धारा 362 और 363, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: मामलों का हाईकोर्ट में संदर्भ और पहले से दोषी व्यक्तियों का परीक्षण

Himanshu Mishra

14 Feb 2025 7:19 PM IST

  • धारा 362 और 363, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: मामलों का हाईकोर्ट में संदर्भ और पहले से दोषी व्यक्तियों का परीक्षण

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) भारत में आपराधिक प्रक्रिया (Criminal Procedure) को नियंत्रित करने वाला नया कानून है। इसने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC, 1973) को प्रतिस्थापित (Replace) किया है ताकि न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) को अधिक प्रभावी और सुव्यवस्थित बनाया जा सके।

    धारा 362 और 363 यह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं कि किन मामलों को हाईकोर्ट (Court of Session) को भेजा जाना चाहिए, और जो व्यक्ति पहले किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए हैं, उन्हें दोबारा अपराध करने पर किस प्रकार न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) से गुजरना होगा। इन प्रावधानों (Provisions) का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गंभीर अपराधों का परीक्षण सही न्यायालय (Appropriate Court) में हो और पुनरावृत्ति अपराधियों (Repeat Offenders) को सही दंड दिया जाए।

    धारा 362: मामलों को सत्र न्यायालय (Court of Session) में भेजने की प्रक्रिया (Commitment of Cases)

    धारा 362 यह बताती है कि यदि किसी मजिस्ट्रेट (Magistrate) को किसी मामले की सुनवाई के दौरान यह पता चलता है कि यह मामला सत्र न्यायालय (Court of Session) में सुना जाना चाहिए, तो वह इसे तुरंत वहां भेज देगा।

    मजिस्ट्रेट की भूमिका (Role of the Magistrate) मामलों को हाईकोर्ट भेजने में

    जब कोई मजिस्ट्रेट किसी मामले की सुनवाई कर रहा होता है, तो शुरू में उसे लग सकता है कि उसके पास उस मामले की सुनवाई करने का अधिकार (Jurisdiction) है। लेकिन जैसे-जैसे सबूत (Evidence) सामने आते हैं, उसे लग सकता है कि यह मामला अधिक गंभीर है और इसे सत्र न्यायालय (Court of Session) में भेजना आवश्यक है।

    यदि यह समझ न्यायाधीश द्वारा निर्णय (Judgment) लिखने से पहले किसी भी समय आती है, तो उसे तुरंत यह मामला सत्र न्यायालय को भेज देना चाहिए।

    मामलों को सत्र न्यायालय भेजने की आवश्यकता क्यों होती है?

    1. गंभीर अपराधों की गहरी जांच की जरूरत (Serious Offenses Need Higher Scrutiny)

    सत्र न्यायालय के पास अधिक अधिकार (More Jurisdiction) होते हैं और यह अधिक गंभीर अपराधों की सुनवाई करता है। उदाहरण के लिए, हत्या (Murder), बलात्कार (Rape), लूट (Dacoity), या धोखाधड़ी (Fraud) जैसे मामलों की गहराई से जांच की जरूरत होती है, जिसे एक मजिस्ट्रेट पूरा नहीं कर सकता।

    2. न्यायसंगत सुनवाई सुनिश्चित करना (Ensuring Fair Trial)

    जब कोई मामला सही न्यायालय में सुना जाता है, तो अभियुक्त (Accused) को एक निष्पक्ष न्यायिक प्रक्रिया (Fair Judicial Process) मिलती है।

    3. कानूनी जटिलताओं से बचाव (Avoiding Legal Complications)

    यदि कोई मजिस्ट्रेट ऐसे मामले की सुनवाई करता है, जिस पर उसका अधिकार नहीं है, तो उसका फैसला हाईकोर्ट में चुनौती (Challenge in Higher Courts) बन सकता है। इससे मामले में देरी हो सकती है और दोबारा सुनवाई की जरूरत पड़ सकती है।

    धारा 362 का उदाहरण (Illustration of Section 362)

    मान लीजिए कि दिल्ली के एक मजिस्ट्रेट के सामने एक व्यक्ति के खिलाफ गंभीर चोट पहुंचाने (Grievous Hurt) का मामला चल रहा है। शुरू में ऐसा लगता है कि मामला केवल चोट पहुंचाने से जुड़ा है, जो मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में आता है। लेकिन जैसे-जैसे सबूत सामने आते हैं, यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त ने वास्तव में हत्या का प्रयास (Attempt to Murder) किया था, जो कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 111 के अंतर्गत आता है।

