Transfer Of Property में लीज़ के प्रावधान
Shadab Salim
15 Feb 2025 4:35 AM

लीज़-धारा 105
धारा 105 लीज़ को परिभाषित करती है। एक आंशिक अन्तरण के रूप में अर्थात् कतिपय कालावधि के लिए उपभोगों के अधिकार का अन्तरण इस धारा के अनुसार अचल या स्थावर सम्पत्ति का लीज़ से अभिप्रेत है। ऐसी सम्पत्ति का उपभोग करने के अधिकार का अन्तरण जो किसी निश्चित अवधि के लिए भुगतान किए गये या भुगतान का वचन दिए गये मूल्य, धन, फसलों के अंश अथवा आवधिक रूप में दिए जाने वाले मूल्य की किसी अन्य वस्तु के प्रतिफल में अन्तरितों द्वारा अन्तरक को विशिष्ट अवसरों पर दिया जाता है।
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है। कि लीज़दाता अपनी स्थावर या अचल सम्पत्ति के उपभोग का अधिकार लीज़ग्रहीता को हस्तान्तरित करता है तथा लीज़ग्रहीता इस अधिकार के बदले में लीज़कर्ता को मूल्य प्रतिफल के रूप में या तो अदा करता है या अदा करने का वचन देता है। प्रतिफल मूल्य के रूप में फसलों के अंश के रूप में या किसी सेवा के रूप में या किसी अन्य मूल्यवान वस्तु के रूप में जो कालावधीय रूप में या विनिर्दिष्ट अवसरों पर अन्तरिती द्वारा अन्तरक को दी जाती है या दी जानी है।
लीज़ का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसमें स्वामित्व एवं कब्जा को पृथक्-पृथक् कर दिया जाता है। उपभोग का अधिकार लीज़ग्रहीता को मिलता है जिसके लिए सम्पत्ति का कब्जा मिलना आवश्यक है, जबकि स्वामित्व का अधिकार, अन्तरक में ही बना रहता है। चूँकि अन्तरक सम्पत्ति में अपना सम्पूर्ण हित अन्तरित अर्थात् लीज़ग्रहीता को अन्तरिती नहीं करता है, जो कुछ उसके पास अवशिष्ट रूप में बचा रहता है उसे 'राइट आफ रिवर्सन' कहा जाता है। यह राइट ऑफ रिवर्सन लीज़कर्ता का महत्वपूर्ण अधिकार होता है जिसके माध्यम से वह लीज़ग्रहीता को प्रदत्त सम्पत्ति वापस पाने का अधिकारी होता है और उसका विखण्डित स्वामित्व पुनः सम्पूर्ण हो जाता है।
लीज़ के यह इंग्रेडिएंट्स हैं-
इसमें सिर्फ उपभोग का अधिकार मात्र अन्तरित किया जाता है। लीज़ग्रहीता को सम्पत्ति से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण अधिकार जैसे सम्पत्ति को अन्तरित करने का अधिकार विनष्ट करने का अधिकार इत्यादि नहीं प्राप्त होते हैं।
पट्टे का सृजन उसी स्थिति में होगा जबकि सम्पत्ति का स्वामित्व एवं स्वत्व पृथक् पृथक् हो गया हो। स्तवत्व अर्थात् भौतिक कब्जा लीज़ग्रहीता के पास चला जाता है जबकि स्वामित्व लीज़कर्ता के पास रहता है।
लीज़ का सृजन संविदा से होता है, परन्तु यह संविदा मात्र ही नहीं है। इसमें सम्पत्ति में का महत्वपूर्ण हित अन्तरित होता है जिसके आधार पर लीज़ग्र होता इसका उपभोग करने हेतु समर्थ होता है। इसके द्वारा लोक लक्षी अधिकार का सृजन होता
लीज़ सामान्यतया संक्रमणीय एवं उत्तराधिकार दोनों ही गुणों से युक्त होते हैं, पर रेण्ट अधिनियम के अन्तर्गत सृजित होने वाले पट्टे इन गुणों से युक्त नहीं होते हैं। वे पूर्णरूपेण वैयक्तिक होते हैं तथा लीज़ग्रहीता के जीवनकाल तक अस्तित्ववान रहते हैं एवं उसकी मृत्यु के साथ इसका भी पर्यवसान हो जाता है।
पक्षकार
लीज़ की विषयवस्तु
अधिकार का अन्तरण
प्रतिफल या भाटक या रेण्ट
