यहां तक कि भगवान ने आदम और हव्वा को 'ऑडी अल्टरम पार्टेम' का लाभ दिया, सभ्य समाज में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत अनिवार्य हैं: गुजरात हाईकोर्ट
Shahadat
19 May 2022 12:09 PM IST
"सभ्य समाज" में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के महत्व पर जोर देते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा,
"ईश्वर द्वारा उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने के लिए दंडित किए जाने के बावजूद ऑडी अल्टरम पार्टेम सिद्धांत का लाभ आदम और हव्वा तक को भी दिया गया था। इसका मतलब यह है कि भले ही प्राधिकरण पहले से ही सब कुछ जानता हो और व्यक्ति के पास बताने के लिए और कुछ न हो, फिर भी नैसर्गिक न्याय के नियम को आकर्षित किया जा सकता है, जब तक कि इस नियम को लागू करना केवल खाली औपचारिकता न हो।"
सूरत में 'जन सेवा केंद्रों' के रखरखाव के लिए अपने अनुबंध को समाप्त करने के संबंध में राज्य एजेंसी द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाले विरान एंटरप्राइज द्वारा दायर विशेष नागरिक आवेदन पर सुनवाई करते हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।
आरोप है कि अनुबंध के निर्वाह के दौरान याचिकाकर्ता को केंद्र पर फर्जी आय प्रमाण पत्र बनाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। हालांकि, याचिकाकर्ता द्वारा दायर जवाब के बाद स्पष्टीकरण को स्वीकार करने वाला आदेश पारित किया गया था। इसके बाद प्रतिवादियों द्वारा जमा राशि को जब्त करके और इसे ब्लैक लिस्ट में डालकर याचिकाकर्ता की सेवाओं को समाप्त करने का आदेश पारित कर दिया गया।
इस समाप्ति को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन करने वाली सेवाओं को समाप्त करने से पहले कोई कारण बताओ नोटिस या व्यक्तिगत सुनवाई नहीं की गई। प्रतिवादी एजीपी ने दावा किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जो आय प्रमाण पत्र जारी करने में 'बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधियों' में शामिल है। इसलिए, समाप्ति अनुबंध के अनुरूप थी।
चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री ने कहा कि आक्षेपित आदेश 'निर्विवाद रूप से' या तो कारण बताओ नोटिस या व्यक्तिगत सुनवाई से पहले जारी नहीं किया गया था। पीठ ने कहा कि सुनवाई देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई अवैध कार्रवाई या निर्णय न हो।
बेंच के अनुसार नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत नागरिकों को मनमाने प्रशासनिक कार्यों से बचाते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य बनाम विजय कुमार त्रिपाठी का संदर्भ दिया गया, जहां यह माना गया कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों को नियमों में पढ़ा जाना चाहिए। ऑडी अल्टरम पार्टेम के सिद्धांत हर सभ्य समाज के लिए अनिवार्य हैं।
हाईकोर्ट ने लैटिन कहावत का उल्लेख किया, 'qui aliquid statuerit parte inaudita altera, aequum licet dixerit, haud aequum facerit (वह जो दूसरे पक्ष को सुने बिना कुछ भी तय करेगा, उसने कहा होगा कि क्या सही है, कुछ ठीक नहीं किया होगा।)।'
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और अन्य बनाम मंसूर अली खान मामले को बेंच ने यह समझाने के लिए कहा कि जब तक प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को लागू करना बेकार औपचारिकता नहीं होगी, तब तक सिद्धांतों को लागू किया जाना चाहिए, भले ही प्राधिकरण पहले से ही सब कुछ जानता हो। इसके अलावा प्रशासनिक आदेश और अर्ध-न्यायिक आदेश के बीच कोई अंतर नहीं है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत दोनों स्थितियों में आकर्षित होते हैं।
इन उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता के पास परिस्थितियों को बताने का अवसर नहीं था। इसलिए, आक्षेपित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था। आवेदन स्वीकार किया गया और आक्षेपित आदेश को निरस्त कर दिया गया।
निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए, जिसका जवाब याचिकाकर्ता को 10 दिनों में देना होगा। प्रतिवादी को चार सप्ताह के भीतर कार्यवाही समाप्त करने का भी निर्देश दिया गया। याचिकाकर्ता को आगाह किया गया कि वह 2021 के अनुबंध के तहत उसे सौंपी गई गतिविधियों को जारी या शुरू नहीं कर सकता, जो प्रतिवादी प्राधिकारी के आदेश के अधीन है।
केस टाइटल: विरानी एंटरप्राइज बनाम गुजरात राज्य
केस नंबर: सी/एससीए/7355/2022
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