जानिए हमारा कानून
Transfer Of Property में एक से ज्यादा व्यक्ति के पास संपत्ति Mortgage रखने पर क्या होगा
Transfer Of Property, 1882 की धारा 29 के अंतर्गत एक संपत्ति को अनेक व्यक्तियों के पास बंधक रखने के परिणामस्वरूप नियमों का उल्लेख किया गया है। किसी भी संपत्ति को एक से अधिक व्यक्तियों के समक्ष भी बंधक रखा जा सकता है तथा उन पर ऋण लिया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियां होती है कि एक से अधिक व्यक्तियों के पास कोई संपत्ति बंधक रखी गई है उसका बंधक के अंतर्गत अंतरण किया गया है तब इस धारा की सहायता ली जाती है। इस धारा संबंधित मामलों में विभिन्न बन्धकदारों की वरीयता काल की दृष्टि से निर्धारित की जाती है। इस...
क्या भारतीय न्यायपालिका को मृत्यु दंड देने से पहले सुधारात्मक न्याय और बचाव में दी गई परिस्थितियों पर ध्यान देना चाहिए?
Manoj & Ors. बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022 LiveLaw (SC) 510) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को मृत्यु दंड (Death Penalty) देने से पहले उसके बचाव में दी गई सभी परिस्थितियों (Mitigating Factors) पर विचार करना आवश्यक है।अदालत ने यह पाया कि निचली अदालतों ने अभियुक्त (Accused) की मानसिक और सामाजिक स्थिति की सही जांच किए बिना उसे मृत्यु दंड दे दिया था। यह लेख इस मामले में न्यायालय द्वारा दिए गए प्रमुख कानूनी सिद्धांतों (Legal Principles) को समझाने का प्रयास करेगा,...
किसी नए अभियुक्त को मुकदमे में शामिल करने की प्रक्रिया : BNSS, 2023 की धारा 358
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) भारत की आपराधिक प्रक्रिया (Criminal Procedure) को अधिक प्रभावी बनाने के लिए लाई गई।धारा 358 एक महत्वपूर्ण प्रावधान (Provision) है जो अदालत को यह शक्ति देता है कि अगर किसी व्यक्ति का नाम शुरू में अभियुक्त (Accused) के रूप में दर्ज नहीं किया गया था, लेकिन मुकदमे (Trial) के दौरान उसके अपराध में शामिल होने का प्रमाण (Evidence) मिलता है, तो अदालत उसे भी मुकदमे में अभियुक्त बना सकती है। यह प्रावधान पहले दंड प्रक्रिया...
भारतीय न्याय संहिता, 2023 में हटाए गए पुराने कानून
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS 2023) ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इनमें कुछ पुराने प्रावधानों (Provisions) को हटाना भी शामिल है।इनमें प्रमुख रूप से व्यभिचार (Adultery), धारा 377 (Section 377) और राजद्रोह (Sedition) कानून को हटाया गया है। ये सभी प्रावधान कई वर्षों से न्यायालयों (Courts), समाज और सरकार के बीच चर्चा और बहस का विषय रहे हैं। इन प्रावधानों को हटाने का मुख्य उद्देश्य संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) के अनुरूप कानून बनाना और...
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 के तहत लाइसेंस, परमिट और पास – धारा 31, 32 और 33
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 (Rajasthan Excise Act, 1950) राज्य में शराब और अन्य नशीले पदार्थों (Intoxicating Substances) के निर्माण, बिक्री और वितरण को नियंत्रित करता है।इस अधिनियम के तहत सरकार ने एक लाइसेंस (Licence), परमिट (Permit) और पास (Pass) की प्रणाली बनाई है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी व्यवसाय वैध तरीके से संचालित हों, आवश्यक शुल्क (Fees) जमा करें और निर्धारित शर्तों (Conditions) का पालन करें। धारा 31, 32 और 33 इन कानूनी दस्तावेजों के रूप, शर्तों, पहले से जारी लाइसेंस की...
धारा 357, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023: जब आरोपी अदालती कार्यवाही को नहीं समझ पाता
भारतीय न्याय प्रणाली (Justice System) यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है कि हर व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार मिले, चाहे वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो या नहीं।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 357 उन मामलों से संबंधित है जहां कोई आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ (Unsound Mind) तो नहीं है, लेकिन फिर भी अदालत में चल रही कार्यवाही को समझने में असमर्थ है। यह प्रावधान (Provision) यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे व्यक्ति के अधिकारों (Rights) की रक्षा की जाए और उसे बिना पूरी समझ के...
क्या Sex Workers को कानून और समाज में समानता और सुरक्षा का अधिकार मिल पाया है?
