हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987: एक व्यापक व्याख्या
Himanshu Mishra
14 Feb 2025 1:44 PM

हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987 (Himachal Pradesh Urban Rent Control Act, 1987) राज्य के शहरी क्षेत्रों (Urban Areas) में किराए (Rent) और किरायेदारों (Tenants) की बेदखली (Eviction) को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था।
यह अधिनियम मकान मालिकों (Landlords) और किरायेदारों के अधिकारों (Rights) को संतुलित (Balance) करता है और किराए से जुड़े विवादों (Disputes) को हल करने के लिए एक कानूनी रूपरेखा (Legal Framework) प्रदान करता है। यह अधिनियम हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा (Himachal Pradesh Judiciary Examination) के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें राज्य के सिविल कानूनों (Civil Laws) से जुड़े कई प्रावधान (Provisions) शामिल हैं।
अधिनियम का उद्देश्य (Objective of the Act)
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य किरायेदारों और मकान मालिकों के बीच उचित संतुलन (Fair Balance) बनाए रखना है।
इसके अन्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
• किराए को नियमित करना (Regulating Rent)।
• किरायेदारों को अवैध बेदखली से बचाना (Protecting Tenants from Illegal Eviction)।
• मकान मालिकों को उचित किराया सुनिश्चित करना (Ensuring Fair Rent for Landlords)।
• किराया निर्धारण (Rent Determination) की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना (Making the Process Transparent)।
• मकान मालिकों द्वारा अनुचित किराए की माँग (Unjust Rent Demand) रोकना।
• मकान मालिकों और किरायेदारों के विवादों को सुलझाने के लिए कानूनी प्रक्रिया (Legal Procedure) प्रदान करना।
महत्वपूर्ण प्रावधान (Important Provisions of the Act)
संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार और प्रवर्तन (Short Title, Extent, and Commencement) - धारा 1 (Section 1)
इस अधिनियम को "हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987" कहा जाता है। यह राज्य के सभी शहरी क्षेत्रों (Urban Areas) में लागू होता है और 17 नवंबर 1971 से प्रभावी माना जाता है।
परिभाषाएँ (Definitions) - धारा 2 (Section 2)
इस अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ दी गई हैं:
• "भवन (Building)" – वह संरचना (Structure) जो किसी भी उद्देश्य से किराए पर दी गई हो।
• "मकान मालिक (Landlord)" – वह व्यक्ति जो किराया प्राप्त करने का हकदार हो।
• "किरायेदार (Tenant)" – वह व्यक्ति जो मकान किराए पर लेकर रहता हो और जिसकी किरायेदारी (Tenancy) समाप्त होने के बाद भी कब्जा हो।
• "मानक किराया (Standard Rent)" – इस अधिनियम के तहत तय किया गया किराया।
छूट (Exemptions) - धारा 3 (Section 3)
राज्य सरकार को अधिकार है कि वह किसी विशेष भवन (Building) या भूमि (Land) को इस अधिनियम के प्रावधानों से मुक्त कर सकती है। सरकारी संपत्तियाँ (Government Properties) स्वतः ही इस अधिनियम के दायरे से बाहर होती हैं।
किराए का नियमन (Regulation of Rent)
मानक किराए का निर्धारण (Determination of Standard Rent) - धारा 4 (Section 4)
इस अधिनियम के अनुसार, किसी भवन के लिए मानक किराया उस निर्माण लागत (Construction Cost) और भूमि के बाजार मूल्य (Market Price of Land) के 10% के आधार पर तय किया जाता है। गैर-आवासीय भवनों (Non-Residential Buildings) के लिए यह दर 15% होगी।
मानक किराए की समीक्षा (Revision of Standard Rent) - धारा 5 (Section 5)
