हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-08-04 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (29 जुलाई, 2024 से 02 अगस्त, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

आयकर अधिनियम की धारा 148ए(डी) के तहत आदेश पारित करने से पहले करदाता द्वारा विशेष रूप से पूछे जाने पर व्यक्तिगत सुनवाई अवश्य की जानी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जब करदाता ने व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर और प्रासंगिक दस्तावेज मांगे हैं, तो आयकर, 1961 की धारा 148 ए (डी) के तहत आदेश पारित करने से पहले दोनों उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

मामले में याचिकाकर्ता और उसका भाई अलग-अलग व्यवसाय चलाते हैं, हालांकि उन्होंने एक साथ एक दुकान खरीदी है। दुकान की आयकर अधिनियम के तहत तलाशी ली गई और जब्ती की गई, जहां कुछ ढीले दस्तावेज और शीट जब्त की गईं। इसके बाद, याचिकाकर्ता को कुछ ऑडिट आपत्तियों के आधार पर धारा 148 ए (बी) के तहत नोटिस जारी किया गया।

केस टाइटल: ज्ञान प्रकाश रस्तोगी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [रिट टैक्स नंबर- 195/2024]

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धारा 90 साक्ष्य अधिनियम | केवल दस्तावेज़ की आयु उसके निष्पादन का निर्णायक सबूत नहीं, प्रथम दृष्टया साक्ष्य आवश्यक: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी दस्तावेज की उम्र मात्र उसके निष्पादन का निर्णायक सबूत नहीं है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 90 के तहत अनुमान लगाने के लिए यह साबित करने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत जरूरी है कि कोई दस्तावेज तीस साल पुराना है, हालांकि यह अनुमान खंडनीय है।

जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा, "दस्तावेज की उम्र मात्र उसके निष्पादन का निर्णायक सबूत नहीं है। धारा 90 के तहत अनुमान लगाने के लिए कम से कम प्रथम दृष्टया सबूत यह दिखाने के लिए जरूरी है कि दस्तावेज तीस साल पुराना है, हालांकि यह खंडनीय अनुमान है। इस धारा में शब्द यह संकेत दे सकता है कि न्यायालय अनुमान लगा सकता है या नहीं लगा सकता है।"

केस टाइटल: संजीदा बेगम बनाम मोहम्मद इकबाल

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वक्फ संपत्ति का दर्जा स्थायी, वक्फ बोर्ड की अनुमति के बिना मुतवल्ली पट्टे अमान्य: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस टीएस शिवगनम और जस्टिस हिरणमय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने माना कि एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ घोषित हो जाती है, तो वह अनिश्चित काल तक वक्फ ही रहती है। इसने माना कि मुतवल्ली वक्फ बोर्ड की पूर्व स्वीकृति के बिना वक्फ संपत्ति का पट्टा नहीं ले सकता।

इसलिए खंडपीठ ने माना कि संपत्ति के संबंध में कोई भी समझौता या समझ, चाहे लिखित हो या मौखिक, कानून द्वारा पूरी तरह से अनधिकृत है और शुरू से ही अमान्य है।

केस टाइटल: मेसर्स हुगली बिल्डिंग एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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पत्नी को सिर्फ इसलिए भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह शिक्षित है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

हाल ही में एक निर्णय में, जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की अध्यक्षता में इंदौर स्थित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि शिक्षित होना किसी व्यक्ति को भरण-पोषण प्राप्त करने से अयोग्य नहीं ठहराता है।

आवेदक राहुल पटेल ने नीमच, मध्य प्रदेश में पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19(4) के तहत पुनरीक्षण की मांग की।

केस टाइटल: राहुल पटेल बनाम हेमलता मालवीय

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ट्रायल कोर्ट को चेक अनादर मामलों में विवादित हैंडराइटिंग की तुलना करने का अधिकार: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट विवादित हैंडराइटिंग की तुलना कर सकता है। ऐसे मामले में किसी व्यक्ति के हैंडराइटिंग को साबित कर सकता है, जहां आरोपी ने चेक अनादर मामले में पहले ही अपने हस्ताक्षर स्वीकार कर लिए हों।

