कानून वयस्क हो चुके बालक को पिता से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार नहीं देता: केरल हाईकोर्ट

Amir Ahmad

31 July 2024 7:25 AM GMT

  • कानून वयस्क हो चुके बालक को पिता से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार नहीं देता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि वयस्क हो चुके बालक घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, सीआरपीसी की धारा 125 और हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20 (3) के प्रावधानों के अनुसार अपने पिता से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकते।

    जस्टिस पी.जी. अजितकुमार ने कहा,

    "इस प्रकार, उक्त प्रावधानों में से कोई भी प्रावधान वयस्क हो चुके बालक को अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार नहीं देता।"

    पुनर्विचार याचिकाकर्ता पति और पत्नी हैं तथा दो बेटे प्रतिवादी हैं। वर्ष 2014 में ट्रायल कोर्ट ने डीवी एक्ट की धारा 20 (1) (डी) के तहत 8 और 12 वर्ष की आयु के बेटों को भरण-पोषण राशि का भुगतान करने का आदेश दिया था। धारा 20 पीड़ित व्यक्ति और उसके बच्चों को आर्थिक राहत प्रदान करती है।

    अपील में अपीलीय न्यायालय ने पाया कि वयस्क होने के बाद भी बेटों को भरण-पोषण के भुगतान पर कोई प्रतिबंध नहीं है। याचिकाकर्ता अपीलीय न्यायालय के इस आदेश से व्यथित है कि उसके बेटे वयस्क होने के बाद भी भरण-पोषण पाने के हकदार हैं।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके बेटे अब 18 और 22 वर्ष के हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि उनके दोनों बेटे वयस्क हो चुके हैं और भरण-पोषण के हकदार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि डीवी एक्ट, सीआरपीसी की धारा 125 और हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20(3) के प्रावधानों की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जा सकती कि वयस्क होने के बाद भी लड़के को भरण-पोषण का भुगतान किया जा सके।

    डीवी एक्ट (DV Act) की धारा 2 (बी) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि बच्चे का मतलब 18 वर्ष से कम आयु है। न्यायालय ने कहा कि डीवी एक्ट की धारा 20 (1) (डी) के तहत नाबालिग बच्चे को मासिक भरण-पोषण का आदेश दिया जा सकता है। प्रावधान में कहा गया कि डीवी एक्ट के तहत भरण-पोषण के आदेश या तो सीआरपीसी की धारा 125 या भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20 (3) के तहत दिए जा सकते हैं।

    इसलिए न्यायालय ने कहा कि वयस्क होने पर बच्चा न रहने वाला व्यक्ति डीवी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार भरण-पोषण का दावा करने का हकदार नहीं है।

    न्यायालय ने कहा,

    इसलिए अपीलीय न्यायालय ने यह अवलोकन करके गलती की कि पीडब्ल्यूडीवी एक्ट की धारा 20 के तहत बच्चा वयस्क होने के बाद भी भरण-पोषण का दावा करने का हकदार है। ऐसा करते समय अपीलीय न्यायालय ने पीडब्ल्यूडीवी एक्ट की धारा 2 (बी) में बच्चे की परिभाषा पर ध्यान नहीं दिया। जब धारा 20(1)(डी) केवल बच्चों को भरण-पोषण का दावा करने में सक्षम बनाती है तो उक्त प्रावधान निश्चित रूप से पीडब्ल्यूडीवी एक्ट की धारा 2(बी) में निहित परिभाषा द्वारा नियंत्रित होता है।

    न्यायालय ने कहा कि नाबालिग बच्चा, चाहे वह लड़का हो या लड़की, सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार भरण-पोषण का हकदार है।

    इसने कहा कि चूंकि पक्षकार हिंदू हैं, इसलिए बच्चे भी हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20 के अनुसार भरण-पोषण के हकदार हैं। हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20 (3) में प्रावधान है कि वयस्क अविवाहित बेटी, जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, वह भरण-पोषण की हकदार है।

    इस प्रकार न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका स्वीकार की और कहा कि याचिकाकर्ता का दायित्व केवल अपने बेटों को वयस्क होने तक भरण-पोषण का भुगतान करना था।

    केस का टाइटल- बी प्रकाश बनाम लजीता

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