गैर-बाध्यकारी मध्यस्थता समझौते के आधार पर ए एंड सी अधिनियम की धारा 8 को लागू नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

8 July 2022 8:34 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि पक्षकारों के बीच समझौते से 'गैर-बाध्यकारी' मध्यस्थता का रास्ता बना, हालांकि पक्षकारों का मध्यस्थता समझौता करने का कोई इरादा नहीं था, इस कारण उक्त समझौते को मध्यस्थता समझौता नहीं कहा जा सकता।

    जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की एकल पीठ ने माना कि चूंकि समझौते में संबंधित खंड के तहत पक्षकार सिविल कोर्ट के समक्ष मुकदमेबाजी शुरू करने के लिए स्वतंत्र है, इसलिए, उक्त खंड स्पष्ट रूप से एक मध्यस्थता समझौते से अलग हो गया। इस कारण याचिकाकर्ता द्वारा दायर वसूली का मुकदमा निचली अदालत के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं है और निचली अदालत मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 8 को लागू नहीं कर सकती।

    याचिकाकर्ता मास्टर्स मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स ने प्रतिवादी नितेश एस्टेट्स लिमिटेड के साथ प्रोजेक्ट मैंएजमेंट और निर्माण प्रबंधन समझौता किया था। याचिकाकर्ता द्वारा समझौते के तहत उसके द्वारा कुछ सेवाएं दी गई थी। इसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा समझौते के तहत याचिकाकर्ता को देय राशि की वसूली की मांग करते हुए जिला न्यायालय, बैंगलोर के समक्ष वसूली के लिए मुकदमा दायर किया गया।

    प्रतिवादी ने ए एंड सी एक्ट की धारा 8 के तहत आवेदन दायर किया और जिला न्यायालय से अनुरोध किया कि समझौते में दिये गए मध्यस्थता खंड को लागू करके पक्षकारों के बीच विवादों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाए। जिला न्यायालय ने ए एंड सी एक्ट की धारा 8 के तहत दायर आवेदन की अनुमति दी और याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका वापस कर की। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता मास्टर्स मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि समझौते के प्रासंगिक खंड के अनुसार, पक्षकार विवादों को गैर-बाध्यकारी मध्यस्थता के लिए सहमत हुए थे। याचिकाकर्ता ने कहा कि विवाद को गैर-बाध्यकारी मध्यस्थता में संदर्भित करने के लिए उक्त समझौता मध्यस्थता समझौता नहीं है, जैसा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 7 के तहत विचार किया गया है, इसलिए प्रतिवादी ए एंड सी एक्ट की धारा 8 को लागू करने का हकदार नहीं है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि एक खंड में "मध्यस्थता" या "मध्यस्थ" शब्दों का प्रयोग अपने आप में मध्यस्थता समझौता नहीं करेगा। मध्यस्थता खंड में इस्तेमाल किए गए शब्दों के निर्धारण का खुलासा करना चाहिए। याचिकाकर्ता ने कहा कि समझौते में खंड स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना चाहिए कि पक्षकार के सहमत होने पर विवादों के संबंध में मध्यस्थ न्यायाधिकरण का निर्णय उन पर बाध्यकारी होगा।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि यदि समझौते में एक खंड यह संकेत देता है कि पक्षकार जो मध्यस्थ न्यायाधिकरण के निर्णय से संतुष्ट नहीं है, वह सिविल कोर्ट के समक्ष अपनी शिकायत के निवारण की मांग कर सकता है तो इसे मध्यस्थता समझौता नहीं कहा जा सकता।

    प्रतिवादी नितेश एस्टेट्स लिमिटेड ने हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका की स्थिरता पर आपत्ति जताई। प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि चूंकि जिला न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका को वापस कर दिया था, इसलिए जिला न्यायालय द्वारा पारित आदेश सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश 43 के प्रावधानों के तहत अपील करने योग्य है। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पास सीपीसी के आदेश 43 के प्रावधानों के तहत विविध अपील के माध्यम से प्रभावशाली उपाय है, इसलिए हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि जगदीश चंदर बनाम रमेश चंदर और अन्य (2007) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि जहां ए एंड सी एक्ट की धारा 8 के तहत दायर आवेदन खारिज कर दिया गया है, ए एंड सी एक्ट के तहत कोई अपील नहीं की जाती, इसलिए पीड़ित पक्षकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत रिट कोर्ट के समक्ष अपनी शिकायतों के निवारण की मांग करने का हकदार है। इस प्रकार कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अदालत के समक्ष रिट याचिका उचित है।

