हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

22 May 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (16 मई, 2022 से 20 मई, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीआरपीसी की धारा 389| यदि सजा 10 साल से कम है तो सजा के निलंबन के आवेदन पर उदारतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 389 के प्रावधान के अनुसार, यदि दोषी को दस साल से कम की अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाती है तो आरोपी द्वारा उसकी सजा को निलंबित करने और जमानत पर रिहा करने के लिए लोक अभियोजक/राज्य को दायर आवेदन के संबंध में कोई नोटिस की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस मोहन लाल ने भगवान राम शिंदे गोसाई और अन्य बनाम गुजरात राज्य के मामले का उल्लेख किया, जहां यह माना गया था कि सीआरपीसी की धारा 389 में सजा के निलंबन और आरोपी/दोषी को जमानत देने में कोई "वैधानिक प्रतिबंध" नहीं है। इसमें कहा गया कि प्रार्थना पर उदारतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए।

    केस का शीर्षक: गुलाम मुस्तफा और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर

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    [सीआरपीसी की धारा 125] मां कमा रही है तो भी पिता बच्चे की जिम्मेदारी लेने से नहीं बच सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया है कि पिता कानूनी रूप से स्थिति और जीवन शैली के अनुसार अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए बाध्य है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे की मां भी काम कर रही है और कमा रही है।

    जस्टिस राज बीर सिंह की खंडपीठ ने आगे कहा कि एक पिता को बच्चे को पालने की जिम्मेदारी से इस आधार पर मुक्त नहीं किया जा सकता है कि बच्चा उसके प्रति दया नहीं दिखाता है। इसके साथ ही कोर्ट ने एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एक लड़की ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पिता से गुजारा भत्ता की मांग की थी।

    केस टाइटल- अंकिता दीक्षित बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड अन्य [आपराधिक संशोधन संख्या - 2016 का 398]

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    वारंट जारी करने और जमानतदारों को नोटिस जारी करने के लिए समन जारी करना एक पूर्व शर्त : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि वारंट जारी करने और जमानतदारों को नोटिस जारी करने के लिए समन जारी करना एक पूर्व शर्त है। जस्टिस मैरी जोसेफ ने कहा कि एनडीपीएस कोर्ट पहले समन जारी किए बिना याचिकाकर्ता को वारंट जारी करने और जमानतदारों को नोटिस जारी करने में अनुचित था। "समन जारी किए बिना, याचिकाकर्ता को वारंट जारी करने और जमानतदारों को नोटिस जारी करने का सहारा लिया गया था। ऐसा करने में विशेष अदालत अत्यधिक अनुचित है।"

    केस: एराज बनाम केरल राज्य

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    वादी स्वामित्व की घोषणा और कब्जे की वसूली के लिए मुकदमे में प्रतिकूल कब्जे की याचिका दे सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि परिसीमन अध‌िनियम के तहत स्वामित्व की घोषणा और कब्जे की रिकवरी के मुकदमे में वादी के प्रतिकूल कब्जे की याचिका देने पर कोई रोक नहीं है। जस्टिस टीका रमन ने कहा कि कानून की स्वयंसिद्ध मान्यता थी कि वादी प्रतिकूल कब्जे की य‌ाचिका नहीं दे सकता है और यह केवल प्रतिवादी का बचाव हो सकता है, हालांकि अब यह धारणा प्रचलित नहीं है।

    अदालत ने रविंदर कौर ग्रेवाल और अन्य बनाम मंजीत कौर और अन्य (2019) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- "प्रतिकूल कब्जे से स्वामित्व के अधिग्रहण की याचिका वादी द्वारा लिमिटेशन एक्ट के अनुच्छेद 65 के तहत ली जा सकती है और वादी के किसी भी अधिकार के उल्लंघन के मामले में उपरोक्त आधार पर मुकदमा करने के लिए लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत कोई रोक नहीं है।"