वर्तमान मामले में अभियुक्त पर परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत आरोप लगाया गया। उसने दावा किया कि आपत्तिजनक चेक पर हस्ताक्षर तो उसके थे लेकिन चेक पर लिखी सामग्री उसके द्वारा नहीं भरी गई।

केस टाइटल- टॉमी टी. जे. बनाम केरल राज्य और अन्य

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दिल्ली हाईकोर्ट ने कोचिंग सेंटर हादसे में तीन अभ्यर्थियों की मौत की CBI जांच का आदेश दिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने राजेंद्र नगर में IAS कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबने से सिविल सेवा के तीन उम्मीदवारों की मौत के मामले में सीबीआई को जांच करने का शुक्रवार को आदेश दिया।

एक्टिंग चीफ़ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेदेला की खंडपीठ ने घटना की गंभीरता को देखते हुए यह निर्देश पारित किया कि इसमें जनसेवकों में भ्रष्टाचार हो सकता है। यह घटनाक्रम तीन उम्मीदवारों की मौत की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सामने आया है।

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ट्रायल कोर्ट अभियोजन पक्ष के दावे पर CrPC की धारा 311 के तहत गवाह को वापस नहीं बुला सकता कि गवाही दबाव में दी गई थी: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि CrPC की धारा 311 के तहत गवाहों को वापस बुलाने की शक्ति का नियमित रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता है, केवल इस आरोप पर कि गवाह की प्रारंभिक गवाही दबाव में की गई थी।

जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल ने कहा कि जब गवाहों ने पुलिस या अदालत को कोई शिकायत नहीं की है और यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करते समय, गवाह किसी भी धमकी, दबाव या जबरदस्ती के तहत थे, तो ट्रायल कोर्ट की ओर से गवाहों को आगे के साक्ष्य के लिए वापस बुलाना उचित नहीं है।

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अनुच्छेद 227 के तहत रिट याचिका म्यूटेशन कार्यवाही के खिलाफ सुनवाई योग्य नहीं: उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत एक रिट याचिका म्यूटेशन कार्यवाही के खिलाफ सुनवाई योग्य नहीं होगी। न्यायालय ने तर्क दिया कि म्यूटेशन कार्यवाही अंतिम नहीं है और संपत्ति पर कोई शीर्षक प्रदान नहीं करती है, लेकिन वित्तीय उद्देश्यों के लिए है।

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत वसीयत के आधार पर राजस्व प्राधिकरण द्वारा किए गए म्यूटेशन के खिलाफ अपने बहाली आवेदन की अस्वीकृति से व्यथित था।

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शराब की दुकान का ट्रांसफर अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत व्यापार के अधिकार का उल्लंघन नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि शराब की दुकान के ट्रांसफर के लिए राज्य का निर्देश संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत दुकान मालिक के व्यापार के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि शराब की बिक्री और खपत मौलिक अधिकार नहीं बल्कि विशेषाधिकार है, जिसे राज्य द्वारा विनियमित किया जाता है।

हिमालय ट्रेडर्स, साझेदारी फर्म ने शुरू में हबीबगंज पाठक में लाइसेंस प्राप्त मिश्रित शराब की दुकान संचालित की। निर्देशों का पालन करते हुए दुकान को अस्थायी रूप से थिंक गैस पेट्रोल पंप के सामने एक स्थान पर ले जाया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता को दुकान को उसके वर्तमान स्थान से लगभग 6 किलोमीटर दूर करोल रोड पर ट्रांसफर करने का आदेश मिला।

केस टाइटल- हिमालय ट्रेडर्स (एक साझेदारी फर्म) बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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कर्नाटक अनुसूचित जाति/जनजाति (कुछ भूमि के हस्तांतरण पर रोक) अधिनियम के तहत बैंक अनुदानकर्ता की भूमि को GPA धारक द्वारा लोन चूक के लिए कुर्क नहीं कर सकता: हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्टने माना कि कोई बैंक कर्नाटक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (कुछ भूमि के हस्तांतरण पर रोक) अधिनियम के तहत भूमि अनुदानकर्ता के खिलाफ संपत्ति की कुर्की के लिए डिक्री लागू नहीं कर सकता, भूमि के लिए सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी रखने वाली सहकारी समिति द्वारा किए गए ऋण चूक के लिए।

जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने कहा, "जब अनुदानकर्ता को लोन का कोई लाभ नहीं मिला है तो बैंक और अनुदानकर्ता के बीच किसी तरह के अनुबंध का सवाल ही नहीं उठता सोसायटी के पास संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होने के कारण उसने बैंक को संपत्ति गिरवी रख दी है। बैंक ने यह जानते हुए भी कि सोसायटी मालिक नहीं है और उसके पास कोई अधिकार शीर्षक या हित नहीं है, उक्त बंधक को स्वीकार कर लिया है।"

केस टाइटल- बैंगलोर, बैंगलोर ग्रामीण और रामनगर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक लिमिटेड और सहायक आयुक्त और अन्य

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तलाक लेने का अधिकार व्यक्ति का निजी अधिकार, बेटे की मौत के बाद परिवार कार्यवाही नहीं कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक लेने का अधिकार किसी व्यक्ति का निजी अधिकार है। इसे किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसके परिवार के सदस्यों तक नहीं बढ़ाया जा सकता।

जस्टिस मंगेश पाटिल और जस्टिस शैलेश ब्रह्मे की खंडपीठ ने पुणे के व्यक्ति की मां और भाइयों द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिन्होंने COVID-19 प्रकोप के दौरान उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी के खिलाफ आपसी सहमति से तलाक की कार्यवाही जारी रखने की मांग की थी।

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Krishna Janmabhumi Case | मुकदमे में इसका 'धार्मिक चरित्र' निर्धारित किया जाएगा; सरकार की 1920 की अधिसूचना औरंगजेब से पहले के मंदिर के अस्तित्व का संकेत देती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा स्थित शाही ईदगाह (मस्जिद) समिति द्वारा दायर आदेश 7 नियम 11 सीपीसी याचिका खारिज कर दी, जिसमें मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में हिंदू उपासकों और देवता श्री कृष्ण विराजमान द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता को चुनौती दी गई।

जस्टिस मयंक कुमार जैन की पीठ ने 18 मुकदमों को, जिनमें मुख्य रूप से 13.37 एकड़ के विवादित परिसर से मस्जिद को हटाने की मांग की गई, स्वीकार्य पाया, जिससे उनकी योग्यता के आधार पर उनकी सुनवाई का मार्ग प्रशस्त हुआ।

केस टाइटल- भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशव देव खेवट नंबर 255 और 7 अन्य बनाम यू.पी. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 3 अन्य और संबंधित मामले 2024 लाइव लॉ (एबी) 477

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HMA के तहत वयस्क बच्चे को आर्थिक रूप से स्वतंत्र न होने तक भरण-पोषण का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act (MHA)) की धारा 26 के तहत बच्चा तब तक भरण-पोषण का हकदार है, जब तक वह अपनी शिक्षा प्राप्त कर रहा है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो जाता।

जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस अमित बंसल की खंडपीठ ने कहा, "हमारे विचार से बच्चा, जो अपनी शिक्षा प्राप्त कर रहा है, वह वयस्क होने के बाद भी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 के तहत भरण-पोषण का हकदार होगा, जब तक वह अपनी शिक्षा प्राप्त कर रहा है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो जाता।"

केस टाइटल: ए बनाम बी

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आपराधिक मामले में पति की कथित संलिप्तता ओसीआई पंजीकरण के लिए पत्नी को सुरक्षा अनुमति से इनकार का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि किसी आरोपी के साथ केवल पारिवारिक संबंध, कथित अपराध में प्रत्यक्ष संलिप्तता के साक्ष्य के बिना, किसी पति/पत्नी को ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) पंजीकरण के लिए सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने का कोई आधार नहीं है।

जस्टिस संजीव नरूला ने कहा, "किसी आरोपी के साथ केवल जुड़ाव या पारिवारिक संबंध, कथित अपराधों में प्रत्यक्ष संलिप्तता या मिलीभगत के ठोस साक्ष्य के बिना, नागरिकता अधिनियम की धारा 7ए(1)(डी) के तहत सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने का आधार नहीं बनता है और न ही यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मनमानी और तर्कसंगतता की कसौटी पर खरा उतरता है।"

