जब न्यायिक अधिकारी पर्याप्त कठोर दंड नहीं दे सकता, तब अपनाई जाने वाली प्रक्रिया : धारा 364, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Himanshu Mishra

15 Feb 2025 6:24 PM IST

  • जब न्यायिक अधिकारी पर्याप्त कठोर दंड नहीं दे सकता, तब अपनाई जाने वाली प्रक्रिया : धारा 364, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) का उद्देश्य देश की आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) को अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बनाना है।

    इस संहिता की धारा 364 उन मामलों से संबंधित है, जहाँ किसी Magistrate (न्यायिक अधिकारी) को यह महसूस होता है कि अपराध (Offense) के लिए जो सजा (Punishment) आवश्यक है, वह उसकी अधिकार सीमा (Jurisdiction) से अधिक है।

    ऐसे मामलों में, यह धारा एक स्पष्ट प्रक्रिया प्रदान करती है, जिसके तहत मामला Chief Judicial Magistrate (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) को सौंप दिया जाता है ताकि उचित निर्णय (Judgment) लिया जा सके।

    Magistrate (न्यायिक अधिकारी) के अधिकार की सीमाएँ (Jurisdictional Limitations)

    भारत की न्याय व्यवस्था (Judicial System) में Magistrates की विभिन्न श्रेणियाँ (Different Classes) होती हैं, और उनकी सजा देने की शक्ति (Sentencing Power) भी अलग-अलग होती है।

    • First-Class Magistrate (प्रथम श्रेणी न्यायिक अधिकारी) अधिकतम तीन साल तक की कैद (Imprisonment) की सजा दे सकता है।

    • Second-Class Magistrate (द्वितीय श्रेणी न्यायिक अधिकारी) अधिकतम एक साल तक की सजा दे सकता है।

    हालांकि, कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो अधिक गंभीर होते हैं और जिनके लिए कठोर दंड (Severe Punishment) की आवश्यकता होती है। यदि किसी मामले में Magistrate को लगता है कि वह अधिक कठोर या भिन्न प्रकार की सजा (Different Kind of Punishment) नहीं दे सकता, तो इस धारा के तहत मामला Chief Judicial Magistrate को भेज दिया जाता है।

    Chief Judicial Magistrate (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) को मामला भेजने की प्रक्रिया (Procedure for Transferring the Case)

    यदि किसी मामले की सुनवाई (Trial) के दौरान, दोनों पक्षों (Prosecution & Defense) की दलीलें सुनने के बाद Magistrate को लगता है:

    1. आरोपी (Accused) दोषी (Guilty) है, और

    2. उसके लिए जो सजा उचित होगी, वह Magistrate के अधिकार से अधिक है,

    तो उसे अपनी राय (Opinion) लिखकर पूरा मामला Chief Judicial Magistrate को भेज देना चाहिए। साथ ही, आरोपी को भी Chief Judicial Magistrate की अदालत में प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। इस प्रक्रिया में, Magistrate केवल यह तय करता है कि मामला उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है और इसे उच्च स्तर पर भेजा जाना चाहिए।

    Chief Judicial Magistrate के पास निम्नलिखित अधिकार (Powers) होते हैं:

    • मामले से जुड़े पक्षकारों (Parties) से पूछताछ करना।

    • उन गवाहों (Witnesses) को दोबारा बुलाना और जाँच करना, जिन्होंने पहले गवाही दी थी।

    • आवश्यक होने पर नया साक्ष्य (Additional Evidence) मँगवाना और उसकी समीक्षा करना।

    • मामले में उचित निर्णय (Judgment), सजा (Sentence) या आदेश (Order) पारित करना।

    इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी आरोपी को केवल इसलिए कम सजा न मिले क्योंकि मामला एक ऐसे Magistrate के पास आया था, जिसकी सजा देने की शक्ति सीमित थी।

