शराब व्यापार और सरकारी राजस्व: राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 की धारा 39 और 40

Himanshu Mishra

13 Feb 2025 1:40 PM

  • शराब व्यापार और सरकारी राजस्व: राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 की धारा 39 और 40

    राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 (Rajasthan Excise Act, 1950) राज्य में शराब और अन्य नशीले पदार्थों के निर्माण, बिक्री और कराधान (Taxation) को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम के तहत, व्यापार में पारदर्शिता बनाए रखने और सरकार के राजस्व (Revenue) की सुरक्षा के लिए कुछ विशेष प्रावधान बनाए गए हैं।

    अध्याय VII (Chapter VII) में ऐसे ही दो महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं—धारा 39, जो शराब विक्रेताओं और निर्माताओं के लिए सही माप-तौल उपकरण (Measuring and Testing Instruments) रखने की अनिवार्यता पर जोर देती है, और धारा 40, जो यह सुनिश्चित करती है कि सरकार को मिलने वाला आबकारी राजस्व समय पर वसूला जाए।

    यह लेख धारा 39 और 40 की सरल व्याख्या करेगा, उनके कानूनी प्रभावों को समझाएगा और उदाहरणों (Illustrations) के माध्यम से इन प्रावधानों के व्यावहारिक (Practical) पहलुओं को स्पष्ट करेगा।

    धारा 39: माप-तौल और परीक्षण उपकरण (Measures, Weights, and Testing Instruments)

    इस धारा के अनुसार, जो भी व्यक्ति आबकारी अधिनियम के तहत शराब या अन्य नशीले पदार्थों का उत्पादन या बिक्री करता है, उसे कुछ आवश्यक मानकों (Standards) का पालन करना होगा। इस धारा के दो मुख्य बिंदु हैं—

    सही माप-तौल और परीक्षण उपकरण रखना आवश्यक (Requirement to Maintain Proper Measuring and Testing Tools)

    कोई भी लाइसेंसधारी (License Holder) जो शराब का निर्माण या बिक्री करता है, उसे आबकारी आयुक्त (Excise Commissioner) द्वारा निर्धारित माप-तौल के उपकरण (Measuring and Testing Instruments) खरीदने और उन्हें सही स्थिति में बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि शराब का सही मात्रा में लेन-देन हो और किसी भी तरह की धोखाधड़ी (Fraud) न हो।

    उदाहरण के लिए, अगर कोई शराब विक्रेता (Liquor Seller) 750 ml की बोतल में केवल 700 ml शराब भरकर बेचता है, तो यह नियमों का उल्लंघन होगा। ऐसे मामलों को रोकने के लिए आबकारी विभाग शराब मापने के लिए सत्यापित (Verified) उपकरणों का उपयोग करने का निर्देश दे सकता है, जैसे कि प्रमाणित अल्कोहल मीटर (Alcohol Meter), कैलिब्रेटेड कंटेनर (Calibrated Container) आदि।

    आबकारी अधिकारी की मांग पर परीक्षण कराना अनिवार्य (Mandatory Testing on Excise Officer's Demand)

    अगर कोई आबकारी अधिकारी, जिसे कानून द्वारा अधिकृत किया गया है, किसी दुकान या ठेके में बेची जा रही शराब की मात्रा या गुणवत्ता की जांच करना चाहता है, तो लाइसेंसधारी को तुरंत परीक्षण (Testing) के लिए सहमत होना होगा।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी बार (Bar) के मालिक पर यह संदेह हो कि वह शराब में मिलावट (Adulteration) कर रहा है, तो आबकारी अधिकारी को अधिकार है कि वह तुरंत जांच करने के लिए निर्देश दे। अगर बार मालिक इस जांच से इनकार करता है, तो उसे कानूनी कार्रवाई (Legal Action) का सामना करना पड़ सकता है।

    धारा 40: आबकारी राजस्व की वसूली (Recovery of Excise Revenue)

    सरकार के राजस्व की सुरक्षा के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आबकारी शुल्क (Excise Duty) और लाइसेंस फीस समय पर वसूली जाए। धारा 40 के तहत, सरकार को बकाया राजस्व (Outstanding Revenue) वसूलने के लिए कई कानूनी अधिकार दिए गए हैं।

    राजस्व वसूली के तरीके (Methods of Recovery)

    इस धारा के तहत आबकारी विभाग विभिन्न तरीकों से राजस्व की वसूली कर सकता है—

    1. लाइसेंसधारी या जमानती से सीधी वसूली (Direct Recovery from the Licensee or Surety)

