स्तंभ
जानिए संविधान दिवस के बारे में कुछ आवश्यक बातें
26 नवंबर को भारत के संविधान के निर्माताओं के प्रयासों को स्वीकार करने के लिए संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में 19 नवंबर को गजट नोटिफिकेशन द्वारा 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में घोषित किया था। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा वर्ष 1979 में एक प्रस्ताव के बाद से इस दिन को 'राष्ट्रीय कानून दिवस' (National Law Day) के रूप में जाना जाने लगा था।संविधान सभा को दिए अपने आखिरी भाषण में बीआर आंबेडकर ने कौन सी तीन चेतावनी दी थीं? संविधान दिवस पर...
जब पति पत्नी दोनों तलाक पर सहमत हो तो कैसे लिया जाए तलाक
वैवाहिक संबंधों को भविष्य की आशा पर बांधा जाता है। विवाह के समय विवाह के पक्षकार प्रसन्न मन से एक दूसरे से संबंध बांधते हैं। कुछ संबंध सदा के लिए बन जाते हैं तथा मृत्यु तक चलते हैं परंतु कुछ संबंध ऐसे होते हैं जो अधिक समय नहीं चल पाते और पति पत्नी के बीच तलाक की स्थिति जन्म ले लेती है।एक स्थिति ऐसी होती है जब विवाह का कोई एक पक्षकार तलाक के लिए सहमत होता है तथा दूसरा पक्षकार तलाक नहीं लेना चाहता है और एक स्थिति वह होती है जब तलाक के लिए विवाह के दोनों पक्षकार पति और पत्नी एकमत पर सहमत होते...
क्या करें जब पति बिना किसी कारण पत्नी को छोड़ दे? जानिए क्या हैं कानूनी प्रावधान
भारत में विवाह एक पवित्र संस्था है। हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act, 1955) के अंतर्गत विवाह को एक संस्कार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्राचीन काल से ही विवाह को एक संस्कार माना जाता रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में विवाह के स्वरूप में परिवर्तन आए हैं। समाज के परिवेश में भी परिवर्तन आए हैं।एक परिस्थिति ऐसी होती हैं जब किसी पति द्वारा पत्नी को बगैर किसी कारण के घर से निकाल दिया जाता है या छोड़ दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यदि महिला कामकाजी नहीं है तो उसके सामने आर्थिक संकट भी खड़ा हो...
क्या भारत में निरक्षरों को वास्तव में सूचना का अधिकार उपलब्ध है?
अक्सर आप ऐसा समाचार पढ़ते हैं, जिसमें एक कार्यकर्ता आरटीआई (Right To Information) आवेदन दाखिल करके लोगों की मदद करता है, हालाँकि आपने इसे कई बार पढ़ा है, लेकिन क्या आपके सामने कभी एक प्रश्न खड़ा हुआ - यदि सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है तो निरक्षर स्वयं इस अधिकार का इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते? इस लेख में, मैं उन सभी प्रासंगिक (Relevant) प्रावधानों का विश्लेषण (Analysis) करूंगा जो निरक्षरों के सूचना के अधिकार की सुविधा प्रदान करते हैं।हालांकि यह कहा जाता है कि आरटीआई गरीबों...
लॉ ऑन रील्स : जातीय हिंसा और बखौफ हो चुकी राजसत्ता की मार्मिक कहानी है जय भीम
शैलेश्वर यादवसिंघम और दबंग जैसी फिल्मों के जरिए हिंदी सिनेमा पुलिस की हिंसा और उसकी बेलगाम ताकत को लंबे समय से पर्दे पर रुमानी तरीके से पेश करता रहा है। हालांकि 'जय भीम' ने हिरासत में हिंसा, पुलिस प्रताड़ना और पुलिसकर्मियों द्वारा कानून के दुरुपयोग की स्याह तस्वीर पेश की है। फिल्म कुछ हद तक पुलिस की बर्बरता का बखान करने की प्रवृत्ति को तोड़ती है।टीजे ज्ञानवेल द्वारा निर्देशित 'जय भीम' जाति की विभाजानकारी रेखाओं और राज्य सत्ता के परस्पर प्रतिच्छेद बिंदुओं की पड़ताल करती है। मारी सेल्वराज की...
