भारतीय न्यायपालिका के लिए क्यों हैं जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ सबसे जरूरी
LiveLaw News Network
7 Nov 2022 8:14 AM IST
जैसा कि हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ 9 नवंबर 2022 को भारत के अगले और 50वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ एक महान कानूनी विद्वान हैं जो अपने कानून और अपने न्यायालय को पूरी तरह से जानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में पिछले 6 वर्षों में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने इतने सारे ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं जो जनता पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं और उन्हें कई लोगों की नज़र में एक नायक के साथ-साथ कई लोगों की नज़र में उम्मीद की किरण भी बनाते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ निर्णय ऐसे हैं जो कई कानूनी हस्तियों की नजर में फिट नहीं हैं (क्योंकि किसी की व्यक्ति की कोई भी अलग और विपरीत राय हो सकती है) लेकिन मैं वहां नहीं जाऊंगा क्योंकि एक न्यायाधीश भी एक इंसान है और गलतियां करना हम सबके जीवन का हिस्सा है जो कि हमें इंसान बनाता है। तो यह एक मामला हो सकता है अगर किसी को लगता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा सुनाया गया कुछ फैसला उन कानूनी ज्ञानियों की उम्मीदों के अनुरूप नहीं है, चाहे वह जज लोया केस रहा हो अथवा राम मंदिर केस हो या सबरीमाला केस।
प्रत्येक न्यायाधीश की कार्य करने की अपनी शैली होती है और कानून को समझने की अपनी योग्यता और प्रतिभा होती है और जिस मामले में वह निर्णय कर रहा होता है, उसके तथ्यों के प्रश्न होते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ के वकील के रूप में प्रैक्टिस के दिनों से और फिर बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति के बाद, उन्होंने हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम किया है और उन्होंने सदैव शीर्ष पर भारत के संविधान की पवित्रता को बनाए रखने की पुरज़ोर कोशिश की है।
आधार कार्ड निर्णय जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा इस अधिसूचना के साथ दिया गया कि आधार अधिनियम को जो कि संसद द्वारा धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था, संविधान के साथ धोखाधड़ी के अलावा और कुछ नहीं है। यह निर्णय कानून और भारत के संविधान की उनकी समझ का सार है। वह इसी निर्णय में आगे कहते हैं कि आधार कार्ड को किसी अन्य आईडी और पैन कार्ड से जोड़ना पूरी तरह से संविधान द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के तहत उल्लिखित निजता की स्वतंत्रता के खिलाफ है।
उन्होंने अपने निजता के मौलिक अधिकार वाले फैसले में अपने पिता चीफ जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ द्वारा लगभग 40 साल पहले दिए गए फैसले को पलट दिया और इसे खत्म कर दिया।
अपने फैसले में उन्होंने लिखा,
"निजता का अधिकार संविधान में निहित है, यह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी से निकलता है।"
कुछ अन्य ऐतिहासिक निर्णयों में जस्टिस चंद्रचूड़ ने सशस्त्र बलों में महिलाओं को स्थायी कमीशन प्रदान करने से लेकर आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करना और एलजीबीटी समुदाय को अधिकार प्रदान करना उनके वो कुछ प्रमुख निर्णय हैं जो एक आम और हाशिए पर रह रहे एक आम नागरिक के न्यायपालिका में विश्वास को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करते हैं। महिलाओं को गर्भपात का अधिकार देने वाला उनका हालिया निर्णय निस्संदेह लोकतांत्रिक नारीवाद के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय निर्णय है और दुनिया भर के कुछ अन्य कानूनी व्यक्तित्वों की तुलना में उनकी छवि को बहुत ऊंचा बनाता है।
वह बहुत सख्त और अनुशासित न्यायाधीश हैं जो कानून के शासन में विश्वास करते हैं। वह शायद ही कभी किसी केस में स्थगन की अनुमति देते हैं जिन्हें वह सुनते व निर्णीत करते है, और कानून का बहुत कुशलता से पालन करते हैं।
वह हमेशा स्वतंत्र प्रेस और स्वतंत्र मीडिया के एक बड़े पैरोकार रहे हैं और यही कारण है कि पत्रकार अर्नब गोस्वामी की जमानत के मामले में और तथ्य खोजक पत्रकार मोहम्मद जुबैर की जमानत के मामले में उनके ऐतिहासिक निर्णयों ने उन्हें स्वतंत्र प्रेस और मीडिया के अधिकार को कायम रखने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय वाहवाही दी है।
हाल ही में उन्होंने कुछ ऐसा किया है जो सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में किसी भी न्यायाधीश द्वारा कभी नहीं किया गया था जब उन्होंने रात 9:00 बजे के बाद तक अदालत में कार्य किया था। यह एतिहासिक और उल्लेखनीय इसलिए भी है क्योंकि यह रात्रि अदालत में दैनिक सामान्य वाद सूची के लिए थी ना कि कुछ विशेष मामले/मामलों के लिए नहीं। यह एक बेहद साहसिक निर्णय था और मैं व्यक्तिगत रूप से उस नाइट-कोर्ट/ रात्रि अदालत की कार्यवाही में भाग ले रहा था क्योंकि मेरे स्वयं के मामले की सुनवाई रात्रि लगभग 8:00 बजे के आसपास हुई थी जिसे उन्होंने आराम से सुनने के बाद निर्णय के लिए आरक्षित रख दिया था।
मैं देश में चल रहे राजनीतिक हालात पर नहीं जाऊंगा, लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ की उन पंक्तियों को उद्धृत करना पसंद करूंगा जो उन्होंने एक फैसले में लिखी थीं कि - "विरोध लोकतंत्र का सुरक्षा वाल्व है" (डिसेन्ट इज़ दी सेफ्टी वाल्व ऑफ डेमोक्रेसी)।
भारी भरकम पेपर-बुक फाइलों के बजाय वर्चुअल कोर्ट और इलेक्ट्रॉनिक केस फाइलों के लिए उनका दृष्टिकोण कुछ और ही है और यह समय की जरूरत है और बेहद प्रशंसनीय है।
मेरी विनम्र राय में यह स्पष्ट है कि वर्तमान में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ भारत के मौलिक अधिकारों और संविधान के सबसे बड़े पैरोकार हैं और वह हमेशा हमारी न्यायिक प्रणाली के साथ-साथ लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए इसके मूल्यों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं। जैसा कि मैंने उन्हें एक व्याख्यान में सुना है एक बार उन्होंने कहा था कि- भारतीय संविधान का इतना बड़ा दिल है कि यह उन लोगों के अधिकारों की भी रक्षा करता है जो इसे तोड़ने की कोशिश करते हैं या इसमें बिल्कुल विश्वास नहीं रखतें हैं।
मैं भविष्य में भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के बेहतर संचालन को देख सकता हूं जब वह 9 नवंबर 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे और मुझे पूरी उम्मीद है कि वह सर्वोच्च न्यायालय की जटिल रजिस्ट्री प्रणाली और साथ ही साथ चल रहे सरकारों के संचालन को बदलने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेंगे।
लेख: ईलिन सारस्वत (एडवोकेट) (ILIN SARASWAT), सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, नई दिल्ली
ट्विटर- @iamAttorneyILIN
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)