Transfer Of Property में गिफ्ट किसे कहा गया है?
Shadab Salim
7 March 2025 5:00 AM

Transfer Of Property Act के अंतर्गत जिस प्रकार विक्रय, पट्टा, विनिमय संपत्ति का अंतरण के माध्यम है इसी प्रकार संपत्ति के अंतरण का एक माध्यम दान भी होता है। दान के माध्यम से भी किसी संपत्ति का अंतरण किया जा सकता है। दान से संबंधित प्रावधान संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत यथेष्ठ रूप से दिए गए हैं। संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 दान संबंधित प्रावधानों को प्रस्तुत करती है।
दान- किसी वर्तमान जंगम या स्थावर सम्पत्ति का वह अन्तरण है जो एक व्यक्ति द्वारा, जो दाता कहलाता है, दूसरे व्यक्ति को जो आदाता कहलाता है स्वेच्छया और बिना प्रतिफल के किया गया हो और आदाता द्वारा या उसकी ओर से प्रतिगृहीत किया गया हो। यह एक स्वैच्छिक एवं प्रतिफल रहित संव्यवहार है जो तत्समय जीवित दो व्यक्तियों के बीच पूर्ण होता है तथा आत्यन्तिक प्रकृति का होता है। इसके अतिरिक्त दो अन्य प्रकार के भी दान होते हैं-
आसन्न मरण दान-
आसन्न मरण दान वह दान है जब दाता अपने आप को मरणासन्न जानकर अपनी सम्पत्ति का दान किसी अन्य जीवित व्यक्ति के पक्ष में कर देता है तथा जैसा कि अपेक्षित था, दाता की दान के पश्चात् मृत्यु हो जाए। मरणासन्न दान की निम्नलिखित शर्तें हैं-
(1) दाता इस प्रकार की स्थिति में हो कि उसे मृत्यु आसन्न प्रतीत हो रही हो।
(2) दाता की मृत्यु हो जाए उस स्थिति के फलस्वरूप।
(3) दान तभी प्रभावी हो जब दाता की मृत्यु हो जाए।
(4) आदाता को दान सम्पत्ति का वास्तविक परिदान हो।
आसन्न मरण दान का उल्लेख धारा 129 में किया गया है।
वसीयत द्वारा दान-
इस प्रकार के दान के सम्बन्ध में प्रावधान भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 में वर्णित है। एक जीवित व्यक्ति द्वारा दूसरे जीवित व्यक्ति के पक्ष में किया गया दान आत्यन्तिक प्रकृति का होता है तथा दाता के जीवनकाल में ही प्रभावी हो जाता है। इसके विपरीत दान दाता की मृत्यु के पश्चात् प्रभावी होता है उसके जीवनकाल में नहीं। वसीयत की वैधता दाता की मृत्यु के समय उसको विधिक अन्तरणीय शक्ति पर निर्भर करता है। यदि वह तत्समय अन्तरित करने के लिए विधित प्राधिकृत था तो उसके द्वारा सृजित वसीयत वैध होगी।
वसीयत तथा दान में अन्तर- वसीयत को एक आवश्यक विशेषता है कि यह एक इच्छा या मंशा की मात्र उद्घोषणा मात्र होती है। जब तक कि वसीयतकर्ता जीवित रहता है। एक ऐसी उद्घीषणा जो प्रतिसंहृत की जा सकती है, वसीयतकर्ता को इच्छानुसार परिवर्तित को जा सकती है। यह एक ऐसा संव्यवहार है जो प्रवर्तनीय होने के लिए या परिपूर्ण होने के लिए या प्रभावी होने के लिए वसीयतकर्ता की मृत्यु की अपेक्षा करता है। अतः जब तक मृत्यु नहीं होती तब तक यह बिना किसी प्रभाव के होती है। इसके विपरीत दान सम्पत्ति में एक ऐसा अन्तरण है जो स्वैच्छिक होता है प्रतिफल रहित होता है तथा पर अदाता के पक्ष में सम्पत्ति में आत्यन्तिक हित अन्तरित करता है।
यदि वसीयतकर्ता ने प्रथम निष्पादक को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की थी सम्पत्ति को वसीयतकर्ता के जीवन काल में व्ययनित करने हेतु तत्पश्चात् वसीयतकर्ता की मृत्यु के उपरान्त अन्य व्यक्तियों के पक्ष में अधिकार का सृजन होगा तो ऐसा संव्यहार वसीयत होगा कि दान। जी० जी० वर्धीस एवं अन्य बनाम इस्साक जार्ज एवं अन्य के बाद में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने अभिप्रेक्षित किया था कि सीमान्त सन्देह के प्रकरणों में वैधता विधि की माँग होती है।
उन्होंने अभिलिखित किया :-
