हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 2023 की धारा 24 के तहत अपीलीय प्राधिकारी के अधिकारों, प्रक्रिया और न्यायिक पुनरीक्षण

Himanshu Mishra

6 March 2025 11:38 AM

  • हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 2023 की धारा 24 के तहत अपीलीय प्राधिकारी के अधिकारों, प्रक्रिया और न्यायिक पुनरीक्षण

    हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 2023 (Himachal Pradesh Rent Control Act 2023) किरायेदारों (Tenant) और मकान मालिकों (Landlord) के अधिकारों और दायित्वों को संतुलित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस अधिनियम में मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों के समाधान के लिए एक व्यवस्थित प्रक्रिया दी गई है।

    विवादों के समाधान के लिए पहले स्तर पर नियंत्रक (Controller) के पास अधिकार होते हैं। यदि कोई पक्ष नियंत्रक के आदेश से असंतुष्ट हो तो उसे अपील करने का अधिकार भी दिया गया है। धारा 24 (Section 24) इस अधिनियम के तहत अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) की नियुक्ति, अधिकार और प्रक्रिया से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों को स्पष्ट करती है।

    अपीलीय प्राधिकारी की नियुक्ति (Appointment of Appellate Authority)

    धारा 24(1)(a) के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह एक सामान्य आदेश (General Order) या विशेष आदेश (Special Order) द्वारा ऐसे अधिकारियों या प्राधिकरणों (Authorities) को अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) के रूप में नियुक्त कर सकती है, जिन्हें वह उचित समझे। राज्य सरकार आदेश में यह भी स्पष्ट कर सकती है कि किस क्षेत्र (Area) या किस प्रकार के मामलों (Classes of Cases) के लिए अपीलीय प्राधिकारी को अधिकार सौंपे गए हैं।

    उदाहरण के लिए, राज्य सरकार एक जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) या उप-मंडल मजिस्ट्रेट (Sub-Divisional Magistrate) को अपीलीय प्राधिकारी नियुक्त कर सकती है और यह आदेश दे सकती है कि वह केवल शहरी क्षेत्रों में किराया विवादों की अपील सुनेंगे।

    अपील करने का अधिकार (Right to Appeal)

    धारा 24(1)(b) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति नियंत्रक के आदेश से असंतुष्ट है तो वह अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील कर सकता है। लेकिन यह अधिकार धारा 16 (Section 16) के तहत दिए गए कब्जा (Possession) को वापस पाने के आदेश पर लागू नहीं होता है।

    अपील दर्ज करने की समय सीमा 15 दिन रखी गई है, जो आदेश की तारीख से शुरू होती है। हालांकि, अपीलीय प्राधिकारी लिखित रूप में कारण दर्ज करने के बाद इस समय सीमा को बढ़ा सकता है।

    समय सीमा की गणना (Calculation of Time Limit)

    धारा 24(1)(b) में यह भी स्पष्ट किया गया है कि 15 दिनों की अवधि की गणना करते समय आदेश की प्रमाणित प्रति (Certified Copy) प्राप्त करने में लगा समय इस अवधि में नहीं जोड़ा जाएगा।

    उदाहरण के लिए, यदि नियंत्रक ने 1 अगस्त को आदेश दिया और प्रमाणित प्रति प्राप्त करने में 5 दिन लगे, तो अपील दर्ज करने की अंतिम तिथि 21 अगस्त होगी।

    कार्यवाही पर स्थगन आदेश (Stay on Proceedings)

    धारा 24(2) के अनुसार, जब अपील दर्ज की जाती है तो अपीलीय प्राधिकारी अपील का निर्णय होने तक मामले की आगे की कार्यवाही पर रोक (Stay) लगा सकता है। यह आदेश यह सुनिश्चित करने के लिए दिया जाता है कि अपीलकर्ता (Appellant) को कोई अन्याय न हो।

    उदाहरण के लिए, यदि नियंत्रक ने किरायेदार को मकान खाली करने का आदेश दिया है और किरायेदार ने अपील की है, तो अपीलीय प्राधिकारी किरायेदार को तब तक घर खाली करने से रोक सकता है जब तक अपील का निर्णय नहीं आ जाता।

    अपील की सुनवाई और निर्णय (Hearing and Decision of Appeal)

    धारा 24(3) के अनुसार, अपीलीय प्राधिकारी अपील सुनने के लिए पहले नियंत्रक से संबंधित मामले की पूरी फाइल मंगवाएगा। दोनों पक्षों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाएगा। यदि आवश्यक हो, तो अपीलीय प्राधिकारी स्वयं या नियंत्रक के माध्यम से आगे की जांच (Further Inquiry) भी करवा सकता है।

    उदाहरण के लिए, यदि विवाद किराए की राशि को लेकर है, तो अपीलीय प्राधिकारी संबंधित दस्तावेजों की जांच कर सकता है और गवाहों के बयान भी दर्ज कर सकता है।

    अपील के निर्णय की अंतिमता (Finality of Decision)

    धारा 24(4) के अनुसार, अपीलीय प्राधिकारी का निर्णय अंतिम (Final) होता है। नियंत्रक के आदेश को केवल अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय के अधीन रखा गया है। इसके बाद इस आदेश को किसी अन्य न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, सिवाय उन मामलों के जिनके लिए धारा 24(5) में प्रावधान किया गया है।

    न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial Review) का अधिकार

    धारा 24(5) के तहत, हाईकोर्ट (High Court) को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी पक्ष की अर्जी (Application) पर या स्वयं संज्ञान (Suo Moto) लेते हुए अधिनियम के तहत पारित किसी भी आदेश या कार्यवाही की वैधता (Legality) या औचित्य (Propriety) की जांच कर सकता है।

    उदाहरण के लिए, यदि अपीलीय प्राधिकारी ने कोई आदेश जारी किया है जो कानून के विरुद्ध है, तो हाईकोर्ट इस आदेश को रद्द कर सकता है।

    महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points)

    1. अपीलीय प्राधिकारी के पास नियंत्रक के अधिकांश आदेशों के खिलाफ अपील सुनने का अधिकार है।

    2. अपील दर्ज करने की समय सीमा 15 दिन है, जिसे उचित कारणों से बढ़ाया जा सकता है।

    3. अपीलीय प्राधिकारी के आदेश को केवल हाईकोर्ट के न्यायिक पुनरीक्षण के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है।

    4. अपीलीय प्राधिकारी की कार्यवाही न्यायसंगत (Fair) और पारदर्शी (Transparent) होनी चाहिए।

    हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 2023 की धारा 24 अपीलीय प्राधिकारी की नियुक्ति, अधिकारों और प्रक्रिया से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों को निर्धारित करती है। यह प्रावधान विवादों के निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाधान को सुनिश्चित करते हैं।

    अपील करने की प्रक्रिया के साथ-साथ हाईकोर्ट के न्यायिक पुनरीक्षण के प्रावधान से यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी पक्ष के अधिकारों का उल्लंघन न हो। यह प्रावधान मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कानून के शासन (Rule of Law) को मजबूत करते हैं।

    Next Story