यौन अपराध मामलों में 'Two-Finger Test' का कानूनी और नैतिक विश्लेषण

Himanshu Mishra

7 March 2025 11:29 AM

  • यौन अपराध मामलों में Two-Finger Test का कानूनी और नैतिक विश्लेषण

    सुप्रीम कोर्ट ने State of Jharkhand v. Shailendra Kumar Rai @ Pandav Rai केस में महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर फैसला दिया, जिनमें मरते समय दिए गए बयान (Dying Declaration), यौन अपराधों (Sexual Offences) में मेडिकल सबूतों की भूमिका और विवादित 'Two-Finger Test' शामिल हैं।

    कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह टेस्ट वैज्ञानिक रूप से गलत है, महिलाओं की गरिमा (Dignity) के खिलाफ है और इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यह फैसला महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को मजबूत करता है और न्यायपालिका की पीड़िता-केंद्रित (Survivor-Centric) सोच को दर्शाता है।

    'Two-Finger Test' की असंवैधानिकता (Unconstitutionality of the Two-Finger Test)

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 'Two-Finger Test' महिलाओं की गरिमा (Dignity) और गोपनीयता (Privacy) का उल्लंघन करता है। यह टेस्ट यह जांचने के लिए किया जाता है कि महिला यौन संबंधों की अभ्यस्त (Habituated) है या नहीं।

    कोर्ट ने Lillu v. State of Haryana (2013) 14 SCC 643 मामले में कहा था कि यह टेस्ट महिलाओं के शारीरिक और मानसिक सम्मान (Integrity) के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी महिला का यौन इतिहास (Sexual History) यह तय करने के लिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उसके साथ बलात्कार हुआ है या नहीं।

    2013 में हुए आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम (Criminal Law Amendment Act, 2013) के तहत भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 53A जोड़ी गई थी, जिसमें साफ कहा गया कि पीड़िता के चरित्र (Character) या उसके पिछले यौन अनुभवों (Previous Sexual Experience) को उसकी सहमति (Consent) के मुद्दे से नहीं जोड़ा जा सकता।

    मरते समय दिए गए बयान की वैधता (Admissibility of Dying Declaration)

    कोर्ट ने मरते समय दिए गए बयान (Dying Declaration) की वैधता पर विस्तार से चर्चा की। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (अब Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023) की धारा 32(1) के तहत ऐसे बयान स्वीकार्य हैं, भले ही उन्हें मजिस्ट्रेट (Magistrate) की बजाय पुलिस अधिकारी ने रिकॉर्ड किया हो।

    कोर्ट ने Khushal Rao v. State of Bombay (1958 AIR 22) मामले में कहा था कि अगर बयान स्वैच्छिक (Voluntary) और सच्चा है तो यह अकेले ही दोषसिद्धि (Conviction) के लिए पर्याप्त है।

    इस केस में मृतका ने अस्पताल में पुलिस अधिकारी को बयान दिया था, जिसे डॉक्टर ने उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति के उपयुक्त होने की पुष्टि (Certification) की थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस फैसले को गलत ठहराया, जिसमें बयान को केवल इसलिए खारिज कर दिया गया था क्योंकि वह पुलिस द्वारा लिया गया था।

    यौन अपराधों में मेडिकल सबूतों की भूमिका (Role of Medical Evidence in Sexual Offences)

    कोर्ट ने साफ कहा कि मेडिकल सबूतों (Medical Evidence) की अनुपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि बलात्कार नहीं हुआ। Vishnu v. State of Maharashtra (2006) 1 SCC 283 केस में कहा गया था कि मेडिकल विशेषज्ञ (Medical Expert) का मत सिर्फ परामर्शात्मक (Advisory) होता है, न कि निर्णायक (Conclusive)।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बलात्कार पीड़िता के बयान की विश्वसनीयता (Credibility) उसके यौन इतिहास पर निर्भर नहीं करती। पीड़िता के बयान को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट में कोई स्पष्ट सबूत नहीं मिला।

    गवाहों के शत्रुतापूर्ण (Hostile) होने की समस्या (Hostile Witnesses in Sexual Violence Trials)

    इस केस में कई गवाहों ने अपने बयान बदल लिए थे। कोर्ट ने Ramesh v. State of Haryana (2017) 1 SCC 529 केस का हवाला देते हुए कहा कि गवाहों के शत्रुतापूर्ण होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे धमकी (Threat), लालच (Inducement), या लंबी कानूनी प्रक्रिया। कोर्ट ने कहा कि केवल गवाहों के शत्रुतापूर्ण होने से अभियोजन (Prosecution) का मामला कमजोर नहीं होता, खासकर जब अन्य विश्वसनीय सबूत मौजूद हों।

    'Two-Finger Test' पर रोक लगाने के निर्देश (Directions to Ban the Two-Finger Test)

    कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए कि:

    • स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा जारी दिशा-निर्देश (Guidelines) को सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में लागू किया जाए।

    • डॉक्टरों को सही तरीके से बलात्कार पीड़िताओं की जांच करने के लिए प्रशिक्षण (Training) दिया जाए।

    • मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रमों (Medical Curriculum) की समीक्षा की जाए ताकि 'Two-Finger Test' को हटाया जा सके।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि जो भी डॉक्टर इस टेस्ट को करेगा, उसे पेशेवर कदाचार (Misconduct) का दोषी माना जाएगा।

    State of Jharkhand v. Shailendra Kumar Rai का यह फैसला महिलाओं के गरिमा और गोपनीयता के अधिकार को मजबूत करता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि 'Two-Finger Test' वैज्ञानिक रूप से निरर्थक है और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।

    यह फैसला न्यायिक व्यवस्था को पीड़िता-केंद्रित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने कानूनी और मेडिकल संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे इस अमानवीय प्रथा को खत्म करें और महिलाओं को न्याय दिलाने में अपनी भूमिका निभाएं।

    यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि न्यायपालिका महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए लगातार प्रयास कर रही है और किसी भी तरह के लिंग आधारित भेदभाव (Gender-Based Discrimination) को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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