लीज़ अचल सम्पत्ति में एक हित का अन्तरण है। यह अधिनियम की धारा 105 के अन्तर्गत सम्पत्ति का अन्तरण है अतः इसे अन्तरण की सभी औपचारिकताओं को पूर्ण करना होगा, साथ ही अधिनियम की अन्य उन धाराओं का भी अनुपालन करना होगा जहाँ तक वे इस पर प्रवर्तनीय हैं धारा 105 के अन्तर्गत उल्लिखित लीज़ में उपलीज़ स्पष्टतः समाहित है।
इस धारा में दी गयी परिभाषा केवल इसी अधिनियम के अन्तर्गत सृजित पट्टों पर लागू होगी। उन पट्टों पर यह परिभाषा नहीं होगी जो इस अधिनियम से शासित नहीं होते हैं जैसे कृषि हेतु लीज़ या इन स्थानों पर सृजित लीज़ जिन पर यह अधिनियम प्रवर्तित नहीं होता है। इत्यादि। लीज़ की मौलिक विशेषताओं को किसी भी प्रकार जैसे अधित्यजन, विबन्धन, अभिस्वीकृति अथवा का प्रयोग करके भी, परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। यहाँ तक कि पक्षकारों के अभिवचन द्वारा भी इसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
पक्षकार-
एक सामान्य करार की भाँति, लीज़ में भी दो पक्षकार होते हैं तथा उन्हीं के बीच हुए करार से पट्टे का सृजन होता है। एक व्यक्ति सम्पत्ति का स्वामी होता है जिसे लीज़फत या लेसरे कहा जाता है, जिससे दूसरा व्यक्ति उस सम्पत्ति को एक अवधि के लिए प्रतिफल या रेण्ट पर लेने का प्रस्ताव करता है। प्रस्तावक को लीज़ग्रहीता या 'लेसी' कहा जाता है। दोनों पक्षकारों को क्रमश: लैण्डलार्ड एवं टेनेन्ट भी कहा जाता है। लीज़कर्ता के लिए यह आवश्यक है कि वह संविदा अधिनियम, 1872 में संविदा के पक्षकारों हेतु उल्लिखित समस्त अर्हताओं से युक्त हो, जैसे, उसे वयस्क होना चाहिए, मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए सम्पत्ति उसकी होनी चाहिए एवं अन्य वैधानिक क्षमताओं से वह युक्त हो तथा प्रतिबन्धों से मुक्त हो। सम्पत्ति लीज़कर्ता की होनी चाहिए।
इस पद से यह अभिप्रेत है कि लीज़कर्ता सम्पत्ति का स्वामी हो अथवा सम्पत्ति के स्वामी द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत हो। यदि लीज़ सम्पत्ति के स्वामी द्वारा किया जा रहा है जो किसी अनर्हता से प्रभावित नहीं है तो लीज़ किसी भी कालावधि के लिए जिसे लीज़कर्ता उपयुक्त समझे सृजित किया जा सकेगा। किन्तु यदि लीज़ ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है जो स्वयं सम्पत्ति का स्वामी नहीं है या सम्पत्ति में सीमित धारक है, जैसे जीवनकाल के लिए या एक निश्चित अवधि के लिए तो ऐसा व्यक्ति अपने धारणाधिकार के अन्तर्गत हो सम्पत्ति का लीज़ कर सकेगा जब तक कि वह अन्यथा विशिष्टतः प्राधिकृत न हो इस सिद्धान्त के अन्तर्गत लीज़ धारक भी सम्पत्ति का लीज़ करने के लिए प्राधिकृत है तथा उसके द्वारा किया गया लीज़, उपलीज़ या अधीनस्थ लीज़ कहलाता है।
यदि लीज़ संयुक्त अभिधारी (टेनेन्ट) द्वारा प्रदान किया गया है तथा एक अभिधारी को मृत्यु हो जाती है तो लीज़ग्रहीता उत्तरजीवी लीज़दाता के अध्यधीन लीज़ धारण करेगा, पर लीज़ सामान्यिक अभिधारों द्वारा प्रदान किया गया है और उनमें से एक की मृत्यु हो जाती है तो लीज़ धारकों का कब्जा सामान्य कब्जा नहीं होगा और वे सामान्यिक अभिधारी नहीं कहलाएंगे।
ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो संविदा करने के लिए अर्ह है तथा अन्तरणीय सम्पत्ति के स्वामी हैं अथवा यदि सम्पत्ति उसकी अपनी नहीं है तो सम्पत्ति के स्वामी द्वारा अन्तरणीय सम्पत्ति का अन्तरण करने के लिए प्राधिकृत है, लीज़ प्रदान करने के लिए सक्षम है एक अवयस्क द्वारा की गयो संविदा शून्य होती है। अतः ऐसा व्यक्ति लीज़ प्रदान करने के लिए सक्षम नहीं है। वह लीज़दाता नहीं हो सकता है। यदि वह लीज़ प्रदान करता है तो लीज़ का सृजन शून्य होगा। अवयस्क व्यक्ति, वयस्क होने के पश्चात् अपने द्वारा अवयस्कता के दौरान किए गये पट्टे का अनुसमर्थन भी नहीं कर सकता है किराया लेकर या अन्यथा किन्तु अवयस्क का संरक्षक लीज़ प्रदान कर सकता है और यदि उसने अपने प्राधिकार से अधिक का लीज़ प्रदान किया है तो अवयस्क, वयस्क होने के उपरान्त ऐसे पट्टे का अनुसमर्थन कर सकेगा। अनुसमर्थन के समय अवयस्क अपनी शर्तें लीज़ हेतु रख सकेगा और यदि लीज़ग्रहीता नई शर्तें स्वीकार कर लेता है तो पूर्ववर्ती लीज़ नवीन पट्टे द्वारा प्रतिस्थापित हो जाएगा।
एक अवयस्क की सम्पत्ति का संरक्षक प्राधिकृत है, कोर्ट की अनुमति के बिना भी पाँच वर्ष से अनधिक अवधि तक का या एक वर्ष से अनधिक अवधि तक का जब से अवयस्क ने लीज़ प्रदान करने के लिए वयस्कता प्राप्त की हो। एक वसीयती संरक्षक, वसीयत की शर्तों के अध्यधीन लीज़ प्रदान करने के लिए प्राधिकृत है तथा प्रशासक या निष्पादक, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 307 की परिसीमा के अन्तर्गत लीज़ प्रदान करने के लिए प्राधिकृत है।
एक अवयस्क, अपने दूसरे मित्र, जो वयस्क है, के माध्यम से लीज़ का सृजन कर सकता है, जिसमें ऐसी शर्तें हो सकती हैं, जो अवयस्क को कतिपय कार्य करने के लिए बाध्य करती हों। ऐसा लीज़ शून्य नहीं होगा भले ही वह प्रसंविदा अवयस्क के विरुद्ध अप्रवर्तनीय हो। लीज़ग्रहीता लीज़ को समाप्त नहीं करा सकेगा। वह अवयस्क से प्रसंविदा का विशिष्ट अनुपालन भी नहीं करा सकेगा, परन्तु वह क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी होगा। एक अवयस्क द्वारा किया गया लीज़ यदि शून्य होता है, फिर भी साम्या के साधारण सिद्धान्तों के अन्तर्गत कोर्ट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आदेश करे कि लीज़ग्रहीता को निष्काषित करने से पूर्व उसके द्वारा संदत्त प्रतिफल उसे वापस कर दिया जाए।
अवयस्क के पक्ष में सम्पत्ति का अन्तरण जैसा कि अधिनियम की धारा 7 में उल्लिखित है, शून्य नहीं होता है। परन्तु यदि लीज़ अवयस्क के पक्ष में किया जाता है जिसमें ऐसी प्रसंविदाएँ हैं जिसे अवयस्क द्वारा पूर्ण किया जाना है तो लीज़ अवैध होगा।
यदि लीज़ की शर्तों के अधीन प्रतिफल का प्रीमियम के रूप में भुगतान एकमुश्त कर दिया गया है और कोई भी प्रसंविदा बकाया नहीं है जिसे अवयस्क लीज़ग्रहीता द्वारा पूर्ण किया जाना है, तो ऐसा लीज़ वैध होगा।
राघवाचारियर बनाम श्रीनिवास राघव के वाद में न्यायमूर्ति श्री निवास आयंगर ने उन मामलों, जिनमें अन्तरण कतिपय वचनों या प्रसंविदाओं के प्रतिफलस्वरूप तथा उन मामलों में जिनमें अन्तरित सम्पत्ति स्वयं कतिपय दायित्वों से युक्त होती है, के बीच अन्तर सुस्पष्ट किया है। प्रथम स्थिति में अवयस्क के पक्ष में अन्तरण शून्य होगा जबकि बाद वाली स्थिति में शून्य नहीं होगा।
