उपभोक्ता संबंधित अधिकारों और प्रक्रिया के बारे में जानिए

Lakshita Rajpurohit

26 Nov 2022 5:36 AM GMT

  • उपभोक्ता संबंधित अधिकारों और प्रक्रिया के बारे में जानिए

    "A market without consumers will be a night sky without the stars and moon. Protect their rights and serve them the best for greater reputation and fame."

    भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और यह करोड़ों लोगों का निवास स्थान भी है। व्यापारिक दृष्टि से यहां हर दिन कई प्रकार के क्रय–विक्रय संबंधित संव्यवहार किए जाते है या यूं कहा जा सकता है कि यह हमारी आम दिनचर्या का हिस्सा भी हैं।

    इसमें यदि कोई व्यक्ति धन का संदाय कर कुछ माला या सेवा ली हैं और बाद में उसे धोखे का सामना करना पड़ जाए, तब अवश्य ही खरीददार एक कमजोर पक्ष/व्यक्ति माना जाना चाहिए। ऐसे में उसके अधिकारों की रक्षा राज्य का परम दायित्व है, क्योंकि अब ग्राहक सरकार पर निर्भर हो गया है।

    उपभोक्ता अधिकारों का संरक्षण मध्ययुग से एक बड़ी चिंता का विषय रहा है। प्राचीन भारत में उपभोक्ताओं को बाजार में अपराधों से बचाने के लिए प्रभावी उपाय शुरू किए गए थे। प्राचीन विधियों में विभिन्न प्रकार की अनुचित व्यापार प्रथाओं का वर्णन मिलता है और साथ ही मिलावटी माल देने वालों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था भी दर्शित होती है।

    वर्तमान समय में भी उपभोक्ता संबंधी यह अधिकार बाजार में चल रही अनुचित प्रथाओं के विरुद्ध क्रेताओं के प्राथमिक संरक्षण हेतु विधि रूप में सामान्य व्यवस्था में मौजूद है। यह विधि व्यापारिक संव्यवहारों में विक्रेता, निर्माताओं या सेवा प्रदाताओं द्वारा किए जाने वाले भ्रष्ट या बेईमानपूर्ण कदाचार से ग्राहकों को सुरक्षा प्रदान करता है और उनके अधिकारों का उल्लंघन होने पर उपचार भी प्रदान करता है।

    अब बदलते आधुनिक दौर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को तीन दशकों के बाद निरस्त करते हुए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 को प्रतिस्थापित किया गया। साथ ही अब उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम,2020 के अनुसार, डिजिटल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक सेवा प्रदाताओं के माध्यम से ऑनलाइन खरीददारी को भी इसकी सीमा में लाया गया है। इसके अतिरिक्त शिक्षा, मेडिकल एंड हेल्थकेयर, ट्रांसपोर्ट व टेलीकम्युनिकेशन, बैंकिंग सेक्टर, इंश्योरेंस तथा हाउसिंग कंस्ट्रक्शन इत्यादि सेवाओं को इसमें शामिल करके उपभोक्ताओं के अधिकारों को अब अधिक व्यापक बनाया गया है। आइये इस लेख के माध्यम से हम सरल रूप से इसे जानने का प्रयास करते है।

    उपभोक्ता कौन हैं?

    अधिनियम की धारा 2(7) के अनुसार,

    "उपभोक्ता एक ऐसा व्यक्ति है जो किसी भी सामान या सेवा खरीदता है, जिसका भुगतान किया गया है या वादा किया गया है या आंशिक रूप से भुगतान किया गया है और आंशिक रूप से वादा किया गया है, या आस्थगित भुगतान की किसी भी प्रणाली के तहत ऐसे सामान या सेवाओं के लाभार्थी के अनुमोदन के साथ उपयोगकर्ता भी शामिल है। अधिनियम के तहत, अभिव्यक्ति "कोई भी सामान खरीदता है" और "किसी भी सेवा को किराये पर लेता है या प्राप्त करता है" में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या टेली-शॉपिंग या डायरेक्ट सेलिंग या मल्टी-लेवल मार्केटिंग के माध्यम से ऑफ़लाइन या ऑनलाइन लेनदेन शामिल हैं।"

    जैसे, X अपने निजी या पारिवारिक काम के लिए स्कूटर खरीदता है। X एक उपभोक्ता है। या X एक होटल में जाकर भोजन करता है और उस सेवा के बदले वह धन के रूप में प्रतिफल देता है, X उपभोक्ता माना जायेगा। ऐसा ही मोटर सेल्स एंड सर्विस बनाम रेन्जी सबस्टियन, 1991 C.P.R. 158 (Kerala), के मामले में निर्णित किया गया कि शिकायतकर्ता ने प्रतिफल के बदले एक हीरो होंडा मोटरबाइक बुक की थी, जिसे नियत तिथि पर डिलीवर नहीं कर के नजरंदाज किया गया। फोरम द्वारा डीलर को आदेश दिया गया कि जिस दिन मोटरबाइक बुक की गई उस दिन के बाजार मूल्य के अनुसार बाइए की डिलीवर की जाए और 500 रुपये का मुआवजा भी दिलाया जाए।

