Transfer Of Property में लीज का पीरियड
Shadab Salim
17 Feb 2025 4:16 AM

पीरियड पट्टे का एक महत्वपूर्ण घटक है। शाश्वतता के लिए लीज़ का सृजन एक निश्चित कालावधि हेतु किया गया। यह कालावधि प्रत्यक्षतः या परोक्षतः निर्धारित होगी। लीज़ के प्रारम्भ होने की तिथि साधारणतया लीज़कर्ता एवं लीज़ग्रहीता द्वारा आपसी करार के माध्यम से निर्धारित की जाती है,लेकिन यदि किसी कारणवश या उदासीनता के फलस्वरूप तिथि का निर्धारण नहीं हुआ है जिससे लीज़ का प्रारम्भ हुआ माना जा सके, तो इस अधिनियम की धारा 110 के अन्तर्गत लीज़ निष्पादन की तिथि से प्रारम्भ हुआ माना जाएगा। परन्तु यह नियम निष्पाद्य मामलों में लागू नहीं होगा।
जहाँ तक निष्पाद्य मामलों का प्रश्न है मार्शल बनाम बेरीज के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि ऐसा लीज़ अनिश्चितता के कारण शून्य होगा यदि लीज़ के प्रारम्भ होने की तिथि का उल्लेख लीज़ विलेख में नहीं किया गया है और न ही इसके निर्धारण के लिए कोई सामग्री है। यदि लीज़ के सृजन हेतु हुए करार के अध्यधीन लीज़ग्रहीता सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त कर लेता है, तो पट्टे का प्रारम्भ उस तिथि से हुआ माना जाएगा जिस तिथि को सम्पत्ति का कब्जा लिया गया था।
लीज़ वर्तमान के प्रभाव से प्रभावी हो सकेगा या भविष्य के प्रभाव से या किसी ऐसी घटना के घटित होने पर जो निश्चयतः घटित हो। यदि लीज़ भविष्य की किसी तिथि से प्रभावी होने वाला है, तो यह पर्याप्त होगा यदि वह पर्याप्त रूप से अभिनिश्चित किये जाने योग्य हो जब लीज़ प्रभावी हो।
यदि लीज़ में कोई शर्त उल्लिखित है जिसके अन्तर्गत पट्टे के नवीकरण का विकल्प रखा गया है तो इससे लीज़ की कालावधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा चाहे वह लीज़कर्ता या लीज़ग्रहीता के विकल्प पर नवीकृत होने वाली हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब तक विकल्प का प्रयोग नहीं किया जाता है तब तक लीज़ की अवधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत लीज़ किसी निश्चित कालावधि के लिए या शाश्वतता के लिए सृजित किया जा सकता है। पर कठिनाई तब उत्पन्न होती है जब लीज़ विलेख में कालावधि का उल्लेख न किया गया हो। ऐसे पट्टे को वैध संव्यवहार की संज्ञा दी जाए अथवा नहीं, यह एक कठिन प्रश्न है।
सेवक राम बनाम मेरठ म्यूनिसिपल बोर्ड के वाद में यह अभिनिर्णीत हुआ था कि ऐसा संव्यवहार लीज़ के रूप में शून्य होगा। परन्तु यह भी मत व्यक्त किया गया है कि ऐसा संव्यवहार यथेच्छ किरायादारी का सृजन करेगा जो किराया के भुगतान के पश्चात् वर्षानुवर्षी या मासानुमासी लीज़ में परिवर्तित हो जाएगा। एक बेमियादी काबुलियत अर्थात् वार्षिक किराया के लिए कालावधि निर्धारित किये बिना लीज़ का करार के मामले में प्रिवी कौंसिल ने अभिनिर्णीत किया है कि बेमियादी काबुलियत या तो शाश्वत लीज़ या वर्षानुवर्षी लीज़ के रूप में प्रभावी होगी और इन दोनों के बीच में इसकी कोई स्थिति नहीं बनती है।
लीज़ के सृजन के लिए, यह आवश्यक नहीं है कि लीज़ सावधि हो। यह पर्याप्त होगा यदि लीज़ निश्चित है।
यदि किसी सम्पत्ति (दुकान) का लीज़ एक पूर्व सैनिक को पाँच वर्ष की अवधि के लिए एक सरकारी नीति के तहत प्रदान किया गया है तो ऐसी सम्पत्ति के पट्टे का नवीकरण नहीं किया जा सकेगा। पाँच वर्ष की अवधि के समापन के उपरान्त लीज़ग्रहीता का सम्पति में कोई हित नहीं रहता है और वह नवीकरण हेतु दावा प्रस्तुत नहीं कर सकता है। ऐसे व्यक्ति नवीन लीज़ प्राप्त करने हेतु, यदि चाहें, तो आवेदन कर सकेंगे
