करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के लिए दर्ज कई एफआईआर में आरोपी महिला को सीआरपीसी की धारा 437 जमानत का पूर्ण अधिकार नहीं देता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Brij Nandan

17 May 2022 9:38 AM GMT

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने एक ऐसे मामले की सुनवाई की जहां याचिकाकर्ताओं पर साजिश रचने और कई पीड़ितों से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी), मानेसर के साथ निविदा उपलब्ध कराने के बहाने निर्दोष व्यक्तियों को लुभाने के लिए 167 करोड़ रुपये की ठगी करने का आरोप है। कोर्ट ने मामले में कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी के गंभीर आरोप हैं, और उन्हें नियमित जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं बनाया गया है।

    जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान की पीठ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता धारा 437 (6) सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत जमानत पाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि वे, वर्तमान प्राथमिकी के अलावा, समान प्रकृति की चार और प्राथमिकी में शामिल हैं।

    याचिकाकर्ताओं के एडवोकेट द्वारा यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 437(6) के प्रावधानों के मद्देनजर जमानत पाने के हकदार हैं। इस कारण से स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि दोनों याचिकाकर्ता, वर्तमान प्राथमिकी के अलावा, समान प्रकृति की चार और प्राथमिकी में शामिल हैं, जहां अन्य पीड़ितों को भी सभी आरोपी व्यक्तियों द्वारा एक दूसरे के साथ साजिश में धोखा दिया गया है और कुल धोखाधड़ी में 167 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। इसलिए, इस न्यायालय ने पाया कि यह कोई विशेष मामला नहीं है।

    यह कहते हुए कि वर्तमान मामले में धारा 437 सीआरपीसी के तहत जमानत देने का कोई आधार नहीं बनाया गया है, अदालत ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 437 एक महिला को जमानत का कोई पूर्ण अधिकार नहीं देता है, जो लोगों को सौ करोड़ रुपये ठगने के लिए अन्य प्राथमिकी में आरोपी है।

    अदालत ने इस आधार पर जमानत को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं के साथ उनके बच्चे भी हैं और कहा कि जेल अधिकारी याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ उनके बच्चों को सभी चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य हैं, यदि आवश्यक हो।

    यह तर्क कि याचिकाकर्ताओं के उनके साथ बच्चे भी हैं, मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में इस स्तर पर उन्हें जमानत देने का कोई आधार नहीं है क्योंकि जेल अधिकारी याचिकाकर्ताओं और उनके बच्चों को सभी चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य हैं, यदि आवश्यक हो। इसे इलाक्वा मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने भी अपने-अपने आदेशों में दर्ज किया है।

    अतः उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तथा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी के गंभीर आरोपों पर विचार करते हुए कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि उन्हें नियमित जमानत की रियायत देने का कोई आधार नहीं बनता है।

    केस टाइटल: ममता बनाम हरियाणा राज्य और अन्य जुड़ा मामला

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