स्तंभ
लॉ ऑन रील्स- नेटफ्लिक्स की सीरीज 'द प्लेलिस्ट' की समीक्षा और Spotify की कानूनी उलझन
गरिमा त्यागी'आप नए दौर के लिए पुराने कानूनों का इस्तेमाल नहीं कर सकते।'यह दलील 'द प्लेलिस्ट' नामक नेटफ्लिक्स नई सीरीज की ओर से पेश वकील ने कहा। सीरीज में प्रसिद्ध म्यूजिक स्ट्रीमिंग सर्विस Spotify के उभार को दिखाया गया है।सीरीज में 6 एपिसोड हैं, जिनका टाइटल 'द कोडर', 'द इंडस्ट्री', 'द विज़न', 'द आर्टिस्ट', 'द पार्टनर' और 'द लॉ' है। सीरीज ने उक्त एपिसोड्स के जरिए यह सुनिश्चित किया है कि कंपनी की स्थापना में शामिल प्रत्येक व्यक्ति अपनी कहानियों का नायक बने।सीरीज में जिस वकील को बिजनेस मॉडल को...
क्या बोन ओसिफिकेशन टेस्ट निश्चायक है?
Age is a very high price to pay for maturity- Tom Stoppardव्यक्ति की उम्र के मामले में यह बात कभी कभी सत्य भी प्रतीत होती है, परंतु भारतीय विधिक परिपेक्ष्य में आयु की एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है खास करके आपराधिक मामलों में। भारतीय दंड सहित[IPC] की धारा 82 तथा 83 के अंतर्गत कोई बात अपराध नहीं है, जो 7वर्ष से कम आयु के किसी बालक द्वारा की जाती है। साथ ही किशोर न्याय अधिनियम,2015[JJ ACT] में भी 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति द्वारा किए अपराध के संदर्भ में उसका विचारण किशोर अर्थात नाबालिग, के तौर पर...
पुरुष सत्ता से उन्मुक्ति का "निर्णय"
डॉ. निरुपमा अशोकअभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसले (एक्स बनाम प्रिन्सिपल सेक्रेटेरी, हेल्थ एंड फ़ैमिली वेलफ़ेयर) में अभिनिर्धारित किया है कि विवाहित तथा अविवाहित सभी महिलाओं को सुरक्षित तथा क़ानूनी गर्भपात का अधिकार है तथा वह गर्भ ठहरने के 24 सप्ताह तक कराया जा सकता है।शीर्ष न्यायालय का कहना है कि लिव-इन रिश्ते में रहने वाली, एकाकी, विधवा, परित्यक्ता, दुष्कर्म पीडि़ता, दिव्यांग और नाबालिग आदि सभी को इस हेतु समान अधिकार हैं। कोर्ट ने निर्णय दिया है कि विवाहित तथा अविवाहित का भेद...
क्या जघन्य मामलों के प्रारंभिक निर्धारण में बोर्ड का विवेकाधिकार एक कमी है?
True public safety requires a collaboration between law, enforcement and the community.- Betsy Hodges"प्रारंभिक निर्धारण प्रणाली" को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम में धारा 15 के रूप में जोड़कर युक्तियुक्त प्रक्रिया का भाग 2015 के संशोधन के माध्यम से बनाया गया। इससे पूर्व ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं थी, परंतु; निर्भया मामले के पश्चात विधायिका ने भविष्य में बदलती ऐसी परिस्थियो को ध्यान में रखते हुए इस विशेष प्रक्रियात्मक उपबन्ध को अस्तित्व प्रदान किया। पहले 18 वर्ष की...
जीएन साईंबाबा केस : सुप्रीम कोर्ट की शनिवार की सुनवाई को लेकर उठे सवाल
यूएपीए मामले में प्रोफेसर जीएन साईंबाबा और पांच अन्य को आरोपमुक्त करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैर-कामकाजी दिवस शनिवार को असाधारण विशेष सुनवाई को लेकर वकीलों के समूह में चर्चाओं का बाजार गर्म है।जिस आनन-फानन में शनिवार (15 अक्टूबर 2022) अपराह्न 3.59 बजे दायर याचिका को गैर-कार्य दिवस पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, वह भी एक विशेष पीठ के समक्ष, इसने तमाम लोगों को चौंका दिया है, क्योंकि वर्तमान बेंच की व्यवस्था के अनुसार, जस्टिस एमआर...
हिजाब फैसला : दोनों जजों ने भाईचारे और अनुशासन पर विरोधी फैसले दिए
सुप्रीम कोर्ट के हिजाब मामले के फैसले का एक दिलचस्प पहलू भाईचारे, विविधता और अनुशासन की अवधारणाओं के बारे में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया द्वारा व्यक्त विचार यदि बिल्कुल विपरीत नहीं है तो भी विरोधी हैं तो हैं।जस्टिस गुप्ता की राय है कि क्लास में धार्मिक स्कार्फ की अनुमति देने से भाईचारे की अवधारणा खंडित हो जाएगी, जबकि जस्टिस धूलिया ने कहा कि यह छात्रों को विविधता के प्रति उजागर कर सकता है और उन्हें धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों के प्रति सहिष्णुता पैदा करने में सक्षम बनाता...