सामाजिक एंव शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग की पहचान करने की राज्य की शक्ति: क्या 105वां संविधान संशोधन मराठा कोटा मामले में सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या को पूरी तरह से समाप्त कर देता है?
क्या 105वां संविधान संशोधन उच्चतम न्यायालय द्वारा 102वें संशोधन की व्याख्या के प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त कर देता है, जिसने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए राज्य विधानसभाओं की शक्ति को छीन लिया था?हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले का एक पठन, जिसने सबसे पिछड़े वर्गों की श्रेणी के तहत वन्नियार समुदाय को 10.5% का आंतरिक आरक्षण प्रदान करने वाले तमिलनाडु कानून को रद्द कर दिया, इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक में देता है। घटनाओं का कालक्रमसंविधान (102वां संशोधन) अधिनियम,...
जमानत के बाद रिहाई में देरी: सभी न्यायालयों में "FASTER" (इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का तेज और सुरक्षित ट्रांसमिशन) की आवश्यकता
"सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के इस युग में हम अभी भी आदेशों को संप्रेषित करने के लिए आसमान की ओर कबूतरों को देख रहे हैं।" चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमाना ने एक मामले में जेल से कैदियों की रिहाई में हुई देरी पर यह टिप्पणी की थी। मामले में जेल अधिकारियों की जिद थी कि उन्हें जमानत के आदेश की भौतिक प्रतियां दी जाए। ये जिद कैदियों की रिहाई में देरी का कारण बनी।आगरा से 13 कैदियों की रिहाई में देरी के बारे में एक अखबार में छपी रिपोर्ट पर सीजेआई ने मामले को स्वतः संज्ञान लेने और जमानत आदेशों के...
उथरा मर्डर केस: कैसे ट्रायल कोर्ट ने 'सामूहिक विवेक' के आगे घुटने नहीं टेके
एक न्यायाधीश द्वारा जघन्य अपराधों के दोषी को सजा देना आसान नहीं है, खासकर अगर न्यायाधीश को अपने विवेक का इस्तेमाल करना पड़े। उनकी समस्याएं - एक स्वीकार्य ढांचे या दिशा-निर्देशों के अभाव में उनके विवेक को सीमित कर सकती हैं यदि उनका सामना नागरिक समाज में अपराधी के प्रति बदला लेने के लिए, पीड़िता के लिए 'न्याय' के लिए मीडिया के अभियान और अपराध के खिलाफ सामूहिक घृणा के कारण होता है।विद्वान मृणाल सतीश ने अपनी पुस्तक डिस्क्रीशन, डिस्क्रिमिनेशन एंड द रूल ऑफ लॉ: रिफॉर्मिंग रेप सेंटिंग इन इंडिया...
हारते हुए लोकतंत्र को बचाना
डॉ अश्विनी कुमार, सीनियर एडवोकेटयह एक संकटग्रस्त राष्ट्र के लिए कयामत का क्षण है। लखीमपुर खीरी की अकथनीय त्रासदी ने देश की संवेदना को मर्म तक चोटिल किया है। सत्ता के नशे में धुत्त 'नेताओं' द्वारा आश्रित गुंडों के एक समूह द्वारा निर्दोष नागरिकों की जघन्य हत्या को स्पष्ट रूप से दिखाते एक 30 सेकंड के वीडियो ने एक बार फिर हमारी राजनीति और संवैधानिक लोकतंत्र की गिरावट को उजागर किया है। लोकतंत्र की विकृति और सत्ता की वेश्यावृत्ति के विरोध पूर्ण अनिवार्यता इस सच्चाई की अनारक्षित स्वीकृति के साथ शुरू...
सुप्रीम कोर्ट के नए जजों की सूची में जस्टिस कुरैशी का न होना परेशान करने वाले सवाल उठाता है
सुप्रीम कोर्ट में जजों की नौ नई नियुक्तियों की मौजूदा सूची में जस्टिस अकील कुरैशी की अनुपस्थिति चर्चा का ज्वलंत विषय बन गई है। जस्टिस कुरैशी से जुड़ा विवाद पहली बार 2018 में सामने आया था। तब वे तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सुभाष रेड्डी की पदोन्नति के बाद इसके वरिष्ठतम न्यायाधीश के रूप में गुजरात हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनने वाले थे। हालांकि उन्हें बॉम्बे हाईकोर्टमें स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्हें पांचवें नंबर का निम्न वरिष्ठता का पद लेना था। गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन ने...
