जानिए हमारा कानून
क्या सरकार ने भारत से मैला ढोने की प्रथा समाप्त करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य को निभाया है?
डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ (2023) में सुप्रीम कोर्ट ने यह गंभीर प्रश्न उठाया कि क्या भारत सरकार और उसकी एजेंसियां मैला ढोने (Manual Scavenging) की अमानवीय प्रथा को खत्म करने और इससे जुड़े लोगों के पुनर्वास (Rehabilitation) की संवैधानिक और कानूनी जिम्मेदारी को सही तरीके से निभा रही हैं? कोर्ट ने इस केस में 2013 के कानून – Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013 – के प्रभावी क्रियान्वयन और उससे जुड़े अधिकारों के उल्लंघन पर विस्तार से विचार किया।यह फैसला...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 44: न्यायालय द्वारा फर्म का विघटन
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 44 (Section 44) उन आधारों को निर्धारित करती है जिन पर एक भागीदार के मुकदमे (Suit of a Partner) पर न्यायालय (Court) एक फर्म को भंग (Dissolve) कर सकता है।जबकि धारा 40 (Section 40) समझौते द्वारा विघटन, धारा 41 (Section 41) अनिवार्य विघटन, और धारा 42 (Section 42) आकस्मिकताओं पर विघटन की बात करती है, धारा 44 न्यायालय के हस्तक्षेप (Intervention) की अनुमति देती है जब भागीदारों के बीच गंभीर मुद्दे उत्पन्न होते हैं। एक भागीदार के...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 39 – 43 : भागीदारी फर्म का विघटन
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) का अध्याय VI (Chapter VI) एक फर्म के विघटन (Dissolution of a Firm) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों को निर्धारित करता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि 'भागीदारी का विघटन' (Dissolution of Partnership) और 'फर्म का विघटन' (Dissolution of the Firm) में अंतर होता है।जब किसी एक भागीदार और बाकी भागीदारों के बीच संबंध समाप्त होता है, तो उसे भागीदारी का विघटन कहा जाता है, जबकि फर्म का विघटन तब होता है जब सभी भागीदारों के बीच भागीदारी समाप्त हो...
क्या झूठे आरोप और कानूनी आधारहीन FIR अदालत रद्द कर सकती है?
सलीब @ शालू @ सलीम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सवाल का उत्तर दिया – क्या किसी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर (First Information Report) को रद्द (Quash) किया जा सकता है, जब वह प्रथम दृष्टया (Prima Facie) कोई अपराध (Offence) नहीं दर्शाती हो या केवल व्यक्तिगत दुश्मनी (Personal Grudge) के कारण दर्ज की गई हो?यह निर्णय भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code – CrPC) की धारा 482 और भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) की धारा 195A (झूठा साक्ष्य...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 50: पारगमन में माल को रोकने के अधिकार का प्रयोग
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V अदत्त विक्रेता (Unpaid Seller) के अधिकारों से संबंधित है, जैसा कि हमने पिछली चर्चाओं में देखा। धारा 50 ने पारगमन में माल को रोकने के अधिकार (Right of Stoppage in Transit) को परिभाषित किया, जो अदत्त विक्रेता को खरीदार के दिवालिया होने पर, माल को अपने कब्ज़े से बाहर होने के बावजूद वापस लेने की अनुमति देता है, बशर्ते वे अभी भी 'पारगमन में' हों (जैसा कि धारा 51 में विस्तृत है)। अब, धारा 52 बताती है कि इस महत्वपूर्ण अधिकार का वास्तव में प्रयोग...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7-8: विवाह समारोह और पंजीकरण
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) न केवल एक वैध हिंदू विवाह (Valid Hindu Marriage) की शर्तों (Conditions) को निर्धारित करता है, बल्कि यह विवाह के अनुष्ठान (Rituals) और उसके पंजीकरण (Registration) से संबंधित प्रक्रियाओं (Procedures) को भी स्पष्ट करता है।धारा 7 (Section 7) इस बात पर प्रकाश डालती है कि हिंदू विवाह कैसे संपन्न (Solemnized) किए जा सकते हैं, जबकि धारा 8 (Section 8) विवाह के पंजीकरण की प्रक्रिया और उसके महत्व का विवरण देती है, हालांकि यह इसकी वैधता (Validity) के लिए...
Matrimonial डिस्प्यूट में लीगल नोटिस की जरूरत
पति पत्नी द्वारा एक दूसरे को ऐसे लीगल नोटिस भेजे जाने की कानून में तो कोई जरूरत नहीं बताई गई है और इसका कोई भी कानूनी उल्लेख भी नहीं मिलता है। तलाक का मामला कोर्ट में दर्ज करवाने के पहले लीगल नोटिस भेजा जाए ऐसा कोई भी उल्लेख हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1956 दोनों ही अधिनियम में कहीं भी नहीं मिलता है। इसी के साथ भरण पोषण के मामले जो कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 के तहत आते हैं। इन सभी कानूनों में भी भरण पोषण का...
