हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987: मकान मालिक और किरायेदार के अधिकार और ज़िम्मेदारी

Himanshu Mishra

17 Feb 2025 11:55 AM

  • हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987: मकान मालिक और किरायेदार के अधिकार और ज़िम्मेदारी

    हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987 एक ऐसा कानून (Law) है जो मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच संबंधों को नियंत्रित (Regulate) करता है।

    यह कानून किराए (Rent) को तय करने, किराए में बढ़ोतरी पर रोक लगाने और किरायेदारों को अनुचित (Unfair) रूप से निकाले जाने से बचाने के लिए बनाया गया है। अधिनियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मकान मालिक अनुचित तरीके से अधिक किराया न वसूलें और किरायेदार भी उचित किराया चुकाएं।

    इस कानून में किराए में बढ़ोतरी (Increase in Rent), ज्यादा शुल्क वसूलने पर रोक (Restriction on Excess Rent) और मकान मालिक द्वारा अतिरिक्त भुगतान की माँग पर पाबंदी (Prohibition on Additional Charges) से जुड़े नियम धारा 6, 7 और 8 में दिए गए हैं।

    कुछ मामलों में मानक किराए में वृद्धि (Increase in Standard Rent in Certain Cases) – धारा 6

    धारा 6 के तहत, मकान मालिक किराए में मनमाने ढंग से वृद्धि नहीं कर सकता। अगर किसी भवन (Building) या किराए की भूमि (Rented Land) का मानक किराया (Standard Rent) पहले ही धारा 4 के तहत तय हो चुका है, तो मकान मालिक उसमें बिना किसी उचित कारण के वृद्धि नहीं कर सकता। यह प्रावधान किरायेदारों को अनावश्यक (Unnecessary) किराया वृद्धि से बचाने के लिए बनाया गया है।

    हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों (Special Conditions) में किराए में वृद्धि की अनुमति दी गई है। यदि मकान मालिक ने किराए की जगह पर कोई अतिरिक्त निर्माण (Addition), सुधार (Improvement), परिवर्तन (Alteration) या विशेष मरम्मत (Special Repairs) किए हैं और यह काम किरायेदार के लिखित अनुरोध (Written Request) पर किया गया है, तो मकान मालिक किराए में वृद्धि कर सकता है।

    लेकिन इस वृद्धि की एक सीमा तय की गई है। मकान मालिक कुल लागत का अधिकतम 10 प्रतिशत ही किराए में बढ़ोतरी कर सकता है। इसका मतलब है कि मकान मालिक छोटे-मोटे बदलाव करके अत्यधिक किराया नहीं बढ़ा सकता।

    उदाहरण (Example):

    अगर किसी किरायेदार ने मकान मालिक से अनुरोध किया कि किराए के मकान में एक नया बाथरूम बनाया जाए और इस निर्माण की कुल लागत ₹50,000 आई, तो मकान मालिक अधिकतम ₹5,000 (₹50,000 का 10%) तक ही किराया बढ़ा सकता है। यदि मकान मालिक इससे ज्यादा बढ़ोतरी करता है, तो यह अवैध (Illegal) होगा।

    यदि किरायेदार इस वैध (Legal) रूप से बढ़ाए गए किराए का भुगतान नहीं करता, तो उसे धारा 14 के तहत बेदखली (Eviction) का सामना करना पड़ सकता है। यानी, अगर मकान मालिक ने कानून के अनुसार किराया बढ़ाया है और किरायेदार उसे चुकाने से मना करता है, तो मकान मालिक किरायेदार को मकान खाली करने के लिए कह सकता है और इसके लिए कानूनी कार्रवाई भी कर सकता है।

    मकान मालिक मानक किराए से अधिक किराया नहीं ले सकता (Landlord Not to Claim Excess Rent) – धारा 7