    केस शीर्षक: पेरियाम्मल बनाम कमलम और अन्य

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    सह-अभियुक्त का बयान किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि सह-आरोपी का बयान किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। यह भी देखा गया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 24-26 के प्रावधान 'स्पष्ट रूप से' ऐसे स्वीकारोक्ति की स्वीकृति को प्रतिबंधित करते हैं जो अभियुक्त व्यक्तियों के खिलाफ आरोप का हवाला देते हुए प्रलोभन, धमकी, वादे के कारण किए गए या किए गए हैं।

    जस्टिस बीएन करिया की खंडपीठ ने सीआरपीसी की धारा 397 और 401 के तहत राज्य के अधिकारियों द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इस आवेदन में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 413 और धारा 120 (बी) के तहत कथित अपराधों के लिए आरोपी को बरी करते हुए सेशन कोर्ट द्वारा पारित बरी करने के आदेश को रद्द करने की मांग की गई है।

    केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम अजयभाई चंपकलाल चंपानेरी

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    अगर एक पक्ष अड़ियल तरीके से काम करता है, बिना उचित औचित्य के गवाहों को पेश करने से इनकार करता है तो कोर्ट सबूत का नेतृत्व करने के पक्ष के अधिकार को बंद कर सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि जहां एक पक्ष अड़ियल तरीके से काम कर रहा है, और बिना उचित औचित्य के बार-बार होने वाले गवाहों को परीक्षण या जिरह के लिए उपलब्ध कराने से इनकार कर रहा है, अदालत साक्ष्य का नेतृत्व करने के पक्ष के अधिकार को बंद कर सकती है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि यह अदालत के विवेक का मामला है, जो सबूत पेश करने के पक्ष के अनुरोध पर फैसला लेता है और अदालत अनुच्छेद 227 के तहत एक याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए अनिच्छुक हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा सिद्धांत उस कोर्ट पर समान रूप से लागू होता है जिसने कोर्ट के रूप में चुनौती के तहत आदेश पारित किया है जो अनुच्छेद 227 के तहत चुनौती से जब्त कर लिया गया है।

    केस टाइटल: मेसर्स भारत निवेश निगम बनाम संजना सैनी

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    बिक्री विलेख के निष्पादन में बेटे के शामिल होने से यह धारणा नहीं बनती कि विषय संपत्ति "पारिवारिक संपत्ति" है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि एक बेटे को एक सेल डीड में सह-विक्रेता के रूप में जोड़ा गया है, इस अनुमान को जन्म नहीं देगा कि जिस संपत्ति का ‌निस्तारण किया जा रहा है, वह एक पारिवारिक संपत्ति है।

    जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की खंडपीठ ने कहा, यह साबित करना दावा करने वाले पर है कि संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति थी या पैतृक संपत्ति से सरप्लस इनकम से खरीदी गई थी। इसे स्वयं नहीं माना जाएगा और इसे साक्ष्य के माध्यम से साबित करना होगा।

    केस टाइटल: रामासामी गौंडर @ सेनबन (मृत) बनाम चिन्नापिल्लई @ नल्लम्मल

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    कथित रूप से विफल जांच के लिए कार्रवाई का आदेश देने से पहले ट्रायल कोर्ट को जांच अधिकारी को सुनवाई का मौका देना चाहिए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश में पुलिस अधीक्षक को कथित रूप से खराब जांच के लिए जांच अधिकारी (आईओ) के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने यह देखते हुए निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया कि आईओ को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था।

    जस्टिस अतुल श्रीधरन ने आक्षेपित आदेश को रद्द करते हुए कहा, इन परिस्थितियों में आक्षेपित आदेश अपने आप में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, क्योंकि याचिकाकर्ता को निचली अदालत के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करने का कोई अवसर नहीं दिया गया था, जब अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में उसकी जांच की जा रही थी। यहां अदालत जानबूझकर विफल जांच के सुझावों पर सवाल खड़े कर उनके जवाब हासिल कर सकती थी। अत: याचिका सफल होती है। मगर ऐसा नहीं हो सका, इसलिए विचारण न्यायालय द्वारा पुलिस अधीक्षक, पन्ना को संबोधित आक्षेपित आदेश/पत्र दिनांक 27.4.2011 (अनुलग्नक क/3) निरस्त किया जाता है।

