स्तंभ
पुलिस बर्बरता: समस्या, कारण और इसके प्रभाव
"You were put here to protect us, But who protects us from you?" अमेरिकन सिंगर KRS–one द्वारा गाये गाने की यह पंक्तियां सामाजिक परिपेक्ष्य में भी कही न कहीं सही प्रतीत होती है, क्योंकि सिविल सोसाइटी में पुलिस द्वारा की जाने वाली बर्बरता का हर एक व्यक्ति साक्षी है। ऐसे कृत्यों को कोई समाजिकतंत्र स्वीकार नहीं कर सकता, चाहे वह भारतीय समाज हो या पश्चिमी।पुलिस बर्बरता यानि "Police Brutality", ये अभिव्यक्ति (term) सबसे पहली बार 19वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटन में प्रयुक्त कि गई थी। जानना आवश्यक है...
घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के अधीन जानिए अपील के प्रावधान
अपील का सामान्य अर्थ– निवेदन करना है, लेकिन इसका जुरीसप्रूडेंसिअल अर्थ किसी अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा पूर्व में किए विधिक अवधारण को उच्च प्राधिकारी के समक्ष चुनौती देना है। –[Encyclopaedia Britannica]भारतीय विधिक मूल परिपेक्ष्य से यह एक संविधिक और सारभूत अधिकार [statuary-substantive right] है। इसका उद्देश्य अधीनस्थ न्यायालय द्वारा घोषित निर्णय के अधीन किसी विधि/तथ्य की त्रुटि, अनियमितता या ऐसी ही कोई अन्य गलती जो अन्याय कारित करती हो, को उच्चतर न्यायालय (higher court) के समक्ष पुनर्विचार हेतु...
जानिए कॉमन सिविल कोड क्या है
कॉमन सिविल कोड भारत में एक राजनीतिक मुद्दा रहा है। इस मुद्दे पर समय-समय पर बहस होती रही है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में समान सिविल संहिता का उल्लेख मिलता है, जहां राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में संविधान में राज्य को कॉमन सिविल कोड के लिए प्रयास करने हेतु निर्देशित किया है। आधुनिक भारत में कॉमन सिविल कोड की आवश्यकता प्रतीत होती है, हालांकि इस पर स्पष्ट और खुलकर बातचीत कभी भी नहीं हो पाई क्योंकि जनता में इस मुद्दे को विवाद का मुद्दा बना दिया गया है। यदि ध्यानपूर्वक देखें तो कॉमन सिविल कोड...
सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी मामले में कानून के शासन के मूल्यों को बरकरार रखा
लखीमपुर मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा मोनू उर्फ टेनी जूनियर की जमानत रद्द करने के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसला, जो पहले इलाहाबाद के उच्च न्यायालय द्वारा दी गई थी, न केवल खुद मिश्रा, राज्य सरकार और राज्य पुलिस के लिए एक झटका है, बल्कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए भी है । इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जमानत पर सुनवाई के तरीके पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से कुछ बेहद तीखी टिप्पणियां की गईं। निर्णय/आदेश के अनुच्छेद 41 में किए गए चार बिंदु स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि मुख्य...
सीआरपीसी की धारा 436 A : संवैधानिक उपचारों के प्रति समाज को जागरूक कैसे बनाएं
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National crime records bureau) द्वारा वर्ष2020 में जारी किए डाटा के अनुसार, देश की जेलों में हर 10 में से 7 कैदी ऐसे हैं जो विचाराधीन है। विचाराधीन कैदी वे लोग है, जिन पर लगे आरोप अभी सिद्ध नहीं हुए हैं तथा जिनका विचारण न्यायलयों में लंबित है या प्रारंभ ही नहीं हुआ हैं।जेल सांख्यिकी भारत रिपोर्ट 2020 (prison statistics India report 2020) के अनुसार भी वर्ष दर वर्ष यह संख्या बढ़ती ही जा रही है, जो कि पूर्व के कुछ वर्षों में 3% थे और हाल ही में जारी किए आंकड़ों...