मुस्लिम विधि के अन्तर्गत एक अवयस्क, जिसका प्रतिनिधित्व उसका वस्तुतः नियुक्त संरक्षक कर रहा हो, एक ऐसी संविदा में भागीदार नहीं हो सकेगा जो उसकी अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित हो या उसे प्रभावित करता हो। यदि वह ऐसा करता है तो संविदा शून्य होगी और दोनों में से किसी भी पक्षकार द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होगा लीज़ एक अचल सम्पत्ति में हित सृजित करता है अतः अवयस्क के वस्तुतः संरक्षक द्वारा लीज़ को संविदा शून्य होगी। किन्तु एक मुस्लिम पिता यदि ऐसा करता है। और उसके द्वारा सृजित लीज़ उसके बच्चों के लाभ के लिए है तो वह वैध होगा।
लीज़ का सृजन करने के लिए लीज़कर्ता का सक्षम होना आवश्यक है? एक ऐसे व्यक्ति द्वारा पट्टे का सृजन, जिसके विरुद्ध कब्जा वापसी की डिक्री पारित हुई हो स्वामित्व की उद्घोषणा के पश्चात् वैध नहीं होगा क्योंकि वह सम्पत्ति अन्तरित करने के लिए सक्षम नहीं था। लीज़ग्रहीता को किसी प्रकार का हित नहीं प्राप्त होगा।
लीज़ग्रहीता लीज़ लेने वाले व्यक्ति जिसे लीज़ग्रहीता कहा जाता है में भी संविदा करने की क्षमता होनी चाहिए। यह क्षमता लीज़ लेने की तिथि पर होनी चाहिए। लीज़ एक व्यक्ति या एक से अधिक व्यक्तियों के नाम एक साथ हो सकता है। लीज़ जीवित व्यक्तियों के अतिरिक्त विधिक व्यक्तियों के नाम भी हो सकता है जैसे कम्पनी भागीदारी फर्म सोसाइटी, इत्यादि। अव्यस्क लीज़ग्रहीता नहीं हो सकता है क्योंकि लीज़ के अन्तर्गत उत्पन्न प्रसंविदाओं को पूर्ण करने के लिए अवयस्क को बाध्य नहीं किया जा सकता है यदि लीज़ एक से अधिक व्यक्तियों के पक्ष में संयुक्त रूप में किया जा रहा है तो सुस्पष्ट तत्प्रतिकूल प्रावधान के अभाव में समस्त लीज़ग्रहोता. एक लीज़ग्रहीता के रूप में समझे जाएंगे।
लीज़ की विषयवस्तु
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत जिस वस्तु का लीज़ किया जा सकेगा उसे अचल या स्थावर सम्पत्ति होनी चाहिए। अचल या स्थावर सम्पत्ति किसे कहा जाएगा, इसका वर्णन अधिनियम की धारा 3 में किया गया है। इसके अनुसार स्थावर सम्पत्ति के अन्तर्गत खड़ाकाष्ठ, उगती फसलें या घास नहीं आती हैं। यह एक नकारात्मक परिभाषा है जिनमें उन वस्तुओं को सम्मिलित नहीं किया गया है, अर्थात् इनको छोड़कर शेष समस्त वस्तुएँ स्थावर सम्पत्ति है। परन्तु यह सत्य नहीं है। मेज, कुर्सी, बर्तन, मोटर इत्यादि स्थावर या अचल सम्पत्ति नहीं होंगे। अतः स्थावर या अचल सम्पत्ति को समझने के लिए हमें अन्य संविधियों जैसे रजिस्ट्रेशन अधिनियम, जनरल क्लाजेज अधिनियम माल विक्रय अधिनियम इत्यादि का भी सहारा लेना होगा। अचल या स्थावर सम्पत्ति चाहे वह मूर्त हो या अमूर्त, हो लीज़ की विषयवस्तु होगी।
इन विभिन्न अधिनियमों में वर्णित परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि भूमि, भवन, भूमि से उद्धृत होने वाले प्रलाभ जैसे मछली पकड़ने का अधिकार नौकायन का अधिकार एक निश्चित कालावधि तक वृक्षों को काटने एवं ले जाने का अधिकार, बाजार से उद्धृत होने वाले शुल्क इत्यादि लीज़ की विषयवस्तु होंगे। वह वस्तु जिसके विषय में लीज़ का सृजन होगा या हो सकेगा, सुनिश्चित होनी चाहिए। उदाहरण के लिए यदि लीज़ के अन्तर्गत वस्तु को स्टोर करने का दायित्व सृजित हुआ है, परन्तु वस्तु को स्टोर करने के लिए कोई कक्ष अभिनिश्चित नहीं है अथवा कक्ष समय-समय पर परिसर के स्वामी की सुविधानुसार परिवर्तनीय है तो ऐसी स्थिति में लीज़ का सृजन हुआ नहीं माना जाएगा। परन्तु यदि परिसर स्पष्टतः अभिनिश्चित है, तो परिसर के उपभोग पर लगाया गया प्रतिबन्ध कितना हो क्लिष्ट क्यों न हो, लीज़ के सृजन को रोक नहीं सकेगा लीज़ सृजित हुआ माना जाएगा।
