जानिए हमारा कानून
सिविल केस में दी जाने वाली डिक्री और जजमेंट
किसी सिविल मुकदमे के अंतर्गत पर फैसला सुनाया जाता है जिसे जजमेंट कहा जाता है और इस ही जजमेंट के साथ डिक्री भी जारी की जाती है। जजमेंट और डिक्री दोनों डिफरेंट चीज़ें हैं और दोनों में काफी अंतर होता है।कोई भी सिविल केस को अदालत के समक्ष चलाए जाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है। वाद पत्र के जरिए वादी अदालत ने अपनी बात रखता है। इस पर अदालत प्रतिवादी को बुलाकर उससे जवाब मांगती है। प्रतिवादी जो जवाब प्रस्तुत करता है उन्हें देखने के बाद अदालत वाद प्रश्न बना देती है। इन वाद प्रश्न पर मुकदमा चलता है। इन वाद...
पति या पत्नी के होते हुए बगैर तलाक किये दूसरी शादी करने के नुकसान
विवाह का मामला पर्सनल लॉ से जुड़ा हुआ है। पर्सनल लॉ ऐसा कानून है जो लोगों के व्यक्तिगत मामलों में लागू होता है। यह कानून धर्म या समुदाय का कानून होता है जो लोगों के व्यक्तिगत मामले में उन्हें दिया गया है। भारत में सामान्य रूप से हिंदू, मुसलमान, ईसाई समुदाय के लोग निवास करते हैं। सिख बौद्ध जैन को हिंदू धर्म का ही हिस्सा माना गया है। मुसलमान और ईसाई समाज को अलग धर्म माना गया है। हिंदू धर्म के लिए हिंदू विवाह 1955 है और मुसलमान धर्म के लोगों के लिए उनका अपना पर्सनल लॉ है।क्या है दूसरे विवाह पर...
क्या चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी FIR रद्द किया जा सकता है?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह एफआईआर (FIR) और आपराधिक कार्यवाही (Criminal Proceedings) को रद्द कर सकता है, जिससे न्याय की रक्षा हो और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग (Abuse of Process) रोका जा सके।सवाल उठता है कि क्या चार्जशीट (Charge Sheet) दाखिल हो जाने के बाद भी एफआईआर को रद्द किया जा सकता है? यह लेख इस सवाल पर चर्चा करेगा और महत्वपूर्ण न्यायिक फैसलों (Judicial Precedents) के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर देगा। धारा 482...
क्या सरकार की आलोचना देशद्रोह है? विनोद दुआ बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट का संवैधानिक दृष्टिकोण
विनोद दुआ बनाम भारत सरकार के इस महत्वपूर्ण मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) और देशद्रोह (Sedition) से जुड़े महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्नों का समाधान किया। याचिकाकर्ता, वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ ने संविधान के अनुच्छेद 32 (Article 32) के तहत याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर (FIR) को रद्द करने की मांग की थी। इस एफआईआर में उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (देशद्रोह) सहित अन्य धाराओं के तहत आरोपित किया गया था।यह मामला...
आत्महत्या या मौत की सूचना और पुलिस द्वारा इन्क्वेस्ट रिपोर्ट : धारा 194 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 1 जुलाई, 2024 को लागू हुआ, जिसने पुराने (Indian Evidence Act) को बदल दिया। यह नया कानून विशेष रूप से उन मामलों में मृत्यु की जांच को अधिक आधुनिक और सुगम बनाने के लिए लाया गया है जहां मौत संदिग्ध या आपराधिक (Criminal) परिस्थितियों में हुई हो।धारा 194 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ऐसी संदिग्ध परिस्थितियों में होने वाली मौतों की जांच की प्रक्रिया का वर्णन करती है। इस लेख में हम धारा 194 और इसकी उप-धाराओं (Sub-sections) के मुख्य प्रावधानों को सरल शब्दों में...
पब्लिक सर्वेंट के वैध अधिकार की अवमानना : धारा 206 और धारा 207, BNS 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, जिसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को प्रतिस्थापित किया। इस संहिता के अध्याय XIII में पब्लिक सर्वेंट (Public Servants) के वैध अधिकारों का अनादर करने से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं।इसमें धारा 206 और धारा 207 शामिल हैं, जो विशेष रूप से उन स्थितियों को संबोधित करते हैं जब व्यक्ति कानूनी समन (Summons), नोटिस (Notice) या आदेश (Order) को टालने या उसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश...
अजीत मोहन बनाम दिल्ली विधान सभा: सुप्रीम कोर्ट का फैसला और संवैधानिक विशेषाधिकारों की समीक्षा
अजीत मोहन और अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधान सभा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दों पर विचार किया। यह मामला विशेष रूप से विधायी विशेषाधिकारों (Legislative Privileges), गोपनीयता के अधिकार (Right to Privacy), और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) से संबंधित था।यह मामला तब शुरू हुआ जब दिल्ली विधान सभा की शांति और सद्भाव समिति (Committee on Peace and Harmony) ने Facebook के भारत प्रमुख अजीत मोहन को 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान फैली गलत सूचनाओं और...
