न्यायालय में झूठे साक्ष्य और बाधा उत्पन्न करने पर कानूनी कार्रवाई : धारा 379 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023
Himanshu Mishra
7 March 2025 11:32 AM

Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 (BNSS), जो पहले की Criminal Procedure Code (CrPC) को बदलकर लागू हुई है, इसमें कई महत्वपूर्ण प्रावधान (Provisions) शामिल किए गए हैं ताकि न्याय प्रणाली (Judicial System) को सुचारू रूप से चलाया जा सके। इनमें से एक महत्वपूर्ण प्रावधान Section 379 है, जो न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले अपराधों (Offences Affecting the Administration of Justice) से निपटने की प्रक्रिया (Procedure) को स्पष्ट करता है।
यह प्रावधान Section 215 से जुड़ा हुआ है, जिसमें ऐसे अपराधों को परिभाषित किया गया है जो न्यायालय (Court) की गरिमा (Dignity) और न्यायिक प्रक्रिया को बाधित (Obstruct) कर सकते हैं। इस लेख में हम Section 379 को सरल भाषा में समझाएंगे और यह भी जानेंगे कि Section 215 का इसमें क्या महत्व है।
Section 215 (धारा 215) का अर्थ और महत्व
Section 215 में उन अपराधों (Offences) का उल्लेख है जो न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceedings) में बाधा डालते हैं या न्यायालय के आदेशों की अवहेलना (Disobedience of Court Orders) करते हैं। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित अपराध शामिल हैं:
1. झूठी गवाही देना (Giving False Evidence) – जब कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठा बयान देता है, नकली दस्तावेज़ (Fake Documents) प्रस्तुत करता है, या न्यायालय में गलत साक्ष्य (False Evidence) पेश करता है।
2. न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप (Obstructing Justice) – जब कोई व्यक्ति गवाह (Witness) को धमकाता है, सबूतों (Evidence) से छेड़छाड़ करता है, या न्यायालय की कार्यवाही (Court Proceedings) में व्यवधान डालता है।
3. अदालत के आदेश की अवहेलना (Contempt or Disobedience of Court Orders) – जब कोई व्यक्ति न्यायालय के आदेशों का पालन करने से इनकार करता है या ऐसा कार्य करता है जिससे न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुँचती है।
Section 215 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायालय की कार्यवाही (Judicial Proceedings) निष्पक्ष (Fair) और बिना किसी रुकावट (Uninterrupted) के पूरी हो।
Section 379 (धारा 379) के तहत अपराधों से निपटने की प्रक्रिया (Procedure for Dealing with Offences under Section 379)
Section 379 के तहत न्यायालय (Court) को यह अधिकार दिया गया है कि वह उन अपराधों (Offences) की जाँच (Inquiry) करे जो Section 215(1)(b) में उल्लिखित हैं। यह प्रावधान तब लागू होता है जब कोई अपराध न्यायालय की कार्यवाही से संबंधित (Related to Court Proceedings) हो या किसी दस्तावेज़ (Document) के साथ किया गया हो, जो न्यायालय में साक्ष्य (Evidence) के रूप में प्रस्तुत किया गया हो।
जाँच की शुरुआत (Initiation of Inquiry)
यदि न्यायालय को यह लगता है कि कोई अपराध हुआ है, तो वह या तो स्वयं (Suo Motu) या किसी आवेदन (Application) के आधार पर जाँच शुरू कर सकता है।
इससे पहले कि न्यायालय कोई कड़ी कार्रवाई करे, वह एक प्रारंभिक जाँच (Preliminary Inquiry) कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मामला वास्तविक (Genuine) है और बेबुनियाद (Frivolous) नहीं है।
न्यायालय द्वारा उठाए जाने वाले कदम (Steps to Be Taken by the Court)
यदि न्यायालय यह निष्कर्ष निकालता है कि वास्तव में कोई अपराध हुआ है, तो वह निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
1. निष्कर्ष रिकॉर्ड करना (Recording a Finding) – न्यायालय को औपचारिक रूप (Formal Manner) में यह लिखना होगा कि अपराध हुआ है।
2. शिकायत दर्ज करना (Making a Complaint in Writing) – न्यायालय को इस संबंध में एक लिखित शिकायत (Written Complaint) तैयार करनी होगी, जो आगे की कार्यवाही (Further Proceedings) का आधार बनेगी।
3. प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को भेजना (Forwarding the Complaint to a Magistrate of First Class) – यह शिकायत First Class Magistrate को भेजी जाएगी, जो इस मामले पर आगे निर्णय लेगा।
4. अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करना (Ensuring the Accused Appears Before the Magistrate) – न्यायालय अभियुक्त (Accused) से सुरक्षा राशि (Security Amount) ले सकता है ताकि उसकी उपस्थिति सुनिश्चित हो। यदि अपराध ग़ैर-जमानती (Non-Bailable) है, तो न्यायालय उसे हिरासत (Custody) में भेज सकता है।
5. गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करना (Ensuring Witnesses Appear Before the Magistrate) – न्यायालय गवाहों (Witnesses) को मजिस्ट्रेट (Magistrate) के समक्ष पेश होने का आदेश दे सकता है ताकि वे अपने बयान दे सकें।
उच्च न्यायालयों की शक्ति (Power of Higher Courts)
यदि निचली अदालत (Lower Court) Section 379 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करती है और न तो कोई शिकायत दर्ज करती है और न ही आवेदन को खारिज करती है, तो हाईकोर्ट (Higher Court) इस मामले में हस्तक्षेप कर सकता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि न्यायालय की निष्क्रियता (Inaction) के कारण कोई अपराध बिना दंडित (Unpunished) न रह जाए।
शिकायत पर हस्ताक्षर कौन करेगा? (Who Can Sign the Complaint?)
Section 379 के तहत दर्ज शिकायत को अधिकृत अधिकारी (Authorized Officer) द्वारा हस्ताक्षरित किया जाना आवश्यक है:
• यदि शिकायत हाईकोर्ट (High Court) द्वारा की जा रही है, तो इसे हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त अधिकारी (Appointed Officer) द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा।
• अन्य न्यायालयों (Other Courts) में, शिकायत पर न्यायालय के अध्यक्ष (Presiding Officer) या न्यायालय द्वारा अधिकृत (Authorized) किसी अधिकारी के हस्ताक्षर होंगे।
"न्यायालय" का अर्थ (Meaning of "Court")
Section 379 में प्रयुक्त "न्यायालय (Court)" शब्द का वही अर्थ है जो Section 215 में दिया गया है। इसका अर्थ है कि केवल विधि द्वारा स्थापित न्यायालय (Legally Established Courts) ही इस प्रावधान का उपयोग कर सकते हैं।
Section 379 का महत्व (Importance of Section 379)
Section 379 भारतीय न्यायिक प्रणाली (Indian Judicial System) की पवित्रता (Sanctity) और निष्पक्षता (Fairness) बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इसके निम्नलिखित लाभ हैं:
1. न्यायिक कार्यवाही की पवित्रता बनाए रखना (Preserving the Integrity of Judicial Proceedings) – यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति झूठे दस्तावेज़ (False Documents) प्रस्तुत करके या गवाहों को प्रभावित (Influence) करके न्यायालय को गुमराह न कर सके।
2. न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकना (Preventing Abuse of Judicial Processes) – कई बार लोग गवाहों को धमकाते हैं, सबूत नष्ट करते हैं, या कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हैं। यह प्रावधान न्यायालय को ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने की शक्ति देता है।
3. तेजी से न्याय दिलाना (Ensuring Swift Justice) – चूंकि न्यायालय स्वयं शिकायत दर्ज करता है, इसलिए मामले में अनावश्यक देरी (Unnecessary Delay) नहीं होती।
4. उच्च न्यायालयों की शक्ति (Empowering Higher Courts) – अगर कोई निचली अदालत निष्क्रिय रहती है, तो हाईकोर्ट इसमें हस्तक्षेप कर सकता है।
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 के Section 379 ने न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्षता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र प्रदान किया है। यह प्रावधान न्यायालय को झूठे साक्ष्य, गवाहों को धमकाने और अदालत के आदेशों की अवहेलना करने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई (Swift Action) करने की शक्ति देता है।
इसके साथ ही, Section 215 से इसका गहरा संबंध है, जो उन अपराधों को परिभाषित करता है जो न्यायालय की प्रक्रिया को बाधित कर सकते हैं। इस प्रावधान के माध्यम से न्यायपालिका (Judiciary) की गरिमा और कानूनी प्रक्रिया की पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित की जाती है।