सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2020-11-09 05:39 GMT

सुप्रीम कोर्ट में कैसा रहा पिछला सप्ताह। आइए जानते हैं 2 नवंबर से 6 नवंबर तक सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

घर की चारदीवारी के भीतर अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति को डराना या अपमान SC-ST एक्ट के तहत अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि किसी इमारत की चारदीवारी के भीतर अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति का अपमान या डराना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं है। इस मामले में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि अभियुक्त ने अवैध रूप से पीड़ित की इमारत की चारदीवारी में प्रवेश किया और गालियां देना शुरू कर दिया और जान से मारने की धमकी दी और जातिगत टिप्पणियों/ अपशब्दों आदि का इस्तेमाल किया।

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"मीडिया आपको जानकारी देता है? अपने स्रोत का खुलासा करें"; सुप्रीम कोर्ट ने चीन एवं भारत के बीच एमओयू के खिलाफ जनहित याचिका की प्रति केंद्र सरकार को सौंपने का याचिकाकर्ता को दिया निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, गुजरात और महाराष्ट्र सरकार एवं अडानी ग्रुप ऑफ कंपनीज तथा चीनी समकक्षों के बीच हुए मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) को समाप्त करने के निर्देश देने संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाककर्ता को शुक्रवार को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार को याचिका की एक प्रति उपलब्ध कराये। मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिका में कही गयी इस बात का संज्ञान लिया कि याचिकाकर्ता की जानकारी का स्रोत मीडिया है। परिणामस्वरूप, बेंच ने याचिकाकर्ता को कोर्ट के समक्ष अपने स्रोत का खुलासा करने का निर्देश दिया।

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"हमें आयोग से कोई सरोकार नहीं सुनिश्चित करें कि अब शहर में स्मॉग न हो" : सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के मामले में केंद्र से कहा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली में पराली जलाने और परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण के मुद्दे के बारे में याचिका पर सुनवाई की। एसजी तुषार मेहता ने शुरू किया, "जहां तक ​​अध्यादेश ("राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन") का संबंध है, हमने आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की है। आयोग आज ही कार्य करना शुरू कर देगा।" "हमें इससे कोई सरोकार नहीं है। कई आयोग और दिमाग काम कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि आप यह सुनिश्चित करें कि अब शहर में स्मॉग न हो", सीजेआई एस ए बोबडे ने कहा और दीवाली की छुट्टी के बाद इस मामले की सुनवाई की इच्छा जताई।

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सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को पत्र लिखने पर महाराष्ट्र विधानसभा सचिव को अवमानना नोटिस जारी किया, रिपब्लिक टीवी एंकर की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

एक असाधारण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव को रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक, अर्नब गोस्वामी को पत्र भेजकर विधानसभा द्वारा जारी विशेषाधिकार हनन के नोटिस पर अदालत से संपर्क करने के लिए कथित रूप से डराने के लिए अवमानना नोटिस किया गया। शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया कि गोस्वामी को उनके खिलाफ विधानसभा द्वारा जारी विशेषाधिकार नोटिस के अनुपालन में गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम बापू केस पर हार्पर कॉलिन्स की किताब 'गनिंग फॉर द गॉडमैन' के प्रकाशन की अनुमति देने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के उस अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें हार्पर कॉलिन्स की किताब 'गनिंग फॉर द गॉडमैन' के प्रकाशन की अनुमति दी गई थी, जो आसाराम बापू के खिलाफ आपराधिक मामले पर आधारित है। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने संचिता गुप्ता द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसे नाबालिग से बलात्कार से संबंधित एक मामले में स्वयंभू धर्मगुरु के सहयोगी के रूप में दोषी ठहराया गया था। इस मामले में उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। आगे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

SARFAESI कार्यवाही के खिलाफ रोक के आदेश आम तौर पर सुरक्षित ऋणदाता को सुने बिना पारित नहीं किया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि SARFAESI की कार्यवाही को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं में रोक के आदेशों को आम तौर पर सुरक्षित ऋणदाता को सुने बिना पारित नहीं किया जाना चाहिए। अंतरिम आदेश सार्वजनिक धन की शीघ्र वसूली के उद्देश्य को पराजित करते हैं, पीठ, जिसमें जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी शामिल हैं, ने कहा कि इसलिए, हाईकोर्ट को बेहद सावधानी बरतनी चाहिए और इस तरह के मामलों में रोक लगाने के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।

