर्ट ने सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य (2022) मामले में Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 319 की व्याख्या की। यह धारा कोर्ट को यह अधिकार (Power) देती है कि अगर किसी ट्रायल (Trial) के दौरान कोई नया सबूत (Evidence) सामने आता है, जिससे किसी अन्य व्यक्ति की अपराध में संलिप्तता (Involvement) का संकेत मिलता है, तो उसे भी मुकदमे (Trial) में शामिल किया जा सकता है।

    इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह शक्ति (Power) विशेष परिस्थिति (Extraordinary) में ही प्रयोग की जानी चाहिए और इसके लिए सख्त नियम (Strict Rules) होने चाहिए, ताकि इस शक्ति का दुरुपयोग (Misuse) न हो।

    धारा 319 सीआरपीसी का कानूनी ढांचा (Legal Framework of Section 319 CrPC)

    धारा 319 सीआरपीसी के तहत कोर्ट को यह शक्ति दी गई है कि अगर किसी ट्रायल के दौरान कोई नया सबूत सामने आता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कोई अन्य व्यक्ति भी अपराध में शामिल था, तो उसे आरोपी (Accused) बनाया जा सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि यह शक्ति असाधारण (Extraordinary) और विशेष (Exceptional) होती है और इसे सावधानीपूर्वक (Cautiously) इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

    कोर्ट द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण प्रश्न (Fundamental Issues Addressed by the Court)

    1. अतिरिक्त आरोपी को कब बुलाया जा सकता है? (When Can an Additional Accused Be Summoned?)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी अतिरिक्त आरोपी को तभी बुलाया जा सकता है जब ट्रायल अभी जारी हो और समाप्त (Conclusion) न हुआ हो। इसका अर्थ है:

    • अगर मुख्य आरोपी को दोषी (Convicted) ठहराया जाता है, तो अतिरिक्त आरोपी को सजा (Sentence) सुनाए जाने से पहले बुलाया जा सकता है।

    • अगर मुख्य आरोपी बरी (Acquitted) हो जाता है, तो अतिरिक्त आरोपी को बरी करने के आदेश (Order) से पहले ही समन (Summon) किया जाना चाहिए।

    एक बार ट्रायल समाप्त हो जाने के बाद कोर्ट के पास किसी नए आरोपी को जोड़ने का अधिकार नहीं रहता और वह Functus Officio (अधिकार समाप्त) हो जाता है।

    2. क्या किसी फरार आरोपी का ट्रायल प्रभावित करेगा? (Does an Ongoing Trial of an Absconding Accused Affect the Summoning Power?)

    अगर किसी मुकदमे को दो हिस्सों में बांट दिया गया है—एक उन आरोपियों के लिए जो मौजूद थे और दूसरा उन आरोपियों के लिए जो फरार (Absconding) थे—तो धारा 319 केवल उसी ट्रायल पर लागू होगी, जो चल रहा है।

    अगर किसी अतिरिक्त आरोपी को किसी समाप्त (Completed) ट्रायल के आधार पर बुलाया जाता है, तो यह अवैध (Invalid) होगा। लेकिन अगर किसी अलग हुए (Bifurcated) ट्रायल में कोई नया सबूत मिलता है, तो कोर्ट उस आधार पर आरोपी को बुला सकता है।

    3. किस प्रकार के सबूतों के आधार पर आरोपी को बुलाया जा सकता है? (What Type of Evidence Can Be Used to Summon Additional Accused?)

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ ट्रायल के दौरान दर्ज किए गए सबूत ही किसी अतिरिक्त आरोपी को बुलाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

    • संदेह (Suspicion) या जांच (Investigation) के दौरान इकट्ठा किया गया सबूत इस धारा के तहत आरोपी को बुलाने का आधार नहीं बन सकता।

    • सिर्फ वही सबूत मान्य होंगे, जो ट्रायल के दौरान गवाहों (Witnesses) के बयानों के रूप में रिकॉर्ड किए गए हों और जो स्पष्ट रूप से किसी व्यक्ति की अपराध में संलिप्तता को दिखाते हों।

    4. क्या इस शक्ति को प्रयोग करने के लिए ट्रायल का कोई निश्चित चरण होता है? (Is There a Specific Stage During Trial for Exercising This Power?)