सुप्रीम कोर्ट ने Budhadev Karmaskar v. State of West Bengal & Ors. (2022) केस में Sex Workers के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) को Article 21 के तहत मान्यता दी। कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि समाज में Sex Workers के साथ भेदभाव (Discrimination) होता है और उन्हें मानवीय गरिमा (Human Dignity) से वंचित कर दिया जाता है।इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण निर्देश (Directions) दिए ताकि Sex Workers को पुलिस उत्पीड़न (Harassment) से सुरक्षा मिले, उन्हें Aadhaar कार्ड जैसी पहचान (Identity)...
भारतीय न्याय संहिता, 2023 में किए गए प्रमुख परिवर्तन और संशोधन
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 - BNS) ने भारत के आपराधिक कानून (Criminal Law) में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।यह नया कानून भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860 - IPC) का स्थान लेता है और इसमें डिजिटल अपराध (Digital Crimes), सामुदायिक सेवा (Community Service), लैंगिक समावेशिता (Gender Inclusivity) और झपटमारी (Snatching) को लेकर नए प्रावधान (Provisions) जोड़े गए हैं। इन बदलावों का उद्देश्य कानून को आधुनिक बनाना और बदलते समय के अनुसार अपराधों को पहचानना और...
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 के तहत उत्पाद शुल्क, विशिष्ट विशेषाधिकार और ब्याज – धारा 29, 30, 30-A और 30-AA
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 (Rajasthan Excise Act, 1950) राज्य में शराब और अन्य नशीले पदार्थों के उत्पादन, बिक्री और वितरण को नियंत्रित करता है। सरकार इन गतिविधियों पर विभिन्न शुल्क और फीस लगाती है ताकि राजस्व (Revenue) प्राप्त किया जा सके और शराब व्यापार पर नियंत्रण रखा जा सके।धारा 29, 30, 30-A और 30-AA इस अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधान (Provisions) हैं, जो उत्पाद शुल्क लगाने के तरीके, विशिष्ट विशेषाधिकार (Exclusive Privilege) के लिए भुगतान, विलंबित (Delayed) भुगतान पर ब्याज, और कुछ मामलों...
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 के तहत उत्पाद शुल्क, फीस और अधिभार – सेक्शन 28 और 28-A
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 (Rajasthan Excise Act, 1950) एक व्यापक कानून है जो राजस्थान में शराब (Liquor) और नशीले पदार्थों (Intoxicating Substances) के निर्माण (Manufacturing), बिक्री (Sale), परिवहन (Transport) और वितरण (Distribution) को नियंत्रित करता है। इस कानून के तहत सरकार उत्पाद शुल्क (Excise Duty), फीस (Fees) और अधिभार (Surcharge) लगाकर न केवल राजस्व (Revenue) अर्जित करती है, बल्कि शराब व्यापार (Liquor Trade) पर भी नियंत्रण रखती है।इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों (Provisions) को समझने...
क्या GST काउंसिल की सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी हैं?
GST (Goods and Services Tax) भारत में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एक ऐतिहासिक सुधार था, जिसका उद्देश्य केंद्र और राज्यों के कराधान को एकीकृत करना था। इस नई प्रणाली में GST काउंसिल की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 279A के तहत गठित किया गया है।इस परिषद का कार्य GST से संबंधित नीतियों और कर की दरों को लेकर सिफारिशें देना है। लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या GST काउंसिल की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी होती हैं? इसी प्रश्न का उत्तर Union of India & Anr....
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 356: फरार अपराधियों के मुकदमे की प्रक्रिया
भारत में न्याय प्रक्रिया (Judicial Process) को सुचारू और प्रभावी बनाने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) लाई गई। इस संहिता की धारा 356 एक महत्वपूर्ण प्रावधान (Provision) है, जो उन अभियुक्तों (Accused) के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देती है जो अदालत से बचने के लिए फरार (Abscond) हो जाते हैं और गिरफ्तार होने से बचते हैं।जब कोई व्यक्ति अदालत के बार-बार बुलाने पर भी उपस्थित नहीं होता और गिरफ्तारी (Arrest) से बचने के लिए छिप जाता है, तो अदालत उसे...
फरार अपराधियों के मुकदमे की प्रक्रिया और उनके अधिकार : BNSS, 2023 की धारा 356 भाग 2
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में धारा 356 उन अभियुक्तों (Accused) के मुकदमे को नियंत्रित करती है जो गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार (Abscond) हो जाते हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी अपराधी सिर्फ छिपकर कानून से बच न सके और न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) को बाधित न कर सके।पहले भाग में हमने देखा कि कैसे कोई अभियुक्त घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित किया जाता है, और किस प्रकार उसकी गैरमौजूदगी में मुकदमे को आगे बढ़ाया जा...
क्या सरकारी कर्मचारियों के सेवा नियमों को समय-समय पर बदला जा सकता है?