    न्यायालय ने पाया कि पक्षकारों के बीच समझौते में निहित प्रासंगिक खंड विवाद के संदर्भ के लिए ए एंड सी एक्ट के तहत गैर-बाध्यकारी मध्यस्थता देता करता है।

    कोर्ट ने नोट किया कि एडवांस्ड लॉ लेक्सिकन में परिभाषित किया गया 'गैर-बाध्यकारी' शब्द का अर्थ ऐसा दस्तावेज है जिसमें कोई औपचारिक कानूनी दायित्व नहीं है, लेकिन जो नैतिक दायित्वों को निभा सकता है।

    इसलिए कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पक्षकारों का मध्यस्थता समझौते में प्रवेश करने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए न्यायालय ने माना कि चूंकि पक्षों का विवादों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने का कोई इरादा नहीं था। साथ ही मध्यस्थ न्यायाधिकरण के निर्णय से बाध्य होने की कोई इच्छा नहीं थी, इसलिए निचली अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता द्वारा दायर मुकदमा चलने योग्य है।

    कोर्ट ने कहा कि जगदीश चंदर बनाम रमेश चंदर और अन्य (2007) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि समझौते में एक मात्र खंड इसे मध्यस्थता समझौता नहीं बना देगा, यदि उक्त समझौते में एक और खंड विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने के लिए पक्षकारों की एक और नई सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता को इंगित करता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि मध्यस्थता समझौते की मुख्य विशेषता विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने के लिए पक्षों की सहमति है।

    कोर्ट ने नोट किया कि पक्षकारों के बीच उक्त समझौते में प्रासंगिक खंड में यह प्रावधान है कि यदि पक्ष गैर-बाध्यकारी मध्यस्थता के अनुसार विवादों को संतोषजनक ढंग से हल करने में असमर्थ हैं तो कोई भी पक्ष मुकदमेबाजी शुरू कर सकता है। इसलिए, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि उक्त समझौते को मध्यस्थता समझौता नहीं कहा जा सकता।

    न्यायालय ने माना कि चूंकि संबंधित खंड ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया कि पक्षकार नागरिक न्यायालय के समक्ष मुकदमेबाजी शुरू करने के लिए स्वतंत्र हैं, इसलिए उक्त खंड स्पष्ट रूप से मध्यस्थता समझौते से अलग है। इस प्रकार, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जिला न्यायालय के समक्ष मुकदमे का विषय बने उक्त समझौते को मध्यस्थता समझौते के रूप में नहीं माना जा सकता।

    इस प्रकार, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पक्षकारों के बीच कोई मध्यस्थता समझौता नहीं था और उक्त समझौते में शामिल प्रासंगिक खंड में मध्यस्थता समझौते के रूप में माने जाने वाले समझौते के लिए उपस्थित होने के लिए आवश्यक गुण शामिल नहीं हैं।

    इसलिए, न्यायालय ने माना कि जिला न्यायालय ने ए एंड सी एक्ट की धारा 8 को लागू करके याचिकाकर्ता द्वारा दायर वादी को वापस करने में घोर गलती की है।

    अदालत ने इस प्रकार जिला न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता द्वारा दायर वाद को अतिरिक्त शहर सिविल और सत्र न्यायाधीश, बैंगलोर की लिस्ट में बहाल कर दिया।

    केस टाइटल: मास्टर्स मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड बनाम नितेश एस्टेट्स लिमिटेड

    दिनांक: 01.07.2022 (कर्नाटक उच्च न्यायालय)

    याचिकाकर्ता के वकील: आदित्य विक्रम भाटी

    प्रतिवादी के लिए वकील: चिन्मय जे मिरजी, किरण जू

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