    ऐसे ही एक अन्य मामले अनंत राज एजेंसी बनाम टेल्को (1996) C.P.J. 268 (Delhi) में कंपनी ने अपने निदेशक के निजी उपयोग के लिए एक कार खरीदी। कार में गंभीर खराबी थी और इसने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया। शिकायतकर्ता ने कार को बदलने या ब्याज सहित कीमत की वापसी का दावा किया। माना गया कि कार को बड़े पैमाने पर कंपनी के लाभ कमाने की गतिविधि के लिए नहीं खरीदा गया था। कार की खरीद और कंपनी की लाभ कमाने की गतिविधि के बीच कोई संबंध नहीं था। इसलिए शिकायतकर्ता को उपभोक्ता माना जायेगा और ऐसी शिकायत पोषणीय है।

    सेवा के संबंध में मुंबई ग्राहक पंचायत बनाम आंध्र प्रदेश स्कूटर्स लिमिटेड 1991(1)C.P.R. 603; में कहा कि शिकायतकर्ता ने रुपये का 500 रूपए एडवांस जमा किया उसके तथा प्रतिवादी के लिए स्कूटर बुक करने के लिए। जब शिकायतकर्ता ने उससे अपने करार के अनुसार जमा राशि की मांग की माना कर दिया गया। फोरम ने उसे उपभोक्ता मानते हुए, दावाकृत राशि लौटने का आदेश दिया। ऐसे ही एक अन्य मामले में भारत संघ बनाम श्रीमती एस. प्रकाश1991(1)C.P.R. 307 में तय किया गया कि एक टेलीफोन का ग्राहक भी उपभोक्ता है, क्योंकि केंद्र सरकार को भुगतान किया गया टैक्स दूरसंचार विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए प्रतिफल है।

    वहीं, स्टर्लिंग कंप्यूटर लिमिटेड बनाम पीआर कुट्टी(1996) C.P.J. 118(N.C.) के मामले में तय किया कि, शिकायतकर्ता ने अपने निजी उपयोग के लिए एक कंप्यूटर खरीदा तथा जिसका उपयोग ऑफिस के कर्मचारियों द्वारा व्यवसाय के उद्देश्य से किया जाना था।

    शिकायतकर्ता पेशे से ठेकेदार था। अपनी आजीविका कमाने के लिए कंप्यूटर का उपयोग नहीं किया जा रहा था। कंप्यूटर शुरू से ही ठीक से काम नहीं करता था। राष्ट्रीय आयोग ने माना कि कंप्यूटर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए खरीदा गया था और शिकायतकर्ता उपभोक्ता नहीं था। अतः शिकायत को खारिज कर दिया गए।

    अधिनियम में उन व्यक्तियों का भी विवरण दिया गया है जो उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते है, जैसे-

    • जो लोग मुफ्त में सामान प्राप्त करते हैं।

    • जो लोग मुफ्त में सेवाओं का लाभ उठाते हैं।

    • जो लोग पुनर्विक्रय(resale) या किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए माल प्राप्त करते हैं।

    • वे लोग जो किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए सेवाओं का लाभ उठाते हैं।

    • सेवा की संविदा के तहत सेवाओं का लाभ उठाने वाले लोग

    अतः स्पष्ट है कि, यदि कोई व्यक्ति प्रतिफल देकर कोई माल या सेवा अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए उपयोग करता है वह ही, इस अधिनियम के अंतर्गत एक उपभोक्ता माना जायेगा, परंतु जो व्यक्ति उस वस्तु या सेवा का प्रयोग अपने निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि अन्यथा करता है वह इसमें शामिल नहीं हैं।

    उपभोक्ता अधिकार

    सही कहा गया है "जहां अधिकार है वहां उपचार भी है।" जैसा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक उपचारात्मक विधि है इसलिए धारा 2(9) में कुल 6 अधिकारों को यहां उपबंधित किया गया, जिनके उलंघन पर ग्राहक द्वारा विक्रेता या निर्माता के विरुद्ध कानूनी प्रक्रिया शुरू की जा सकती हैं।

    ये अधिकार निम्न है, जैसे-

    1. जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं के मार्केटिंग से बचाव का अधिकार।

