हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम, 2023 की धारा 25, 26 और 27 का सरल व्याख्यान
Himanshu Mishra
7 March 2025 11:36 AM

हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम, 2023 (Himachal Pradesh Rent Control Act, 2023) मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच संबंधों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया कानून है। यह अधिनियम दोनों पक्षों के अधिकारों (Rights) और कर्तव्यों (Duties) को स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है ताकि किसी भी पक्ष के साथ अन्याय न हो।
यह कानून केवल विवादों (Disputes) का निपटारा करने के लिए ही नहीं है, बल्कि इसमें आदेशों (Orders) को लागू करने, गवाहों (Witnesses) को बुलाने और अपीलों (Appeals) की प्रक्रिया का भी प्रावधान है। इस अधिनियम की धारा 25, 26 और 27 बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये नियंत्रक (Controller) और अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) के अधिकारों और शक्तियों को स्पष्ट करती हैं। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि कानूनी प्रक्रिया निष्पक्ष और प्रभावी हो।
धारा 25: गवाहों को बुलाने और उपस्थिति सुनिश्चित करने की शक्ति (Power to Summon and Enforce Attendance of Witnesses)
धारा 25 नियंत्रक (Controller) और अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) के अंतर्गत वही शक्तियाँ देती है जो सिविल न्यायालय (Civil Court) को गवाहों को बुलाने और उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए दी गई हैं।
इसका मतलब है कि यदि किसी विवाद (Dispute) में किसी व्यक्ति की गवाही (Testimony) आवश्यक है, तो नियंत्रक उसे उपस्थित होने के लिए समन (Summon) जारी कर सकता है। यदि वह व्यक्ति बिना कारण बताए उपस्थित नहीं होता है, तो नियंत्रक उसके खिलाफ आदेश जारी कर सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर कोई किरायेदार यह दावा करता है कि मकान मालिक ने तयशुदा किराए से अधिक किराया लिया है और कोई तीसरा व्यक्ति इस बात का गवाह है, तो नियंत्रक उस व्यक्ति को गवाही देने के लिए बुला सकता है। अगर वह व्यक्ति आने से इनकार करता है, तो नियंत्रक उसे कानूनी आदेश के तहत बुलाने के लिए बाध्य कर सकता है।
इसके अलावा, नियंत्रक किसी भी दस्तावेज (Document) को प्रस्तुत करने के लिए भी आदेश दे सकता है। उदाहरण के लिए, यदि मकान मालिक के पास किराए का लिखित समझौता (Rent Agreement) है, लेकिन वह इसे पेश करने से इनकार करता है, तो नियंत्रक उसे दस्तावेज प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि सभी सबूत (Evidence) अदालत के सामने पेश किए जाएं ताकि निर्णय तथ्यों (Facts) के आधार पर हो, न कि केवल पक्षकारों के बयानों पर।
धारा 26: आदेशों का पालन (Execution of Orders)
धारा 26 यह प्रावधान करती है कि नियंत्रक या अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित कोई भी आदेश सिविल न्यायालय के डिक्री (Decree of Civil Court) की तरह लागू होगा। इसका मतलब है कि जब आदेश पारित हो जाए, तो उसका पालन अनिवार्य रूप से करना होगा।
उदाहरण के लिए, अगर नियंत्रक आदेश देता है कि किरायेदार बकाया किराया (Outstanding Rent) का भुगतान करे या संपत्ति खाली करे, तो किरायेदार को आदेश का पालन करना ही होगा। अगर किरायेदार आदेश का पालन नहीं करता है, तो नियंत्रक संपत्ति को खाली करवाने के लिए पुलिस की सहायता ले सकता है।
