हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

10 July 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (चार जुलाई, 2022 से आठ जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    कामगार मुआवजा अधिनियम | विच्छेदन पर कमाई की क्षमता का नुकसान शारीरिक विकलांगता के प्रतिशत के बराबर नहीं किया जा सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि यदि एक ऑन-साइट एक्स‌िडेंट के कारण एक कामगार की शारीरिक क्षति होती है तो वह 100% कमाई क्षमता के नुकसान के लिए कामगार मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत मुआवजे का हकदार होगा।

    जस्टिस रवि नाथ तिलहरी ने कहा कि ऐसे मामलों में, कमाई क्षमता के नुकसान को शारीरिक अक्षमता के प्रतिशत के अनुपात में नहीं देखा जा सकता है। यह भी माना गया कि अधिनियम के तहत मुआवजा दुर्घटना की तारीख से देय हो जाता है और इसलिए, मुआवजे पर ब्याज की गणना दुर्घटना की तारीख से वास्तविक वसूली तक की जाती है।

    केस टाइटल: मंडल प्रबंधक, मैसर्स यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हरिजना पी. इसराइल और पी. माबु

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    मुख्य सुर्खियां गुजरात खनन नियम | जब्त संपत्ति को 45 दिन की अवधि के बाद लिखित शिकायत के साथ न्यायालय के समक्ष पेश किया जाना चाहिए: हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि जांचकर्ता के लिए लिखित शिकायत के साथ सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाना और जब्त की गई संपत्तियों को जब्ती की तारीख से 45 दिनों के भीतर अदालत के समक्ष पेश करना अनिवार्य है, जैसा कि गुजरात खनिज (अवैध खनन, परिवहन और भंडारण की रोकथाम) नियम, 2017 के नियम 12 के तहत निर्दिष्ट है। अदालत ने कहा कि इस तरह की कवायद के अभाव में जब्ती और बैंक गारंटी का उद्देश्य विफल हो जाएगा। इसके परिणामस्वरूप, संपत्ति को उस व्यक्ति को जारी करना होगा, जिससे इसे बैंक गारंटी के बिना जब्त किया गया था।

    केस टाइटल: सोलंकी हरिभाई अर्जनभाई बनाम गुजरात राज्य

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    ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम| शिक्षक धारा 2(e) के तहत 'कर्मचारी' के दायरे में आते हैं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि शिक्षक ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के तहत परिभाषित 'कर्मचारी' के दायरे में आते हैं। जस्टिस मुरली पुरुषोत्तम ने स्पष्ट किया कि सीयूएसएटी, एक शैक्षणिक संस्थान होने के नाते, अधिनियम की धारा 1 (3) (सी) के तहत एक प्रतिष्ठान है।

    चूंकि अधिनियम की धारा 1 की उप-धारा 3 के खंड (सी) के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार अधिनियम के प्रावधानों को शैक्षणिक संस्थानों पर लागू किया गया है, कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंट टेक्नोलॉजी, जो कि एक शैक्षणिक संस्थान है, अधिनियम की धारा 1(3) (सी) के तहत एक प्रतिष्ठान है।

    केस टाइटल: कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी बनाम डॉ पीवी शशिकुमार

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    यदि किसी अन्य धर्म के व्यक्ति की किसी हिंदू देवता में आस्था है तो उसे मंदिर में प्रवेश से रोका नहीं जा सकताः मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई ‌थी कि थिरुवट्टर में अरुल्मिघू आदिकेशव पेरुमल थिरुकोविल के कुंभाभ‌िषेघम उत्सव में गैर-हिंदुओं को भाग लेने की अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया जाए।

    हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि किसी भी धर्म से संबंधित व्यक्ति को न तो रोका जाना चाहिए और न ही मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाई जानी चाहिए। याचिका सी सोमन नामक व्यक्ति ने कुंभबीशेगम उत्सव के आयोजन के लिए प्रसारित एक निमंत्रण पत्र के मद्देनजर दायर की थी। कार्ड पर एक मंत्री के नाम का भी उल्लेख था, जो एक ईसाई है।

