भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899: जब एक लेन-देन में कई दस्तावेज उपयोग होते हैं
Himanshu Mishra
14 Feb 2025 1:53 PM

स्टाम्प ड्यूटी (Stamp Duty) एक महत्वपूर्ण कर (Tax) है, जो कानूनी दस्तावेजों (Legal Documents) पर लगाया जाता है ताकि वे वैध (Valid) और लागू (Enforceable) माने जाएं। भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 विभिन्न प्रकार के दस्तावेजों पर स्टाम्प ड्यूटी के प्रावधानों (Provisions) को निर्धारित करता है।
कई बार, एक ही बिक्री (Sale), बंधक (Mortgage) या निपटान (Settlement) से जुड़े कई दस्तावेज उपयोग किए जाते हैं। इसी तरह, कुछ दस्तावेज कई अलग-अलग विषयों (Distinct Matters) से संबंधित हो सकते हैं या अधिनियम के परिशिष्ट-I (Schedule I) की एक से अधिक श्रेणियों (Categories) में आ सकते हैं।
ऐसे मामलों में सही स्टाम्प ड्यूटी कैसे लगेगी, इसका समाधान धारा 4, 5 और 6 में दिया गया है। ये प्रावधान (Provisions) सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी दस्तावेज़ बिना स्टाम्प ड्यूटी के अवैध न हो, लेकिन साथ ही अनावश्यक कर (Unnecessary Tax) न लगे।
इस लेख में हम इन प्रावधानों को आसान भाषा में समझाएंगे ताकि हर व्यक्ति इसे आसानी से समझ सके।
धारा 4: जब एक ही लेन-देन (Transaction) के लिए कई दस्तावेज (Instruments) उपयोग होते हैं
कई बार, एक बिक्री (Sale), बंधक (Mortgage) या निपटान (Settlement) को पूरा करने के लिए एक से अधिक दस्तावेजों की आवश्यकता होती है। यदि प्रत्येक दस्तावेज़ पर अलग-अलग स्टाम्प ड्यूटी लगाई जाए, तो लेन-देन महंगा हो सकता है।
धारा 4 यह प्रावधान करती है कि ऐसे मामलों में केवल मुख्य दस्तावेज (Principal Instrument) पर पूरी स्टाम्प ड्यूटी लगेगी। अन्य दस्तावेजों पर केवल 1 रुपये की मामूली स्टाम्प ड्यूटी ली जाएगी।
मुख्य दस्तावेज (Principal Instrument) कैसे तय होगा?
मुख्य दस्तावेज वह होता है, जो पूरे लेन-देन में सबसे महत्वपूर्ण होता है। यानी वह दस्तावेज जो स्वामित्व (Ownership) को हस्तांतरित (Transfer) करता है, बंधक (Mortgage) बनाता है, या निपटान (Settlement) को अंतिम रूप देता है।
धारा 4(2) के अनुसार, लेन-देन में शामिल पक्ष (Parties) आपसी सहमति से यह तय कर सकते हैं कि मुख्य दस्तावेज कौन-सा होगा। लेकिन इसमें एक शर्त है—मुख्य दस्तावेज वही होगा, जिस पर सबसे अधिक स्टाम्प ड्यूटी लगती हो।
उदाहरण (Illustration) - धारा 4
मान लीजिए कि राम अपनी ज़मीन श्याम को बेच रहा है। इस लेन-देन को पूरा करने के लिए तीन दस्तावेज बनाए गए—
1. बिक्री अनुबंध (Sale Agreement) – जिसमें बिक्री की शर्तें लिखी हैं।
2. परिवहन विलेख (Conveyance Deed) – जो स्वामित्व (Ownership) को हस्तांतरित करता है।
3. पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) – जो किसी अन्य व्यक्ति को पंजीकरण (Registration) की अनुमति देता है।
इस मामले में, परिवहन विलेख (Conveyance Deed) मुख्य दस्तावेज होगा, क्योंकि यह स्वामित्व हस्तांतरित करता है। इस पर पूरी स्टाम्प ड्यूटी लगेगी, जबकि अन्य दस्तावेजों पर केवल 1 रुपये की स्टाम्प ड्यूटी लगेगी।
यह प्रावधान लेन-देन को आसान और किफायती बनाता है, जिससे पक्षों को अनावश्यक कर नहीं देना पड़ता।
धारा 5: जब एक ही दस्तावेज में कई अलग-अलग विषय (Distinct Matters) शामिल होते हैं
कुछ दस्तावेज ऐसे होते हैं, जिनमें अलग-अलग कानूनी विषय (Separate Legal Matters) होते हैं। ऐसे मामलों में स्टाम्प ड्यूटी हर विषय के अनुसार अलग-अलग जोड़ी जाएगी, मानो प्रत्येक विषय का एक अलग दस्तावेज बनाया गया हो।
कब कोई दस्तावेज "अलग-अलग विषयों" से संबंधित माना जाएगा?