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पेंशन पर रोक के खिलाफ रिट याचिका के लिए कार्यवाही का एक हिस्सा वहां उत्पन्न हुआ जहां व्यक्ति पेंशन प्राप्त कर रहा था : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुरुवार को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले के अनुसार, एक सेवानिवृत्त कर्मचारी उस स्थान पर पेंशन पर रोक के खिलाफ रिट याचिका दायर कर सकता है, जहां वह निवास कर रहा है और उस उच्च न्यायालय जाने की आवश्यकता नहीं है जहां पेंशन प्राधिकरण स्थित है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली 3 न्यायाधीशों की पीठ ने रिट दाखिल करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 (2) के तहत कार्रवाई का कारण उस स्थान को बताया, जहां पेंशनर निवास कर रहा है और पेंशन प्राप्त कर रहा है।

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[SC/ST कानून ] सिर्फ अपमान करना कोई अपराध नहीं, जब तक यह संबंधित पीड़ित के SC/ST से होने पर आधारित न हो : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध केवल इस तथ्य पर स्थापित नहीं होता कि सूचनादाता अनुसूचित जाति का सदस्य है, जब तक कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपमानित करने का इस कारण से कोई इरादा नहीं है कि पीड़ित ऐसी जाति का है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली पीठ ने इस प्रकार एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3 (1) (x) और 3 (1) (e) के तहत आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आरोप पत्र के एक हिस्से को खारिज करते हुए कहा। उच्च न्यायालय ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने से इनकार कर दिया था।

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शादी के लिए धर्म बदलना अस्वीकार्य, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करने को अस्वीकार्य करार देते हुए अलग-अलग धर्म से संबंध रखने वाले एक विवाहित जोड़े को पुलिस संरक्षण न देकर एक ''गलत मिसाल'' कायम की है। यह याचिका एडवोकेट अलदानिश रीन ने दायर की है। वह इस तथ्य से व्यथित हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उक्त आदेश देते समय न केवल गैर-धर्म में विवाह करने वाले कपल को उनके परिवारों की घृणा के सहारे छोड़ दिया है,बल्कि एक गलत मिसाल भी कायम की है कि ऐसे पार्टनर में से किसी एक द्वारा धर्म परिवर्तन करके अंतर-धार्मिक विवाह नहीं किया जा सकता है।

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"अंतरिम आदेशों से परेशानी " : RBI ने सुप्रीम कोर्ट से NPA घोषित करने पर लगी रोक हटाने का आग्रह किया

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वह सुप्रीम कोर्टद्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को उठाने की मांग कर रहा है जिसमें उन खातों को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) घोषित होने से बचाया गया है, जिन्हें 31 अगस्त तक NPA के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था। आरबीआई के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वीवी गिरि ने अदालत से कहा कि शीर्ष अदालत को सुनवाई की अगली तारीख पर आरबीआई का पक्ष सुनना चाहिए।

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[यतिन ओझा अवमानना ] किसी वरिष्ठ अधिवक्ता का गाउन वापस लेना मौत की सजा के बराबर, लेकिन ये सब दोहराया नहीं जाना चाहिए : जस्टिस एस के कौल

यह आश्वासन देते हुए कि उनकी धैर्यपूर्वक सुनवाई की जाएगी और अदालत उनकी पीड़ा को खत्म करने की कोशिश करेगी, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अधिवक्ता यतिन ओझा की अवमानना ​​के मामले और उनकी वरिष्ठता को वापस लेने के मामले को स्थगित कर दिया और बाद की तारीख तक के लिए टाल दिया। न्यायमूर्ति एसके कौल ने शुरू में कहा, "मैंने रिकॉर्ड नहीं देखा। उनके आचरण पर एक से अधिक मामलों में बहुत सारे प्रश्न चिह्न हैं। हां, मैं मानता हूं कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता से गाउन वापस लेना लगभग एक मौत की सजा है।"

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सीपीसी की धारा 114 के तहत पुनर्विचार के अधिकार का इस्तेमाल अंतर्निहित अपीलीय शक्ति के तौर पर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के नियम - 1 के आदेश 47 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 114 के तहत पुनर्विचार के अधिकार को अंतर्निहित शक्ति या अपीलीय शक्ति के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस मामले में हाईकोर्ट ने उसके फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली एक याचिका मंजूर कर ली थी, जिसमें विवादित सम्पत्ति के कब्जे के बारे में कुछ टिप्पणियां की गयी थीं। हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को यह कहते हुए मंजूर कर लिया था कि विवादित सम्पत्ति के कब्जे का मुद्दा न तो ट्रायल कोर्ट, और न ही प्रथम अपीलीय अदालत के समक्ष उठाया गया था। यहां तक कि ट्रायल कोर्ट ने सम्पत्ति के कब्जे के संबंध में कोई इश्यू भी फ्रेम नहीं किया था।