यह एक संव्यवहार है जिसे वैध होने के लिए प्रतिफल की आवश्यकता होती है। प्रतिफल या तो प्रीमियम हो सकता है या रेन्ट या दोनों प्रीमियम तथा रेण्ट एक ही वस्तु नहीं है। प्रीमियम वस्तु के हस्तान्तरण का मूल्य या कीमत होता है जिसका भुगतान या तो कर दिया गया हो या करने का वचन दिया गया हो। इसके विपरीत रेन्ट लीज़ग्रहीता द्वारा किया गया कोई भुगतान है जो लीज़ के प्रतिफल का भाग है। प्रीमियम एवं रेन्ट के विभेद को सुप्रीम कोर्ट के कमिश्नर ऑफ इन्कम टैक्स बनाम पानवारी टी० कं० के वाद में सुस्पष्ट किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुस्पष्ट किया है कि :-
"जब लीज़कर्ता का हित मूल्य के बदले अन्तरित किया जाता है तो संदत्त कीमत या मूल्य को प्रीमियम या सलामी कहा जाता है। जबकि लीज़ के अन्तर्गत लाभ के निरन्तर उपभोग के लिए रकम का नियतकालिक भुगतान रेन्ट की प्रकृति का होगा। प्रथम भुगतान पूँजीगत आय है जबकि पाश्चिक भुगतान एक राजस्व प्राप्ति है।"
कोर्ट ने यह भी इंगित किया है कि प्रीमियम एवं अग्रिम रेन्ट में विभेद किया जाना चाहिए। प्रीमियम वह रकम है जो लीज़ प्राप्त करने के लिए मूल्य के रूप में संदत्त की जाती है कि रेन्ट उन समस्त भुगतानों को कहा जाता है जो भूमि या भवन के धारणाधिकार एवं उपभोग के अधिकार के लिए अदा किया जाता है। धारा 105 के अन्तर्गत रेन्ट का भुगतान रकम या धन के अतिरिक्त फसलों के अंश या सेवा या किसी अन्य मूल्यवान वस्तु के, जो कालावधीय रूप से या विनिर्दिष्ट अवसरों पर अन्तरिती द्वारा अन्तरक को दी जाती है या दी जाती है।
संव्यवहार की वैधता के लिए यह आवश्यक है कि रेन्ट निश्चित हो पर उसका वास्तविक आँकड़ा या मात्रा निश्चित हो यह आवश्यक नहीं है। यदि उसे अभिनिश्चित करने में कोई अनिश्चितता नहीं है। यदि किसी लीज़ विलेख में यह उल्लिखित है तथा पक्षकार उस पर सहमत हैं कि लीज़ के नवीकरण के समय रेन्ट अभिनिश्चित किया जाए तत्समय प्रचलित परिसर के बाजार मूल्य को ध्यान में रखकर तो यह संव्यवहार अनिश्चितता के आधार पर शून्य नहीं होगा।
संव्यवहार में यदि हासित रेन्ट का भुगतान किया जाता है और उसे स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे निश्चयतः यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाएगा कि नये पट्टे का सृजन हुआ है। पर यदि रेन्ट की मात्रा में परिवर्तन के साथ-साथ लीज़ की अन्य आवश्यक शर्तों में भी परिवर्तन हुआ है, तो नवीन पट्टे का सृजन हुआ माना जाएगा।
रेन्ट का एक महत्वपूर्ण गुण है विनिर्दिष्ट अवसरों पर इसका आवर्ती होना। परन्तु लीज़ग्रहीता द्वारा किया गया व्यक्तिगत करार कि यह एक रकम वार्षिक रूप में अदा करेगा रेन्ट नहीं होगा लीज़ग्रहीता द्वारा किया गया म्यूनिसिपल करों का भुगतान लीज़ का भाग हो सकेगा। यदि लीज़ करार के अनुसार रेन्ट के रूप में धन को एक निश्चित मात्रा देय थी और चूक होने की दशा में एक निश्चित रकम इसके मूल्य के रूप में देय थी, जब चूक हुई तो कोर्ट ने अभिनित किया कि लैण्ड लार्ड केवल निर्धारित रकम पाने का अधिकारी है न कि बाजार मूल्य पर फसल की कीमत।
एक सेवक या नौकर जो सेवा प्रदान करने के बदले में रेन्ट मुक्त भूमि धारित करता है, लीज़ग्रहीता होगा तथा उसके द्वारा प्रदत्त सेवा रेन्ट समझा जाएगा। इसी प्रकार यदि यह समझौता हुआ हो कि रेन्ट का भुगतान करने के बजाय प्रतिवादी, वादी को अपनी सेवायें पारिवारिक डॉक्टर के रूप में प्रदान करेगा, यह करार लीज़ माना जाएगा।