केस टाइटलः अनास्तासिया पिवत्सेवा और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया और अन्य

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कृष्ण जन्मभूमि विवाद: हिंदू उपासकों और देवता के मुकदमे सुनवाई योग्य- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित मुकदमों के लिए संभावित निहितार्थों वाले महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट ने आज शाही ईदगाह मस्जिद की याचिका को आदेश 7 नियम 11 CPC के तहत खारिज कर दिया। इस याचिका में देवता और हिंदू उपासकों द्वारा दायर 18 मुकदमों की विचारणीयता को चुनौती दी गई।

इस निर्णय के साथ जस्टिस मयंक कुमार जैन की पीठ ने सभी 18 मुकदमों को सुनवाई योग्य पाया, जिससे उनकी योग्यता के आधार पर उनकी सुनवाई का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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धारा 74 साक्ष्य अधिनियम | रजिस्टर्ड सेल डीड की प्रमाणित प्रति सार्वजनिक दस्तावेज, इसे द्वितीयक साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने कहा कि रजिस्ट्रार कार्यालय में पब्लिक रिकॉर्ड के रूप में रखी गई रजिस्टर्ड सेल डीड की प्रमाणित प्रति को सार्वजनिक दस्तावेज माना जाएगा तथा साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 74 के तहत द्वितीयक साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने कहा, “पंजीकृत दस्तावेज की प्रमाणित प्रति सार्वजनिक दस्तावेज की प्रमाणित प्रति होती है। ऐसा कहने का आधार यह है कि जब कोई सेल डीड पंजीकरण प्राधिकारी के समक्ष पंजीकृत होता है, तो पंजीकरण कार्यालय में रखी गई पुस्तक में आवश्यक प्रविष्टियां रखी जाती हैं, और इस प्रकार, यह एक निजी दस्तावेज के रूप में रखा गया रिकॉर्ड होता है, और इसलिए, यह एक सार्वजनिक दस्तावेज होता है।”

केस डिटेल: राम बृक्ष सिंह एवं अन्य बनाम रामाश्रय सिंह एवं अन्य, सिविल विविध क्षेत्राधिकार संख्या 1824/2018

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जिला विद्यालय निरीक्षक को किसी भी संस्थान के प्रबंधन की ओर से जारी वरिष्ठता सूची में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम या अन्य किसी भी विधिक प्रावधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो जिला विद्यालय निरीक्षक को किसी भी संस्थान की प्रबंध समिति द्वारा जारी वरिष्ठता सूची में हस्तक्षेप करने का अधिकार देता हो।

जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने कहा, "जिला विद्यालय निरीक्षक को उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम या किसी अन्य विधिक प्रावधान के तहत कॉलेज की प्रबंध समिति द्वारा जारी वरिष्ठता सूची में हस्तक्षेप करने या प्रबंध समिति को नई वरिष्ठता सूची जारी करने और जिला विद्यालय निरीक्षक के निर्देशानुसार जारी की जाने वाली संशोधित वरिष्ठता सूची के अनुसार कार्यवाहक प्रधानाचार्य नियुक्त करने का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है।"

केस टाइटल: सी/एम कुंवर रुकुम सिंह वैदिक इंटर कॉलेज और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य [रिट - ए नंबर - 7795/2024]

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UIDAI को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में गुमशुदा व्यक्ति के बारे में आधार डेटा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को असाधारण परिस्थितियों से जुड़ी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में गुमशुदा व्यक्ति के बारे में आधार डेटा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जा सकता है, भले ही उसे पहले सुनवाई का मौका न मिले।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में न्यायालय को तत्काल कार्रवाई करनी होती है, क्योंकि गुमशुदा व्यक्ति खतरे में हो सकता है।