    केस टाइटल: सी सोमन बनाम सचिव, HR&CE और अन्य

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    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार जिले के मुस्लिम बहुल शहर में बकर-ईद पर कुर्बानी करने की अनुमति दी

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को 10 जुलाई मनाई जाने वाली बकर-ईद के अवसर पर हरिद्वार से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित मुस्लिम बहुल शहर मैंगलोर में जानवरों की कुर्बानी की अनुमति देने के राज्य सरकार के आदेश के संचालन पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि सरकारी आदेश का उद्देश्य हिंदू समुदाय की भावना को शांत करना प्रतीत होता है, क्योंकि हरिद्वार को प्राचीन काल से पवित्र शहर माना जाता है।

    केस टाइटल: इफ्ताखार और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य

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    आरोपी की मेडिकल जांच नहीं होने से ऐसे चश्मदीद गवाहों पर संदेह नहीं किया जा सकता, जिनका समर्थन मेडिकल साक्ष्य से होता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि घटना के बाद आरोपी का मेडिकल परीक्षण न करने के एक मात्र आधार पर मेडिकल साक्ष्य द्वारा समर्थित चश्मदीद गवाहों के साक्ष्य पर संदेह नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने बलात्कार के आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार रखी, जिसे निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बेंच ने साथ ही पीड़ित को मुआवजे के रूप में 25,000 / - रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल - श्रवण कुमार मौर्य बनाम यूपी राज्य [आपराधिक अपील नंबर - 2422/2008]

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    [NEET-UG 2021] तकनीकी खराबी के कारण गलती से सफल घोषित किए गए उम्मीदवारों के पक्ष में कोई निहित अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एनईईटी-यूजी (NEET-UG) परीक्षा 2021 के संबंध में तीन उम्मीदवारों को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि ऐसा कोई अधिकार नहीं है जो उनके पक्ष में निहित हो क्योंकि उन्हें तकनीकी खराबी के कारण गलती से "सफल" घोषित कर दिया गया था।

    जस्टिस संजीव नरूला ने कहा, "विचार के लिए यह सवाल उठता है कि क्या याचिकाकर्ताओं के पक्ष में अधिकार निहित है, जिन्हें तकनीकी गड़बड़ी के कारण गलती से सफल उम्मीदवार घोषित कर दिया गया था। इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक होना चाहिए, क्योंकि किसी भी उम्मीदवार को अनजाने में हुई त्रुटि का लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    केस टाइटल: हुडा अंसारी एंड अन्य बनाम जामिया मिलिया इस्लामिया एंड अन्य।

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    गैर-बाध्यकारी मध्यस्थता समझौते के आधार पर ए एंड सी अधिनियम की धारा 8 को लागू नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि पक्षकारों के बीच समझौते से 'गैर-बाध्यकारी' मध्यस्थता का रास्ता बना, हालांकि पक्षकारों का मध्यस्थता समझौता करने का कोई इरादा नहीं था, इस कारण उक्त समझौते को मध्यस्थता समझौता नहीं कहा जा सकता।

    जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की एकल पीठ ने माना कि चूंकि समझौते में संबंधित खंड के तहत पक्षकार सिविल कोर्ट के समक्ष मुकदमेबाजी शुरू करने के लिए स्वतंत्र है, इसलिए, उक्त खंड स्पष्ट रूप से एक मध्यस्थता समझौते से अलग हो गया। इस कारण याचिकाकर्ता द्वारा दायर वसूली का मुकदमा निचली अदालत के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं है और निचली अदालत मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 8 को लागू नहीं कर सकती।

    केस टाइटल: मास्टर्स मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड बनाम नितेश एस्टेट्स लिमिटेड

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    मुख्य सुर्खियां पेंशन योजना का दावा सेवा में आने की तिथि से किया जा सकता है, नियमित नियुक्ति की स्वीकृति की तिथि से नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि शिक्षकों के पेंशन लाभों पर विचार करते समय प्रासंगिक तिथि वह तिथि होगी जिस दिन शिक्षक ने सेवा में प्रवेश किया था, न कि वह तिथि जिस पर वास्तव में नियुक्ति की पुष्टि हुई थी।