मकान मालिक हर 3 साल में किराए में 10% की वृद्धि कर सकता है। लेकिन, एक बार तय किया गया मानक किराया 3 वर्षों तक अपरिवर्तित (Unchanged) रहेगा।
मरम्मत और अन्य कारणों से किराया वृद्धि (Increase in Rent Due to Repairs and Additional Costs) - धारा 6 (Section 6)
अगर मकान मालिक किरायेदार के अनुरोध (Request) पर भवन की मरम्मत (Repairs) या परिवर्तन (Alterations) करता है, तो वह किराए में 10% तक की वृद्धि कर सकता है।
अन्य किराया या अतिरिक्त भुगतान पर रोक (No Extra Rent Beyond Standard Rent) - धारा 7 (Section 7)
मकान मालिक इस अधिनियम के तहत तय मानक किराए से अधिक किराया नहीं मांग सकता।
किरायेदारों के अधिकार और सुरक्षा (Tenant's Rights and Protections)
अनिवार्य सेवाओं की रोकथाम पर पाबंदी (Protection Against Withholding Essential Services) - धारा 11 (Section 11)
मकान मालिक पानी, बिजली, स्वच्छता (Sanitation) जैसी आवश्यक सेवाओं (Essential Services) को बंद नहीं कर सकता। अगर ऐसा होता है, तो किरायेदार रेंट कंट्रोलर (Rent Controller) से शिकायत कर सकता है।
भवन के उपयोग में परिवर्तन पर रोक (Restriction on Conversion of Property) - धारा 12 (Section 12)
कोई भी व्यक्ति किसी आवासीय भवन (Residential Building) को व्यावसायिक (Commercial) उपयोग में नहीं बदल सकता जब तक कि रेंट कंट्रोलर की अनुमति न मिले।
मरम्मत की जिम्मेदारी (Duty to Maintain Premises) - धारा 13 (Section 13)
मकान मालिक को भवन को अच्छे और रहने योग्य स्थिति में बनाए रखना होगा।
बेदखली और कब्जा वसूली (Eviction and Recovery of Possession)
बेदखली के कारण (Grounds for Eviction) - धारा 14 (Section 14)
मकान मालिक निम्नलिखित स्थितियों में किरायेदार को बेदखल कर सकता है:
• किराए का भुगतान समय पर नहीं किया गया।
• किरायेदार ने अवैध रूप से सब-लेट (Sublet) कर दिया।
• किरायेदार ने संपत्ति को नुकसान पहुँचाया।
• किरायेदार ने भवन 12 महीने से अधिक समय तक खाली रखा।
विशेष परिस्थितियों में कब्जा वसूली (Right to Recover Immediate Possession) - धारा 15 (Section 15)
सरकारी कर्मचारी (Government Employee) जो सेवानिवृत्त (Retired) हो चुके हैं, वे अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए भवन वापस ले सकते हैं।
विवादों का निपटारा और न्यायालयी प्रक्रिया (Dispute Resolution and Legal Proceedings)
अपील और निष्पादन (Appellate Authority and Execution) - धारा 24-26 (Sections 24-26)
राज्य सरकार अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) नियुक्त कर सकती है, जो किरायेदारी से जुड़े मामलों पर सुनवाई करेगा।
दंड और प्रवर्तन (Penalties and Enforcement)
अपराध और दंड (Offenses and Penalties) - धारा 30 (Section 30)
अगर कोई मकान मालिक किरायेदार से अवैध रूप से अतिरिक्त राशि वसूलता है, तो उसे ₹1,000 तक का जुर्माना हो सकता है।
पिछले मामलों की वैधता (Validation of Past Cases) - धारा 32 (Section 32)
इस अधिनियम के लागू होने से पहले के सभी कानूनी कार्य इस अधिनियम के तहत वैध माने जाएंगे।
हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987, मकान मालिकों और किरायेदारों के अधिकारों को संतुलित करता है। यह एक महत्वपूर्ण कानून है जो किराए से संबंधित विवादों को हल करने में सहायक है। हिमाचल प्रदेश न्यायिक परीक्षा (Himachal Pradesh Judiciary Examination) के लिए यह अधिनियम अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्य के सिविल कानूनों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।