केस टाइटल: वंदना बनाम राज्य एसएचओ पीएस अमर कॉलोनी और अन्य के माध्यम से।

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महाराष्ट्र सहकारी सोसायटी अधिनियम की धारा 91 के तहत संपत्ति वसूली विवादों में सहकारी न्यायालय को अधिकार क्षेत्र प्राप्त: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि सहकारी न्यायालय को महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम, 1960 (एमसीएस अधिनियम) की धारा 91 के तहत सहकारी समितियों द्वारा संपत्ति और मध्यवर्ती लाभ की वसूली की मांग करने वाले विवादों का निपटारा करने का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि ऐसे विवाद 'सोसायटी के प्रबंधन' की श्रेणी में आते हैं और इसलिए धारा 91 के दायरे में आते हैं।

एमसीएस अधिनियम की धारा 91 में उन विवादों के प्रकारों का प्रावधान है जिनका निपटारा सहकारी न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। धारा 91 के प्रावधान के अनुसार औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2(के) में परिभाषित औद्योगिक विवाद (रोजगार की शर्तों से जुड़ा नियोक्ता और कर्मचारी के बीच विवाद) को धारा 91 के दायरे से बाहर रखा गया है।

केस टाइटल: हेमप्रभा को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम किशोर सी. वाघेला एवं अन्य (रिट याचिका संख्या 8912/2019)

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समान नागरिक संहिता अभी तक लागू नहीं हुई: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लिव-इन कपल के लिए संबंध रजिस्टर्ड करने का निर्देश हटाया

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने समान नागरिक संहिता, 2024 (Uniform Civil Code) के तहत लिव-इन जोड़ों के लिए अनिवार्य रजिस्ट्रेशन के बारे में अपनी पिछली टिप्पणियों को हटा दिया, क्योंकि राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि अधिनियम अभी तक अलग अधिसूचना द्वारा लागू नहीं हुआ है।

इससे पहले, 18.07.2024 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले अंतर-धार्मिक जोड़े को संरक्षण दिया था, जिसमें कहा गया कि उन्हें 48 घंटे के भीतर समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड, 2024 के तहत अपने रिश्ते को रजिस्टर्ड करना होगा।

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अवैध तलाक-ए-सुन्नत को तीन तलाक के रूप में दंडनीय नहीं माना जाएगा: केरल हाइकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने फैसले में कहा कि यदि इरादा तत्काल और अपरिवर्तनीय तलाक देने का नहीं है तो इसे तलाक-उल-बिद्दत नहीं माना जा सकता। याचिकाकर्ता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष अपने खिलाफ कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी।

प्रतिवादी ने उस पर तत्काल और अपरिवर्तनीय तलाक देकर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया।

केस टाइटल: साजिद मुहम्मदकुट्टी बनाम केरल राज्य और अन्य

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कानून वयस्क हो चुके बालक को पिता से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार नहीं देता: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि वयस्क हो चुके बालक घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, सीआरपीसी की धारा 125 और हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20 (3) के प्रावधानों के अनुसार अपने पिता से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकते।

जस्टिस पी.जी. अजितकुमार ने कहा, "इस प्रकार, उक्त प्रावधानों में से कोई भी प्रावधान वयस्क हो चुके बालक को अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार नहीं देता।"

केस का टाइटल- बी प्रकाश बनाम लजीता

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जब तब 'असाधारण परिस्थितियां' मौजूद न हों, बलात्कार की एफआईआर समझौते के आधार पर 'रूटीन तरीके' से रद्द नहीं की जा सकतीः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि बलात्कार के मामलों में 'रूटीन तरीके' से समझौता तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक कि 'असाधारण परिस्थितियां' न बन जाएं। जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की एकल पीठ ने माना कि 20 वर्षीय पीड़िता द्वारा दर्ज बलात्कार के मामले को समझौते के बावजूद खारिज नहीं किया जा सकता, भले ही सहमति पर पहुंचने से पहले कोई दबाव या भय न हो।

पीठ ने कहा, “…अभियोक्ता आवेदक के खिलाफ़ एफआईआर पर मुकदमा नहीं चलाना चाहती, लेकिन अपराध बलात्कार से संबंधित है जो गंभीर और जघन्य प्रकृति का है और समाज को प्रभावित करता है। तदनुसार, किसी भी असाधारण परिस्थिति के अभाव में, समझौते के बावजूद इस तरह के अपराधों को खारिज करना उचित नहीं है…”।