    अगर किसी व्यक्ति को आबकारी लाइसेंस (Excise License) दिया गया है और उसने सरकार को देय (Due) राशि का भुगतान नहीं किया है, तो यह राशि सीधे उस व्यक्ति या उसके जमानती (Surety) से वसूली जा सकती है।

    2. भू-राजस्व बकाया के रूप में वसूली (Recovery as Arrears of Land Revenue)

    अगर किसी व्यक्ति से सीधा भुगतान नहीं लिया जा सकता, तो सरकार उसे भू-राजस्व बकाया (Land Revenue Arrears) की तरह वसूल सकती है। इसमें सरकार उसकी संपत्ति जब्त (Seize) कर सकती है, नीलामी (Auction) कर सकती है या अन्य कानूनी कदम उठा सकती है।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी शराब व्यापारी पर 10 लाख रुपये का आबकारी शुल्क बकाया है और वह भुगतान नहीं कर रहा है, तो सरकार उसकी जमीन या दुकान जब्त कर सकती है और उसे नीलाम कर सकती है।

    3. डिफॉल्टर की दुकान या व्यापार को सरकार द्वारा संचालित करना (Management of Defaulting Licensee's Business)

    अगर किसी लाइसेंसधारी ने आबकारी शुल्क का भुगतान नहीं किया, तो आबकारी आयुक्त को अधिकार है कि वह उस दुकान, बार या फैक्ट्री को सरकारी नियंत्रण में ले ले और इसे तब तक चलाए जब तक बकाया राशि वसूल नहीं हो जाती।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी शराब ठेकेदार ने अपने लाइसेंस की फीस का भुगतान नहीं किया, तो सरकार उसका ठेका अपने नियंत्रण में ले सकती है और बिक्री से प्राप्त राशि का उपयोग बकाया राशि चुकाने के लिए कर सकती है।

    4. लाइसेंस का निरस्तीकरण और पुनः बिक्री (Forfeiture and Re-Sale of Grant)

    अगर कोई लाइसेंसधारी समय पर भुगतान नहीं करता, तो सरकार उसका लाइसेंस रद्द (Cancel) कर सकती है और उसे किसी अन्य व्यक्ति को बेच सकती है।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति ने किसी शराब दुकान का ठेका लिया लेकिन उसने तय समय पर शुल्क नहीं चुकाया, तो सरकार उस ठेके को किसी अन्य व्यक्ति को दे सकती है, जिससे डिफॉल्टर को नुकसान उठाना पड़ेगा।

    विशेष प्रावधान: विशेषाधिकार प्राप्त लाइसेंसधारियों की सुरक्षा (Protection for Exclusive Privilege Holders)

    धारा 40 में यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति धारा 14 के तहत विशेषाधिकार प्राप्त लाइसेंसधारी (Exclusive Privilege Licensee) है, तो उसकी लाइसेंस की समाप्ति या पुनः बिक्री केवल उसी अधिकारी की स्वीकृति से हो सकती है जिसने उसे लाइसेंस दिया था।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी को किसी विशेष क्षेत्र में शराब की बिक्री का एकमात्र अधिकार दिया गया है, तो सरकार बिना उचित प्रक्रिया के उसका लाइसेंस रद्द नहीं कर सकती।

    अन्य देनदारियों पर आबकारी राजस्व की प्राथमिकता (Priority of Excise Revenue in Debt Recovery)

    अगर किसी व्यक्ति पर सरकार और किसी निजी व्यक्ति दोनों का कर्ज बकाया है, तो आबकारी शुल्क की वसूली को पहली प्राथमिकता दी जाएगी।

    उदाहरण के लिए, अगर कोई शराब व्यापारी सरकार को 5 लाख रुपये और किसी बैंक को 3 लाख रुपये का कर्जदार है, और उसकी संपत्ति को जब्त किया जाता है, तो सबसे पहले सरकार अपना 5 लाख रुपये वसूलेगी, उसके बाद ही बैंक को भुगतान मिलेगा।

    धारा 39 और 40 राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 के दो महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। धारा 39 यह सुनिश्चित करती है कि शराब का सही मात्रा में व्यापार हो और माप-तौल में कोई धोखाधड़ी न हो। वहीं, धारा 40 सरकार के राजस्व को सुरक्षित करने के लिए कड़े प्रावधान करती है, जिससे आबकारी शुल्क का भुगतान समय पर किया जाए।

    ये प्रावधान न केवल सरकार के वित्तीय हितों की रक्षा करते हैं, बल्कि शराब व्यापार में पारदर्शिता और अनुशासन भी सुनिश्चित करते हैं।

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