क्या WhatsApp चैट्स अदालत में साक्ष्य के रूप में मान्य हैं? अदालत में WhatsApp चैट्स का प्रमाणपत्र और साक्ष्य मान्यता के नए नियम
इस लेख में हम जानेंगे कि क्या जाँच एजेंसियां किसी आरोपी या संबंधित व्यक्ति के फोन से डेटा (Data) जैसे कि WhatsApp संदेशों को प्राप्त कर सकती हैं, और ऐसा करते समय उन्हें किन कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। यह विषय काफी चर्चा में रहा है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Electronic Evidence) के संबंध में।जांच के दौरान डेटा एक्सेस करना: स्वैच्छिक (Voluntary) या अदालत का आदेश? जाँच एजेंसियां आरोपी या संबंधित व्यक्ति से उनके फोन के पासवर्ड, पासकोड, या बायोमेट्रिक्स (Biometrics) देने का अनुरोध कर...
पुलिस अधिकारी की जाँच पूरी होने पर रिपोर्ट/चार्जशीट : सेक्शन 193, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जिसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया, 1 जुलाई 2024 को लागू हुई। इस संहिता में पुलिस अधिकारियों के लिए जाँच पूरी होने के बाद रिपोर्ट दाखिल करने का विस्तृत तरीका बताया गया है।इस लेख में हम संहिता के सेक्शन 193 के प्रावधानों पर चर्चा करेंगे, जो पुलिस अधिकारियों को अपनी अंतिम जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के संबंध में दिए गए निर्देशों को स्पष्ट करता है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता (Transparency),...
लोक सेवकों के दायित्व और उनके उल्लंघन पर दंड : धारा 201 से 205, भारतीय न्याय संहिता, 2023
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान ले चुकी है और 1 जुलाई, 2024 से प्रभाव में आ गई है। इस कानून के तहत विभिन्न अपराधों और उनके दंड का प्रावधान किया गया है। इसका उद्देश्य कानून और व्यवस्था बनाए रखना और सरकारी अधिकारियों (Public Servants) की जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करना है।इस लेख में हम लोक सेवकों (Public Servants) से संबंधित प्रावधानों की चर्चा करेंगे, जिनका उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान है। इसमें शामिल हैं: गलत दस्तावेज़...
किस तरह का सबूत है कॉल डिटेल? जानिए
लोग आप आमतौर पर एक दूसरे की बात को साबित करने कॉल रेकॉर्डिंग और कॉल डिटेल का सहारा लेते हैं लेकिन क्या यह सबूत अदालत में भी कोई काम आता है? इस सवाल के जवाब के लिए इससे संबंधित कानून को समझना होगा।दूरसंचार कंपनियों को रखना होती है डिटेलकिसी भी मोबाइल में चलने वाली सिम को या लैंडलाइन फोन को एक टेलीकॉम कंपनी द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है। यह टेलीकॉम कंपनी अपने हर एक यूजर का सभी रिकॉर्ड मेंटेन करती है। दूरसंचार विभाग ने अपनी एक अधिसूचना में यह घोषणा की है कि सभी टेलीकॉम कंपनियों को 2 वर्ष तक का कॉल...
किसी भी बिल्डर के खिलाफ रेरा में कैसे की जाती है कंप्लेंट?
बिल्डर्स और ग्राहकों के बीच के विवादों को निपटाने के लिए रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 बनाया गया है।इस अधिनियम में किस बिल्डर की होती है शिकायतबिल्डर और ग्राहकों के बीच ऐसे बहुत से मामले हैं जहां विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यहां पर ग्राहकों के पास यह अधिकार है कि वह अपने साथ होने वाले किसी भी छल के संबंध में बिल्डर की शिकायत कर सकें। मुख्य रूप से 2 मामलों में बिल्डर की शिकायत होती है-(1) ऐसा बिल्डर जिसने अपने प्रोजेक्ट को रेरा में रजिस्टर्ड नहीं करवाया है।(2) ऐसा बिल्डर...
संघ बनाम राजेंद्र एन. शाह: 97वें संविधान संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
संघ बनाम राजेंद्र एन. शाह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 97वें संविधान संशोधन, 2011 की संवैधानिकता पर विचार किया। इस संशोधन के जरिए संविधान में भाग IXB जोड़ा गया, जो सहकारी समितियों (Cooperative Societies) से संबंधित था। मुख्य मुद्दा यह था कि क्या इस संशोधन ने राज्यों की सहकारी समितियों पर कानून बनाने की शक्ति को प्रभावित किया, और क्या इसे संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत राज्यों की मंजूरी की आवश्यकता थी। जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बात पर महत्वपूर्ण था कि संघीय ढांचे (Federalism) में...
बेघर फाउंडेशन बनाम जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी: आधार अधिनियम को मनी बिल के रूप में चुनौती का विश्लेषण
बेघर फाउंडेशन बनाम जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) के मामले में आधार अधिनियम (Aadhaar Act) और उसके मनी बिल (Money Bill) के रूप में वर्गीकरण की संवैधानिक चुनौती पर बहस हुई। यह केस विशेष रूप से आधार अधिनियम को मनी बिल के रूप में पारित किए जाने की वैधता पर केंद्रित था और यह सवाल उठाया गया कि क्या लोकसभा अध्यक्ष (Speaker of the Lok Sabha) के निर्णय की न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की जा सकती है।यह समीक्षा याचिका (Review Petition) सुप्रीम कोर्ट के 26 सितंबर 2018 के फैसले पर आधारित थी,...