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किसी भी आरोपी द्वारा यौन कृत्य करना गैंग रेप के अपराध में शेष आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने हाल ही में माना कि गैंग रेप के मामले में किसी को आरोपी बनाने के लिए यौन कृत्य करना अनिवार्य नहीं है, बल्कि इसके बजाय व्यक्ति (आरोपियों में से) द्वारा यौन कृत्य करना भी अन्य (समूह में) को गैंग रेप के लिए दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है।

एकल जज जस्टिस गोविंद सनप ने महिला के साथ गैंग रेप के लिए दोषी ठहराए गए चार लोगों द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई करते हुए कहा कि केवल दो आरोपियों ने पीड़िता के साथ बलात्कार किया, जबकि अन्य दो ने उसके दोस्त पर धावा बोला और उसे बचाने नहीं दिया।

केस टाइटल- संदीप तलांडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक अपील 618/2018)

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धारा 72 यूपी आबकारी अधिनियम | न्यायिक मजिस्ट्रेट डीएम के समक्ष जब्ती कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान वाहन जारी नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि न्यायिक मजिस्ट्रेट को उत्तर प्रदेश आबकारी अधिनियम, 1910 की धारा 72 के तहत जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष जब्ती कार्यवाही के दौरान वाहन को छोड़ने का कोई अधिकार नहीं है।

धारा 72 में ऐसी चीजें शामिल हैं जो जब्ती के लिए उत्तरदायी हैं, जिसमें कोई भी मादक पदार्थ शामिल है जिसके संबंध में कोई अपराध किया गया है। धारा 72(1)(ई) में प्रावधान है कि कोई भी वाहन जिसमें ऐसा मादक पदार्थ ले जाया जा रहा है, जब्त किया जा सकता है। धारा 72 कलेक्टर को ऐसे वाहन के संबंध में जब्ती कार्यवाही करने और मालिक या उस व्यक्ति को लिखित रूप से सूचित करने का अधिकार देती है जिससे ऐसा वाहन जब्त किया गया है।

केस टाइटल: प्रमित बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [अनुच्छेद 227 संख्या- 6929/2024 के अंतर्गत मामले]

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लंबित आपराधिक मामला शस्त्र लाइसेंस रद्द करने का एकमात्र आधार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि लाइसेंसिंग प्राधिकरण को लगता है कि कोई व्यक्ति आपराधिक गतिविधि में शामिल है और सार्वजनिक सुरक्षा और सार्वजनिक शांति के लिए संभावित खतरा है तो वह ऐसे व्यक्ति का शस्त्र लाइसेंस रद्द कर सकता है।

मजीद खान ने 2018 और 2019 में उनके खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज होने के बाद उनके शस्त्र लाइसेंस को रद्द करने को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की। जिला मजिस्ट्रेट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता का शस्त्र लाइसेंस जारी रखना सार्वजनिक शांति और सुरक्षा के हित में नहीं होगा। आयुक्त के समक्ष याचिकाकर्ता की अपील खारिज कर दी गई, जिसके कारण उन्हें दोनों आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती देनी पड़ी।

केस टाइटल- माजिद खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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बाल विवाह निषेध अधिनियम मुसलमानों पर भी लागू होगा: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (Prohibition Of Child Marriage Act) मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 का स्थान लेगा। न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक भारतीय नागरिक, चाहे उसका धर्म और स्थान कुछ भी हो, बाल विवाह निषेध कानून का पालन करने के लिए बाध्य है।

जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने कहा कि देश के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की प्राथमिक स्थिति धर्म से अधिक महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने कहा कि नागरिकता प्राथमिक है और धर्म गौण है। इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि सभी नागरिक, चाहे वे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी या किसी अन्य धर्म के हों, अधिनियम से बंधे हैं।

केस टाइटल: मोइदुट्टी मुसलियार बनाम सब इंस्पेक्टर वडक्केनचेरी पुलिस स्टेशन

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