भूमि अथवा जमीन सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है जिसके सम्बन्ध में लीज़ का सृजन होता है। भूमि के सम्बन्ध में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भूमि को ऊपरी सतह के साथ-साथ सतह के नीचे को विभिन्न पर्तों का भी लीज़ किया जा सकेगा जैसे खनिजों एवं खदानों के सम्बन्ध में लीज़। भूमि से सम्बन्धित विवेचना में 'भूबद्ध' वस्तुएं भी सम्मिलित होती हैं।
'भूबद्ध' वस्तुओं से अभिप्रेत है-
(क) भूमि में मूलित, जैसे पेड़ एवं झाड़ियाँ
(ख) भूमि में निविष्ट जैसे भित्तियों या निर्माण
(ग) ऐसी निविष्ट वस्तु से इसलिए बद्ध कि जिससे वह बद्ध है, उसका स्थायी लाभप्रद उपयोग किया जा सके।
भवन या उसका कोई भाग भी लीज़ को विषयवस्तु है। खदान का लीज़-खदानों का लीज़ यद्यपि खान एवं खनिज (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 1957 के द्वारा विनियमित होता है और इस अधिनियम के अन्तर्गत 'लीज़' की परिभाषा संकुचित एवं तकनीकी अर्थ में उस प्रकार नहीं प्रतिपादित की गयी है जिस प्रकार से 'लीज़' की परिभाषा सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 105 में दी गयी है। किन्तु खदानों के सम्बन्ध में होने वाली कोई भी व्यवस्था या समझौता भारत में 'लीज़' ही माना जाता है। भूमि में खनन संक्रिया को जारी रखने का अधिकार धारा 105 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अर्थ के अन्तर्गत स्थावर सम्पत्ति के उपभोग का एक अधिकार है।
यह अधिकार तब और पुख्ता या मजबूत हो जाता है जब इस अधिकार के सम्बन्ध में एक निश्चित कालावधि के लिए अनन्य अधिकार प्राप्त हो जाए। सम्पत्ति के उपभोग का अधिकार से अभिप्राय है कि सम्पत्ति का जिस रूप में उपभोग किया जा सकता हो, उस रूप में सम्पत्ति का उपभोग करने का अधिकार अतः खान या खदान का लीज़ सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 105 के अन्तर्गत लीज़ माना जाएगा। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि एक बार में हो सम्पूर्ण खनिज क्षेत्र का कब्जा नहीं प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध में कब्जा तब माना जाता है जब खनन संक्रिया वस्तुतः सम्पादित की जा रही हो। यदि भूमि की सतह के अन्दर विद्यमान खनिजों तक पहुँच न होने के फलस्वरूप खनिजों का निकाला जाना सम्भव न हो पा रहा। हो तो इस आधार पर सम्पूर्ण खनिज क्षेत्र का कब्जा प्राप्त करना सम्भव नहीं होगा। भौतिक कहा केवल खनन संक्रिया द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। जब तक यह प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती है, भौतिक धारणाधिकार आंशिक ही रहेगा।
खान एवं खनिज (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 1957 की धारा 9 अन्य बातों के साथ साथ यह भी उपबन्धित करती है कि खान का लीज़ धारक रायल्टी का भुगतान कर खनिजों को हटाने एवं उसका उपभोग करने के लिए प्राधिकृत है। इससे यह अभिप्रेत है कि लीज़ग्रहीता प्रतिफल करके भूमि को विनष्ट कर खनिजों का उपभोग कर सकेगा। धारा 105 के अर्थ के अन्तर्गत यह अचल सम्पत्ति के उपभोग का अधिकार है विशेष कर तब जब कि लीज़ग्रहीता को धारणाधिकार एवं कब्जा एक विशिष्ट कालावधि के लिए दिया गया है।