    एक से अधिक आरोपियों (Multiple Accused Persons) के मामलों में प्रक्रिया

    धारा 364 यह भी स्पष्ट करती है कि जब एक ही मुकदमे (Trial) में कई आरोपी शामिल होते हैं, और Magistrate को लगता है कि उनमें से किसी एक को अधिक कठोर दंड दिया जाना चाहिए, तो उसे सभी आरोपियों को Chief Judicial Magistrate के पास भेज देना चाहिए।

    उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि पाँच व्यक्ति मिलकर एक संगठित हमले (Aggravated Assault) में शामिल होते हैं। Magistrate को लगता है कि इनमें से एक आरोपी का अपराध अधिक गंभीर है और इसके लिए पाँच साल की सजा आवश्यक है, जबकि उसके अधिकार में अधिकतम तीन साल की सजा देने की शक्ति है। ऐसे में, वह पूरे मामले को Chief Judicial Magistrate को भेज देगा ताकि सभी आरोपियों पर एक साथ उचित कार्रवाई हो सके।

    धारा 364 के अनुप्रयोग (Application) का उदाहरण

    इस धारा को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं:

    मान लीजिए कि एक First-Class Magistrate एक बड़े आर्थिक घोटाले (Financial Fraud) की सुनवाई कर रहा है। सुनवाई के बाद, उसे यह महसूस होता है कि आरोपी दोषी है और उसे पाँच साल की कैद होनी चाहिए। लेकिन चूँकि Magistrate अधिकतम तीन साल की सजा ही दे सकता है, इसलिए वह मामला Chief Judicial Magistrate को भेज देता है, जो अधिक कठोर सजा सुना सकता है।

    इसी प्रकार, यदि एक Second-Class Magistrate एक ऐसे व्यक्ति का मुकदमा देख रहा है, जिसे सार्वजनिक अशांति (Public Disturbance) के कारण भविष्य में अच्छे आचरण (Good Behavior) का बॉन्ड भरने के लिए कहा जाना चाहिए, लेकिन Magistrate के पास ऐसी शक्ति नहीं है, तो उसे भी यह मामला Chief Judicial Magistrate को भेजना होगा।

    धारा 364 का आपराधिक न्याय व्यवस्था में महत्त्व (Significance in Criminal Justice System)

    इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य न्याय की निष्पक्षता और कुशलता (Fairness & Efficiency in Justice) को बनाए रखना है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी आरोपी Magistrate की सीमित सजा देने की शक्ति का लाभ न उठा सके और उचित सजा प्राप्त करे।

    इसके अतिरिक्त, यह धारा न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) को व्यवस्थित और स्पष्ट बनाती है, जिससे अनावश्यक अपीलों (Unnecessary Appeals) और कानूनी जटिलताओं (Legal Complications) को कम किया जा सके। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि जिन मामलों में अधिक जांच (Enhanced Scrutiny) की आवश्यकता है, उन्हें सही अधिकारी के पास भेजा जाए।

    Chief Judicial Magistrate को यह अधिकार दिया गया है कि वह न केवल गवाहों को फिर से बुला सके, बल्कि यदि आवश्यक हो तो नए साक्ष्य (New Evidence) भी मँगवा सके। यह संपूर्ण प्रक्रिया नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांत को मजबूत करती है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 364 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि यदि किसी Magistrate के पास किसी अपराध के लिए पर्याप्त सजा देने की शक्ति नहीं है, तो वह मामला Chief Judicial Magistrate को सौंप दे। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी अपराधी केवल Magistrate की सीमित शक्तियों का लाभ उठाकर कम सजा प्राप्त न कर सके।

    यह धारा न्यायिक प्रक्रिया में एकरूपता (Uniformity), कुशलता (Efficiency), और निष्पक्षता (Fairness) बनाए रखने में सहायक है। यह न केवल Magistrate को उनके अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को समझने में मदद करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि अपराधियों को उचित और कड़ी सजा मिले, जिससे न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता बनी रहे।

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