"यदि, जैसा कि मैंने संकोचवश कहा था कि, अन्तरण के प्रभावी शब्द हैं तो विलेख की प्रकृति को लेकर अतिरिक्त प्रश्न उठेगा विचारण न्यायालय ने यह अभिनिर्णीत किया था कि यह दान का एक प्रकरण है, किन्तु अपील में अपीलीय न्यायालय ने इसे एक वसीयत माना। सम्पत्ति के व्ययन हेतु पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गयी थी, क्योंकि उसने अपने जीवनकाल में सम्पत्ति को प्रथम निष्पादक से संलग्न कर दिया गया था। कोई भी अन्य पक्षकार जिसे सम्पत्ति का लाभ मिलना था उसने दस्तावेज के निष्पादन में भागीदारी नहीं की थी और नहीं हित के निहित होने के सम्बन्ध में कोई शब्द अभिव्यक्त किया था। अतः यह विलेख वसीयत है न कि दान।"
कोई दस्तावेज दान है या वसीयत, यह केवल दस्तावेज के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता है अपितु दस्तावेज को तैयार करने में प्रयुक्त किए गये शब्दों से निरूपित किए गये आशय पर निर्भर करता है।
इस सन्दर्भ में साधारण परीक्षण यह है-
दस्तावेज का क्या नाम दिया गया है:
इसका रजिस्ट्रीकरण हुआ है या नहीं:
इसे प्रति संहरित करने की स्थिति (काल):
वर्तमान या भावी प्रवर्तन की स्थिति (काल)।
इसमें केवल एक या दो परीक्षण स्वयं में पर्याप्त नहीं है। बहुलांश परीक्षणों को ध्यान में रखकर इस प्रश्न का निर्धारम किया जाता है।
दान एवं वसीयत के बीच प्रमुख परीक्षण यह है कि अन्तरण विलेख के निष्पादक के जीवनकाल में प्रभावी हो जाता है या उसकी मृत्यु के पश्चात् प्रभावी होता है। यह भी सम्भव है कि विलेख अंशतः वर्तमान में प्रभावी होता हो अथवा भविष्य में वसीयत के रूप में अतः वसीयतकर्ता की मृत्यु तक यह केवल एक प्रदक्षिणा पथ की तरह है तथा वसीयत प्रतिसंहरणीय प्रकृति की है। वसीयत का किया जाना इसका प्रारम्भ मात्र है तथा वसीयतकर्ता की मृत्यु तक इसका कोई भी प्रभाव नहीं होता है। इस प्रकार वसीयत के दो गुण
यह वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात् प्रभावी होने के लिए आशयित हो।
यह प्रतिसंहरणीय हो ।
यदि एक सम्पत्ति का शर्त रहित दान किया गया हो और इसके साथ ही साथ एक अन्य करार हुआ हो तो दोनों ही विलेख एक ही संव्यहार एवं शर्त के अंश माने जाएंगे, यदि कोई हो, जिसका उल्लेख विलेख में किया गया हो। वह पक्षकारों पर बाध्यकारी होगा। ठाकुर रघुनाथ बनाम रमेश चन्द्र के वाद में दाता ने कालेज के लिए भवन निर्माण हेतु एक भूमि का शर्त रहित रूप में दान किया। इसी के साथ-साथ एक पृथक करार किया गया जिसमें यह उपबन्धित था कि यदि कालेज भवन का निर्माण एक निर्धारित कालावधि में पूरा नहीं कर लिया जाता है तो यह समझा जाएगा कि दान विलेख समाप्त हो गया है तथा दाता दान में दी गयी सम्पत्ति का स्वामी समझा जाएगा। करार के आधार पर दाता के दावे को स्वीकार किया गया क्योंकि भवन का निर्माण निर्धारित कालावधि में पूर्ण नहीं हो सका था।
इन दोनों संव्यवहारों में मात्र यह विभेद है कि दान के मामले में दान की विषयवस्तु हो आदाता के पास अन्तरित हो जाती है, चली जाती है, जबकि न्यास में वास्तविक लाभकारी हित लाभार्थी को प्राप्त होता है या साम्पिक स्वत्व लाभार्थी में निहित हो जाता है जबकि विधिक स्वत्व या हित एक तीसरे व्यक्ति के पास चला जाता है या स्वयं उस व्यक्ति के पास रह जाता है जो न्यास का सृजन करता है। दूसरे शब्दों में न्यास के मामले में तीन व्यक्तियों को आवश्यकता होती है अथवा कम से कम दो व्यक्तियों की जिसमें से एक व्यक्ति एक साथ दो अधिकार से युक्त होता है। इसके विपरीत दान में केवल दो ही व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। दान देने वाला एवं दान सम्पत्ति को ग्रहण करने वाला।