    जस्टिस एस वैद्यनाथन और जस्टिस एन माला ने वी वसंती बनाम तमिलनाडु राज्य के फैसले पर भरोसा किया, जहां इसी तरह के तथ्यों पर, अदालत ने माना था कि शिक्षकों की सेवा अवधि नियुक्ति की तारीख से शुरू होती है, न कि अनुमोदन की तारीख से, भले ही मौद्रिक लाभ प्रशिक्षण पूरा होने की तारीख से ही मिलना शुरू हो पाता है। इस प्रकार, प्रशिक्षण पूरा होने से पहले प्रदान की गई सेवा को भी पेंशन के लिए विचार किया जाना था।

    केस टाइटल: तमिलनाडु राज्य और अन्य बनाम आर चित्रदेवी और अन्य

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    मुख्य सुर्खियां प्यूबर्टी की आयु प्राप्त करने वाली नाबालिग मुस्लिम लड़की पर POCSO एक्ट लागू होगा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने इस तर्क को खारिज कर दिया है कि मुस्लिम कानून (Muslim Law) के अनुसार पीड़िता यौवन (Puberty) की आयु प्राप्त कर चुकी है। इसलिए इस मामले में POCSO अधिनियम लागू नहीं होगी।

    जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि पोक्सो अधिनियम के उद्देश्य के बयान में कहा गया है कि अधिनियम का उद्देश्य बच्चों की कम उम्र को सुरक्षित करना है और यह सुनिश्चित करना है कि उनके साथ दुर्व्यवहार न हो और उनके बचपन और युवाओं को शोषण से बचाया जाए।

    केस टाइटल: इमरान बनाम दिल्ली राज्य दिल्ली पुलिस आयुक्त एंड अन्य

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    जहां आरोपी बरी हो गया और कोई आपराधिक मामला लंबित नहीं तो राउडी शीट जारी नहीं रह सकतीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि जब एक आरोपी व्यक्ति को उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से बरी कर दिया गया है और उसके खिलाफ कोई और आपराधिक मामला लंबित नहीं है, तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ 'राउडी शीट' जारी रखना उचित नहीं है।

    जस्टिस चीकाती मानवेंद्रनाथ की एकल पीठ एक परमादेश के लिए एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं के खिलाफ राउउी शीट खोलने और बाद में उसे जारी रखने की उत्तरदाताओं की कार्रवाई को अवैध, मनमाना, असंवैधानिक घोष‌ित करने की मांग की गई थी। उक्त शीट को रद्द करने की मांग की गई थी।

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    दुर्भावना के बिना प्रशासनिक कारणों से किए गए स्थानांतरण में हस्तक्षेप नहीं कर सकते: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) के CISFofficial के स्थानांतरण आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यह प्रशासनिक कारणों से किया गया है। जस्टिस अनु शिवरामन ने कहा कि इसमें हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा, क्योंकि यह वर्दीधारी सेवा के सदस्य का स्थानांतरण है और इसमें कोई दुर्भावना नहीं है।

    केस टाइटल: अखिल एम बनाम भारत संघ और अन्य।

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    हाईकोर्ट के पास अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर पंजीकृत अपराधों में ट्रांजिट अग्रिम जमानत देने की शक्ति है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है एक हाईकोर्ट के पास अपने अधिकार क्षेत्र/राज्य के बाहर पंजीकृत/पंजीकृत होने के संभावला वाले अपराध के संबंध में एक आरोपी को ट्रांजिट अग्रिम जमानत देने की शक्ति है।

    जस्टिस सिद्धार्थ की पीठ ने बुधवार को कहा, "... ट्रांजिट अग्रिम जमानत देने में हाईकोर्ट की ओर से कोई बंधन नहीं है ताकि आवेदक हाईकोर्टों सहित न्यायालयों का दरवाजा खटखटा सकें जहां अपराध का आरोप लगाया गया है और मामला दर्ज किया गया है।"

