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स्वतंत्रता को सांस लेने की जगह देना: विशेष विवाह अधिनियम के तहत नोटिस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
स्वतंत्रता को सांस लेने की जगह देना: विशेष विवाह अधिनियम के तहत नोटिस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक एकल न्यायाधीश ने कल विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 और 5, जिसमें जोड़ों को अपनी शादी से एक महीने पहले विवाह अधिकारियों को सूचित करने और विवाह अधिकारियों को इस प्रकार की सूचना को प्रचारित करने की आवश्यकता होती है, की व्याख्या करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।विशेष विवाह अधिनियम किसी भी व्यक्ति को इस आधार पर विवाह पर "आपत्त‌ि" करने की अनुमति देता है कि यह (कथित रूप से) अधिनियम के प्रावधानों (धारा 7) का उल्लंघन करता है। सफिया सुल्ताना बनाम यूपी राज्य का मामला कोर्ट के...

प्रत्यक्ष तटस्थता के पहलू: क्या हम महिलाओं और उनकी पसंद का सम्मान करते हैं?
प्रत्यक्ष तटस्थता के पहलू: क्या हम महिलाओं और उनकी पसंद का सम्मान करते हैं?

शिवानी विजउत्तर प्रदेश में अंतर-धार्मिक विवाहों के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता के मध्य, प्रदेश की राज्यपाल द्वारा हाल ही में पारित किए गए धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश (विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020) के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। सेक्‍यूलरवाद की आधारश‌िला के रूप में, मुख्य रूप से, पसंद के धर्म के पालन और प्रचार की स्वतंत्रता के इर्दगिर्द ही तर्कों और आलोचनाओं को गढ़ा गया है और आकार दिया गया है। प्रदेश की विव‌िधतापूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास की पृष्ठभूमि ने धर्म के तर्क को...

समझिए उर्दू के कुछ ऐसे शब्द जिनका भारतीय कानून व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है
समझिए उर्दू के कुछ ऐसे शब्द जिनका भारतीय कानून व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है

भारत की न्यायलयीन प्रक्रिया मुगल काल से प्रचलित चली आ रही है। ताज़िराते हिन्द भारत का दंड विधान रहा है। इस दंड विधान के माध्यम से ही मध्य काल में भारत में किए जाने वाले अपराधों के लिए दंडित किया जाता था। लंबी अवधि तक उर्दू भारत के न्यायलयों की भाषा रही है। मुगलकाल में न्यायालय की भाषा उर्दू ही रही है। समय और शासन के साथ भाषा बदल गई परंतु कुछ शब्द सुविधा के अनुसार शेष रह गए।वर्तमान की हिंदी, हिंदी पट्टी भारतीय न्यायालय में उत्कृष्ट कार्य कर रही है और निरंतर उन्नत हो रही है। उर्दू के कुछ शब्द है...

सीएए का एक सालः सुस्त बना रहा सुप्रीम कोर्ट, विरोध के अध‌िकार के समर्थन में सक्रिय रहे हाईकोर्ट
सीएए का एक सालः सुस्त बना रहा सुप्रीम कोर्ट, विरोध के अध‌िकार के समर्थन में सक्रिय रहे हाईकोर्ट

अक्षिता सक्सेनाठीक एक साल पहले, 11 दिसंबर, 2019 को संसद ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) पारित किया था।अधिनियम की संवैधानिकता पर- पड़ोसी राष्ट्रों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागे शरणार्थियों को संरक्षण देने के कथ‌ित उद्देश्य के साथ पारित - मुस्लिम प्रवासियों और गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों को दायरे से बाहर रखने के कारण, गंभीर बहस हुई।क्यों अधिनियम का स्वागत नहीं हुआ?धार्मिक कोण जोड़कर भारतीय नागरिकता की मूल अवधारणाओं में आए बदलावों, नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के संबंध...

सीजेआई बोबडे का एक सालः उन मामलों पर एक नजर, जिनमें महत्वपूर्ण संवैधानिक सवालों का जवाब दिया जाना है
सीजेआई बोबडे का एक सालः उन मामलों पर एक नजर, जिनमें महत्वपूर्ण संवैधानिक सवालों का जवाब दिया जाना है

एसए बोबडे ने 18 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में एक वर्ष पूरा किया, ऐसे में उन प्रमुख मामलों पर एक नजर डालना आवश्यक है, जिनमें संविधान संबंध‌ित महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया जाना है। उन सभी मसलों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है।जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने, नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिकता और चुनावी बांड की वैधता के ख‌िलाफ दायर या‌चिकाओं जैसे राष्ट्रीय महत्व के कई मसलों को तय करने में तत्परता नहीं दिखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की काफी आलोचना हो चुकी है।दिसंबर...

