पेंशन पर रोक के खिलाफ रिट याचिका के लिए कार्यवाही का एक हिस्सा वहां उत्पन्न हुआ जहां व्यक्ति पेंशन प्राप्त कर रहा था : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Nov 2020 11:19 AM IST

  • पेंशन पर रोक के खिलाफ रिट याचिका के लिए कार्यवाही का एक हिस्सा वहां उत्पन्न हुआ जहां व्यक्ति पेंशन प्राप्त कर रहा था : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुरुवार को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले के अनुसार, एक सेवानिवृत्त कर्मचारी उस स्थान पर पेंशन पर रोक के खिलाफ रिट याचिका दायर कर सकता है, जहां वह निवास कर रहा है और उस उच्च न्यायालय जाने की आवश्यकता नहीं है जहां पेंशन प्राधिकरण स्थित है।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली 3 न्यायाधीशों की पीठ ने रिट दाखिल करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 (2) के तहत कार्रवाई का कारण उस स्थान को बताया, जहां पेंशनर निवास कर रहा है और पेंशन प्राप्त कर रहा है।

    सुप्रीम कोर्ट ने शांति देवी उर्फ ​​शांति मिश्रा बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में यह उल्लेखनीय फैसला सुनाया।

    केस की पृष्ठभूमि

    ये मामला बीएन मिश्रा, जो 2005 तक कोल इंडिया लिमिटेड के कर्मचारी थे, की पेंशन पात्रता से संबंधित मामला है। लगभग 8 वर्षों तक पेंशन देने के बाद, कोल इंडिया लिमिटेड ने 2013 में उनकी पेंशन को यह कहते हुए रोक दिया कि उन्होंने 1998 की परिवार खनन पेंशन योजना का विकल्प नहीं चुना है। उन्हें 8 लाख रुपये की राशि वापस करने के लिए कहा गया था जो उनके द्वारा प्राप्त की गई थी।

    पेंशन पर रोक और वापसी की मांग को चुनौती देते हुए, बी एन मिश्रा ने 2014 में पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर रिट याचिका को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि उन्होंने पहले 2006 में पटना उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी और अपने पेंशन खाते में 1,33,559 रुपये की राशि वापस करने की मांग की थी। क्षेत्राधिकार की कमी का हवाला देते हुए उस रिट याचिका को खारिज कर दिया गया। इसके बाद, उन्होंने झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसके अधिकार क्षेत्र में उनका पेंशन प्राधिकरण स्थित था। इस पहलू की ओर इशारा करते हुए, उच्च न्यायालय ने 2014 में दायर रिट याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्होंने खुद को झारखंड उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में प्रस्तुत किया था।

    कार्यवाही के लंबित के दौरान, बी एन मिश्रा की मृत्यु हो गई और उनकी पत्नी शांति मिश्रा को याचिकाकर्ता के रूप में प्रतिस्थापित किया गया।

    सुप्रीम कोर्ट का नजरिया

    उच्च न्यायालय द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से असहमत, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पेंशनभोगी अपनी सेवानिवृत्ति के बाद से बिहार के दरभंगा में रहता था और आठ वर्षों से वहां पेंशन प्राप्त कर रहा था। अदालत ने आगे उल्लेख किया कि संविधान के अनुच्छेद 226 (2) के अनुसार, यदि कार्रवाई के कारण का एक हिस्सा किसी स्थान पर उत्पन्न होता है, तो रिट याचिका को वहां रखा जा सकता है।

    पीठ ने ये कहा,

    "वर्तमान मामले के तथ्यों के रूप में, हम इस विचार से हैं कि कार्रवाई का कारण पटना उच्च न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में उत्पन्न हुआ है। मृतक याचिकाकर्ता भारतीय स्टेट बैंक, दरभंगा के अपने बचत खाते में पिछले 08 वर्षों से लगातार पेंशन प्राप्त कर रहा था।। बीएन मिश्रा की पेंशन पर रोक ने उन्हें उनके मूल स्थान पर प्रभावित किया, उन्हें पेंशन के लाभ से वंचित किया जा रहा था जो उन्हें अपने नियोक्ता से मिल रहा था। पेंशन पर रोक ने कार्रवाई का एक कारण दिया, जो उस स्थान पर उत्पन्न हुआ जहां याचिकाकर्ता लगातार पेंशन प्राप्त कर रहा था। इस प्रकार, हम इस विचार से हैं किएकल न्यायाधीश के साथ-साथ डिवीजन बेंच के पास रिट याचिका को सुनने के लिए क्षेत्रीय न्यायक्षेत्र की कमी का आधार बनाए रखने योग्य नहीं है, पूरी तरह से गलत है और याचिकाकर्ता के लिए अपार कठिनाई का कारण है।"

    2006 और 2014 में दायर रिट के लिए कार्रवाई के कारण पूरी तरह से अलग थे, अदालत ने आगे कहा। इसलिए, हाईकोर्ट का यह कहते हुए दूसरी रिट याचिका को खारिज करना गलत था कि उन्होंने खुद को झारखंड उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया था।

    फोरम नॉन कंविनेंस

    प्रतिवादी ने यह कहते हुए फोरम नॉन कंविनेंस ( कोर्ट का क्षेत्राधिकार अस्वीकार करने का सिद्धांत ) का तर्क दिया कि झारखंड उच्च न्यायालय में उनके द्वारा दायर पिछली रिट याचिका अभी भी लंबित है।

    इस संबंध में पीठ ने कहा,

    "एक सेवानिवृत्त कर्मचारी सुविधा के लिए अपने मामले को उस स्थान पर मुकदमा चला रहा है जहां ये वह संबंधित है और पेंशन प्राप्त कर रहा था।"

    निर्णय में जोड़ा गया,

    "पेंशन रोकने और 8 लाख रुपये से अधिक की धनराशि वापस करने के लिए याचिकाकर्ता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जो अपने मूल स्थान दरभंगा में रह रहा था। एक सेवानिवृत्त कर्मचारी, जो पेंशन प्राप्त कर रहा है, को किसी रिट याचिका दायर करने के लिए अन्य अदालत में जाने के लिए नहीं कहा जा सकता है, जब उसके पास पटना उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करने के लिए कार्रवाई का कारण है।"

    अदालत ने कुसुम इनगॉट्स एंड अलॉयज लिमिटेड बनाम भारत संघ और अन्य (2004) 6 एससीसी 254, नवल किशोर शर्मा बनाम भारत संघ और (2014) 9 एससीसी 329 जैसे पूर्व उदाहरणों का उल्लेख किया।

    न्यायालय ने अपील की अनुमति दी और उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका को पुनर्जीवित किया।

    इसके अलावा, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता मूल याचिकाकर्ता की विधवा है, जो अब पारिवारिक पेंशन के समर्थन के बिना है, शीर्ष अदालत ने उसे अंतरिम पेंशन देने का आदेश दिया, जो कि रिट याचिका के विषयगत निर्णय के अधीन होगा।

    मामले का विवरण:

    शीर्षक: शांति देवी उर्फ ​​शांति मिश्रा बनाम भारत संघ और अन्य (सिविल अपील 3630/ 2020)

    पीठ : जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह

    वकील : अपीलकर्ता लिए अरविंद कुमार गुप्ता; उत्तरदाताओं के लिए श्रीकुमार सीएन, कौस्तुभ शुक्ला, उदयम मुखर्जी

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