    केस टाइटल- अमिता गर्ग और 6 अन्य बनाम यूपी राज्य और तीन अन्य [CRIMINAL MISC ANTICIPATORY BAIL APPLICATION U/S 438 CR.P.C. No. - 5286 of 2022]

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    सेवा कानूनों को बनाने और संशोधित करने की शक्ति का मतलब समान स्थिति वाले व्यक्तियों के लिए इसे अलग तरीके से लागू करने की शक्ति नहीं है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि अपने कर्मचारियों की सेवा शर्तों को निर्धारित करने वाले कानून बनाने या संशोधित करने की सरकार की शक्ति उन्हें समान रूप से स्थित व्यक्तियों के लिए ऐसे कानूनों को अलग तरीके से लागू करने की शक्ति प्रदान नहीं कर सकती है।

    जस्टिस जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने कहा कि सरकार को ऐसा करने की अनुमति देना भारत के संविधान में निहित समानता के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।

    केस टाइटल: केरल राज्य बनाम डॉ. जॉन पैनिकर

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    मुस्लिम कानून | मुस्लिम मां ने अगर एक नाबालिग की ओर से, अभिभावक के रूप में, एक पार्टिशन डीड का ‌निष्पादन किया है तो वह मान्य नहीं होगीः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट की मिसालों के मुताबिक, एक मुस्लिम मां ने अगर एक नाबालिग की ओर से, गॉर्जियन के रूप में, एक पार्टिशन डीड का ‌निष्पादन किया है तो वह मान्य नहीं होगी।

    जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने कहा कि पर्सनल लॉ में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसे प्रतिबंधित करता है, लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट की मिसालों से बंध हुआ है, जिसने स्थापित किया है कि मुस्लिम मां अपने नाबालिग बच्चे की व्यक्ति या संपत्ति की अभिभावक नहीं हो सकती है..

    केस टाइटल: सी अब्दुल अजीज और अन्य बनाम चेम्बकंडी साफिया और अन्य।

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    बयानों में स्पष्टता की कमी किसी आवेदन को गैर-सुनवाई योग्य होने के रूप में खारिज करने का आधार नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बयानों में स्पष्टता की कमी किसी आवेदन को गैर-सुनवाई योग्य होने के रूप में खारिज करने का आधार नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी यह देखते हुए की कि आवेदन के सुनवाई योग्य होने की शर्तेंऔर स्पष्टता दो पूरी तरह से अलग अवधारणाएं हैं।

    जस्टिस सी हरि शंकर दीवानी मुकदमे में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा पारित 24 मार्च, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिका में इस बात को चुनौती दी गई थी कि जिला न्यायाधीश के आदेश VII सपठित आदेश XII नियम 6 के तहत प्रतिवादियों में से एक द्वारा दायर आवेदन को नियम 11 को आदेश 1 नियम 10 और सपठित सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 151 के तहत खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: विजय स्वरूप लव बनाम एमएस निशा राठी और अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 156(3) - मजिस्ट्रेट बिना दिमाग लगाए सभी शिकायतों को फॉरवर्ड करने वाला पोस्ट ऑफिस नहीं है : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक मजिस्ट्रेट अदालत अपना दिमाग इसतेमाल करने के लिए बाध्य है।

    जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि अपराधों का संज्ञान लेते समय या किसी संज्ञेय मामले की जांच का आदेश देते समय अदालतों को केवल उन सभी शिकायतों को एक डाकघर की तरह आगे बढ़ाना (फॉरवर्ड) नहीं करना चाहिए जो उन्हें मिलती हैं। जैसे, इस बात पर जोर दिया गया कि धारा 156(3) के तहत शक्तियों का प्रयोग आकस्मिक या यंत्रवत् रूप से नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसका इस्तेमाल विवेकपूर्ण तरीके से करने की आवश्यकता है।

    केस टाइटल : जिबिन जोसेफ बनाम केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप और अन्य।