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जजों के वेतन में संशोधन: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगर राज्य सरकारे वेतन आयोग की रिपोर्ट का जवाब नहीं देंगी तो मुख्य सचिवों को किया जाएगा समन

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक आज्ञासूचक आदेश पारित किया कि राज्य सरकारों को दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों पर को पांच सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने आदेश दिया कि यदि राज्य उक्त समय के भीतर जवाब दाखिल नहीं करते हैं, तो मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अधिसूचित तिथि पर अदालत में पेश होना होगा। पीठ ने इस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त किया कि 20 राज्य फरवरी 2020 में वेतन आयोग द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट का जवाब देने में विफल रहे हैं, जिसने देशभर के न्यायिक अधिकारियों को वेतन, पेंशन और भत्तों में बढ़ोतरी की सिफारिश की थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मामलों में गुजारा भत्ता के भुगतान पर दिशानिर्देश जारी किए

एक महत्वपूर्ण, निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मामलों में गुजारा भत्ता के भुगतान पर दिशानिर्देश जारी किए हैं। जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि सभी मामलों में गुजारा भत्ता आवेदन दाखिल करने की तारीख से ही अवार्ड किया जाएगा। "गुजारा भत्ता के आदेशों के प्रवर्तन / निष्पादन के लिए, यह निर्देशित किया जाता है कि गुजारा भत्ता का एक आदेश या डिक्री हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 की धारा 28 ए, डीवी अधिनियम की धारा 20 (6) और सीआरपीसी की धारा 128 के तहत लागू किया जा सकता है, जैसा कि लागू हो सकता है। सीपीसी के प्रावधानों, विशेष रूप से धारा 51, 55, 58, 60 के साथ आदेश XXI " के पढ़ने के अनुसार, सिविल कोर्ट के एक मनी डिक्री के रूप में गुजारे भत्ते के आदेश को लागू किया जा सकता है।"

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तमिलनाडु वक्फ बोर्ड का अधिक्रमण अवैध : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड का अधिक्रमण (Supersession) अवैध था। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय को बरकरार रखा जिसमें राज्य द्वारा दायर की गई अपील को खारिज करते हुए ये आयोजित किया गया था। सरकार ने इस आधार पर अधिक्रमण आदेश पारित किया था कि संसद सदस्य के पद से बोर्ड में केवल 10 सदस्य होते हैं और हटने के बाद प्रासंगिक समय पर निर्वाचित सदस्यों की तुलना में नामित सदस्यों की संख्या अधिक होने के अलावा राज्य के पास बोर्ड का स्थान लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।यह कहा गया था कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं को केवल नामित सदस्य माना जा सकता है। इसलिए, निर्वाचित सदस्य नामित सदस्यों की तुलना में कम हैं और बोर्ड वक्फ अधिनियम, 1995 के अनुसार अपने कार्यों को निष्पादित करने में असमर्थ है, जो अधिक्रमण आदेश में कहा गया है। इस आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी। हालांकि एकल पीठ ने रिट याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन डिवीजन बेंच ने रिट अपील की अनुमति दी और यह स्वीकार किया कि अधिक्रमण आदेश टिकने वाला नहीं है।

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सीए परीक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने आईसीएआई को उम्मीदवारों द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए उठाए गए कदमों पर सूचित करने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) को निर्देश दिया कि वह सीए परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों द्वारा उठाए गए सवालों और चिंताओं के संबंध में उठाए गए कदमों और सुधारात्मक उपायों के बारे में वेबसाइट पर सूचित करें। कुछ सीए उम्मीदवारों द्वारा दायर याचिका के अनुसार, ICAI ने यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं कि नवंबर में होने वाली परीक्षाएं, COVID-19 महामारी के कारण जारी किए गए एमएचए दिशानिर्देशों के अनुसार आयोजित की जाए।

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आरोपी के शिनाख्त परेड से इनकार करना ही दोष की खोज का विशुद्ध रुप से आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी को बरी किया

सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 12 साल से अधिक कैद काट चुके हत्या के आरोपी को बरी करते हुए कहा है कि आरोपी के शिनाख्त परेड से इनकार करना ही दोष की खोज का विशुद्ध रुप से आधार नहीं हो सकता है। दरअसल राजेश उर्फ ​​सरकार और अजय हुड्डा को ट्रायल कोर्ट ने भारत दंड संहिता की धारा 34 के साथ धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन पर एक कानून के छात्र की हत्या का आरोप था और उन्होंने उस पर गोलियां चलाई थीं।

