कथित रूप से विफल जांच के लिए कार्रवाई का आदेश देने से पहले ट्रायल कोर्ट को जांच अधिकारी को सुनवाई का मौका देना चाहिए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
Shahadat
19 May 2022 2:48 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश में पुलिस अधीक्षक को कथित रूप से खराब जांच के लिए जांच अधिकारी (आईओ) के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने यह देखते हुए निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया कि आईओ को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था।
जस्टिस अतुल श्रीधरन ने आक्षेपित आदेश को रद्द करते हुए कहा,
इन परिस्थितियों में आक्षेपित आदेश अपने आप में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, क्योंकि याचिकाकर्ता को निचली अदालत के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करने का कोई अवसर नहीं दिया गया था, जब अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में उसकी जांच की जा रही थी। यहां अदालत जानबूझकर विफल जांच के सुझावों पर सवाल खड़े कर उनके जवाब हासिल कर सकती थी। अत: याचिका सफल होती है। मगर ऐसा नहीं हो सका, इसलिए विचारण न्यायालय द्वारा पुलिस अधीक्षक, पन्ना को संबोधित आक्षेपित आदेश/पत्र दिनांक 27.4.2011 (अनुलग्नक क/3) निरस्त किया जाता है।
मामले के तथ्य यह है कि आवेदक/आईओ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 399, 402 और आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज मामले की जांच कर रहे थे। जांच पूरी होने के बाद आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर आरोप तय किए गए। सुनवाई के बाद आरोपितों को बरी कर दिया गया। निचली अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए आक्षेपित आदेश पारित करते हुए जिला पन्ना के पुलिस अधीक्षक को आवेदक के खिलाफ जांच करने के तरीके के लिए कार्रवाई करने का निर्देश दिया। उक्त आदेश से व्यथित होकर आवेदक ने इसे चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
आवेदक ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि केवल इसलिए कि मामला पूरा हो गया था, यह उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का आधार नहीं हो सकता। उन्होंने आगे कहा कि अगर अदालत को लगता है कि जांच अधिकारी के खिलाफ कुछ सख्ती की जानी चाहिए तो उसे एक मौका दिया जाना चाहिए। उन चूकों के संबंध में सुनवाई की जानी चाहिए जो अदालत को लगता है कि जांच अधिकारी की वजह से मामले में हुआ है।
वर्तमान मामले में आवेदक ने तर्क दिया कि निचली अदालत द्वारा ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई और उसने सीधे पुलिस अधीक्षक को मामले के संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिए बिना उसके खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
मामले के ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को देखते हुए कोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने जांच करते समय आवेदक की भूमिका के बारे में गवाहों से कोई सवाल नहीं किया।
इस संबंध में कोर्ट ने कहा,
यह न्यायालय विचारण न्यायालय के समक्ष दी गई याचिकाकर्ता की गवाही का अध्ययन कर चुका है। उक्त बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि निचली अदालत ने गवाह से कोई सवाल नहीं किया है या यहां तक कि गवाह को यह भी सुझाव नहीं दिया कि आरोपी व्यक्तियों को बचाने के लिए उसने जानबूझकर जांच को विफल कर दिया है। ऐसी परिस्थितियों में डब्ल्यूबी राज्य और अन्य बनाम बाबू चक्रवर्ती (2004) 12 एससीसी 201 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय के मद्देनजर जहां निचली अदालत ने आरोपी व्यक्तियों को दोषी ठहराया था और उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया था। हाईकोर्ट उन पर आरोप लगाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कुछ टिप्पणियां और सख्तियां पारित की थीं। फैसले के पैराग्राफ संख्या 31 में सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के वकील की दलीलों से सहमति व्यक्त की और माना कि हाईकोर्ट द्वारा अपीलकर्ताओं के खिलाफ सख्ती से पारित फैसले में की गई टिप्पणियों को रिकॉर्ड के खिलाफ किया गया है।
कोर्ट ने आगे कहा,
कानून के अनुसार अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले दो पुलिस अधिकारियों पर मामला दर्ज करें और उन्हें दंडित करें। अदालत ने यह भी माना कि अपीलकर्ताओं द्वारा की गई कार्रवाई उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में रही है, जिसमें उन्होंने कानून के कुछ प्रावधानों का उल्लंघन किया हो सकता है, जो सुप्रीम कोर्ट की राय में हाईकोर्ट द्वारा उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई को उचित नहीं ठहराएगा। पैराग्राफ संख्या 33 में एक बार फिर यह माना गया कि जो अधिकारी अपने वैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे, उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता और राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई अधिनियम के पीछे के उद्देश्यों को लागू करने के लिए थी।
वर्तमान मामले में कोर्ट ने नोट किया कि आक्षेपित आदेश दर्शाता है कि जांच के संबंध में अपनी स्थिति बताने के लिए आवेदक को सुनवाई का कोई अवसर कभी नहीं दिया गया। तद्नुसार, न्यायालय का मत है कि आक्षेपित आदेश अपास्त किए जाने योग्य है।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा पारित आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और तदनुसार आवेदन की अनुमति दी गई।
केस टाइटल: हिमांशुधर द्विवेदी बनाम मध्य प्रदेश राज्य
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