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    केवल इसलिए कि सीआरपीसी की धारा 482 परिसीमा अवधि निर्धारित नहीं करता है इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टियां अत्यधिक देरी के साथ कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट (Jammu-Kashmir & Ladakh High Court) ने कहा कि केवल इसलिए कि सीआरपीसी की धारा 482 परिसीमा अवधि निर्धारित नहीं करता है इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टियां अत्यधिक देरी के साथ कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका उचित समय के भीतर दायर की जानी चाहिए और याचिकाकर्ता की ओर से अत्यधिक देरी और लापरवाही से इसे खराब नहीं किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल : ईपन चाकू बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    सर्विस टैक्स के गलत भुगतान पर परिसीमा अवधि लागू नहीं होती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस पी.एस. दिनेश कुमार और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने माना कि गलत तरीके से भुगतान किए गए सर्विस टैक्स की वापसी के लिए परिसीमा अवधि लागू नहीं है।

    अपीलकर्ता/निर्धारिती ने यूएसए में स्थित कंपनी प्रोफेशनल लियन सर्च एलएलसी के साथ समझौता किया था। वह यूएसए में रियल एस्टेट संपत्ति खरीदारों को सहायता सेवाएं प्रदान करता था। अपीलकर्ता की गतिविधि संभावित खरीदारों द्वारा खरीदी जाने वाली प्रस्तावित संपत्ति से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर जानकारी को सत्यापित करना था, जैसे संपत्ति कर की जानकारी, भवन परमिट, उपयोगिताओं के लिए अवैतनिक बिल, संपत्ति रखरखाव, आदि।

    केस टाइटल: मेसर्स बेलाट्रिक्स कंसल्टेंसी सर्विसेज बनाम केंद्रीय कर आयुक्त

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    वह व्यक्ति जो फरार है और वारंट के निष्पादन से बच रहा है, अग्रिम जमानत का हकदार नहीं: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने देखा है कि एक व्यक्ति, जिसके खिलाफ वारंट है और वह फरार है और वारंट के निष्पादन से बच रहा है, वह अग्रिम जमानत की रियायत का हकदार नहीं है।

    जस्टिस जावेद इकबाल वानी की खंडपीठ ने अमित कुमार गुप्ता नामक आरोपी को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर आईपीसी की धारा 304/34 के तहत दंडनीय अपराध दर्ज किया गया है।

    केस टाइटल- अमित कुमार गुप्ता बनाम जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश, एसएचओ पीएस मेंधर के माध्यम से

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    मुख्य सुर्खियां ऋण वसूली न्यायाधिकरण पक्षकार द्वारा मांगी गई राहत से आगे नहीं जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunal) उन प्रार्थनाओं को स्वीकार नहीं कर सकता जो उसके सामने किसी पक्षकार ने मांगी ही नही है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण पक्षकार द्वारा मांगी गई राहत से आगे नहीं जा सकता।

    केस टाइटल: गुजरात स्टेट फाइनैंशियल कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम इंडिया एसएमई एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और 8 अन्य (एस)

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    यौन अपराधों की रिपोर्ट करने में देरी को अलग तरह से देखा जाएगा, अन्य मामलों में देरी के साथ इसकी तुलना नहीं की जा सकती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने कहा कि यौन अपराधों (Sexual Offence) की रिपोर्ट करने में देरी को अन्य अपराधों की तरह सख्ती से नहीं देखा जाना चाहिए और यह केवल उस मामले में घातक होगा जहां अभियोजन पक्ष के संस्करण की प्रामाणिकता अनिश्चित है।

    जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने टिप्पणी की कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमारे जैसे पारंपरिक समाज में, केवल इस घटना पर अविश्वास करना उचित नहीं है क्योंकि शिकायत दर्ज करने में देरी हुई थी।

    केस टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य एंड अन्य।

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    यूएपीए | किसी भी आतंकवादी संगठन के सदस्य ना होने पर पर भी 'आतंकवादी कृत्य' के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यह आवश्यक नहीं है कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 15 के तहत परिभाषित "आतंकवादी कृत्य" के लिए मुकदमा चलाया जा रहा व्यक्ति आतंकवादी संगठन का सदस्य होना चाहिए।