    केस टाइटल: हिमांशुधर द्विवेदी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    जिस अपराध की अभी तक जांच की जानी है, उसके लिए केवल इसलिए जमानत से इनकार करना कि आरोपी आदतन अपराधी है, "अन्यायपूर्ण" है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति पर आदतन अपराधी होने का आरोप है या उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि है, उसे किसी ऐसे अपराध के लिए जेल में रखना, जिसकी जांच होनी बाकी है, 'अन्यायपूर्ण' है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की पीठ ने इंजमाम शरीफ नामक एक व्यक्ति की दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की और उन्हें जमानत दे दी। आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 397 और 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए गिरफ्तार किया गया था।

    केस टाइटल: इंजमाम शरीफ बनाम कर्नाटक राज्य

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    अगर अभियोजन पक्ष डकैती के अपराध को साबित करने में विफल रहता है तो धारा 412 आईपीसी के तहत डकैती के सामान रखने का आरोप खुद विफल हो जाएगा: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि यदि अभियोजन पक्ष डकैती के आरोप को साबित करने में विफल रहता है तो आईपीसी की धारा 412 के तहत डकैती की वस्तुओं को रखने का आरोप अपने आप विफल हो जाता है।

    आईपीसी की धारा 412 में प्रावधान है कि य‌दि कोई व्यक्ति बेईमानी से चोरी की संपत्ति प्राप्त करता है या रखता है, जिसके मालिकाने को वह जानता है या उसे यह विश्वास है कि उसे डकैती का सामान दिया गया है, या बेईमानी से किसी ऐसे व्यक्ति से उसने इसे प्राप्त किया है, जिसे वह जानता है या उसके पास यह मानने का कारण है कि वह डकैतों के गिरोह से संबंधित है या संबंधित रह चुका है, उसे आजीवन कारावास, या कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकती है, और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा।

    केस टाइटल: रामावतार राजबार @ रामावतार निमतार राजवार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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    यहां तक कि भगवान ने आदम और हव्वा को 'ऑडी अल्टरम पार्टेम' का लाभ दिया, सभ्य समाज में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत अनिवार्य हैं: गुजरात हाईकोर्ट

    "सभ्य समाज" में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के महत्व पर जोर देते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, "ईश्वर द्वारा उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने के लिए दंडित किए जाने के बावजूद ऑडी अल्टरम पार्टेम सिद्धांत का लाभ आदम और हव्वा तक को भी दिया गया था। इसका मतलब यह है कि भले ही प्राधिकरण पहले से ही सब कुछ जानता हो और व्यक्ति के पास बताने के लिए और कुछ न हो, फिर भी नैसर्गिक न्याय के नियम को आकर्षित किया जा सकता है, जब तक कि इस नियम को लागू करना केवल खाली औपचारिकता न हो।"

    सूरत में 'जन सेवा केंद्रों' के रखरखाव के लिए अपने अनुबंध को समाप्त करने के संबंध में राज्य एजेंसी द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाले विरान एंटरप्राइज द्वारा दायर विशेष नागरिक आवेदन पर सुनवाई करते हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।

    केस टाइटल: विरानी एंटरप्राइज बनाम गुजरात राज्य

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    बहू को सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत सास को मेंटेनेंस देने के लिए नहीं कहा जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि बहू को अपनी बीमार सास को गुजारा भत्ता देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। खासकर जब तक महिला की आय का कोई साधन न हो। हाईकोर्ट ने कहा, "हमें एसएस (बहू) को सास को मेंटेनेंस अमाउंट का भुगतान करने के लिए इस तरह के निर्देश के बारे में आपत्ति है ... जैसा कि हो सकता है कि मूल रिकॉर्ड को देखने पर हमें एक भी दस्तावेज नहीं मिलता है जिसमें दिखाया गया हो एसएस (बहू) की आय का कोई साधन है।"