जमानत क्यों महत्वपूर्ण है: मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 7 पर विचार
जमानत क्यों महत्वपूर्ण है: मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 7 पर विचार

एडवोकेट नीमा नूर मोहम्मद, एडवोकेट जॉन एस राल्फजस्टिस फेलिक्स फ्रैंकफर्टर के लोकप्र‌िय उद्धरण को फिर से दोहराए जाने का समय आ गया है, जिसे मैकनाब बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका के जर‌िए कहा गया था कि "स्वतंत्रता का इतिहास, व्यापक रूप से, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के अनुपालन का इतिहास रहा है।" हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के धारा 5 (सी) के प्रावधानों के अनुसार इब्राहिम मोहम्‍मद इकबाल लकड़वाला बनाम महाराष्ट्र राज्य में अग्र‌िम जमानत खारिज किया...

निर्वाचन अपराधों के 100 साल  : समयानुसार बदलाव की आवश्यकता
निर्वाचन अपराधों के 100 साल : समयानुसार बदलाव की आवश्यकता

शरीर में मेरुदंड का जो स्थान है वही स्थान जनतंत्र में चुनावों का है। यदि मेरुदंड में कहीं भी कोई विकार पैदा होता है तो शरीर की शक्ति क्षीण होने लगती है, ठीक उसी तरह जब चुनाव प्रक्रिया में कोई विकार पैदा होता है तो जनतंत्र की नींव भी हिल जाती है। इतिहास गवाह है कि भारत ही नहीं, पूरे विश्व की जितनी भी जनतांत्रिक सरकारें हैं, वहां पर चुनाव प्रक्रिया को दूषित करने का प्रायः प्रयास किया जाता रहा है। चुनाव की सुचिता बनाए रखने के लिए प्रत्येक देश में विभिन्न मानवीय गतिविधियों को विभिन्न अपराधों की...

किसी महिला को सीआरपीसी (CrPC) के तहत गिरफ्तार करने के प्रावधान:- पुलिस कैसे एक महिला को गिरफ्तार कर सकती है?
किसी महिला को सीआरपीसी (CrPC) के तहत गिरफ्तार करने के प्रावधान:- पुलिस कैसे एक महिला को गिरफ्तार कर सकती है?

अपराध की घटनाओं और महिलाओं के विकास के बीच संबंध आवर्ती है, जहां खराब सामाजिक और आर्थिक स्थिति महिलाओं के बीच कमजोरियों में वृद्धि का कारण बनती है। भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा ने हाल के वर्षों में पर्याप्त कानूनी सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर कई सार्वजनिक नीतिगत बहसों के साथ व्यापक ध्यान आकर्षित किया है। हालांकि, अधिकांश मामलों में यह देखा गया है कि पुलिस द्वारा महिलाओं की गिरफ्तारी के समय अनुपयुक्त व्यवहार किया है।हर कानून किसी एक मंशा से बनाया जाता है जिसके माध्यम से एक लक्ष्य को हासिल...

सुप्रीम कोर्ट में जजों ‌की नियुक्तियांः रुझानों और प्रवृत्त‌ियों की पहचान
सुप्रीम कोर्ट में जजों ‌की नियुक्तियांः रुझानों और प्रवृत्त‌ियों की पहचान

स्वप्‍निल त्रिपाठीहाल में खबरें आईं कि कानून मंत्रालय (भारत सरकार) सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों का इंतजार कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की अनुमोद‌ित संख्या 34 (चीफ जस्टिस समेत) है। हालांकि, कोर्ट वर्तमान में 30 जजों के साथ ही कार्यरत है, क्योंकि जस्ट‌िस गोगोई, जस्ट‌िस गुप्ता, जस्ट‌िस भानुमति और जस्ट‌िस मिश्रा की सेवानिवृत्ति के बाद अब तक एक भी नियुक्ति नहीं हो पाई है। जस्ट‌िस गोगोई 2019 में सेवानिवृत्त हुई थी, जबकि शेष इस वर्ष की शुरुआत में...

असंज्ञेय रिपोर्ट के बारे में विस्तृत जानकारी : कैसे असंज्ञेय रिपोर्ट प्रथम सूचना रिपोर्ट से अलग है
असंज्ञेय रिपोर्ट के बारे में विस्तृत जानकारी : कैसे असंज्ञेय रिपोर्ट प्रथम सूचना रिपोर्ट से अलग है

भारतीय कानून में अपराधों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है, यह विभाजन अपराधों की प्रकृति के आधार पर किया गया है।· संज्ञेय अपराध और असंज्ञेय अपराध· जमानतीय अपराध और गैर जमानतीय अपराध· समझौते योग्य अपराध और असमझौते योग्य अपराधजब असंज्ञेय अपराध से सम्बंधित घटना की सूचना थाने में देकर उस सूचना के आधार पर शिकायत दर्ज कराई जाती है तो ऐसे में पुलिस उस सूचना के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करती है और उसकी एक कॉपी शिकायतकर्ता को बिना कोई शुल्क लिए देती है। एफआईआर ...