धारा 26 यह भी कहती है कि नियंत्रक के पास सभी वे शक्तियाँ हैं जो सिविल न्यायालय के पास आदेशों को लागू करने के लिए होती हैं। इसमें संपत्ति की कुर्की (Attachment of Property), सीलिंग (Sealing) और बलपूर्वक खाली कराने जैसी शक्तियाँ शामिल हैं।
हालांकि, इस धारा में एक अपवाद (Exception) है। धारा 31 के अंतर्गत आने वाले आदेश इस प्रावधान के तहत लागू नहीं होते। धारा 31 उन विशेष परिस्थितियों (Special Circumstances) से संबंधित है जिनमें मकान मालिक संपत्ति का कब्जा (Possession) प्राप्त कर सकता है। ऐसे मामलों में आदेशों को लागू करने की प्रक्रिया अलग होती है, जो धारा 31 में ही बताई गई है।
यह प्रावधान कानून की प्रभावशीलता को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है ताकि कोई भी पक्ष आदेश का उल्लंघन न कर सके।
धारा 27: आवेदन प्रस्तुत करने और निपटारे की प्रक्रिया (Institution and Disposal of Applications)
धारा 27 यह प्रावधान करती है कि अगर किसी क्षेत्र में दो या अधिक नियंत्रक नियुक्त किए गए हैं, तो सबसे वरिष्ठ नियंत्रक (Senior-most Controller) को सभी आवेदन (Applications) और कार्यवाही (Proceedings) की सुनवाई का अधिकार होगा। इसका उद्देश्य यह है कि लोगों को यह जानने में कोई भ्रम न हो कि उन्हें अपना आवेदन किसके पास प्रस्तुत करना है।
उदाहरण के लिए, अगर धर्मशाला में दो नियंत्रक नियुक्त हैं और एक के पास 20 साल का अनुभव है तथा दूसरे के पास 10 साल का अनुभव है, तो सभी आवेदन सबसे वरिष्ठ नियंत्रक के पास प्रस्तुत किए जाएंगे। वरिष्ठ नियंत्रक यह तय करेगा कि वह खुद मामले की सुनवाई करेगा या इसे दूसरे नियंत्रक को सौंप देगा।
धारा 27(2) के अनुसार, वरिष्ठ नियंत्रक अपने पास लंबित (Pending) किसी भी मामले को दूसरे सक्षम नियंत्रक (Competent Controller) को स्थानांतरित (Transfer) कर सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर वरिष्ठ नियंत्रक के पास 100 आवेदन लंबित हैं, तो वह 50 आवेदन दूसरे नियंत्रक को स्थानांतरित कर सकता है ताकि मामलों का निपटारा जल्दी हो सके।
यह प्रावधान न्याय वितरण प्रणाली (Justice Delivery System) को कुशल और तेज बनाने में मदद करता है।
उदाहरण
1. अगर कुल्लू में तीन नियंत्रक नियुक्त हैं और वरिष्ठ नियंत्रक के पास किराया बढ़ाने के विवाद से संबंधित मामला आता है, तो वह यह तय करेगा कि मामला खुद सुनेगा या किसी अन्य नियंत्रक को सौंपेगा।
2. अगर किसी नियंत्रक का तबादला (Transfer) हो जाता है, तो वरिष्ठ नियंत्रक स्वतः ही सभी लंबित मामलों की सुनवाई करेगा ताकि मामलों में देरी न हो।
हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम, 2023 की धारा 25, 26 और 27 यह सुनिश्चित करती हैं कि विवादों का निपटारा निष्पक्ष और प्रभावी तरीके से हो। धारा 25 नियंत्रक और अपीलीय प्राधिकारी को गवाहों को बुलाने और सबूत प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करने की शक्ति देती है।
धारा 26 यह सुनिश्चित करती है कि पारित आदेशों का पालन सिविल न्यायालय के डिक्री की तरह हो। धारा 27 आवेदन प्रस्तुत करने और मामलों के निपटारे के लिए एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया प्रदान करती है।
ये प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत बनाते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी पक्ष आदेशों की अवहेलना (Defiance) न कर सके। ये धाराएँ कानून के शासन (Rule of Law) और प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
यह अधिनियम मकान मालिक और किरायेदार के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक उपाय प्रदान करता है ताकि दोनों पक्षों के अधिकारों की रक्षा हो सके और कोई भी पक्ष कानून की अवहेलना न कर सके।