वादी स्वामित्व की घोषणा और कब्जे की वसूली के लिए मुकदमे में प्रतिकूल कब्जे की याचिका दे सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

Avanish Pathak

20 May 2022 11:09 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि परिसीमन अध‌िनियम के तहत स्वामित्व की घोषणा और कब्जे की रिकवरी के मुकदमे में वादी के प्रतिकूल कब्जे की याचिका देने पर कोई रोक नहीं है।

    जस्टिस टीका रमन ने कहा कि कानून की स्वयंसिद्ध मान्यता थी कि वादी प्रतिकूल कब्जे की य‌ाचिका नहीं दे सकता है और यह केवल प्रतिवादी का बचाव हो सकता है, हालांकि अब यह धारणा प्रचलित नहीं है।

    अदालत ने रविंदर कौर ग्रेवाल और अन्य बनाम मंजीत कौर और अन्य (2019) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- "प्रतिकूल कब्जे से स्वामित्व के अधिग्रहण की याचिका वादी द्वारा लिमिटेशन एक्ट के अनुच्छेद 65 के तहत ली जा सकती है और वादी के किसी भी अधिकार के उल्लंघन के मामले में उपरोक्त आधार पर मुकदमा करने के लिए लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत कोई रोक नहीं है।"

    तथ्य

    मौजूदा मामले में, अपीलकर्ता वादी ने अपने स्वामित्व की घोषणा और निषेधाज्ञा के लिए एक वाद दायर किया था। मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, उसने एक अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक आवेदन भी दायर किया। उसने दावा किया कि सूट की संपत्ति मूल रूप से चेलैया की थी, जो पहले प्रतिवादी/‌डिफेंडेंट के पति और शेष प्रतिवाद‌ियों के पिता थे। उक्त चेलैया ने 1993 में एक अपंजीकृत बिक्री विलेख के माध्यम से संपत्ति को अपीलकर्ता पिता मूलइयां को बेच दिया था। बाद में, मूलइयां ने उनके नाम पर पट्टा हस्तांतरण प्राप्त किया। मुलइयां की मृत्यु के बाद, वादी वाद की संपत्ति की मालिक बन गई और उसने सरकार को किस्त का भुगतान कर दिया।

    प्रतिवादी ने कहा कि वादी द्वारा भरोसा किया गया अपंजीकृत बिक्री विलेख सत्य नहीं था, वास्तविक नहीं, अमान्य और कानून में अस्वीकार्य था। आगे यह तर्क दिया गया कि भले ही वादी का दावा कि एक अपंजीकृत बिक्री विलेख द्वारा चेलैया ने 1993 में मूलइयां को संपत्ति बेच दी थी, मूलइयां ने 2000 तक अपने पक्ष में कोई पट्टा प्राप्त नहीं किया था। केवल मुलइयां की मृत्यु के बाद था कि पट्टा हेरफेर द्वारा प्राप्त किया गया था।

    प्रतिवादी ने ऑनलाइन पट्टा प्रिंट भी प्रस्तुत किया, जो चेलैया के पक्ष में था। जोनल डिप्टी तहसीलदार से प्राप्त एक आरटीआई के जवाब से यह भी पता चला कि तहसीलदार कार्यालय में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था जो वादी के पिता मुलैयां के नाम पर राजस्व रिकॉर्ड के उत्परिवर्तन को प्रकट कर सकता है। यह वादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के साक्ष्य मूल्य के संबंध में गंभीर संदेह पैदा करता है।

    प्रतिवादी ने यह भी तर्क दिया कि एक वादी के रूप में, वह प्रतिकूल कब्जे की दलील नहीं दे सकती है और प्रतिकूल कब्जे की दलील केवल स्वामित्व की घोषणा के लिए एक प्रतिवादी का बचाव हो सकती है और यह वादी की दलील नहीं हो सकती।

    अदालत प्रतिवादी के इस तर्क को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं थी और उसने माना कि कानून वादी को प्रतिकूल कब्जे की दलील देने से नहीं रोकता है। हालांकि, अंतरिम निषेधाज्ञा की राहत के संबंध में, अदालत वादी द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के साक्ष्य मूल्य के संबंध में प्रतिवादी की प्रस्तुत‌ियों से संतुष्ट थी।

    अदालत ने कहा कि वादी की याचिका को स्वीकार किए बिना यह मानकर भी तथ्य बना रहा कि चेलैया की मृत्यु की तारीख तक, कब्जे का सबूत देने वाला कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया है। यह तथ्य बहुत महत्व रखता है क्योंकि इस बात का कोई सकारात्मक स्पष्टीकरण नहीं था कि मुलइयां की मृत्यु की तारीख तक, सात लंबे वर्षों तक पट्टा का स्थानांतरण क्यों नहीं किया गया था।

    अदालत इस बात से संतुष्ट थी कि वादी ने अपने कथित कब्जे का कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाया था और वादी द्वारा पेश किए गए दस्तावेज भी अस्पष्ट थे। इसलिए, अदालत ने कहा कि अंतरिम निषेधाज्ञा नहीं देने के ट्रायल जज के आदेश में कोई अवैधता या अनियमितता नहीं थी और इस प्रकार हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं थी।

    केस शीर्षक: पेरियाम्मल बनाम कमलम और अन्य

    केस नंबर: CMA (MD) No. 744 of 2021

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 219

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