क्या आपराधिक शिकायत में संशोधन स्वीकार्य है?
परिवाद या शिकायत से तात्पर्य ऐसी सूचना से है, जो प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) से भिन्न है। दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) में इसकी तकनीकी परिभाषा बताई गई है, जो इस प्रकार है-"धारा 2(d) शिकायत का अर्थ है किसी मजिस्ट्रेट को मौखिक या लिखित रूप से इस संहिता के तहत कार्रवाई करने की दृष्टि से कोई आरोप, कि किसी व्यक्ति, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, उसने अपराध किया है, लेकिन इसमें पुलिस रिपोर्ट शामिल नहीं है। स्पष्टीकरण.- किसी मामले में पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट, जो जांच के बाद, एक असंज्ञेय अपराध...
सुप्रीम कोर्ट में देर रात तक सुनवाई को वकीलों ने सराहनीय कदम बताया
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में शुक्रवार यानी 30 सितंबर 2022 की सुनवाई, जो सुप्रीम कोर्ट की दशहरे की छुट्टियों के शुरू होने से पहले देर रात 9 बजे तक चली।जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पीठ द्वारा एक बेहद सराहनीय प्रयास था। मैं व्यक्तिगत (एडवोकेट ईलिन सारस्वत) रूप से देर रात अदालत में उपस्थित रहा क्योंकि मेरा मामला लगभग रात के 8 बजे सुनवाई के लिए आया था।बार के कुछ सदस्यों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की इस देर रात की सुनवाई पर कुछ मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिलीं,...
अपराधियों को सज़ा से छूट देने का क्या है प्रावधान? सीआरपीसी की धारा 432 के बारे में मुख्य बातें
हाल ही में बिलकिस बानो मामले में 11 अपराधियों को जेल से रिहा किए जाने पर काफी जन आक्रोश सामने आया है, परंतु, कानून की व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था से भिन्न है, क्योंकि कानून सबके के लिए है लेकिन न्याय सबके लिए नहीं है। कहा गया है विधि तो न्याय प्राप्ति का मात्र एक उपकरण है। हमें कानून और न्याय एक समझने की भ्रांति नहीं पालनी चाहिए बल्कि इन्हें अलग-अलग पहलुओं से देखा जाना चाहिए।आदर्श समाज का हर व्यक्ति चाहेगा अपराधी को उसके लिए की सजा अवश्य मिलनी चाहिए, लेकिन हमारे संविधान और कानून में कुछ उपबंध ऐसे...
जानिए कैसे होती है भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति ?
भारत का संविधान, 1950 अनुच्छेद 124 के तहत "सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) की स्थापना और संविधान" की व्यवस्था करता है। अनुच्छेद 124 (1) के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश और ऐसे अन्य न्यायाधीश शामिल होते हैं। अनुच्छेद 124 (2) के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सहित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की शर्तें हैं:1. "सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा उसके हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा नियुक्त किया जाएगा…"2."…सर्वोच्च...
क्या बिलकिस बानो मामले में सरकार द्वारा अपराधियों की रिहाई वैध है?
सारा देश 15 अगस्त को आजादी का अमृत महोत्सव माना रहा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल क़िले से अपने संबोधन में महिलाओं का सम्मान करने का प्रण लेने की बात कही थी, उसी दिन गुजरात सरकार ने सज़ा में माफी की नीति के तहत बिलकिस बानो गैंगरेप मामले के अपराधियों को सजा से छूट [बिना सजा की प्रकृति को बदले सजा की अवधि को कम करना] देकर के उन्हें जेल से रिहा कर दिया।इन दोषियों की रिहाई का फ़ैसला गुजरात सरकार की बनाई गई एक समिति ने 'सर्वसम्मति'से लिया। इसके अलावा इन अपराधियों की रिहाई पर कुछ संगठनों...
जानिए निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत नोटिस का नियम (Rule Of Notice)
चेक बाउंस में मामलों में परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा138 में वर्णित "नोटिस" एक बहुत ही विशेष और महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसे यदि विधि में बताई रीति से पूरा नहीं किया जाता है तो इस संदर्भ में अभियुक्त के विरुद्ध कोई आपराधिक दायित्व उत्पन्न नहीं हुआ माना जायेगा और फलस्वरूप कोई कार्यवाही दायर नहीं की जा सकेगी।ऐसा नोटिस इस धारा में चेक प्राप्तकर्ता (Holder Of The Cheque) की तरफ से, चेक जारीकर्ता (Drawer of the cheque) को एक स्पष्ट, लिखित सूचना हैं। यदि...
मीडिया ट्रायल और उसके दुष्परिणाम
"The problem with the electronic media is all about TRPs, leading to more and more sensationalism, damage reputation of people and masquerade as form of right." -The Supreme Court Of Indiaकिसी ने सच ही कहा है की जैसे-जैसे सभ्यताओं का विकास होता है, उसी के अनुसार सामाजिक व्यवस्था चलती है और साथ ही लोगों की सोच और जीवन शैली का तरीका भी बदलता है। आज यही कारण है कि पहले कभी ताजा खबरें हम अखबारों में ढूंढा करते थे और आज, हम कई उपकरणों द्वारा उसे लाइव देख सकते हैं। यही परिवर्तन हमारे सामाजिक परिवेश...