PNDPT Act का कानून
गर्भधारण पूर्व निदान कारक तकनीक, भ्रूण लिंग चयन विशेष निषेध पी० एन० डी० पी० टी० अधिनियम 1994 है।स्त्री दमन हेतु समाज में लिंग चयन की तकनीक विकसित हो गई तथा लिंग का चयन करने के पश्चात पुत्री मालूम होने पर गर्भपात कर दिया जाता था। यह तकनीक मनुष्यता पर संकट के रूप में सामने आ गई है। रूढ़िवादी भारतीय सोच में पुरुष संतान का मोह तथा कन्या के लिए उपेक्षापूर्ण लिंग भेद का प्रचलन अत्यंत पुराना है। कन्याओं को पैदा होने के बाद भी मार दिया जाता था।वैज्ञानिक तकनीक ऐसी आई जिसने पैदा होने के पूर्व मारने के...
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 36-38: जाने वाले भागीदारों के अधिकार और गारंटी पर फर्म में बदलाव का प्रभाव
बाहर जाने वाले भागीदार का प्रतिस्पर्धी व्यवसाय चलाने का अधिकार और व्यापार प्रतिबंध में समझौते (Rights of Outgoing Partner to Carry on Competing Business. Agreements in Restraint of Trade)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 36 (Section 36) एक बाहर जाने वाले भागीदार (Outgoing Partner) के अधिकारों और व्यापार प्रतिबंधों (Restraint of Trade) से संबंधित समझौतों पर चर्चा करती है: 1. प्रतिस्पर्धी व्यवसाय चलाने का अधिकार (Right to Carry on Competing Business): एक बाहर...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5: एक वैध हिंदू विवाह की शर्तें
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) केवल विवाह के नियमों को संहिताबद्ध (Codify) ही नहीं करता, बल्कि यह कुछ आवश्यक शर्तों (Essential Conditions) को भी निर्धारित करता है जिन्हें एक विवाह को कानूनी रूप से वैध (Legally Valid) हिंदू विवाह मानने के लिए पूरा किया जाना चाहिए। ये शर्तें सामाजिक व्यवस्था (Social Order), नैतिकता (Morality) और व्यक्तियों के अधिकारों (Rights of Individuals) की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।धारा 5 (Section 5) इन मूलभूत शर्तों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है,...
क्या PMLA के तहत गिरफ्तारी के समय लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार देना ज़रूरी है? – पंकज बंसल बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या
पंकज बंसल बनाम भारत संघ (2023) के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act – PMLA) की धारा 19 की संवैधानिक व्याख्या की। इस फैसले का मुख्य सवाल यह था कि क्या प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED) को किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय उसे लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार (Grounds of Arrest) देना अनिवार्य है?यह मामला मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों पर नहीं, बल्कि गिरफ्तारी की वैधानिक प्रक्रिया और संविधान के अनुच्छेद 22(1) (Article 22(1) –...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 50 और 51: पारगमन में माल को रोकने का अधिकार
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V "अदत्त विक्रेता" (Unpaid Seller) के माल के विरुद्ध अधिकारों की पड़ताल करना जारी रखता है। पिछले खंड में हमने अदत्त विक्रेता के ग्रहणाधिकार (Lien) को समझा। अब हम एक और महत्वपूर्ण अधिकार पर ध्यान केंद्रित करेंगे: पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Right of Stoppage in Transit), जो विक्रेता को तब सुरक्षा प्रदान करता है जब माल उसके कब्ज़े से निकल चुका हो, लेकिन अभी तक खरीदार तक नहीं पहुँचा हो।पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Right of Stoppage...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 32-36 : 'होल्डिंग आउट' द्वारा भागीदार की देनदारी
भागीदार का निष्कासन (Expulsion of a Partner)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 33 (Section 33) एक भागीदार के निष्कासन (Expulsion) से संबंधित है। 1. निष्कासन के लिए नियम (Rules for Expulsion): किसी भागीदार को भागीदारों के किसी भी बहुमत (Majority of the Partners) द्वारा फर्म से निष्कासित नहीं किया जा सकता है, सिवाय इसके कि जब भागीदारों के बीच के अनुबंध (Contract) द्वारा प्रदान की गई शक्तियों (Powers) का सद्भावना (Good Faith) में उपयोग किया गया हो। इसका मतलब है कि...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 47, 48 और 49: Unpaid Seller का ग्रहणाधिकार
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V "अदत्त विक्रेता" (Unpaid Seller) के अधिकारों को स्पष्ट करता है, जिसे माल के लिए पूरा भुगतान नहीं मिला है। इन अधिकारों में से एक महत्वपूर्ण अधिकार है माल पर ग्रहणाधिकार (Lien on the Goods), जो विक्रेता को माल को अपने कब्ज़े में रखने की शक्ति देता है जब तक उसे भुगतान नहीं मिल जाता। यह अधिकार विक्रेता के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।विक्रेता का ग्रहणाधिकार (Seller's Lien) धारा 47 उन परिस्थितियों को परिभाषित करती है जिनके तहत...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 3-4: परिभाषाएं और अधिनियम का अधिरोही प्रभाव
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के प्रभावी और सटीक अनुप्रयोग (Effective and Precise Application) के लिए, अधिनियम में उपयोग किए गए कुछ महत्वपूर्ण शब्दों और अभिव्यक्तियों (Expressions) का स्पष्ट अर्थ समझना आवश्यक है।धारा 3 (Section 3) इन आवश्यक परिभाषाओं (Definitions) को प्रदान करती है, जो कानून की बारीकियों (Nuances) को समझने की कुंजी हैं। इसके बाद, धारा 4 (Section 4) अधिनियम के सर्वोपरि (Paramount) महत्व और अन्य कानूनों और रीति-रिवाजों पर इसके अधिरोही प्रभाव (Overriding...