    केस टाइटल: शीतल देवांग शाह बनाम पीठासीन अधिकारी

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    केवल कर्मचारी की प्रतिनियुक्ति अवधि समाप्त होने से डिसीप्लिनरी अथॉरिटी को कदाचार के लिए जांच शुरू करने से वंचित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि केवल इसलिए कि किसी कर्मचारी की प्रतिनियुक्ति की अवधि समाप्त हो सकती है, वह कंपनी के डिसीप्लिनरी अथॉरिटी, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (पीएफसीएल) को वर्तमान मामले में जांच शुरू करने से नहीं हटाएगा।

    जस्टिस यशवंत वर्मा ने पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड में कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्यरत व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में उस आरोप पत्र को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई में पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आचरण अनुशासन और अपील) नियम में नियम 28 और 30 में किए गए प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही करने का प्रस्ताव था।

    केस टाइटल: एन डी त्यागी बनाम पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य

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    किसी भी कानून के अभाव में 'मानवीय आधार' पर नियुक्ति को किसी भी दस्तावेज से उचित नहीं ठहराया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि 'मानवीय नियुक्ति' को सही ठहराने के लिए, केवल कानून के प्रावधान को दिखाने की जरूरत है जो ऐसी नियुक्ति की अनुमति देता है; और कानून का कोई अन्य दस्तावेज ऐसा करने की शक्ति के अभाव में इसे उचित नहीं ठहरा सकता है।

    जस्टिस अनुभा रावत चौधरी ने याचिकाकर्ता के इस तर्क में कोई योग्यता नहीं पाई कि वह अपना सर्वश्रेष्ठ बचाव नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें आवश्यक दस्तावेज पेश करने का अवसर नहीं दिया गया था।

    केस टाइटल: संजय कुमार बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

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    अनुच्छेद 235 के तहत हाईकोर्ट जिला न्यायाधीश की सेवा समाप्त नहीं कर सकता या रैंक में कमी की कोई सजा नहीं दे सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने हाल ही में कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 235 के तहत, जो अधीनस्थ न्यायालयों पर उच्च न्यायालयों को नियंत्रण प्रदान करता है, पूर्व जिला न्यायाधीश की सेवाओं को समाप्त नहीं कर सकता है या रैंक में कमी की कोई सजा नहीं दे सकता है।

    यह शक्ति संविधान के अनुच्छेद 311(1) के तहत नियुक्ति प्राधिकारी होने के नाते राज्यपाल के पास है। हालांकि, अनुच्छेद में "नियंत्रण" शब्द हाईकोर्ट को पूछताछ और अनुशासनात्मक नियंत्रण करने की शक्ति देता है और इस तरह की सजा लगाने की सिफारिश करता है।

    केस टाइटल: गणेश राम बर्मन बनाम छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट एंड अन्य।

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    मतदाता सूची में नाम का जोड़ना/नाम हटाना असाधारण परिस्थिति नहीं है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप की आवश्यकता हो : गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि मतदाता सूची से किसी व्यक्ति का नाम हटाना संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के असाधारण क्षेत्राधिकार का आह्वान करने वाली "असाधारण परिस्थिति" नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति को नियम 28 के तहत चुनाव याचिका दायर करके वैधानिक उपाय का लाभ उठाना चाहिए।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव और जस्टिस संदीप भट्ट की पीठ ने एकल न्यायाधीश द्वारा की गई निम्नलिखित टिप्पणियों की पुष्टि की, "एक बार चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत यह न्यायालय चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करेगा। तदनुसार यह न्यायालय प्रतिवादी नंबर तीन द्वारा पारित आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है। रिट आवेदक को नियम 28 के तहत चुनाव याचिका दायर करके वैधानिक उपाय का लाभ उठाना चाहिए। रिट-आवेदक का नाम मतदाता सूची से नामंजूर होने से रिट-आवेदक का नाम मतदाता सूची से बाहर हो जाता है... रिट-आवेदक नियम 28 के प्रावधानों का लाभ प्राप्त कर सकता है। नियम 28 के तहत प्राधिकरण के पास चुनाव को रद्द करने और पुष्टि करने और संशोधन करने और चुनाव रद्द होने की स्थिति में नए चुनाव कराने का निर्देश देने की व्यापक शक्ति है और नियम 28 के तहत उपाय एक प्रभावी उपाय है।"