    ज‌स्टिस के सोमशेखर और जस्टिस शिवशंकर अमरनवर की खंडपीठ ने कहा, "यूएपी अधिनियम की धारा 15 के तहत परिभाषित आतंकवादी कृत्य के लिए एक व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है और यह आवश्यक नहीं है कि यूएपी अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिए वह एक आतंकवादी संगठन का सदस्य होना चाहिए। एक आतंकवादी गिरोह या संगठन का सदस्य होने के नाते जो आतंकवादी कृत्य में शामिल है, वह यूएपी अधिनियम की धारा 20 के तहत अपराध है।"

    केस टाइटल: इरफान पाशा बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी

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    धारा 116 साक्ष्य अधिनियम | मकान मालिक द्वारा परिसर में प्रवेश को स्वीकार करने वाला किरायेदार मकान मालिक के स्वामित्व पर विवाद नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक किरायेदारी विवाद में, जब किरायेदार एक पट्टा समझौते के तहत वादी (मकान मालिक) द्वारा उक्त संपत्ति में शामिल होने का विवाद नहीं करता है, तो वादी के स्वामित्व पर संदेह करने का सवाल ही नहीं उठता।

    ज‌स्टिस एनएस संजय गौड़ा की एकल पीठ ने चर्च ऑफ साउथ इंडिया ट्रस्ट एसोसिएशन द्वारा दायर दूसरी अपील पर विचार करते हुए कहा, "भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 116 एक किरायेदार को मकान मालिक के स्वामित्व से इनकार करने की अनुमति नहीं देती है, यदि वह मकान मालिक द्वारा परिसर में उसके प्रवेश को स्वीकार करता है।"

    केस टाइटल: चर्च ऑफ साउथ इंडिया ट्रस्ट एसोसिएशन बनाम केएल जयप्रकाश

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    लोकतंत्र बचाने के लिए अपराधियों को राजनीति में प्रवेश करने से रोकने की जिम्मेदारी संसद की है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में कहा कि लोकतंत्र को बचाने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों और कानून का शासन के लिए अपराधियों को राजनीति, संसद या विधायिका में प्रवेश करने से रोकने के लिए अपनी सामूहिक इच्छा दिखाने के लिए संसद की जिम्मेदारी है।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने एक मौजूदा सांसद (बहुजन समाज पार्टी), अतुल राय को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल - अतुल कुमार सिंह उर्फ अतुल राय पुत्र भरत सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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    मोटर दुर्घटना दावा दायर करने की परिसीमा अवधि एक अप्रैल, 2022 से केवल संभावित रूप से लागू होगी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम 2019 द्वारा पेश की गई धारा 166 (3) के अनुसार मोटर दुर्घटना के दावे दाखिल करने की परिसीमा अवधि का केवल संभावित प्रभाव है। जस्टिस अमित रावल ने टिप्पणी की, "अन्यथा, संशोधन के झटके से घायलों और मृत व्यक्ति के दावेदारों के लिए उपलब्ध अधिकार छीन लिया जाएगा।"

    केस टाइटल: साथी और अन्य बनाम दिलीप आईएस और अन्य।

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    यदि पंजीकृत ट्रेडमार्क की आवश्यक विशेषताओं का उल्लंघन किया जाता है, तो लेआउट, पैकेजिंग आदि में अंतर का कोई परिणाम नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि ट्रेडमार्क के उल्लंघन की कार्रवाई में एक बार जब यह दिखाया जाता है कि प्रतिवादी द्वारा ट्रेडमार्क की आवश्यक विशेषताओं को अपनाया गया है तो लेआउट, पैकेजिंग आदि में अंतर का कोई परिणाम नहीं होता।

    जस्टिस ज्योति सिंह की एकल पीठ सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड (वादी) द्वारा पुनम देवी (प्रतिवादी) को ट्रेडमार्क रैनबैक्सी लैबोरेटरी का उपयोग करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा के लिए दायर एक मुकदमे का निस्तारण कर रही थी।

