यदि अदालत प्रथम दृष्टया मानती है कि आरोपी ने क्रूरता से काम किया है तो उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
Avanish Pathak
16 May 2022 5:32 PM IST
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि जमानत पर फैसला करने में क्रूरता एक कारक है, हाल ही में कहा कि आमतौर पर एक बार जब अदालतें प्रथम दृष्टया राय बनाती हैं कि आरोपी ने क्रूरता के साथ कृत्य किया है, तो ऐसे आरोपी को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
यह रेखांकित करते हुए कि एक क्रूर व्यक्ति किसी भी समाज में असुरक्षा पैदा कर सकता है, जस्टिस अनूप चितकारा की खंडपीठ ने कहा-
एक बार जब अदालतें प्रथम दृष्टया यह राय बना लेती हैं कि आरोपी ने क्रूरता के साथ काम किया है तो ऐसे आरोपी को आमतौर पर जमानत नहीं दी जानी चाहिए, और अगर अदालतें इसे देना उचित समझती हैं तो यह इस तरह के निर्णय के कारणों को निर्दिष्ट करने के बाद होना चाहिए।
अदालत ने एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति पर गंभीर हमला करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 307, 323, 379, 397, 452, 511 और 34 के तहत आरोपित मनीष सिंह की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा।
17 मार्च, 2020 को शिकायतकर्ता/पत्नी ने पुलिस को सूचित किया कि उसका पति छत से शोर सुनकर उसी की जांच करने गया था। वहां उसने दो लड़कों को तांबे के तार चुराते देखा।
विरोध करने पर उन्होंने उसके पति को मारा और वह गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। कथित तौर पर, आरोपी ने चेहरे और सिर पर कई वार किए और उसकी आंख में पेचकस घुसा दिया। वह पीजीआई में भर्ती रहा और इलाज के बावजूद उसकी एक आंख की रोशनी चली गई और उसे दौरे पड़े।
राज्य के वकील ने यह स्थापित करने के लिए मेडिकल रिकॉर्ड का हवाला दिया कि पीड़ित की आंख चली गई। उसकी खोपड़ी और पूरे जबड़े को फिर से बनाना पड़ा और उसकी गर्दन में से डाली गई ट्यूब से उसे भोजन दिया गया।
इन प्रस्तुतियों के आलोक में, यह देखते हुए कि आरोपी/जमानत आवेदक ने एक निहत्थे व्यक्ति पर क्रूरता से हमला किया था, कोर्ट ने कहा कि एकत्र किए गए आरोपों और सबूतों के विश्लेषण के आधारा पर याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी जा सकती है।
मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता सुनवाई के दौरान जमानत का मामला बनाने में विफल रहा।
केस टाइटल- मनीष सिंह @ गोलू बनाम यूटी चंडीगढ़ राज्य