क्या नाबालिग जेजे एक्ट, 2015 के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है? जानिए प्रावधान
A person's a person, no matter how small." Dr. Seuss किशोर न्याय(बालकों की देखरेख और संरक्षण)अधिनियम,2015 के संशोधन का मुख्य उद्देश्य बालकों के सामाजिक कल्याण, व्यक्तिगत विकास और उनमें सुधारात्मक परिवर्तन लाने का है, न कि उन्हें सज़ा इत्यादि से दंडित करने का। इसके पश्चात भी यदि सामान्य दृष्टि से देखा जाए तो इस अधिनियम के अंतर्गत ऐसा कोई स्पष्ट अभिव्यक्त प्रावधान [Expressed Provision] नहीं है, जो की किशोर [ Juvenile] द्वारा अंतरिम जमानत [Anticipatory Bail] के लिए आवेदन करने की बात करता हो। तो...
साइबर प्रौद्योगिकी, अन्वेषण एवं मानवाधिकार का नवीनतम दृष्टांत - न्यायपालिका की नज़र से
हिमांशु दीक्षित, फाइनल ईयर लॉ स्टूडेंट, एनएलआईयू, भोपालतकनीकीकरण ने राजकीय सत्ता में अनेक परिवर्तन स्थापित कर दिए है, फिर वो चाहे नागरिक अधिकारों के विरोध में हो या फिर संपूर्ण समाज के हित में हो। अतः यह एक स्वीकारणीय तथ्य है कि तकनीकीकरण का मानव-स्वतंत्रता पर सदैव कोई न कोई प्रभाव निश्चित ही पड़ता है। साइबर अपराध का दिन-प्रतिदिन उजागर होना और इन पर अंकुश रखने वाली संस्थाओं का स्वयं में ही अवैधानिक तरीके से अधिकारों का दुरुपयोग करना यह दर्शाता है कि दोनों ही रूप में सामान्य नागरिक के ही मौलिक...
आईपीसी की धारा 498(ए) पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) पति और उसके घर के लोगों पर पत्नी पर क्रूरता करने के संबंध में लागू होती है। इस धारा का अर्थ यह है कि किसी भी शादीशुदा महिला को यदि उसके पति द्वारा क्रूरतापूर्वक परेशान किया जा रहा है या उसके पति के साथ उसके पति के रिश्तेदार मिलकर उस शादीशुदा महिला को परेशान कर रहे हैं, तब आईपीसी की धारा 498(ए) लागू होती है।इस धारा में पति और उसके रिश्तेदारों को तीन वर्ष तक की सजा से दंडित किए जाने का प्रावधान है। कोई भी पीड़ित महिला संबंधित थाना क्षेत्र में इस अपराध की सूचना...
किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 में ज़मानत के प्रावधान
"Juvenile Delinquency" यानि बाल अपराध, मार्टिन न्यूमेयर के अनुसार- किसी अवयस्क का समाजविरोधी व्यवहार जो व्यक्तिगत तथा सामाजिक विघटन उत्पन्न करता है उसे बाल अपराध कहा जा सकता हैं। सामान्य अर्थो में समझा जाये तो एक किशोर [Teenager] द्वारा किया जाने वाला कृत्य, जो कि तत्समय प्रवर्तन किसी विधि के अंतर्गत अपराध है। इसके साथ ही यह एक प्रकार की वैश्विक समस्या भी है, न केवल भारत में अपितु पश्चिमी देश भी इससे त्रस्त है।UNICEF के जारी किए आंकड़ो के अनुसार 11 से 15 वर्ष के बच्चे सामान्य से अधिक लैंगिक...
क्या नवाब मलिक की गिरफ्तारी एक राजनीतिक प्रतिशोध है?
भारत के गृह मंत्रालय में एक थिंक टैंक है जिसे पुलिस अनुसंधानऔर विकास ब्यूरो (BPRD) कहा जाता है। कुछ समय पहले, इसने देश भर के सभी पुलिस विभागों को गिरफ्तारी नहीं करने और वरिष्ठ नागरिकों से उनके कार्यालयों या स्टेशनों पर नियमित रूप से यानियमित मामलों के लिए पूछताछ करने के लिए निर्देशित किया था।इस थिंक टैंक ने सभी पुलिस अधिकारियों को सख्ती से सलाह दी है कि गिरफ्तारी करते समय, पूछताछ के लिए बुलाते समय याहिरासत में लोगों के साथ व्यवहार करते समय सही व उचित प्रक्रिया का पालन करें। लेकिन हमेशा की तरह...