शादीशुदा होते हुए लिव इन रिलेशनशिप में रहना, क्या है इसकी वैधानिकता?
विवाह एक सामाजिक संविदा है, दो बालिग लोग आपसी सहमति से विवाह के बंधन में बंधते हैं। जीवन में कई दफा ऐसी परिस्थितियों का जन्म होता है जब विवाह में खटास पैदा हो जाती है और पक्षकार एक दूसरे का परित्याग कर देते हैं। विवाह का उद्देश्य दो लोगों के साथ रहकर जीवन यात्रा को आगे बढ़ाना है लेकिन जब विवाह में विवाद उत्पन्न होते हैं तब विवाह के पक्षकार पति और पत्नी एक साथ नहीं रहते हैं। केवल एक दूसरे को छोड़ देने से विवाह समाप्त नहीं होता है, विवाह तो तब भी बरकरार रहता है। विवाह एक तरह का लीगल एग्रीमेंट है...
कोर्ट आदेशों के बावजूद भारत में सड़क दुर्घटनाएं क्यों कम नहीं हो रही हैं?
सडकों पर बने गड्ढों में गिरने से होने वाली मौतें, कहीं न कहीं हमारी पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाती हैं। मौजूदा विकास दर और हाइवे निर्माण के जरिए हम कितनी ही अपनी पीठ थपथपा लें, सड़क दुर्घटनाओं से जमीनी हकीकत खुद ही बयां होती है। बरसात में सड़कें इतनी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं कि सड़कों का कभी अस्तित्व भी था, यह पता नहीं लगता। एक उदाहरण पर्याप्त होगा। महाराष्ट्र स्थित अंबरनाथ निवासी अंकित थाइवा एक दिन नवी मुंबई के घनसोली में काम करने जा रहा था। उसकी मोटरसाइकिल कांतिबदलापुर रोड पर सड़क के...
बार को रजिस्ट्री अधिकारियों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता: दुष्यंत दवे
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवेमैं 1978 से बार में हूं। मैंने हमेशा न्यायपालिका का सम्मान किया है। बदले में, मुझे कई जजों से बहुत गर्मजोशी मिली है। चार दशकों से मैं न्यायालयों के गलियारों में होने वाली घटनाओं का गहराई से अवलोकन करता रहा हूं, पहले गुजरात हाईकोर्ट और 1986 से सुप्रीम कोर्ट, मुझे हमेशा संस्थाओं से अपनेपन का अहसास होता था।आज मैं पूरी तरह से अलग-थलग महसूस कर रहा था। आज मैंने सुप्रीम कोर्ट में जो देखा, उसने मुझे शब्दों से परे दुखी कर दिया। मुझे गहरा दुख हुआ है।जब मैं लगभग 9:50 बजे न्यायालय...
भारत में "राजद्रोह" कानून को अलविदा कहने का समय
- निशिकांत प्रसादएसजी वोम्बटकेरे बनाम भारत संघ, 2022 के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए के तहत "राजद्रोह" के 152 वर्षीय औपनिवेशिक युग के दंडात्मक प्रावधान को प्रभावी ढंग से निलंबित कर दिया। मामले की सुनवाई के दौरान भारत सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि उसने आईपीसी की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है। सरकार द्वारा यह भी कहा गया कि एक बार पुनर्विचार हो जाने के पश्चात...
भारत में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया एवं पद की गरिमा
-निशिकांत प्रसादभारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ इसके बाद संविधान सभा के अथक प्रयासों के परिणाम स्वरूप हमें 26 नवंबर 1949 को अपना संविधान मिला, जो 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हैl संविधान की प्रस्तावना से स्पष्ट है, कि भारत एक प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य होगा l गणराज्य का तात्पर्य, वैसे राज्य से है जहां राज्य-प्रमुख एक निश्चित समय के लिए निर्वाचित होता हो (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से)lभारत में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया-भारतीय संविधान के अनुच्छेद...
महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट में दल-बदल विरोधी कानून के क्या हैं मायने?
महाराष्ट्र की राजनीति में हाल ही में हुए हंगामे ने एक बार फिर संविधान की 10वीं अनुसूची यानी दलबदल विरोधी कानून के मुद्दे को ज्वलंत कर दिया है। जन प्रतिनिधियों द्वारा पक्ष/पार्टी बदलने की आदत राजनीतिक और सामाजिक रूप से काफी खराब है और लोकतंत्र में अस्वीकार्य है जहां एक प्रतिनिधि को जनादेश और जिस राजनीतिक दल का वह प्रतिनिधित्व कर रहा है उसमें विश्वास और निश्चित रूप से उसकी छवि पर चुना जाता है।रिज़ॉर्ट गवर्नमेंट का यह निरंतर चलन जहां विधानसभा के सदस्यों को बंदियों की तरह ले जाकर कहीं दुर्गम स्थान...