Transfer Of Property में गिफ्ट को कैसे कैंसल किया जा सकता है?
Shadab Salim
10 March 2025 3:10 PM

Transfer Of Property Act के अंतर्गत गिफ्ट एक महत्वपूर्ण अंतरण का माध्यम है। यह प्रश्न सदा देखने को मिलता है कि गिफ्ट को निरस्त किए जाने संबंधित क्या प्रावधान है। संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 126 गिफ्ट को निरस्त किए जाने संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित करती है।
गिफ्ट एक प्रतिफल रहित संव्यवहार है जिसमें सम्पत्ति का स्वामी बिना प्रतिफल के सम्पत्ति का स्वामित्व अन्तरित करता है। साधारणतया गिफ्ट के सम्बन्ध में यह मानकर चला जाता है कि गिफ्ट अविखण्डनीय एवं अप्रतिसंहरणीय होगा, क्योंकि स्वामित्व का अन्तरण स्वयं स्वामी की इच्छा से होता है तथा आदाता मात्र उसे स्वीकार करता है, परन्तु यह भी शून्य है कि दाता गिफ्ट की विषयवस्तु निलम्बित होने या निरस्त किए जाने की शर्त के अध्यधीन भी अन्तरित कर सकता है।
परन्तु यह आवश्यक है कि इस निमित्त जो शर्त लगायी जाए वह वैधता तथा अधिनियम के उपबन्धों के अन्तर्गत प्रयोज्य हो । धारा 126 इन परिस्थितियों का उल्लेख करती है जिनमें गिफ्ट निलम्बित या निरस्त किया जा सकता है। इसके अनुसार इस धारा के प्रथम पैरा में उल्लिखित प्रावधान से ध्यान आकर्षित होता है। जब निम्नलिखित शर्तें पूर्ण हो जाती है-
दाता तथा आदाता के बीच सहमति हो कि गिफ्ट किसी विनिर्दिष्ट घटना होने पर निलम्बित या प्रतिसंहृत हो सकेगा।
ऐसी घटना दाता की इच्छा पर निर्भर न हो के घटित।
दाता तथा आदाता ने गिफ्ट स्वीकार करते समय ही शर्त पर अपनी सहमति व्यक्त किया हो।
अधिरोपित शर्त अवैध या अनैतिक न हो एवं गिफ्ट के द्वारा सृजित संपदा के प्रतिकूल न हो।
यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि धारा 126 धारा 10 द्वारा विनियमित होती है। अतः गिफ्ट विलेख में अन्तर्विष्ट कोई खण्ड गिफ्ट की विषयवस्तु के अन्तरण पर पूर्णरूपेण प्रतिबन्ध लगाता हो तो अन्तरण धारा 10 में उल्लिखित उपबन्ध के आलोक में शून्य होगा।
गिफ्ट मात्र दाता की इच्छा पर प्रतिसंहरणीय नहीं है, क्योंकि ऐसी स्थिति में गिफ्ट देने वाला व्यक्ति कभी भी उसे वापस ले सकेगा फलतः वैध एवं स्थायी गिफ्ट का सृजन नहीं हो सकेगा। यदि शर्त या घटना का घटित होना दाता की इच्छा पर निर्भर नहीं है तो उसका निलम्बन या प्रतिसंहरण हो सकेगा। यह भी आवश्यक है कि गिफ्ट खण्डित करने की शर्त अभिव्यक्त हो, केवल इच्छा के रूप में न हो। शर्त, गिफ्ट विलेख में स्पष्टतः अभिव्यक्त होनी चाहिए जिससे आदाता को भी उसका ज्ञान रहे। मूल राज बनाम जमनादेवी के वाद में दाता ने अपनी एक सम्पत्ति का गिफ्ट आदाता के पक्ष में उसके द्वारा की गयी विगत एवं भावी सेवाओं को ध्यान में रखकर किया। गिफ्ट विलेख के खण्डन के लिए कोई शर्त गिफ्ट विलेख में उल्लिखित नहीं थी।
कालान्तर में जब दाता ने गिफ्ट का प्रतिसंहरण करना चाहा तो प्रश्न उठा कि क्या वह प्रतिसंहरण कर सकेगा। कोर्ट ने यह मत अभिव्यक्त किया कि चूँकि प्रतिसंहरण की शर्त गिफ्ट विलेख में उल्लिखित नहीं थी। अतः यह शर्तरहित गिफ्ट था अतः दाता इसे खण्डित नहीं कर सकेगा। यदि शर्त गिफ्ट विलेख में स्पष्ट रूप में उल्लिखित नहीं है तो इसे दाता की इच्छा के रूप में भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस गिफ्ट को शर्त पर आधारित नहीं माना जा सकता है जिसके भंग होने पर दाता द्वारा गिफ्ट विखण्डित किया जा सके।
यदि दाता ने प्रतिसंहरण की शर्त आरक्षित कर रखी थी तथा विधितः गिफ्ट का प्रतिसंहरण कर लेता है, तो वह उस सम्पत्ति का आत्यंतिक स्वामी बन जाएगा जिसका उसने अन्तरण किया था। यदि प्रतिसंहरण की शक्ति उसके पास नहीं थी तो गिफ्ट की विषयवस्तु से उसका हित समाप्त हो जाएगा वह उस सम्पत्ति का धारा 41 के अन्तर्गत दृश्यमान स्वामी भी नहीं रह जाएगा। यदि गिफ्ट इस शर्त के साथ किया गया था कि आदाता दाता की मृत्यु तक उसकी देखभाल करेगा, किन्तु वह ऐसा करने में विफल रहता है तो दाता, गिफ्ट का प्रतिसंहरण कर सकेगा।