रेप और एसिड अटैक विक्टिम का इलाज न करने पर सजा और अनिवार्य चिकित्सा सहायता : BNS 2023 की धारा 200 और BNSS 2023 की धारा 397
भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को प्रतिस्थापित किया है और यह 1 जुलाई, 2024 से प्रभावी होगी। इस नए कानून का मुख्य उद्देश्य है कि देश के कानून को आधुनिक समाज की ज़रूरतों के अनुसार बदला जाए, और साथ ही पीड़ितों (Victims) के संरक्षण (Protection) पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाए। इस संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान धारा 200 (Section 200) है, जो पीड़ितों को चिकित्सा सहायता (Medical Assistance) न देने पर सजा का प्रावधान करता है।इस लेख में हम धारा 200 और भारतीय नागरिक सुरक्षा...
आपराधिक मामलों की 'केस डायरी' क्या होती है और इसका महत्व क्यों है : BNSS 2023 की धारा 192
जांच में केस डायरी (Case Diary) (धारा 192, Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023)धारा 192 पुलिस अधिकारियों द्वारा जांच (investigation) के दौरान रिकॉर्ड रखने की जिम्मेदारी पर केंद्रित है। यह अनिवार्य करता है कि हर पुलिस अधिकारी जो जांच कर रहा है, उसे अपनी कार्यवाही की एक विस्तृत डायरी बनाए रखनी चाहिए। यह डायरी आधिकारिक रिकॉर्ड के रूप में कार्य करती है और इसमें कुछ विशेष विवरण शामिल होने चाहिए जैसे कि अधिकारी को सूचना कब मिली, उसने जांच कब शुरू और समाप्त की, उसने किन स्थानों का दौरा किया, और...
भारतीय सेना में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट केकर्नल नितीशा फैसले का संवैधानिक विश्लेषण
लेफ्टिनेंट कर्नल नितीशा और अन्य बनाम भारत संघ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना में लिंग समानता (Gender Equality) का मुद्दा उठाया। यह मामला महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन (WSSC) अधिकारियों के स्थायी कमीशन (Permanent Commission, PC) पाने के अधिकार से जुड़ा था।यह केस 2020 में सेक्रेटरी, मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस बनाम बबीता पूनिया के फैसले के बाद महत्वपूर्ण हो गया था, जिसमें कोर्ट ने महिला अधिकारियों को पुरुष अधिकारियों के समान शर्तों पर स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। इस मामले में महिला अधिकारियों...
पर्याप्त और अपर्याप्त सबूत होने पर जांच का परिणाम रिपोर्ट करना : BNSS, 2023 की धारा 188 से 190
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की जगह आई है, 1 जुलाई 2024 को लागू हो गई। इस संहिता की धारा 188, 189, और 190 पुलिस द्वारा की गई जांच के बाद की प्रक्रिया का वर्णन करती हैं। ये धाराएँ जांच अधिकारियों की जिम्मेदारियों, आरोपी की रिहाई की शर्तों, और मजिस्ट्रेट (Magistrate) की भूमिका को विस्तार से समझाती हैं। नीचे इन धाराओं का सरल हिंदी में विस्तृत वर्णन दिया गया है, जिसमें उदाहरणों के साथ समझाया गया है।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा...
लोक सेवक का अर्थ और उनके या पुलिस द्वारा किए गए कानून का उल्लंघन और जांच में गड़बड़ी : BNS 2023, धारा 2(28), 198 और 199
"भारतीय न्याय संहिता 2023" (Bharatiya Nyaya Sanhita 2023) ने 1 जुलाई 2024 से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान ले लिया है। इस लेख में हम धारा 2(28) के तहत "लोक सेवक" (Public Servant) का अर्थ समझेंगे और साथ ही धारा 198 और 199 में लोक सेवकों द्वारा किए गए अपराधों (Offences by Public Servants) पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इसे सरल और स्पष्ट हिंदी में समझाया गया है ताकि आम पाठक इसे आसानी से समझ सकें।लोक सेवक का अर्थ (Meaning of Public Servant) भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 2(28) के...
गलत सबूत के स्वीकार या अस्वीकार का सिविल और आपराधिक मामलों पर प्रभाव - धारा 169, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है और इसने पुराने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को बदल दिया है। इस नए अधिनियम का एक महत्वपूर्ण अनुभाग है धारा 169, जो गलत तरीके से सबूत को स्वीकार (Admission of Evidence) या अस्वीकार (Rejection of Evidence) करने से संबंधित है।यह सेक्शन पुराने अधिनियम के धारा 167 के समान है (Pari Materia), जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि पर्याप्त वैध सबूत (Sufficient Evidence) पहले से मौजूद हैं, तो सबूत के गलत तरीके से स्वीकार या अस्वीकार होने पर भी...