क्या मिलिट्री हॉस्पिटल में हुई मेडिकल लापरवाही जीवन के अधिकार का उल्लंघन है और क्या इसके लिए मुआवज़ा मिल सकता है?
CPL अश्विन कुमार चौहान बनाम कमांडिंग ऑफिसर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि क्या एक सैन्य अस्पताल (Military Hospital) में हुई मेडिकल लापरवाही (Medical Negligence) के लिए सरकार जिम्मेदार ठहराई जा सकती है और क्या पीड़ित को मुआवज़ा (Compensation) दिया जा सकता है।यह मामला भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी को बिना ठीक से जांचे गए खून चढ़ाने से HIV संक्रमण होने से जुड़ा है। कोर्ट ने इस फैसले में मरीजों के अधिकारों, सरकारी अस्पतालों की जिम्मेदारियों और संवैधानिक उपायों (Constitutional Remedies)...
बिना रजिस्ट्रेशन और ड्राइविंग लाइसेंस के चलाएं गाड़ी: जानिए किन इलेक्ट्रिक वाहनों को मिली छूट
भारत में, क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) के साथ मोटर वाहनों का रजिस्ट्रेशन केवल एक औपचारिकता नहीं है - यह सड़क सुरक्षा बनाए रखने, कानूनों को लागू करने और कर संग्रह को सुव्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रत्येक पंजीकृत वाहन में एक अलग नंबर प्लेट होती है जिसमें वाहन की पूरी जानकारी होती है और अधिकारियों को पहचान और ट्रैकिंग में मदद करती है। हालांकि, कई व्यापक नियामक ढांचे के साथ, मोटर वाहन अधिनियम भी कुछ छूटों की अनुमति देता है। कुछ वाहनों, विशेष परिस्थितियों में, विशिष्ट...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 45 और 46: Unpaid Seller की परिभाषा
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V एक विक्रेता की विशेष स्थिति से संबंधित है जिसे उसके माल के लिए पूरा भुगतान नहीं मिला है। इस व्यक्ति को "अदत्त विक्रेता" (Unpaid Seller) कहा जाता है, और यह अध्याय माल के विरुद्ध उसके विशिष्ट अधिकारों को परिभाषित करता है, भले ही माल का स्वामित्व (Property in Goods) खरीदार (Buyer) को हस्तांतरित हो गया हो।"अदत्त विक्रेता" की परिभाषा ("Unpaid Seller" Defined) धारा 45 स्पष्ट करती है कि विक्रेता को "अदत्त विक्रेता" कब माना जाता है: धारा 45(1)...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 31-32: आने वाले और जाने वाले भागीदार
नए भागीदार का प्रवेश (Introduction of a Partner)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 31 (Section 31) एक फर्म में नए भागीदार के प्रवेश (Introduction of a Partner) को नियंत्रित करती है: 1. सभी भागीदारों की सहमति आवश्यक (Consent of All Existing Partners Required): भागीदारों के बीच अनुबंध (Contract) और धारा 30 (Section 30) के प्रावधानों के अधीन रहते हुए (जो नाबालिगों को भागीदारी के लाभों में शामिल करने से संबंधित है), किसी भी व्यक्ति को सभी मौजूदा भागीदारों (Existing...
क्या असंवैधानिक घोषित कानून शुरू से ही अमान्य माना जाएगा? CBI बनाम आर.आर. किशोर में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
CBI बनाम आर.आर. किशोर में भारत के सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ (Constitution Bench) को यह अहम सवाल तय करना था कि क्या कोई कानून जिसे असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित किया गया हो, उसे शुरू से ही अमान्य (Void ab Initio) माना जाएगा? और क्या ऐसा निर्णय लंबित आपराधिक मामलों (Pending Criminal Cases) पर भी लागू होगा?यह मुद्दा विशेष रूप से दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (Delhi Special Police Establishment Act – DSPE Act) की धारा 6A(1) को लेकर था, जिसे पहले Subramanian Swamy v. Director, CBI...


