    2. गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं की कीमत के बारे में सूचित करने का अधिकार, जैसा भी मामला हो, ताकि उपभोक्ता को अनुचित व्यापार प्रथाओं से बचाया जा सके।

    3. सुनिश्चित होने का अधिकार, जहां भी संभव हो, प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं तक पहुंच।

    4. सुनवाई का अधिकार और यह आश्वासन दिया जाना कि उपयुक्त मंचों पर उपभोक्ता के हितों पर उचित विचार किया जाएगा।

    5. अनुचित व्यापार व्यवहार या प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं या उपभोक्ताओं के बेईमान शोषण के खिलाफ निवारण की मांग करने का अधिकार; तथा

    6. उपभोक्ता जागरूकता का अधिकार।

    जानना आवश्यक होगा अब उपभोक्ताओं के फायदे के लिए 2019 अधिनियम में उनके के हितों के रक्षा के दायरे बढ़ा दिए गए जिसमें शामिल है-

    1. 'अनुचित व्यापार व्यवहार'

    इस अधिनियम, 2019 की धारा 2(47) के अनुसार इसमें निम्नलिखित प्रथाएं शामिल हैं:

    • बिक्री के लिए नकली माल का निर्माण या पेशकश करना या सेवा प्रदान करने के लिए भ्रामक प्रथाओं को अपनाना।

    • प्रदान की गई सेवाओं और बेची गई वस्तुओं के लिए उचित कैश मेमो या बिल जारी नहीं करना।

    • दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेने से इनकार करना और बिल में निर्धारित समय अवधि के भीतर या बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं होने पर 30 दिनों के भीतर वस्तु का मूल्य वापस प्रदान करना।

    • उपभोक्ता की व्यक्तिगत जानकारी को किसी अन्य व्यक्ति के सामने प्रकट करना जो प्रचलित विधि के अनुसार न हो।

    उपभोक्ता ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज करने में सक्षम होगा और धोखाधड़ी वाले व्यापारों को भी रोकने भी सहायक सिद्ध होगा।

    2. उत्पाद की जिम्मेदारी (Product Liability)

    यदि शिकायतकर्ता को किसी भी निर्माता, सेवा प्रदाता या विक्रेता के द्वारा दिए माल या सेवा से कोई नुकसानी उठानी पड़े तब वह उनके विरुद्ध प्रोडक्ट लायबिलिटी की कार्रवाई कर सकता है। जैसे-

    • उत्पाद निर्माता को अधिनियम की धारा 84 में उत्तरदायी ठहराया जाएगा यदि उत्पाद में विनिर्माण दोष है, डिजाइन में दोषपूर्ण है या वह विनिर्माण विनिर्देशों का पालन नहीं करता है और इसमें उचित उपयोग हेतु पर्याप्त निर्देश नहीं हैं।

    • धारा 85 यह उपबंध सेवा प्रदाता के विषय में है। यदि प्रदान की गई सेवा में कमी या यह अपर्याप्त चेतावनियों, आवश्यक निर्देशों,वारंटी या संविदात्मक शर्तों के बिना है प्रदान की गई है तब सेवा प्रदाता इसके लिए उतरदायी होगा।

    3. 'झूठे और भ्रामक विज्ञापन पर रोक

    अब झूठे और कपटी विज्ञापनों के माध्यम से व्यापार करने वालों के लिए सख्त दंड की व्यवस्था भी इसमें शामिल है।

    उपभोक्ता विवाद निवारण प्राधिकरण तथा उनके क्षेत्राधिकार-

    उपभोक्ता अधिकारों के प्रवर्तन, भ्रामक या झूठे विज्ञापनों(advertisement) और अनुचित व्यापार प्रथाओं से जुड़े मामलों को विनियमित करने के लिए 2019 के एक्ट के अंतर्गत त्रिस्तरीय प्राधिकरणों की व्यवस्था की गई है और जिनके आर्थिक क्षेत्राधिकार भी कुछ इस प्रकार है, जैसे-

    1. जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग/DCDRCs (जिला आयोग) [1 करोड़ रुपए से कम के मामले सुनेगा]

    2. राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग/SCDRCs (राज्य आयोग) [1 करोड़ से अधिक लेकिन 10 करोड़ रुपए से कम के मामले सुनेगा]

    3. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग/NCDRC (राष्ट्रीय आयोग) [ 10 करोड़ रुपए से अधिक के मामले सुनेगा]

    उपरोक्त प्राधिकरण, कंज्यूमर से अधिक या अस्पष्ट कीमत वसूलने, अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार करने, जीवन के लिए खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री करने और सेवा प्रदाता द्वारा दी गई दोषपूर्ण वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री के संबंध में शिकायतों को सुनेगा और निपटारा करेगा।