पॉक्सो एक्ट : कोई संस्था अगर अपराध की रिपोर्ट न करे तो क्या होंगे उसके परिणाम, जानिए प्रावधान
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स बयूरो (NCRB) जारी किए आंकड़ों के अनुसार भारत मे हर साल शिशुओं के यौन शोषण के संबंध मे वर्ष दर वर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है। इन मामलों को गंभीर से निपटने हेतु सरकार द्वारा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (रोकथाम), 2012 लागू किया गया, जिससे वर्ष 2019 में प्रावधानों में कठोरता लाते हुए संशोधित भी किया गया है, परन्तु क्या बालकों क्या हित अभी भी संरक्षित है?यह एक सोचनीय विषय है। हालांकि, इन दिनों मराठी फ़िल्म नई वारनभात लोंचा, कोन नई कोंचा' विवादित चर्चा का विषय बनी है।...
सीलबंद कवर के जरिए सेंसरशिप: केरल हाईकोर्ट का मीडिया वन 'निर्णय'
केरल हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने मीडिया वन समाचार चैनल पर केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर जब अपना फैसला सुरक्षित रख, तब यह अपेक्षा थी कि कोर्ट एक तर्कसंगत आदेश देगा, जिसमें कार्यकारी की कार्रवाई कठोर न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है।जैसा कि एक टीवी चैनल पर प्रतिबंध भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के मूल पर हमले के जैसा है, यह उम्मीद थी कि स्व-घोषित 'प्रहरी' आक्षेपित कार्यकारी आदेश को चतुर्मुखी आनुपातिकता मानक की कसौटी पर परखेगा और यह कि यदि कोर्ट प्रतिबंध को जारी...
धारा 498(ए) के तहत मुकदमा कैसे दर्ज कराते हुए कौन से सबूतों से आरोपियों को सजा करवाई जा सकती है
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(ए) एक पत्नी के अधिकारों को सुरक्षित करती है। यह धारा पति और उसके रिश्तेदारों को एक महिला के प्रति क्रूरता करने से रोकती है।भारतीय महिलाओं के लिए ससुराल एक पिंजरे के रूप में परिवर्तित हो गया, जहां यह माना जाने लगा कि एक महिला चारों ओर से शत्रुओं के बीच है। ससुराल में महिलाओं को पीड़ित किए जाने की घटना दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धारा 498(ए) इन घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से ही प्रावधानित की गई है।धारा 498(ए) के अंतर्गत क्रूरता...
किसी भी कोर्ट केस में कॉल डिटेल की क्या भूमिका होती है
मोबाइल केवल एक दूरसंचार का साधन ही नहीं है बल्कि एक रिकॉर्ड भी है। किस व्यक्ति ने कहां और कब किस जगह पर किस व्यक्ति से बात की है इसकी पूरी डिटेल टेलीकॉम कंपनी के पास उपलब्ध होती है।अदालतों में इस कॉल डिटेल को सबूत के तौर पर काम में लिया जाता है। किसी भी फैक्ट को साबित करने के लिए अदालत ऐसी कॉल डिटेल को सबूत बना सकती है।जैसे कि कोई क्रिमिनल मामला चल रहा है और किसी व्यक्ति पर हत्या का आरोप है तब एक पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति के बारे में आरोप को साबित करने के लिए कॉल डिटेल की भी सहायता ले सकता है और...
आईपीसी धारा 324: जमानती अपराध और समाधेय (Compoundable) अपराध
जमशेद अंसारीभारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 324 के तहत दंडनीय अपराध की प्रकृति के संबंध में कुछ भ्रम है। सवाल यह है कि क्या आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध जमानती है या गैर-जमानती। समाधेय (Compoundable) है या गैर-समाधेय। इस पत्र में प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों, वैधानिक संशोधनों, राजपत्र अधिसूचनाओं और न्यायशास्त्रीय विकास का विश्लेषण करते हुए इस बात को स्पष्ट करने की कोशिश की गई है कि हम इस मुद्दे से कैसे निपट सकते हैं।भारतीय दंड संहिता की धारा 324, 1860मूल रूप से अधिनियमित आईपीसी की...
