पूर्व सीजेआई यूयू ललित के कुछ अनसुने किस्से, जस्टिस ललित ने कहा- सबको बोलने की आजादी है

Adv. ILIN SARASWAT

22 Nov 2022 10:25 AM GMT

  • पूर्व सीजेआई यूयू ललित के कुछ अनसुने किस्से, जस्टिस ललित ने कहा- सबको बोलने की आजादी है

    भारत के मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) उदय उमेश ललित द्वारा अपने 74 दिनों के संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान पीछे छोड़ी गई एक अमूल्य विरासत ने सुप्रीम कोर्ट में अधिकतम उत्पादकता का एक अनुकरणीय मानदंड स्थापित किया है, जिसके प्रदर्शन का पैमाना भविष्य में हासिल करना कठिन साबित हो सकता है। एक व्यक्तिगत राय में, वह भारत के उन मुख्य न्यायाधीशों में से एक हैं जिन्होंने कानूनी क्षेत्र में 39 वर्षों के बाद एक सीधी रीढ़, शालीनता और ईमानदारी के साथ अपने कार्यकाल को समाप्त किया।

    सोशल मीडिया पर अफवाहों के साथ एक यह बात चलाई गयी थी कि जस्टिस ललित ने एक वकील के तौर पर पूर्व में एक मामले में अमित शाह का प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन यह महत्वहीन था क्योंकि अमित शाह मामले के मुख्य वकील राम जेठमलानी थे और वह अनुपलब्ध थे और (तत्कालीन अधिवक्ता) यूयू ललित को उनके समक्ष पेश होने के लिए कहा गया था कि वह केस का पक्ष सुनवाई में पीठ के समक्ष रखें। वास्तव में वह अमित शाह के मुख्य मामले से जुड़े अन्य मामले में एक किसी सह-आरोपी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

    ऐसे निष्पक्ष और विनम्र जज विरले ही मिलते हैं। वह हमेशा कानून के बारे में बहुत व्यावहारिक थे और व्यक्तिगत रूप से, मैं उन्हें पिछले कुछ दशकों से भारत के सबसे अच्छे आपराधिक मामलों के वकीलों में से एक मानता हूं। सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति के कारण यह मेरी स्वार्थपूर्ण उदासी लग सकती है क्योंकि इसने एक शानदार वकील के रूप में उनका करियर समाप्त कर दिया था। मेरे लिए उनके खिलाफ या उनके साथ, किसी दिन अदालत में पेश होने का एक बड़ा सपना था जो कि उस दिन टूट गया था।

    चलिए, मेरी उस स्वार्थी इच्छा को छोड़ देते हैं आज, और मैं यकीन के साथ यह कह सकता हूं कि उस दिन जस्टिस यू यू ललित के रूप में देश के पास हाल के समय के सबसे अच्छे न्यायाधीशों में से एक ऐसे न्यायमूर्ति मिले थे जिन्होंने हमारे सामने उदाहरण दिया कि कैसे सर्वोच्च न्यायालय, उसकी बार और विशेष रूप से युवा वकीलों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।

    संवेदनशील राजनीतिक मामलों की याचिकाओं को अप्रत्याशित सूचीबद्ध करने की उनकी क्रांतिकारी और त्वरित कार्य शैली, जो कि ( सम्वेदनशील मामले) कुछ वर्षों से निष्क्रिय पड़े हुए थे, कई वर्षों के बाद बेहद प्रासंगिक मामलों में कई (रिकॉर्ड छह) संवैधानिक पीठों की स्थापना करना, सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में सीजेआई ललित के लिए बहुत प्रशंसा अर्जित की। आप उन्हें एक आम आदमी के न्यायाधीश के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, जो कि काफी भावुक और किसी मामले का न्याय करते समय हारने वाले पक्ष के प्रति सम्वेदनशीलता महसूस करना, लेकिन कभी भी स्थापित कानून से समझौता नहीं करते थे और इस तरह हमेशा देश के कानून को सर्वोच्च बनाए रखते थे।

    सुप्रीम कोर्ट में एक भाषण में जस्टिस यू यू ललित के शब्दों में, जिसमें मैं भी शामिल था, जिसमें उन्होंने चुनौतियों पर बात की, कि "हम जो कुछ भी करते हैं, हम पूरे समाज के लिए करते हैं और जो कुछ कार्य भी हमने किया है, या जो भी योगदान हमने दिया है, उसका का स्वाभाविक रूप से आपके साथियों, बार के सदस्यों, (और) हर किसी द्वारा मूल्यांकन किया जाएगा। अगले अवसर के लिए अपने आप को तैयार रखिए ताकि भविष्य में जब ये चुनौतियां सामने आएं, तो हम खुद को सही पक्ष में खड़े पाएं।"