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[ 2.5 साल की भतीजी से रेप और हत्या ] ''जान लेने के इरादे से चोट नहीं पहुंचाई": सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की मौत की सजा उम्रकैद में बदली

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ढाई साल की भतीजी के बलात्कार और हत्या के आरोपी व्यक्ति की मौत की सजा को कम कर दिया है। उसने जानबूझकर पीड़ित के जीवन को बुझाने के इरादे से कोई चोट नहीं पहुंचाई। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ​​की पीठ ने आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध और धारा 376A के तहत दंडनीय अपराध के लिए 25 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाते हुए मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करते हुए कहा।

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सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा, दलीलों की गैर-मौजूदगी से दीवानी मामले में पार्टी को मदद नहीं मिल सकती, भले ही साक्ष्य कितने ही क्यों न हों?

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि दीवानी मामलों में दलीलें यदि मौजूद न हों, तो पार्टी को कोई मदद नहीं मिल सकती, भले ही साक्ष्य कितने क्यों न हो? इस मामले में, वादी ने अपने पिता द्वारा निष्पादित किये गये उस एडॉप्शन डीड पर सवाल खड़े किये थे, जो रिस्पोंडेट के पक्ष में किया गया था। यह दलील दी गयी थी कि एडॉप्शन आवश्यक औपचारिकताओँ को पूरी करके नहीं किया गया था और एडॉप्शन का दावा असत्य एवं गलत है। जब गवाही बंद कर दी गयी थी, वादी ने राजपूत रेजीमेंट सेंटर फतेहगढ़ से रमेश चंद्र सिंह की 2001 की छुट्टी का रिकॉर्ड तलब करने के लिए एक अर्जी लगायी थी। अर्जी में कहा गया था कि बचाव पक्ष के पिता रमेश चंद्र सिंह एडॉप्शन समारोह में उपस्थित नहीं थे और उस दिन वह वह ड्यूटी पर तैनात थे।

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"योग्यता की उपयुक्तता का निर्धारण नियोक्ता की जिम्मेदारी": सुप्रीम कोर्ट ने ओवर क्वालिफाइड कैंड‌िडेट को चपरासी की नौकरी के लिए अयोग्य ठहराया

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब नेशनल बैंक द्वारा एक उम्मीदवार की उम्मीदवारी को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा है। पंजाब नेशनल बैंक ने उम्‍मीदवार को चपरासी के पद के लिए ओवर क्वालिफाइड बताते हुए उसे पद के लिए अयोग्य ठहराया था। जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ ने उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उम्मीदवार को इस आधार पर नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है कि उसकी योग्यता ज्यादा है। अदालत ने यह भी कहा कि ठोस सूचनाओं का छुपाना और गलत बयान देना सेवा में निरंतरता के संबंध में कर्मचारी के चरित्र और पिछले जीवन पर स्पष्ट प्रभाव डालता है।

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CJAR ने मेडिकल कॉलेज घोटाले मामले में सुप्रीम कोर्ट में 25 लाख का जुर्माना जमा किया, कानूनी बिरादरी के लिए SCBA के पास देने का आग्रह किया

सुप्रीम कोर्ट द्वारा कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) की उस अर्जी पर जल्द ही सुनवाई करने की उम्मीद है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2017 में लगाए गए 25 लाख रुपये के जुर्माने के भुगतान में देरी के लिए माफी की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा CJAR की याचिका[ज्यूडिशियल अकाउंटेबलिटी एंड रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ और अन्य रिट पिटीशन ( आपराधिक ) संख्या 169/ 2017] खारिज करते हुए जुर्माना लगाया था जिसमें इसने मेडिकल कॉलेज घोटाले में एक विशेष जांच दल द्वारा जांच की मांग की थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिटेशन मामले में उसके समक्ष याचिका दायर करने को लेकर वादी पर लगाया 50 हजार रुपये का जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता (आर्बिटेशन) मामले में उसके समक्ष याचिका दायर करने के लिए एक वादी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने मेसर्स वेद प्रकाश मित्तल की ओर से दायर एसएलपी खारिज करते हुए कहा, "हमने 'दीप इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड एवं अन्य (2019) एससीसी ऑनलाइन एससी 1602' तथा कुछ अन्य मामलों में कहा था कि हमने आर्बिटेशन मामलों में रिट कोर्ट के दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ताओं से नाराजगी जतायी है और इस मामले में भी हम एक बार फिर यही कह सकते हैं। यह भी ऐसा ही एक मामला है।"