    क्योंकि हत्या का प्रयास एक गंभीर अपराध (Serious Offense) है जिसे केवल सत्र न्यायालय (Court of Session) ही सुन सकता है, मजिस्ट्रेट को यह मामला सत्र न्यायालय को भेज देना चाहिए।

    धारा 363: पहले से दोषी व्यक्तियों (Previously Convicted Persons) का पुनः परीक्षण (Trial) करने की प्रक्रिया

    धारा 363 उन मामलों से संबंधित है, जहां किसी व्यक्ति को पहले भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अध्याय X (Chapter X - सिक्कों और स्टांप कानून से जुड़े अपराध) या अध्याय XVII (Chapter XVII - संपत्ति से जुड़े अपराध) के तहत दोषी ठहराया गया हो और वह फिर से इन्हीं अपराधों में लिप्त पाया जाए।

    धारा 363 के मुख्य प्रावधान (Key Provisions of Section 363)

    1. दोबारा अपराध करने वाले अभियुक्तों (Repeat Offenders) पर लागू

    o यह धारा तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति पहले तीन वर्ष या अधिक की सजा काट चुका हो।

    o यदि वह फिर से इन्हीं अपराधों में लिप्त पाया जाता है और अपराध की सजा तीन वर्ष या अधिक है, तो यह प्रावधान लागू होगा।

    2. मजिस्ट्रेट का निर्णय (Decision by the Magistrate)

    o यदि मजिस्ट्रेट यह पाते हैं कि अभियुक्त के खिलाफ पर्याप्त सबूत (Sufficient Evidence) हैं, तो वे उसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate - CJM) के पास भेज सकते हैं या सत्र न्यायालय (Court of Session) को सौंप सकते हैं।

    o अगर मजिस्ट्रेट के पास अपराधी को उपयुक्त सजा देने की पूर्ण शक्ति (Full Authority) है, तो वह खुद ही सुनवाई कर सकते हैं।

    3. सह-अभियुक्तों (Jointly Accused Persons) की सुनवाई

    o यदि एक से अधिक व्यक्ति उसी अपराध में शामिल हों, तो उन्हें भी हाईकोर्ट (Higher Court) में भेजा जाएगा, जब तक कि धारा 262 या 268 के तहत उन्हें बरी (Discharged) करने का कोई कारण न हो।

    धारा 363 क्यों महत्वपूर्ण है?

    1. आदतन अपराधियों पर सख्त कार्रवाई (Stronger Action Against Repeat Offenders)

    यह धारा सुनिश्चित करती है कि जो लोग बार-बार गंभीर अपराध करते हैं, उनके खिलाफ कठोर दंड (Strict Punishment) दिया जाए।

    2. अपराधियों को हतोत्साहित करना (Deterrence Against Criminals)

    यदि अपराधी जानते हैं कि दोबारा अपराध करने पर उनका मामला हाईकोर्ट में जाएगा, तो यह उनके लिए एक बड़ा दंडात्मक संकेत (Punitive Deterrent) होगा।

    3. न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाना (Judicial Efficiency)

    यदि मजिस्ट्रेट किसी अपराधी को पर्याप्त सजा नहीं दे सकते, तो मामला सत्र न्यायालय में भेजने से तेजी से न्याय (Speedy Justice) सुनिश्चित किया जाता है।

    धारा 363 का उदाहरण (Illustration of Section 363)

    मान लीजिए कि एक व्यक्ति को नकली नोट (Counterfeit Currency) बनाने के जुर्म में चार साल की सजा हुई थी। सजा पूरी होने के बाद वह फिर से नकली नोट चलाने के अपराध में पकड़ा जाता है।

    ऐसे में मजिस्ट्रेट को यह तय करना होगा:

    • क्या वह खुद इस मामले की सुनवाई कर सकते हैं?

    • या फिर इसे CJM या सत्र न्यायालय में भेजना उचित होगा?

    अगर मजिस्ट्रेट को लगता है कि अपराधी को उच्च दंड (Higher Punishment) दिया जाना चाहिए, तो उसे मामले को सत्र न्यायालय में भेजना होगा।

    धारा 362 और 363 यह सुनिश्चित करती हैं कि:

    • गंभीर मामलों की सुनवाई सही न्यायालय (Right Court) में हो।

    • पुनरावृत्ति अपराधियों (Repeat Offenders) के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

    इन प्रावधानों से न्याय प्रक्रिया अधिक प्रभावी और निष्पक्ष बनती है, जिससे अपराधियों को उचित सजा और पीड़ितों को न्याय मिलता है।

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