घर की चारदीवारी के भीतर अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति को डराना या अपमान SC-ST एक्ट के तहत अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
7 Nov 2020 12:36 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि किसी इमारत की चारदीवारी के भीतर अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति का अपमान या डराना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं है।
इस मामले में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि अभियुक्त ने अवैध रूप से पीड़ित की इमारत की चारदीवारी में प्रवेश किया और गालियां देना शुरू कर दिया और जान से मारने की धमकी दी और जातिगत टिप्पणियों/ अपशब्दों आदि का इस्तेमाल किया।
जस्टिस एल नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता और अजय रस्तोगी की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार किया, जिसने एससी-एसटी अधिनियम के तहत आरोप पत्र को खारिज करने से इनकार कर दिया था।
अदालत ने उल्लेख किया कि अधिनियम की धारा 3 (1) (आर) के तहत अपराध के मूल अवयव इस प्रकार हैं- 1) अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को जानबूझकर अपमानित करना है या धमकाना 2) उक्त कार्य ऐसे स्थान पर करना जो सार्वजनिक रूप से दिखाई दे।
कोर्ट ने स्वर्ण सिंह व अन्य बनाम राज्य (2008) 8 SCC 435 का जिक्र किया, जिसने कहा था कि यदि इमारत के बाहर अपराध किया जाता है, जैसे घर के बाहर लॉन में, और उक्त लॉन को सड़क या बाउंड्री वाल के बाहर गली से देखा जा सकता है, तो लॉन निश्चित रूप से सार्वजनिक रूप से दिखने वाली जगह होगी।
हालांकि, अदालत ने कहा, अगर टिप्पणी किसी इमारत के अंदर की गई है, लेकिन वहां आम लोग मौजूद हैं, ( जो केवल रिश्तेदार या दोस्त नहीं हैं) तो यह अपराध नहीं होगा क्योंकि यह सार्वजनिक रूप से दिखने वाली जगह नहीं है।
पीठ ने कहा, "एफआईआर के अनुसार, सूचना देने वाले को को गाली देने का आरोप, उसकी इमारत की चारदीवारी के भीतर का है। ये ऐसा मामला नहीं है कि घटना के समय आम लोग (केवल रिश्तेदार या दोस्त नहीं) घर में मौजूद थे। इसलिए, मूल अवयव, जिसे "सार्वजनिक रूप से दिखने वाले किसी स्थान पर" कहा गया है, वह शामिल नहीं। आरोप-पत्र में संलग्न गवाहों की सूची में कुछ गवाहों के नाम हैं, लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि वे इमारत की चारदीवारी के भीतर मौजूद थे।
अपराध का आरोप इमारत की चारदीवारी के भीतर लगा है। इसलिए, स्वर्ण सिंह में इस कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, इसे सार्वजनिक रूप से दिखने वाला स्थान नहीं कहा जा सकता है, जैसा कि किसी एफआईआर और/ या आरोप-पत्र में कहा गया है कि इमारत की चारदीवारी के भीतर कोई मौजूद नहीं था।"
अदालत ने यह भी कहा कि अधिनियम के तहत अपराध केवल इस तथ्य पर स्थापित नहीं किया जाता है कि सूचना देने वाली अनुसूचित जाति का सदस्य है, जब तक कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपमानित करने का कोई इरादा नहीं है या पीड़ित का संबंध इस प्रकार की जाति से है। किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी अधिनियम के तहत अपराध नहीं होगा, जब तक कि उस व्यक्ति का इस प्रकार का अपमान या धमकी, उसके अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने का कारण नहीं किया गया है।
केस: हितेश वर्मा बनाम स्टेट ऑफ झारखंड [क्रिमिनल एपीपीएल नं 707 ऑफ 2020]
कोरम: जस्टिस एल नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता और अजय रस्तोगी
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