बयानों में स्पष्टता की कमी किसी आवेदन को गैर-सुनवाई योग्य होने के रूप में खारिज करने का आधार नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

7 July 2022 5:08 AM GMT

  • बयानों में स्पष्टता की कमी किसी आवेदन को गैर-सुनवाई योग्य होने के रूप में खारिज करने का आधार नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बयानों में स्पष्टता की कमी किसी आवेदन को गैर-सुनवाई योग्य होने के रूप में खारिज करने का आधार नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी यह देखते हुए की कि आवेदन के सुनवाई योग्य होने की शर्तेंऔर स्पष्टता दो पूरी तरह से अलग अवधारणाएं हैं।

    जस्टिस सी हरि शंकर दीवानी मुकदमे में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा पारित 24 मार्च, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिका में इस बात को चुनौती दी गई थी कि जिला न्यायाधीश के आदेश VII सपठित आदेश XII नियम 6 के तहत प्रतिवादियों में से एक द्वारा दायर आवेदन को नियम 11 को आदेश 1 नियम 10 और सपठित सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 151 के तहत खारिज कर दिया।

    आवेदन को खारिज कर दिया गया, क्योंकि एडीजे का विचार था कि यह बहुत ही अस्पष्ट, गुप्त और गलत तरीके से तैयार किया गया आवेदन था। आगे जोड़ा गया कि आवेदन के शीर्षक से भी यह आभास होता है कि यह तीनों प्रतिवादियों की ओर से दायर किया गया है, जबकि प्रतिवादी नंबर दो में कोई भी उपस्थित नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि एडीजे के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को इस तरह से खारिज करने की अनुमति नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "याचिकाकर्ता के आवेदन को पढ़ने से ऐसा प्रतीत नहीं होता कि यह इतना अस्पष्ट है कि न्यायालय उस पर कोई आदेश पारित करने की स्थिति में नहीं है। भले ही न्यायालय को यह महसूस हो कि आवेदन कुछ कमी या स्पष्टता है तो एडीजे को कम से कम आवेदन को खारिज करते हुए इस बिंदु को स्पष्ट करना चाहिए था।"

    इसमें कहा गया,

    "आक्षेपित आदेश भी स्वाभाविक रूप से विरोधाभासी है, क्योंकि यह आवेदन को अस्पष्ट होने के कारण खारिज कर देता है। आवेदन के सुनवाई योग्य होने की शर्तें और स्पष्टता पूरी तरह से दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं। अस्पष्ट या वांछित होने के कारण आवेदन अपेक्षित विवरण में अकेले उस आधार पर गैर-सुनवाई योग्य नहीं हो सकता।"

    तदनुसार, न्यायालय ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और एडीजे को आवेदन पर पुनर्विचार करने और की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

    न्यायालय ने कहा,

    "यह न्यायालय या तो अनुरक्षणीयता या आवेदन की योग्यता पर किसी भी टिप्पणी को दर्ज करने से परहेज करता है। सभी मुद्दे कानून के अनुसार और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उचित अनुपालन में एडीजे द्वारा तय किए जाने के लिए खुले रहेंगे।"

    तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

    केस टाइटल: विजय स्वरूप लव बनाम एमएस निशा राठी और अन्य।

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