    केस टाइटल: सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम पूनम देवी, CS (COMM) 2019 का 504

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    सीपीसी | आदेश VI नियम 17 विवाद में वास्तविक प्रश्नों के निर्धारण के लिए सभी संशोधनों को आवश्यक बनाने के लिए वादी को बाध्य करता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि सीपीसी का आदेश VI नियम 17 वादी पर ऐसे सभी संशोधन करने का दायित्व डालता है, जो विवाद में वास्तविक प्रश्न को निर्धारित करने के उद्देश्य से आवश्यक हों। जस्टिस सी हरि शंकर की सिंगल जज बेंच ने कहा कि आदेश VI नियम 17 में बाद में "होगा" शब्द का प्रयोग अनिवार्य है।

    उन्होंने कहा, "आवश्यक रूप से, यह ऐसे सभी संशोधनों, जो पार्टियों के बीच विवाद में वास्तविक प्रश्नों को निर्धारित करने के लिए आवश्यक हों, का पालन करने के लिए दायित्व और कर्तव्य का निर्माण करता है। इस संदर्भ में, "अनुमति है" शब्द के उपयोग के बजाय "किया गया" शब्द भी महत्वपूर्ण है। आदेश VI नियम 17 यह नहीं कहता है कि "ऐसे सभी संशोधनों की अनुमति दी जाएगी"।

    केस टाइटल: श्रीमान विजय गुप्ता बनाम मि गगनिंदर केआर गांधी और अन्य

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    अनिवार्य दस्तावेजों के बिना फाइलिंग मान्य नहीं, सभी सामग्रियों के साथ याचिका दायर करने पर ही विचार करना संभव: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि आवश्यक दस्तावेजों के साथ प्रारंभिक फाइलिंग को वैध फाइलिंग नहीं माना जा सकता है। इस प्रकार, याचिका दायर करने की पहली तारीख को उस तारीख पर विचार किया जाना चाहिए जिस पर सभी वैध दस्तावेजों के साथ याचिका फिर से दायर की जाती है। इस मामले में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत मध्यस्थ अवार्ड के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।

    केस टाइटल: इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड बनाम रीकॉन इंजीनियर्स (इंडिया) प्रा. लिमिटेड

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    अगर चार्जशीट निर्धारित समय के भीतर दाखिल नहीं की जाती है तो आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत 'डिफ़ॉल्ट जमानत' का एक अपरिहार्य अधिकार है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि एक आरोपी को 'डिफ़ॉल्ट जमानत' का एक अपरिहार्य अधिकार मिलता है यदि वह किसी अपराध की जांच के लिए अधिकतम अवधि समाप्त होने के बाद और चार्जशीट दायर होने से पहले आवेदन करता है।

    जस्टिस सैयद आफताब हुसैन रिजवी की पीठ ने यह टिप्पणी की, जिन्होंने कहा कि अगर आरोप पत्र निर्धारित समय के भीतर दाखिल नहीं किया जाता है तो एक आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के प्रावधान के तहत 'डिफ़ॉल्ट जमानत' का एक अपरिहार्य अधिकार है।

    केस टाइटल - अनवर अली बनाम यूपी राज्य एंड अन्य [आवेदन धारा 482 संख्या – 29733 ऑफ 2021]

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    किशोर न्याय अधिनियम की धारा 3 (i) के तहत निर्दोष होने के अनुमान वयस्क सहअभियुक्त पर लागू नहीं: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 3 (i) के तहत एक किशोर के पक्ष में बेगुनाही का अनुमान एक अपराध में सह आरोपी वयस्क सह पर लागू नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस संजय धर ने इस प्रकार याचिकाकर्ताओं (किशोर के साथ सह-आरोपी) द्वारा उठाए गए तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि मुख्य आरोपी, किशोर होने के नाते, किसी भी दुर्भावनापूर्ण इरादे से मुक्त माना जाना है, याचिकाकर्ताओं को आईपीसी की धारा 34 में निहित प्रावधानों को लागू करके शामिल नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: ताजा बेगम और अन्‍य बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