एक वृद्ध स्त्री अपनी समस्त सम्पत्ति का गिफ्ट एक अन्य व्यक्ति के पक्ष में जो उसके परिवार का सदस्य नहीं है इस शर्त के साथ करती है कि वह दाता की मृत्यु तक उसकी देख-भाल करेगा। आदाता उसी दिन एक अन्य विलेख निष्पादित करता है गिफ्ट स्वीकार करते हुए एवं यह वचन देते कि वह दाता की इच्छानुसार कार्य करेगा। यदि आदाता, दाता की देखभाल करने में उपेक्षा करता है तो दाता गिफ्ट का प्रतिसंहरण कर सकेगा।
ठाकुर रघुनाथ जी महाराज बनाम रमेश चन्द्र के वाद में भूमि का एक शर्त रहित दान, गिफ्ट विलेख द्वारा किया गया, पर गिफ्ट विलेख पर ही दाता एवं आदाता के बीच लिखित संविदा हुई जिसके अनुसार यह प्रसंविदा की गयी थी कि यदि आदाता भूमि का कब्जा प्राप्त करने के उपरान्त छः मास की विनिर्दिष्ट अवधि के अन्दर उस पर कालेज के निर्माण की कार्यवाही नहीं करता है तो दाता उक्त सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने हेतु उपयुक्त कार्यवाही कर सकेगा।
इन तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने यह अभिनिर्णीत किया कि गिफ्ट आत्यन्तिक नहीं था अथवा/या शर्त रहित गिफ्ट विलेख एवं करार जो ही संव्यवहार के घटक हैं, एक साथ पढ़ा जाना चाहिए एवं तद्नुसार उन्हें प्रभावी बनाया जाना चाहिए। गिफ्ट शर्त के अध्यधीन था। अतः शर्त के अनुसार कार्यवाही न होने की दशा में गिफ्ट का प्रतिसंहरण दाता कर सकेगा।
यह ध्यान देने की बात है कि गिफ्ट के निरसन की शर्त एक पश्चात्वर्ती शर्त है। अतः इसे सशर्त अन्तरणों के लिए दिए गये उपबंधों के अन्तर्गत वैध होना चाहिए। यदि गिफ्ट ऐसी शर्त के साथ सृजित किया गया है जो अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत शून्य है, तो शर्त के शून्य होने के फलस्वरूप गिफ्ट का निरसन नहीं हो सकेगा। यह भी आवश्यक है कि शर्त जिस पर गिफ्ट का खण्डित होने के लिए करार किया गया है, पश्चातूवर्ती शर्त होनी चाहिए। यह शर्तों को पूर्ति दाता की इच्छा पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। शर्त दाता के नियंत्रण से परे एवं भावी घटना की प्रकृति को होनी चाहिए।
उदाहरण स्वरूप 'क' अपना मकान 'ख' को गिफ्ट करता है तथा 'ख' की सम्मति से उक्त मकान को वापस लेने की शक्ति अपने पास रखता है यदि 'ख' को सन्तानें क से पूर्व मृत हो जाती हैं। यहाँ लगायी गयी शर्त एवं भावी शर्त है जो एक अनिश्चित घटना पर निर्भर है। यह शर्त 'क' की इच्छा पर निर्भर नहीं है। अतः यदि 'ख' की सन्ताने 'क' के जीवनकाल में मृत हो जाती हैं तो क सम्पत्ति वापस पाने के लिए प्राधिकृत होगा शर्त के अनुसार।
यदि गिफ्ट विलेख एवं करार पृथक्-पृथक् हैं, एक संव्यवहार के अंश नहीं हैं तो उन्हें एक साथ न तो पढ़ा जा सकेगा और न ही उन्हें एक साथ प्रभावी बनाया जा सकेगा। उनके प्रभाव पृथक् पृथक होंगे।
अनेकों न्यायिक निर्णयों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि गिफ्ट सशर्त नहीं है, तो गिफ्ट की स्वीकृति प्रतिसंहरण की शक्ति के अभाव में अन्तिम होगी तथा उसका (गिफ्ट का) प्रतिसंहरण नहीं हो सकेगा, यदि दाता ने प्रतिसंहरण की शक्ति अपने पास आरक्षित नहीं रखा कोर्ट के लिए यह उचित है कि पक्षकारों के आचरण एवं तथ्यों की वास्तविकता से गिफ्ट की स्वीकृति का निष्कर्ष निकाल ले।
केवल इस आधार पर कि औपचारिक अलगाव नहीं हुआ था, यह नहीं कहा जाता है कि इस तथ्य को स्वीकारोक्ति विरुद्ध मान्यता दी जाए, विशेषकर तब जब पक्षकार निकट सम्बन्धी हों और एक ही छत के नीचे रह रहे हों। गिफ्ट में दी गयी सम्पत्ति के भौतिक कब्जे का परिगिफ्ट प्रकल्पित नहीं है, जो कुछ प्रकल्पित है वह भाग यह है कि दान, आदाता द्वारा या उसके एवज में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा स्वीकार किया गया हो।
इस अधिनियम की धारा 123 एवं धारा 127 को एक साथ पढ़ने से यह सुस्पष्ट है कि सम्पत्ति यदि एक बार आदाता को दे दी गयी है और वह भी इस लिखत के साथ कि यह अप्रतिसंहरणीय है, तो दाता उसका प्रतिसंहरण नहीं कर सकेगा।