    केस शीर्षक: जितेंद्रभाई अर्जनभाई रॉय बनाम कृषि विपणन और ग्रामीण वित्त के निदेशक

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    पति के पॉवर ऑफ अटॉर्नी होल्डर की असुविधा पत्नी द्वारा मांगे गए ट्रांसफर से इनकार का आधार नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना है कि पति के पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर की असुविधा फैमिली कोर्ट (चाहे पुरुष हो या महिला) के समक्ष लंबित मामले में पत्नी द्वारा मांगे गए ट्रांसफर से इनकार करने का कारण नहीं है।

    जस्टिस ए बधरुद्दीन ने कहा कि एक पॉवर ऑफ अटॉर्नी की नियुक्ति के जर‌िए एक प्र‌िंसिपल ने अपने मामले का संचालन करने के लिए एक एजेंट की नियुक्ति किया है और ऐसा एजेंट प्रतिवादी के लिए और उसकी ओर से प्रतिवादी के मामले को लड़ने ओर यात्रा करने में सक्षम कोई भी हो सकता है।

    केस टाइटल: मिनी एंटनी बनाम सावियो अरुजा

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    एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए यह आवश्यक कि ‌डिसऑनर्ड चेक खाताधारक ने अपने नाम और हस्ताक्षर से जारी किया होः मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने दोहराया है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट एक्ट (एनआई एक्ट) की धारा 138 के तहत अपराध के लिए खाताधारक द्वारा अपने नाम और हस्ताक्षर के तहत ‌डिसऑनर्ड चेक जारी किया जाना चाहिए।

    जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह ने कहा कि केवल उस खाताधारक को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिस खाते से चेक ड्रा किया गया है और इस तरह के दोष को अन्य लोगों तक नहीं बढ़ाया जा सकता है, सिवाय जैसा कि धारा 141 एनआई एक्ट के तहत प्रावधान किया गया है, जो कंपनी या पार्टनरशिप द्वारा और उसकी ओर से अपराधों से संबंधित है, जहां चेक पर हस्ताक्षरकर्ता कंपनी का निदेशक या साझेदारी फर्म का भागीदार हो सकता है।

    केस टाइटल: एचडीएफसी बैंक लिमिटेड मवलाई नोंगलम शाखा और अन्य बनाम श्री बकलाई सीज और अन्य।

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    शिकायतकर्ता महिला की उम्र 58 वर्ष से कम होने पर वरिष्ठ नागरिक मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल का अधिकार क्षेत्र लागू नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत वरिष्ठ नागरिक होने का दावा करने वाली महिला द्वारा दायर भरण-पोषण याचिका के जवाब में पारित अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के आदेश रद्द करते हुए कहा कि मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल अपने अधिकार क्षेत्र को इस कारण से लागू नहीं कर सकता कि महिला की आयु प्रासंगिक तिथि यानी ऐसे ट्रिब्यूनल के समक्ष कार्यवाही की स्थापना की तारीख को 58 वर्ष से कम थी।

    केस टाइटल: रानी बनाम अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट और अन्य