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    धारा 439 सीआरपीसी के तहत नियमित जमानत देने की शक्ति धारा 37 एनडीपीएस एक्ट में निर्धारित शर्तों के अधीन: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के प्रावधानों के तहत दर्ज मामले से निपटने के दौरान, धारा 439 सीआरपीसी के तहत नियमित जमानत देने की शक्ति एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 में निर्धारित शर्तों के अधीन है। संहिता की धारा 439 के तहत जमानत देने की शक्ति एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 में निर्धारित शर्तों के अधीन है, जो गैर-बाध्यकारी खंड से शुरू होती है।

    केस टाइटल: हरजीत लाल @ लड्डू बनाम पंजाब राज्य

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    पोक्सो एक्ट की धारा 33(5) की कठोरता पीड़ित के वयस्क होने पर कम हो जाती है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि आरोपी को अपना बचाव करने का अवसर दिया जाना चाहिए हाल ही में एक POCSO आरोपी की याचिका के तहत पीड़ित को जिरह के लिए वापस बुलाने की अनुमति दी। अदालत ने समझाया कि अधिनियम की धारा 33 (5) केवल यह सुनिश्चित करने के लिए पेश की गई थी कि बच्चे को बार-बार अदालत में जांच के लिए नहीं बुलाया जाना चाहिए, इससे उसके दिमाग पर असर पड़ेगा। मौजूदा मामले में पीड़िता बच्चा नहीं थी और वह वयस्‍क हो चुकी है। इसलिए, पीड़ित को जिरह के लिए बुलाया जा सकता है ताकि आरोपी को अपना बचाव देने का अंतिम मौका दिया जा सके।

    केस टाइटल: शंकर बनाम राज्य

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    एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी सेशन कोर्ट की ओर से अग्रिम जमानत खारिज होने के बाद सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट में नहीं जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने कहा कि एक बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act), 1989 के तहत एक आरोपी सेशन कोर्ट की ओर से अग्रिम जमानत खारिज होने के बाद सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट में नहीं जा सकता है। यह माना गया कि एक बार सत्र न्यायालय द्वारा इस तरह की याचिका खारिज कर दिए जाने के बाद, एससी / एसटी अधिनियम की धारा 14-ए के तहत अपील करने का उपाय होगा।

    केस टाइटल: सुखदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य

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    ट्रायल शुरू होने के बाद भी आगे की जांच के लिए आवेदन दायर किया जा सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आगे की जांच के लिए आवेदन को खारिज करने के आदेश में संशोधन की अनुमति देते हुए कहा कि ट्रायल शुरू होने के बाद भी आगे की जांच के लिए एक आवेदन किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि सच्चाई को सामने लाना अत्यंत महत्वपूर्ण है और सीआरपीसी की धारा 173 (8) मुकदमे के शुरू होने के बाद आगे की जांच करने के लिए पुलिस पर कोई बंधन नहीं डालती है।

    केस टाइटल: गणेशन बनाम एसएचओ और अन्य

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    अनुच्छेद 227 के तहत कोई हस्तक्षेप नहीं जब तक ट्रायल कोर्ट ने कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ प्रकट त्रुटि या निर्णय नहीं किया है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका की अनुमति दी है, जिसमें रेंट कंट्रोल कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें पाया गया था कि निचली अदालत ने आक्षेपित आदेश पारित करते समय एक स्पष्ट त्रुटि की थी।

    जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने इस सवाल पर विचार करते हुए कि क्या रेंट कंट्रोल कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर हाईकोर्ट का हस्तक्षेप वांछित था, कहा कि यह केवल तभी आवश्यक है जब ट्रायल कोर्ट ने एक निर्णय पर पहुंचने के लिए प्रकट त्रुटि की हो या स्पष्ट रूप से विकृत तर्क का उपयोग किया हो।

    केस टाइटल: केवी शिराज बनाम बिन्नी एम्माटी

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