सीपीसी की धारा 114 के तहत पुनर्विचार के अधिकार का इस्तेमाल अंतर्निहित अपीलीय शक्ति के तौर पर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

5 Nov 2020 5:01 AM GMT

  • सीपीसी की धारा 114 के तहत पुनर्विचार के अधिकार का इस्तेमाल अंतर्निहित अपीलीय शक्ति के तौर पर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के नियम - 1 के आदेश 47 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 114 के तहत पुनर्विचार के अधिकार को अंतर्निहित शक्ति या अपीलीय शक्ति के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

    इस मामले में हाईकोर्ट ने उसके फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली एक याचिका मंजूर कर ली थी, जिसमें विवादित सम्पत्ति के कब्जे के बारे में कुछ टिप्पणियां की गयी थीं। हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को यह कहते हुए मंजूर कर लिया था कि विवादित सम्पत्ति के कब्जे का मुद्दा न तो ट्रायल कोर्ट, और न ही प्रथम अपीलीय अदालत के समक्ष उठाया गया था। यहां तक कि ट्रायल कोर्ट ने सम्पत्ति के कब्जे के संबंध में कोई इश्यू भी फ्रेम नहीं किया था।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने अपील की सुनवाई के दौरान सीपीसी के नियम 1, ऑर्डर 47 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 114 के तहत कोर्ट की शक्तियों के दायरे और सीमाओं पर विचार किया।

    इस संबंध में पूर्व के विभिन्न दृष्टांतों का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा :

    "पुनर्विचार के दायरे को समझने के वास्ते इस कोर्ट के लिए सीपीसी की धारा 114 के उद्देश्य एवं दायरे पर विचार करना उचित होगा, क्योंकि यह पुनर्विचार के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान है, जब कोई व्यक्ति कोर्ट की डिक्री या आदेश से खुद को पीड़ित मानता है, जिसमें अपील की अनुमति है, लेकिन वह अपील को वरीयता नहीं देता है या जहां एक डिक्री या आदेश के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है तो डिक्री या आदेश पर पुनर्विचार किया जा सकता है और संबंधित कोर्ट आदेश जारी कर सकता है या डिक्री सुना सकता है। केवल सीपीसी की धारा 114 को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि सीपीसी की धारा 114 के तहत पुनर्विचार की व्यापक शक्ति के अंतर्गत न तो पुनर्विचार की शक्तियों के इस्तेमाल में पूर्व दृष्टांत के तौर पर कोई शर्त रखी गयी है, न ही यह धारा संबंधित कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार की शक्तियों के इस्तेमाल से प्रतिबंधित करती है। हालांकि सीपीसी के नियम एक, ऑर्डर 47 में उल्लेखित 'आधार' पर किसी कोर्ट द्वारा अपने आदेश पर पुनर्विचार किया जा सकता है। इस नियम और आदेश में उन आधारों पर विस्तार से चर्चा की गयी है। अपील की तुलना में पुनर्विचार अर्जी अधिक प्रतिबंधित है तथा सीपीसी के नियम एक, ऑर्डर 47 में उल्लेखित प्रावधानों के तहत रिव्यू कोर्ट के अधिकार क्षेत्र की निश्चित सीमा को 34 कर दिया गया है। पुनर्विचार शक्तियों का इस्तेमाल न तो अंतर्निहित शक्ति के रूप में किया जा सकता है और न ही अपीलीय शक्ति के तौर पर।"

    कोर्ट ने कहा कि जब रिकॉर्ड पर रखे गये साक्ष्य/ मेटेरियल के आधार पर वादी के कब्जे के संबंध में निर्णय दिया गया है तो यह नहीं कहा जा सकता कि कार्यवाही में कोई त्रुटि थी और सीपीसी के नियम 1, ऑर्डर 47 के तहत शक्तियों के इस्तेमाल की समीक्षा की आवश्यकता है।

    बेंच ने कहा,

    "यहां यह ध्यान दिये जाने की जरूरत है कि वाद में कब्जे को लेकर आवश्यक दलीलें और लिखित बयान भी थे। यहां तक कि पक्षकारों ने कब्जे को लेकर सबूत पेश किये थे।"

    केस का नाम : राम साहू (मृत) बनाम विनोद कुमार रावत

    केस नंबर : सिविल अपील नंबर 3601 / 2020

    कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह

    वकील : सीनियर एडवोकेट ए के श्रीवास्तव, एडवोकेट पुनीत जैन

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