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    करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के लिए दर्ज कई एफआईआर में आरोपी महिला को सीआरपीसी की धारा 437 जमानत का पूर्ण अधिकार नहीं देता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने एक ऐसे मामले की सुनवाई की जहां याचिकाकर्ताओं पर साजिश रचने और कई पीड़ितों से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी), मानेसर के साथ निविदा उपलब्ध कराने के बहाने निर्दोष व्यक्तियों को लुभाने के लिए 167 करोड़ रुपये की ठगी करने का आरोप है। कोर्ट ने मामले में कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी के गंभीर आरोप हैं, और उन्हें नियमित जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं बनाया गया है।

    केस टाइटल: ममता बनाम हरियाणा राज्य और अन्य जुड़ा मामला

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    मानहानि | मजिस्ट्रेट धारा 500 के तहत अपराध के बारे में शिकायत को धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत जांच के लिए पुलिस को नहीं भेज सकता : कर्नाटक‌ हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत शुरू की गई एक कार्यवाही को रद्द कर दिया। मामले में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 499, 500 के तहत मानहानि के लिए दायर शिकायत को आगे की जांच के लिए पुलिस को भेज दिया था।

    हाईकोर्ट ने ऐसा करते हुए सुब्रमण्यम स्वामी बनाम युन‌ियन ऑफ इंडिया, (2016) 7 SCC 221 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि जब शिकायतकर्ता द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई शिकायत में आईपीसी की धारा 500 के तहत दंडनीय अपराध शामिल है, मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता है ताकि सीआरपीसी की धारा 199 में निहित विशिष्ट रोक के मद्देनजर पुलिस को अपराध दर्ज करने और फिर अपराध की जांच करने का निर्देश दिया जा सके।

    केस टाइटिल: प्रशांत संबरगी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्‍य।

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    सीआरपीसी की धारा 313- 'आरोपी को उसके खिलाफ सबूतों में आने वाली किसी भी परिस्थिति को व्यक्तिगत रूप से स्पष्ट करने का अवसर दिया जाना चाहिए': कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने शुक्रवार को कहा कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत एक आरोपी की जांच करते समय, अभियोजन पक्ष का यह अनिवार्य दायित्व है कि वह आरोपी को उसके खिलाफ सबूतों में आने वाली किसी भी परिस्थिति को व्यक्तिगत रूप से समझाने का अवसर दे।

    जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य ने महेश्वर तिग्गा बनाम झारखंड राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत किसी आरोपी के लिए परिस्थितियों का इस्तेमाल उसके खिलाफ नहीं किया जा सकता है और उसे विचार से बाहर रखा जाना चाहिए।

    केस टाइटल: अनिरुद्ध प्रसाद सिंह @ सिन्हा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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    आईपीसी/आरपीसी अपराधों के संबंध में बैंक अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए किसी पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि आईपीसी/आरपीसी के तहत अपराधों के संबंध में बैंक अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बैंक के अधिकारियों की नियुक्ति और हटाने का अधिकार सरकार का नहीं है, बल्कि यह भारतीय स्टेट बैंक का सक्षम प्राधिकारी है जिसे ऐसा करने का अधिकार है। इसलिए, सीआरपीसी की धारा 197 बैंक अधिकारियों के मामले में लागू नहीं होती है।

    केस टाइटल- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अनंतनाग बनाम जी.एम. जमशेद डार

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    सीपीसी का आदेश XVA | अदालत के निर्देश पर किराए के भुगतान में महज चूक करना ही दोषी किरायेदार के बचाव को निरस्त करने को सही नहीं ठहराता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XVA(1) के तहत कोर्ट द्वारा निर्देशित किराये के भुगतान में महज चूक, वास्तव में, डिफ़ॉल्ट किरायेदार के बचाव को दरकिनार करने वाला आदेश पारित करने को सही नहीं ठहरा सकती है। न्यायमूर्ति सी हरि शंकर, ट्रायल कोर्ट द्वारा दीवानी वाद में पारित 07 दिसंबर, 2019 के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें याचिकाकर्ता प्रतिवादी था और प्रतिवादी वादी था।