प्रस्तावनासरकारी सेवाओं में नियुक्ति और पदोन्नति के नियम संविधान के अनुच्छेद 309, 310 और 311 के अंतर्गत आते हैं। इन नियमों में बदलाव समय-समय पर किया जाता है, लेकिन जब किसी पद के लिए पहले से रिक्तियां मौजूद हों और बाद में सेवा नियमों में संशोधन हो, तो यह प्रश्न उठता है कि इन रिक्तियों को पुराने नियमों के अनुसार भरा जाएगा या नए नियमों के तहत। इसी प्रश्न का उत्तर सुप्रीम कोर्ट ने State of Himachal Pradesh & Ors. v. Raj Kumar & Ors. (2022) के निर्णय में दिया। इस निर्णय में न्यायालय ने Y.V....
न्यायालय में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 355
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) के दौरान कई बार ऐसे हालात उत्पन्न होते हैं जब अभियुक्त (Accused) की व्यक्तिगत उपस्थिति (Personal Attendance) को लेकर लचीला दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 355 इस विषय को संबोधित करती है और अभियुक्त को कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायालय (Court) में उपस्थित होने से छूट (Exemption) प्रदान करने की अनुमति देती है। यह प्रावधान पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 317...
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 के तहत शराब निर्माण और बिक्री के विशेष अधिकार : धारा 24, 26 और 27
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 (Rajasthan Excise Act, 1950) एक व्यापक कानून (Comprehensive Law) है जो राज्य में शराब (Liquor) और मादक पदार्थों (Intoxicating Drugs) के निर्माण (Manufacture), बिक्री (Sale) और वितरण (Distribution) को नियंत्रित (Regulate) करता है।इस अधिनियम (Act) के तहत, सरकार को यह अधिकार (Right) है कि वह किसी व्यक्ति या व्यवसाय (Business) को किसी विशेष क्षेत्र (Particular Area) में शराब निर्माण या बिक्री का विशेषाधिकार (Exclusive Privilege) प्रदान कर सकती है। विशेषाधिकार...
भारतीय न्याय संहिता 2023 की अंतिम धारा 358 : IPC के निरसन और इसके प्रभाव
भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) 2023 के लागू होने के साथ ही भारत में दंड कानून (Penal Law) में एक ऐतिहासिक बदलाव हुआ है। इस संहिता ने 160 वर्षों से अधिक समय तक प्रभावी रहे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) को पूरी तरह से निरस्त (Repeal) कर दिया है।धारा 358 (Section 358) इसी संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यह स्पष्ट करती है कि IPC के निरसन (Repeal) का प्रभाव क्या होगा और इसके तहत पहले किए गए कार्यों, दायित्वों और लंबित मामलों का क्या होगा। इस धारा के...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 353: अभियुक्त को गवाह बनने का अधिकार
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) भारत में आपराधिक प्रक्रिया (Criminal Procedure) को आधुनिक बनाने के लिए लाई गई थी। इस संहिता की एक महत्वपूर्ण धारा 353 अभियुक्त (Accused) को एक सक्षम गवाह (Competent Witness) बनने का अधिकार देती है।यह धारा अभियुक्त को अपने बचाव में शपथ (Oath) लेकर गवाही देने का अवसर देती है, लेकिन यदि वह गवाही नहीं देना चाहता, तो उसके चुप रहने पर कोई भी नकारात्मक निष्कर्ष (Negative Inference) नहीं निकाला जा सकता। धारा 353(1): अभियुक्त...
क्या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल हाई कोर्ट के अधिकारों को सीमित करता है?
सुप्रीम कोर्ट ने MP Bar Association बनाम Union of India (2022) मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity) और पर्यावरण से जुड़े मामलों में इसकी भूमिका की जांच की। याचिकाकर्ताओं (Petitioners), जो मध्य प्रदेश के अधिवक्ता (Advocates) थे, ने NGT अधिनियम, 2010 (NGT Act, 2010) की कुछ धाराओं को चुनौती दी।उन्होंने कहा कि यह हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) को सीमित करता है और लोगों को न्याय (Justice) पाने के लिए प्रभावी उपाय (Effective Remedy) नहीं...
धारा 352 BNSS 2023 के तहत मौखिक तर्क और तर्क-सार प्रस्तुत करने की प्रक्रिया
किसी भी कानूनी प्रक्रिया (Legal Proceeding) में पक्षकारों द्वारा दिए गए तर्क (Arguments) मुकदमे के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS) की धारा 352 यह स्पष्ट रूप से बताती है कि अदालत में मौखिक तर्क (Oral Arguments) कैसे दिए जाने चाहिए और किसी पक्षकार को तर्कों का लिखित सार (Memorandum of Arguments) कैसे प्रस्तुत करना चाहिए।यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि तर्क संक्षिप्त (Concise), व्यवस्थित (Structured) और...