    कोर्ट ने यह दोहराया कि धारा 319 की शक्ति का उपयोग सिर्फ ट्रायल के दौरान ही किया जा सकता है, उसके समाप्त होने के बाद नहीं।

    • अगर आरोपी को बरी किया जाता है, तो ट्रायल समाप्त माना जाएगा जब बरी करने का आदेश (Acquittal Order) जारी हो जाए।

    • अगर आरोपी को दोषी ठहराया जाता है, तो ट्रायल समाप्त तब होगा जब सजा (Sentence) सुनाई जाएगी।

    अगर कोर्ट फैसला सुरक्षित (Reserved) रख चुका है, लेकिन उसके बाद यह शक्ति प्रयोग करना चाहता है, तो पहले ट्रायल को फिर से खोला (Reopen) जाना चाहिए।

    महत्वपूर्ण फैसले जिनका उल्लेख किया गया (Key Precedents Discussed)

    सुप्रीम कोर्ट ने कई पूर्व फैसलों (Precedents) का उल्लेख करते हुए धारा 319 की व्याख्या की:

    1. Hardeep Singh बनाम पंजाब राज्य (2014) – इसमें कहा गया कि धारा 319 का प्रयोग केवल अंतिम निर्णय (Judgment) से पहले किया जा सकता है, सजा सुनाने या बरी करने के बाद नहीं।

    2. Shashikant Singh बनाम Tarkeshwar Singh (2002) – इसमें कोर्ट ने कहा कि अगर मुख्य ट्रायल समाप्त हो चुका हो, लेकिन समन आदेश (Summoning Order) पहले जारी हो गया था, तो नया आरोपी बुलाया जा सकता है।

    3. Rajendra Singh बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2007) – इसमें कोर्ट ने कहा कि धारा 319 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी दोषी व्यक्ति बिना मुकदमे के न बच सके।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देश (Guidelines Issued by the Supreme Court)

    सुप्रीम कोर्ट ने इस शक्ति के दुरुपयोग को रोकने और निष्पक्षता (Fairness) सुनिश्चित करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश (Guidelines) दिए:

    1. अगर ट्रायल के दौरान नया सबूत सामने आता है, जिससे किसी अन्य व्यक्ति की अपराध में संलिप्तता का पता चलता है, तो कोर्ट को ट्रायल को रोककर पहले यह तय करना चाहिए कि उसे बुलाना है या नहीं।

    2. अगर नया आरोपी बुलाना हो, तो यह आदेश (Order) अंतिम फैसला (Final Judgment) जारी करने से पहले ही दिया जाना चाहिए।

    3. कोर्ट को यह तय करना होगा कि नए आरोपी का ट्रायल मुख्य आरोपियों के साथ होगा या अलग से।

    4. अगर नया आरोपी बुलाया जाता है, तो उसे न्यायोचित (Fair) सुनवाई का अवसर देने के लिए फिर से मुकदमे (Fresh Trial) की आवश्यकता हो सकती है।

    5. पहले से दर्ज गवाही (Evidence) नए आरोपी के खिलाफ तभी इस्तेमाल हो सकती है, जब उसे उचित मौका दिया जाए।

    सुप्रीम कोर्ट का सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य मामला धारा 319 सीआरपीसी की शक्ति पर महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण प्रदान करता है। यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि वास्तविक अपराधी (Real Offender) न्याय के दायरे से बाहर न रहें, लेकिन साथ ही, निर्दोष व्यक्तियों को अनुचित तरीके से आरोपी न बनाया जाए।

    इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि अतिरिक्त आरोपियों को तभी बुलाया जा सकता है जब ट्रायल अभी जारी हो। यह निर्णय न्यायालयों (Courts) के लिए एक दिशानिर्देश (Guiding Principle) बनेगा ताकि इस शक्ति का उचित और निष्पक्ष प्रयोग हो और इसे अनुचित ढंग से इस्तेमाल न किया जाए।

    Next Story