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के रूप में जस्टिस यू यू ललित की पदोन्नति की प्रक्रिया कॉंग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान अप्रैल 2014 में शुरू हुई थी और तभी उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस बनने के लिए पूछा गया था। जस्टिस ललित का व्यक्तित्व ऐसा है कि अलग-अलग विचारधाराओं के बावजूद हर राजनेता और राजनीतिक दलों ने उनकी हमेशा सराहना की।

    उन्होंने, एक वकील के रूप में, सुप्रीम कोर्ट के एक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड, और बाद में, एक वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश के रूप में नामित होने के बाद, हम युवा वकीलों को आशा और प्रेरणा की भरपूर भावना दी है। यह स्पष्ट है कि जब उन्होंने एक युवा अधिवक्ता के रूप में सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रैक्टिस शुरू की, युवा अधिवक्ता उदय ललित के रूप में, तो वह न तो किसी वरिष्ठ वकील या किसी बड़े चैम्बर से जुड़े थे। इस प्रकार मैं अपने आप को उनसे काफी संबंधित करता हूं, जैसा कि न्यायमूर्ति ललित ने कहा था कि वह लगभग हर उस स्तर से गुजरे हैं जिसके बारे में एक वकील सोच सकता है, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में अकेले घूमने से लेकर बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने तक।

    हालिया ई0डब्ल्यू0एस0 (EWS) जजमेंट (सीजेआई के रूप में) में उनकी असहमति (अल्पसंख्यक निर्णय के रूप में) ने संवैधानिक मापदंडों के संबंध में अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और यहां तक कि आर्थिक पिछड़ों के लिए उनके संवैधानिक दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है।

    तीन तलाक के मामले में उनका फैसला पथप्रदर्शक था जब उन्होंने अन्य बहुमत के विचारों के साथ तीन तलाक की प्रथा को पूरी तरह से संविधान का उल्लंघन बताया।

    पौक्सो (POCSO) से संबंधित एक अन्य ऐतिहासिक निर्णय में, न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था कि किसी बच्चे/बच्चों के शरीर के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से किसी बच्चे के साथ शारीरिक संपर्क से जुड़े किसी भी कार्य को "यौन हमला" माना जाएगा, जिसका उल्लेख यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012 की धारा 7 के तहत किया गया है। उसमे आगे साफ़ किया गया कि सबसे महत्वपूर्ण घटक "यौन इरादा" है और त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं है।

    सीजेआई बनने के बाद जस्टिस ललित ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और एक केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की ज़मानत याचिकाओं को सुना और जमानत प्रदान करी और सख्ती से कहा कि सभी को स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति ( फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन) का अधिकार है। सिद्दीकी कप्पन के इसी जमानत के मामले में सीजेआई ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से सख्त सवाल पूछे कि हाथरस की रेप पीड़िता/मृतका के लिए न्याय मांगना सरकार की नजर में अपराध कैसे हो सकता है?

    जस्टिस ललित ने लंबे समय से लंबित याचिकाओं और चुनौतियों को उच्चतम न्यायालय की बेंचों के समक्ष रखवाया जिनमे प्रमुख रूप से नोटबंदी, सीएए मामले और चुनावी बॉन्ड की याचिकाएं शामिल हैं।

    मामलों की लिस्टिंग और याचिकाओं के नंबरिंग प्रणाली में बदलाव के लिए सुधार और सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक पीठों की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करना भी बेहद क्रांतिकारी कदम रहे।

    अपने आदर्श के रूप में, मैं उनके साथ उन दुविधाओं से संबंधित हो सकता हूं जिनका सामना उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपने शुरुआती वर्षों के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक युवा अधिवक्ता के रूप में किया था, क्योंकि मैं भी उन असुरक्षित भ्रमों और अनिश्चितताओं से गुजरा हूं।

    जस्टिस ललित ने एक बार कहा था कि एक व्यक्ति चाहे वह अधिवक्ता हो या न्यायाधीश, उसको यह आंकलन करने की आवश्यकता है कि जहां तक बार और इसके विकास का संबंध है, उसने उसमे कितना योगदान दिया है और किस हद तक उसकी उपस्थिति दूसरे छोर पर खड़े या बैठे व्यक्ति पर एक छाप छोड़ती है चाहे वह आपका विरोध कर रहा हो या आपका समर्थन कर रहा हो।

    उनकी विदाई समारोह पर तालियों की लगातार गड़गड़ाहट भारत के सबसे उत्कृष्ट मुख्य न्यायाधीश की गरिमामय सेवानिवृत्ति की गवाही देती है।

    लेखक एडवोकेट ईलिन सारस्वत (ILIN SARASWAT) हैं। ईलीन सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं।

    ट्विटर- @iamAttorneyILIN

    (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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