    धारा 7 मकान मालिक को धारा 4 के तहत तय किए गए मानक किराए से अधिक राशि माँगने से रोकती है। एक बार जब किराया तय हो जाता है, तो मकान मालिक को किसी भी प्रकार का अतिरिक्त शुल्क (Premium, Additional Charges) या मानक किराए से अधिक किराया लेने की अनुमति नहीं होती।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मकान मालिक किरायेदारों से किसी भी रूप में अधिक पैसा वसूलने के लिए मजबूर न करें। हालाँकि, मकान मालिक को यह अधिकार दिया गया है कि वह तीन महीने तक का किराया अग्रिम (Advance) रूप में ले सकता है। यानी, वह किरायेदार से एकमुश्त (Lump Sum) तीन महीने का किराया ले सकता है, लेकिन इससे अधिक राशि नहीं ले सकता।

    यदि कोई मकान मालिक और किरायेदार ऐसा अनुबंध (Agreement) करते हैं जिसमें किरायेदार मानक किराए से अधिक भुगतान करने को तैयार होता है, तो वह समझौता (Agreement) कानूनन अमान्य (Null and Void) होगा।

    उदाहरण (Example):

    अगर किसी दुकान का किराया ₹10,000 प्रति माह तय किया गया है, तो मकान मालिक इस पर अतिरिक्त ₹2,000 "मेंटेनेंस चार्ज" के रूप में नहीं मांग सकता, जब तक कि यह खर्च कानूनी रूप से अनुमोदित (Legally Approved) न हो। अगर किरायेदार से जबरदस्ती अधिक भुगतान लिया जाता है, तो वह इसकी शिकायत दर्ज कर सकता है।

    किराया अनुबंध, नवीनीकरण या किराए पर रहने के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जा सकता (No Fine or Premium for Grant, Renewal or Continuance of Tenancy) – धारा 8

    धारा 8 किरायेदारों की सुरक्षा को और मजबूत बनाती है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि मकान मालिक किराए पर मकान देने, नवीनीकरण (Renewal) या किराए की अवधि बढ़ाने के बदले कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं मांग सकता।

    यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि मकान मालिक किसी भी रूप में अग्रिम शुल्क (Advance Fee), प्रीमियम (Premium), पगड़ी (Pugree - एकमुश्त राशि), जुर्माना (Fine) या अन्य किसी भी प्रकार की अतिरिक्त राशि की माँग नहीं कर सकता।

    उदाहरण (Example):

    अगर कोई किरायेदार पाँच वर्षों से एक मकान में रह रहा है और उसका किराए का अनुबंध समाप्त हो रहा है, तो मकान मालिक किराए की अवधि बढ़ाने के लिए ₹50,000 का अतिरिक्त शुल्क नहीं मांग सकता। किरायेदार को केवल मानक किराया देना होगा।

    इसी तरह, अगर कोई नया किरायेदार किसी दुकान को किराए पर लेना चाहता है और मकान मालिक उसे "गुडविल चार्ज" के रूप में ₹1 लाख की माँग करता है, तो यह माँग अवैध होगी।

    कैसे ये प्रावधान किरायेदारों की रक्षा करते हैं? (How These Provisions Protect Tenants?)

    धारा 6, 7 और 8 किरायेदारों को कई तरह से सुरक्षा प्रदान करते हैं:

    • धारा 6 यह सुनिश्चित करती है कि मकान मालिक बिना किसी उचित कारण के किराया न बढ़ाए।

    • धारा 7 यह रोकती है कि मकान मालिक मानक किराए से अधिक राशि न वसूले।

    • धारा 8 यह प्रतिबंधित करती है कि मकान मालिक किराया अनुबंध देने या नवीनीकरण के बदले कोई अतिरिक्त भुगतान न मांगे।

    हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987 के तहत किराए से संबंधित प्रावधान स्पष्ट और सख्त हैं। धारा 6 केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किराए में बढ़ोतरी की अनुमति देती है।

    धारा 7 मकान मालिक को मानक किराए से अधिक लेने से रोकती है, और धारा 8 मकान मालिक को किराए पर मकान देने या नवीनीकरण के लिए किसी भी अतिरिक्त शुल्क की माँग से प्रतिबंधित करती है। ये प्रावधान किरायेदारों को अनुचित वित्तीय बोझ से बचाते हैं और किराए की प्रणाली को पारदर्शी (Transparent) और न्यायसंगत (Fair) बनाते हैं।

    Next Story