    इसके अतिरिक्त, यदि उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम को यह प्रतीत होता है कि विवाद को मध्यस्थता [Alternate Dispute Resolution] द्वारा सुलझाया जा सकता है, तो वह पार्टियों को उनकी सहमति से मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकता है।

    कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

    एक उपभोक्ता अपनी शिकायत लिखित रूप में आयोग के समक्ष दर्ज करवा सकता है, परंतु 2019 के अधिनियम के आने के पश्चात अब उपभोक्ता शिकायत https://edaakhil.nic.in/index.html लिंक पर भी जा कर दर्ज कर सकता है। यह शिकायतकर्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से या उसके एजेंट द्वारा भी प्रस्तुत की जा सकती है। इसके अतिरिक्त इसे कोर्ट फीस के साथ रजिस्टर्ड डाक से भी भेजा जा सकता है। एक शिकायतकर्ता अपनी शिकायत वहां दर्ज करवा सकता है, जहां वह रहता है या काम करता है। पुराने एक्ट में पीड़ित केवल वहीं शिकायत दर्ज कर सकता था, जहां विरोधी पक्ष व्यापार करता है या रहता है।

    इसके अतिरिक्त, प्रत्येक शिकायत का शीघ्र निपटारा किया जाएगा। यदि वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता नहीं है तो विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने में और यदि वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता है तो विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 5 महीने में निर्णय देने का प्रयास किया जाएगा।

    आवश्यक है कि,उपभोक्ता आयोग अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जिन्हें व्यक्तियों को उचित राहत प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। ऐसे में उपभोक्ता को वकील नियुक्त करने की जरूरत नहीं है। वह स्वयं शिकायत दर्ज कराने और कोर्ट में प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसे प्रक्रिया सरल व कम खर्चीली बनाने के लिए किया गया है। हालांकि यदि वह चाहे तो कानूनी सलाहकार की सहायता ले सकता हैं।

    एक शिकायत के अन्तर्गत पीड़ित द्वारा निम्नलिखित विवरण दिया जा सकता है-

    • उनका नाम, विवरण और पता।

    • जिस पक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा रही है उसका नाम, विवरण और पता।

    • शिकायत से संबंधित समय, स्थान और अन्य तथ्य।

    • आरोपों को साबित करने के लिए सम्बंधित दस्तावेज।

    शिकायत दर्ज कराने का परिसीमाकाल और अपील संबंधी प्रावधान-

    • वाद हेतुक (cause of action) उत्पन्न होने की तिथि से 2 साल के भीतर शिकायत दर्ज करवाई जा सकेगी। अर्थात, उस दिन से 2 साल जब प्रथम बार कंज्यूमर को सेवा में कमी या माल में खराबी का ज्ञान हुआ है।

    • इसके अलावा, जिला आयोग द्वारा पारित आदेश से असंतुष्ट पक्षकार द्वारा अपील किसी तथ्य या विधि के बिंदु पर राज्य आयोग में 45 दिनों के भीतर की जा सकती है तथा राज्य आयोग के फैसले से असंतुष्ट व्यक्ति ऐसे आदेश को अपील अंतर्गत 30 दिनों के भीतर राष्ट्रीय आयोग में चुनौती दे सकता है।

    आज वर्तमान स्थिति में ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने के विषय में अब तक के आंकड़ों के हिसाब से देश के 21 राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों की 544 उपभोक्ता अदालतों में इसके जरिए ई-नोटिस, डाउनलोड लिंक और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के अलावा sms और ईमेल के जरिए उपभोक्ताओं को अलर्ट करने जैसी सुविधाएं भी मिल रही हैं।

    अब तक ई-दाखिल का उपयोग करके 10,000 से अधिक उपभोक्ताओं ने अपनी शिकायतें आयोग में दर्ज कराई हैं। 43000 से अधिक उपभोक्ता अपना पंजीकरण भी करा चुके हैं। यानी उम्मीद है कि 2022 उपभोक्ताओं और उपभोक्ता फोरम के लिए जल्दी निपटारे की राहत लेकर आएगा।

    सामान्यतः उपभोक्ता अधिकार सिविल प्रकृति के होते परंतु इसमें कुछ अधिकार दाण्डिक प्रकृति के भी हैं। हालांकि, इसमें कुछ कमियों के बावजूद भी, वर्तमान उपभोक्ता संरक्षण कानून द्वारा पूर्ण प्रयास किया गया है कि उपभोक्ताओं को सरल सुलभ न्याय प्रदान किया जाए। यह भारत में उपभोक्ता अधिकारों के प्रवर्तन की दिशा में एक सकारात्मक कदम है और आशा हैं कि यह प्रौद्योगिकी में क्रमिक प्रगति के लिए उपायकर सिद्ध होंगे।

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