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फैसलों में विस्तृत कारण देने में देरी संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को चेताया

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को याद दिलाया है कि निर्णय देने में देरी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार का उल्लंघन है। "न्यायिक अनुशासन में निर्णयों के वितरण में तत्परता की आवश्यकता होती है - एक पहलू जिस पर इस न्यायालय द्वारा बार-बार जोर दिया जाता है। समस्या जटिल होती है जहां परिणाम तो जाना जाता है, लेकिन इसके कारणों को नहीं। यह किसी भी दुखी पक्ष को अगले स्तर पर न्यायिक निवारण के लिए फिर से न्यायिक परीक्षण की तलाश करने के अवसर से वंचित करता है। "

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RERA के तहत बिल्डरों के खिलाफ आवंटियों द्वारा उपभोक्ता फोरम के समक्ष शिकायत पर प्रतिबंध नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि बिल्डरों के खिलाफ आवंटियों द्वारा उपभोक्ता फोरम के समक्ष शिकायत पर रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 द्वारा कोई रोक नहीं है। इस मामले में, शिकायतकर्ता, जिन्होंने 2013 में बिल्डर क्रेता समझौतों को निष्पादित करके अपार्टमेंट बुक किया था, ने उपभोक्ता आयोग से संपर्क किया था जिसने उनकी शिकायत की अनुमति दी और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा जमा की गई धनराशि को जमा की तारीख से साधारण ब्याज @ 9% प्रति वर्ष के साथ 50,000 रुपये के जुर्माने समेत वापस करने का आदेश दिया।

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राजीव गांधी हत्याकांड : खुश नहीं हैं कि पेरारीवलन की सजा माफी की सिफारिश दो साल से राज्यपाल के समक्ष लंबित : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक रूप से इस तथ्य पर नाखुशी जताई कि राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी एजी पेरारीवलन की सजा माफ के लिए तमिलनाडु राज्य सरकार द्वारा की गई सिफारिश दो साल से अधिक समय से राज्यपाल के समक्ष लंबित है। पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायाधीश जस्टिस एल नागेश्वर राव ने कहा, "हम क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं। लेकिन हम इस बात से खुश नहीं हैं कि यह सिफारिश 2 साल से राज्यपाल के सामने लंबित है। "

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'अब फिजिकल और वर्चुअल न्यायालयों के बीच कोई अधिक अंतर नहीं रहा; इसकी आदत डालें ': जस्टिस खानविल्कर

अब फिजिकल औरवर्चुअल सुनवाई के बीच कोई अंतर नहीं है;" न्यायमूर्ति एएम खानविलकर ने शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसेनाकर की हत्या में गैंगस्टर अरुण गवली की सजा को बरकरार रखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील स्थगित करते हुए कहा कि विशेष MCOCA अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई है । न्यायाधीश ने अधिवक्ता बृज कुमार मिश्र के अनुरोध के उत्तर में यह टिप्पणी की, जिसमें कई भारी भरकम फाइलों के कारण इस मामले को फिज़िकल कोर्ट के समक्ष ले जाने की मांग की गई थी।

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अनुच्छेद 370 में किए गए बदलाव को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल

अनुच्छेद 370 में किए गए बदलाव और बाद के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका के याचिकाकर्ता द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जल्द सुनवाई के लिए अर्जी दायर की गई है। अधिवक्ता शाकिर शबीर द्वारा दायर अर्जी में कहा गया है कि 5 अगस्त, 2019 को लागू किए गए संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश 2019 के तहत पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य में उत्तरदाता "संबंधित कानूनों में आगे बदलाव के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जिसे अब जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया है।"

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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला अपलोड करने में अत्यधिक देरी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से कारण बताने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने वेबसाइट पर फैसला अपलोड करने में अत्यधिक देरी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से इसका कारण बताने को कहा है। एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई के दौरान वकील ने न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को अवगत कराया कि संबंधित फैसला छह नवम्बर 2019 को सुनाया गया था, लेकिन इसे हाईकोर्ट की वेबसाइट पर मई, 2020 में अपलोड किया गया था। बेंच ने कहा, "हमें कारण बतायें कि वेबसाइट पर फैसला अपलोड किये जाने में इतनी अधिक देरी क्यों हुई तथा इसकी रिपोर्ट तीन सप्ताह के भीतर पेश की जाये।"

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