    केस शीर्षक: राशि मिश्रा बनाम बी कल्याण रमण

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र को 'दहेज कैलकुलेटर' वेबसाइट के मालिक को ब्लॉकिंग ऑर्डर और फैसले के बाद सुनवाई की कॉपी देने का निर्देश दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह वेबसाइट 'दहेज कैलकुलेटर' के मालिक और निर्माता तनुल ठाकुर को ओरिजनल ब्लॉकिंग ऑर्डर के साथ-साथ निर्णय के बाद सुनवाई की कॉपी दे, जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा सितंबर 2018 में ब्लॉक कर दिया गया था।

    जस्टिस मनमोहन और जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने ब्लॉकिंग नियम, 2009 के तहत एमईआईटीवाई द्वारा गठित समिति को 23 मई, 2022 को दोपहर 3 बजे ठाकुर के वकील को निर्णय के बाद सुनवाई करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: तनुल ठाकुर बनाम यूओआई एंड अन्य।

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    मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी की धारा 200 के तहत शिकायत स्वीकार किए जाने के बाद पुलिस जांच करने से इनकार नहीं कर सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब अदालत आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 200 के तहत दायर शिकायत को स्वीकार कर लेती है और विशेष पुलिस को जांच का निर्देश देती है तो पुलिस जांच से इनकार नहीं कर सकती है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने अश्विनी द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए पुलिस द्वारा जारी दिनांक 26.08.2021 के समर्थन के आदेश को खारिज कर दिया। पीठ ने पुलिस को निर्देश दिया कि मामले की जांच और अंतिम रिपोर्ट दर्ज करें जैसा कि IX अतिरिक्त मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु, 14.07.2021 को निर्देश दिया गया है।

    केस टाइटल: अश्विनी बनाम कर्नाटक राज्य

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    आरोपी के खिलाफ उद्घोषणा/अटैचमेंट प्रक्रिया की शुरुआत उसकी अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करने से नहीं रोकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने उद्घोषणा या कुर्की की कार्यवाही शुरू की है, हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत आवेदन के लंबित होने के बावजूद सीआरपीसी की धारा 82/83 ऐसे आवेदन पर विचार करने पर कोई रोक नहीं लगाती। सीआरपीसी की धारा 82 फरार व्यक्ति के विरुद्ध उद्घोषणा जारी करने की प्रक्रिया पर विचार करती है। वहीं धारा 83 फरार व्यक्ति की संपत्ति कुर्क करने की बात करती है।

    केस टाइटल: आशीष बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन

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    यदि अदालत प्रथम दृष्टया मानती है कि आरोपी ने क्रूरता से काम किया है तो उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि जमानत पर फैसला करने में क्रूरता एक कारक है, हाल ही में कहा कि आमतौर पर एक बार जब अदालतें प्रथम दृष्टया राय बनाती हैं कि आरोपी ने क्रूरता के साथ कृत्य किया है, तो ऐसे आरोपी को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

    यह रेखांकित करते हुए कि एक क्रूर व्यक्ति किसी भी समाज में असुरक्षा पैदा कर सकता है, जस्टिस अनूप चितकारा की खंडपीठ ने कहा- एक बार जब अदालतें प्रथम दृष्टया यह राय बना लेती हैं कि आरोपी ने क्रूरता के साथ काम किया है तो ऐसे आरोपी को आमतौर पर जमानत नहीं दी जानी चाहिए, और अगर अदालतें इसे देना उचित समझती हैं तो यह इस तरह के निर्णय के कारणों को निर्दिष्ट करने के बाद होना चाहिए।

    केस टाइटल- मनीष सिंह @ गोलू बनाम यूटी चंडीगढ़ राज्य

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    विशेष अदायगी के लिए डिक्री मौखिक समझौते के आधार पर तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि यह ठोस साक्ष्य के जरिए साबित न हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में स्थापित किया कि विशेष अदायगी के लिए एक डिक्री मौखिक समझौते के आधार पर नहीं दी जा सकती है जब तक कि इस तरह के समझौते को साबित करने के लिए ठोस सबूत न हों।