यदि कोई दस्तावेज दो या अधिक कानूनी लेन-देन को एक साथ जोड़ता है और वे एक-दूसरे से स्वतंत्र (Independent) होते हैं, तो उन्हें अलग-अलग विषय माना जाएगा।
उदाहरण (Illustration) - धारा 5
मान लीजिए, एक कंपनी और एक बिल्डर के बीच एक अनुबंध हुआ, जिसमें—
1. बिल्डर एक ऑफिस बिल्डिंग का निर्माण करेगा।
2. कंपनी उसी बिल्डिंग का एक भाग पट्टे (Lease) पर लेगी।
हालांकि यह एक ही दस्तावेज में लिखा गया है, लेकिन निर्माण अनुबंध और पट्टा अनुबंध दो अलग-अलग कानूनी विषय हैं। इसलिए, स्टाम्प ड्यूटी इन दोनों के लिए अलग-अलग लगेगी।
अगर निर्माण अनुबंध पर ₹10,000 की स्टाम्प ड्यूटी और पट्टा अनुबंध पर ₹5,000 की स्टाम्प ड्यूटी बनती है, तो पूरे दस्तावेज पर ₹15,000 की स्टाम्प ड्यूटी देनी होगी।
धारा 6: जब एक दस्तावेज कई श्रेणियों (Categories) में आता है
कुछ दस्तावेज स्टाम्प अधिनियम के परिशिष्ट-I (Schedule I) में एक से अधिक श्रेणियों में आ सकते हैं। ऐसे मामलों में सबसे अधिक स्टाम्प ड्यूटी वाली श्रेणी लागू होगी।
इसके अलावा, यदि किसी दस्तावेज की प्रतिलिपि (Duplicate Copy) बनाई जाती है और मूल दस्तावेज पर पूरी स्टाम्प ड्यूटी पहले ही चुका दी गई है, तो प्रतिलिपि पर केवल 1 रुपये की स्टाम्प ड्यूटी लगेगी।
उदाहरण (Illustration) - धारा 6
मान लीजिए कि एक कंपनी ने एक अनुबंध (Agreement) बनाया, जिसमें—
1. कंपनी अपनी संपत्ति का स्वामित्व (Ownership) किसी को हस्तांतरित (Transfer) कर रही है।
2. वही संपत्ति पट्टे (Lease) पर भी दी जा रही है।
यदि स्वामित्व हस्तांतरण पर ₹20,000 की स्टाम्प ड्यूटी और पट्टे पर ₹10,000 की स्टाम्प ड्यूटी बनती है, तो कंपनी को केवल ₹20,000 की स्टाम्प ड्यूटी देनी होगी (सबसे अधिक राशि)।
अगर इस अनुबंध की एक प्रतिलिपि बनाई जाती है, तो उस पर सिर्फ 1 रुपये की स्टाम्प ड्यूटी लगेगी, बशर्ते कि मूल अनुबंध पर पहले से स्टाम्प ड्यूटी चुका दी गई हो।
महत्वपूर्ण बिंदु (Key Takeaways)
धारा 4, 5 और 6 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्टाम्प ड्यूटी उचित तरीके से लागू हो, लेकिन अनावश्यक रूप से अधिक न लगे। ये प्रावधान—
1. अनावश्यक कर से बचाते हैं, ताकि लेन-देन सस्ता हो।
2. कानूनी स्पष्टता (Legal Clarity) प्रदान करते हैं, जिससे स्टाम्प ड्यूटी को लेकर भ्रम न हो।
3. अमान्य दस्तावेज (Invalid Documents) बनने से रोकते हैं, ताकि दस्तावेज़ अदालत में मान्य रहें।
भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 4, 5 और 6 यह सुनिश्चित करती हैं कि यदि एक लेन-देन में कई दस्तावेज, अलग-अलग विषय या एक से अधिक श्रेणियों में आने वाले दस्तावेज हों, तो स्टाम्प ड्यूटी का सही और न्यायसंगत तरीके से भुगतान हो।
इन नियमों को समझकर व्यक्ति और व्यवसाय अपने दस्तावेजों को कानूनी रूप से मान्य बना सकते हैं, अतिरिक्त कर से बच सकते हैं और लेन-देन को सुगम बना सकते हैं।