जनिए, कौन हैं सुप्रीम कोर्ट के नवनियुक्त जज जस्टिस जेके माहेश्वरी
श्रुति कक्कड़ सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किए गए जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट और सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में काम किया है।29 जून, 1961 को मध्य प्रदेश के जिला मुरैना के छोटे से शहर जौरा में जन्मे जस्टिस जेके माहेश्वरी ने 1982 में बीए की डिग्री ली और 1985 एलएलबी पास किया। 1991 में उन्होंने जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से एलएलएम की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने पीएचडी भी की, जिसमें उनका विषय-"मध्य प्रदेश राज्य के संदर्भ में चिकित्सकीय...
जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका के पास राज्य की जवाबदेही लागू करने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने का रिकॉर्ड है
जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया है। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के जज के रूप में और बाद में कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में सामान्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य की ज्यादतियों के खिलाफ कई उल्लेखनीय न्यायिक हस्तक्षेप किए हैं।उन्होंने अपने न्यायिक करियर में अब तक एक जन-समर्थक और एक अधिकार-आधारित दृष्टिकोण प्रदर्शित किया है, जिसमें संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर राज्य के कार्यों पर सवाल उठाने में कोई हिचकिचाहट नहीं रही है।उनके करियर की एक...
क्या लंबी अवधि की कैद के बाद बरी हुए लोगों के लिए मुआवजा और क्षतिपूर्ति होनी चाहिए?
मुझसे जो प्रश्न पूछा गया है, वह यह है कि क्या लंबी अवधि की कैद के बाद बरी किए गए लोगों के लिए मुआवजे और क्षतिपूर्ति की व्यवस्था होनी चाहिए? प्रश्न का उत्तर एक शब्द में दिया जा सकता है- हां, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन मैं विषय से परे जाना चाहूंगा; यह केवल जेल में रहने और बरी होने के लिए मुआवजे का सवाल नहीं है, हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में कई अन्य घटनाएं हैं, जिनके लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए।सभी वक्ताओं ने संकेत दिया है कि देशद्रोह और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के कठोर...
एक 'परफॉर्मेंस ऑडिट' और यूएपीए पर कुछ विचार
जस्टिस आफ्ताब आलमसीजेएआर द्वारा आयोजित वेबिनार में "लोकतंत्र, असंतोष और कठोर कानून: यूएपीए और देशद्रोह" विषय पर जस्टिस आफताब आलम द्वारा दिए गए भाषण का पूरा पाठ-1 . आज के सत्र में, प्रिय प्रतिभागियों, मैं आपके साथ अधिनियम पर कुछ व्यापक विचार साझा करने से पहले यूएपीए के 'परफॉर्मेंस ऑडिट' के साथ शुरुआत करने का प्रस्ताव करता हूं । हालांकि, मेरा ऑडिट स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी और 'राष्ट्रीय सुरक्षा', दोनों के दृष्टिकोण से है और यह देखने का प्रयास है कि अधिनियम, जैसे कि यह वास्तविक जीवन में...
CLAT कंसोर्टियम को एक पत्र
अनीश राजकॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT), जो कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए भारत की सबसे बड़ी प्रवेश परीक्षा है, 23 जुलाई, 2021 को सफलतापूर्वक पूरी हो गई। इस वर्ष परीक्षा COVID-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए आयोजित की गई थी। परीक्षा भारत के विभिन्न केंद्रों में ऑफलाइन मोड में आयोजित की गई। परीक्षा के तुरंत बाद एनएलयू के कंसोर्टियम द्वारा अनंतिम उत्तर कुंजी जारी की गई है। इसके साथ ही अनंतिम उत्तर कुंजी के खिलाफ आपत्तियां उठाने का विकल्प भी खोल दिया गया है। अधिसूचना के अनुसार,...