    जस्टिस के बाबू ने कहा कि पुनर्हस्तांतरण के लिए मौखिक अनुबंध की याचिका को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब इसे स्थापित करने के लिए ठोस सबूत हों। उन्होंने कहा, "प्रथम अपीलीय न्यायालय ने स्थापित सिद्धांत की दृष्टि खो दी कि विशिष्ट प्रदर्शन के लिए एक मौखिक समझौते के आधार पर एक डिक्री नहीं दी जा सकती जब तक कि इसे साबित करने के लिए ठोस सबूत न हों।"

    केस टाइटल: भासी बनाम थॉमस और अन्य।

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    कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर अनुबंध श्रम उन्मूलन अधिनियम के उल्लंघन के लिए मुकदमा चलाया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने हाल ही में उल्लेख किया है कि अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम [ Contract Labour (Regulations & Abolition) Act], 1970 की धारा 25 का एक अवलोकन इंगित करता है कि अपराध के समय व्यवसाय के संचालन के लिए कंपनी का प्रभारी और जिम्मेदार प्रत्येक व्यक्ति अपराध का दोषी माना जाएगा। हालांकि, इस आशय के एक विशेष अनुमान के अभाव में कंपनी के लिए काम करने वाले व्यक्तियों को ऐसे किसी भी कथित उल्लंघन के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है।

    केस टाइटल: रवि कांत एंड अन्य बनाम झारखंड राज्य एंड अन्य।

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    ऑर्डर X सीपीसी | मुकदमे में शामिल किसी भी पक्ष की विवाद के संबंध में मौखिक परीक्षा विवेक का मामला: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश X के तहत, विवाद से संबंधित किसी भी पहलू पर मुकदमे के किसी भी पक्ष की मौखिक जांच की आवश्यकता है या नहीं, यह विवेक का विषय है। संहिता के आदेश X में न्यायालय द्वारा पक्षों की परीक्षा का प्रावधान है।

    ज‌स्टिस सी हरि शंकर ने कहा, "सीपीसी के आदेश X को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि विवाद से संबंधित किसी भी पहलू पर मुकदमे के किसी भी पक्ष की मौखिक जांच की आवश्यकता है या नहीं, यह प्रश्न अनिवार्य रूप से विवेक का विषय है। जहां एक अदालत को लगता है कि वाद में विवाद के मामलों को स्पष्ट करने के लिए, वाद के एक या अधिक पक्षों की मौखिक परीक्षा आवश्यक है, तो न्यायालय को ऐसा आदेश देने का अधिकार है।"

    केस शीर्षक: डॉ विमला मेनन और अन्य बनाम गोपीनाथ मेनन

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    सरकारी कर्मचारी को किसी विशेष पद पर ट्रांसफर/पोस्टिंग मांगने का कोई 'निहित अधिकार' नहीं है, भले ही वह पद रिक्त हो: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) के जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी को किसी विशेष पद पर पोस्टिंग की मांग करने का कोई 'निहित अधिकार' नहीं है, भले ही पद रिक्त हो।

    तथ्य- इस रिट याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता ने कोर्ट से विपक्षी संख्या 4, यानी डीन और प्रिंसिपल, एस.सी.बी. मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कटक को नियमित स्थापना पर उसका निरीक्षण करने का निर्देश देने की मांग की, क्योंकि वे गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफेसर (सुपर स्पेशलिस्ट) के पद के लिए विपरीत पार्टी नंबर 1 यानी ओडिशा लोक सेवा आयोग ('ओपीएससी') द्वारा जारी विज्ञापन के अनुसार सफल हुए थे।

    केस टाइटल: सूर्यकांत परिदा बनाम ओडिशा लोक सेवा आयोग एंड अन्य।

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