127 मृत, 250 घायल- हमारे न्यायालयों की सुरक्षा के लिए एक मामला
प्रखर दीक्षित, सिद्धार्थ सिंहCOVID-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन में लगभग एक साल बाद देश की अदालतों ने भौतिक सुनवाई की शुरुआत ही की थी कि 24 सिंतबर 2021 को रोहिणी जिला न्यायालय, दिल्ली की दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। कोर्ट परिसर में हुआ हमला किसी आतंकी हमले से कम नहीं था, जैसा कि चश्मदीदों ने कहा।हमले का गुबार खत्म भी नहीं हुआ था कि 18 अक्टूबर, 2021 को भूपेंद्र सिंह नामक एक अधिवक्ता को शाहजहांपुर जिला न्यायालय में अज्ञात हमलावरों ने गोली मारी दी, जिससे अदालत परिसर में अराजकता की स्थिति पैदा हो...
क्रिमिनल ट्रायल में बाल गवाह की गवाही पर क्या है विस्तृत दृष्टिकोण
जी.करुप्पसामी पांडियानपरिचय:- न तो मूल कानून और न ही प्रक्रियात्मक कानून बाल गवाह 'टर्म' (पारिभाषिक शब्द) को परिभाषित करता है। हालांकि, साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 में यह विचार किया गया है कि "सभी व्यक्ति तब तक गवाही देने के लिए सक्षम होंगे जब तक कि अदालत यह नहीं मानती कि उन्हें उसके द्वारा पूछे गए प्रश्न को समझने से या उन प्रश्नों के तर्कसंगत उत्तर देने से इसलिए रोका गया है क्योंकि संबंधित व्यक्त की उम्र कम थी, अत्यधिक वृद्धावस्था थी, शरीर या मन से वह बीमार था, या इसी तरह का कोई और कारण।"गवाही...
आरटीआई की धारा-2(h) के अंतर्गत लोक प्राधिकारी : एक अवलोकन
जीवन कहां है, हमने जीने में खो दिया ?प्रज्ञा कहां है, हमने ज्ञान में खो दिया ? ज्ञान कहां है, हमने सूचना में खो दिया ? साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता थामस स्टर्न्स एलियट के इन्हीं पंक्तियों को आगे बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर ने लिखा : सूचना कहां है, हमने दमन में खो दिया ? कहने का तात्पर्य यह है कि थोड़ी सी सूचना से प्रज्ञा नहीं आ सकती। सूचना तो एक साधन है, साध्य तो जीवन है अत: सूचना का निर्विघ्न रूप से प्रसारित होना आवश्यक है। सूचना, ज्ञान का आधार है, जो विचारों को जगाता है और...
जानिए संविधान दिवस के बारे में कुछ आवश्यक बातें
26 नवंबर को भारत के संविधान के निर्माताओं के प्रयासों को स्वीकार करने के लिए संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में 19 नवंबर को गजट नोटिफिकेशन द्वारा 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में घोषित किया था। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा वर्ष 1979 में एक प्रस्ताव के बाद से इस दिन को 'राष्ट्रीय कानून दिवस' (National Law Day) के रूप में जाना जाने लगा था।संविधान सभा को दिए अपने आखिरी भाषण में बीआर आंबेडकर ने कौन सी तीन चेतावनी दी थीं? संविधान दिवस पर...
जब पति पत्नी दोनों तलाक पर सहमत हो तो कैसे लिया जाए तलाक
वैवाहिक संबंधों को भविष्य की आशा पर बांधा जाता है। विवाह के समय विवाह के पक्षकार प्रसन्न मन से एक दूसरे से संबंध बांधते हैं। कुछ संबंध सदा के लिए बन जाते हैं तथा मृत्यु तक चलते हैं परंतु कुछ संबंध ऐसे होते हैं जो अधिक समय नहीं चल पाते और पति पत्नी के बीच तलाक की स्थिति जन्म ले लेती है।एक स्थिति ऐसी होती है जब विवाह का कोई एक पक्षकार तलाक के लिए सहमत होता है तथा दूसरा पक्षकार तलाक नहीं लेना चाहता है और एक स्थिति वह होती है जब तलाक के लिए विवाह के दोनों पक्षकार पति और पत्नी एकमत पर सहमत होते...