अभी एक बेहतर कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) का विकास होना बाकी है
14 वर्षों के इतिहास में कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) में कई स्तरों पर गलतियां हुई हैं। मौजूदा आलेख में उक्त परीक्षा के संबंध में सुधारात्मक कदमों का सुझाव देने का प्रयास किया गया है, जिन्हें अपनाया जा सकता है।परीक्षा का तरीकाप्रतियोगी परीक्षा में परीक्षा का तरीका बहुत प्रासंगिक है, CLAT के मामले में यह एक रोलर कोस्टर राइड रहा है। CLAT 2008 से 2014 (7 वर्ष) तक ऑफ़लाइन मोड में आयोजित किया गया, और फिर 2015 से 2018 (4 वर्ष) तक ऑनलाइन मोड में और फिर 2019 (1 वर्ष) में ऑफ़लाइन मोड में और फिर वापस...
दावा मामलों में मुआवजे की राशि जमा करने के बाद दावेदारों की व्याकुलता को कैसे खत्म किया जाए?
जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर परिचय :1980 के दशक की शुरुआत में ट्रिब्यूनल या वर्कमैन कमिश्नर में सफल होने के बाद वादियों की स्थिति और मुआवजे की जमा राशि के अनुसार गुजरात के उच्च न्यायालय में ऐसे मामले सामने आए, जहां इन अशिक्षित अर्ध-निरक्षर और नाबालिगों ने जमा की गई राशि की प्राप्ति नहीं होने की शिकायत की थी।उच्च न्यायालय ने मुआवजे की राशि की सुरक्षा के लिए एक तरीका तैयार किया। इसे दिशा-निर्देशों के रूप में लिखा गया, जिसे न्यायाधिकरण आदेश पारित करते समय पालन 'कर सकते हैं'। ये दिशा-निर्देश चार...
'सभी के लिए मुफ्त टीका', सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक समीक्षा का शक्तिशाली प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात जूत को दिए राष्ट्र के नाम संदेश में टीकाकरण नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा की और कहा कि कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के लिए भी टीके खरीदने का फैसला किया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्र की मुफ्त टीकाकरण योजना का लाभ 18-44 वर्ष के आयु वर्ग तक को भी दिया जाएगा।टीकाकरण नीति में यह संशोधन COVID मुद्दों पर स्वत: संज्ञान मामले में सुप्रीम कोर्ट की कड़ी आलोचना के कुछ दिनों बाद आया है। उक्त मामले में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल...
सफूरा ज़रगर और दिशा रविः कहानी जमानत के दो फैसलों की
दिशा रवी को राजद्रोह के मुकदमे में जमानत देने का आदेश नतीजे के कारण नहीं, बल्कि गूगल-डॉक्स के जरिए षडयंत्र के राज्य के उन्मादी आरोप को संक्षिप्त प्रायश्चित प्रदान करने के कारण महत्वपूर्ण है। सामान्य परिस्थितियों में, यह अन्यथा उल्लेखनीय नहीं होता- लोगों को जेल में रखने का औचित्य साबित करने के लिए दूरगामी षड्यंत्रों के राज्य के दावों के प्रति न्यायिक संदेह, जब उन्हें वास्तविक हिंसा से जोड़ने के लिए कोई सबूत मौजूद नहीं हो, की ही अपेक्षा होना चाहिए। हालांकि, हाल के दिनों में न्यायपालिका के सभी...
नेकबैंड्स और ब्रॉडबैंड्स: नॉन-ऑफिस स्पेस से वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हो रहे वकीलों के संबंध में
चेतना वीमद्रास उच्च न्यायालय का 03-02-2021 को दिया एक आदेश, जिसमें एक वकील द्वारा कार में बैठकर सुनवाई में शामिल होने के "अदालत के अनादर" जैसा माना गया था, देश भर की अदालतों द्वारा की गई समान टिप्पणियों में से एक है।हालांकि अदालतें, उचित ही, ऐसे वकीलों के आचरण की ओर इशारा कर चुकी हैं, जिन्होंने अदालत की कार्यवाही में अनौपचारिक कपड़ों में हिस्सा लिया, सड़क पर थूकते पाए गए, धूम्रपान करते दिखे, और यह अदालतों के अनादर जैसा था, हालांकि यह आलेख उन उदाहरणों के संबंध में नहीं है।यह लेख न्यायालयों की...