हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल एक्ट, 1987 के अंतर्गत मानक किराए और उसकी समय-समय पर समीक्षा

Himanshu Mishra

15 Feb 2025 1:01 PM

  • हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल एक्ट, 1987 के अंतर्गत मानक किराए और उसकी समय-समय पर समीक्षा

    हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1987 (Himachal Pradesh Urban Rent Control Act, 1987) किरायेदारी (Tenancy) से जुड़े विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करता है। इसमें मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के अधिकार और कर्तव्य तय किए गए हैं।

    इस अधिनियम की धारा 4 (Section 4) और धारा 5 (Section 5) मानक किराए (Standard Rent) के निर्धारण और उसकी समय-समय पर समीक्षा (Revision) से संबंधित हैं।

    इन प्रावधानों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मकान मालिक को संपत्ति का उचित किराया मिले और साथ ही किरायेदार को अनुचित रूप से अधिक किराया चुकाने के लिए मजबूर न किया जाए।

    यह धारा मकान मालिक को अपने भवन (Building) का उपयुक्त मूल्य (Fair Value) प्राप्त करने में मदद करती है, जबकि किरायेदार को यह अधिकार देती है कि वह अवैध रूप से बढ़ाए गए किराए (Illegal Rent Increase) के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज कर सके।

    मानक किराए का निर्धारण (Determination of Standard Rent) - धारा 4 (Section 4)

    मानक किराया (Standard Rent) वह किराया होता है जिसे कानूनन (Legally) तय किया जाता है, ताकि न तो मकान मालिक को घाटा हो और न ही किरायेदार को अनुचित रूप से अधिक भुगतान करना पड़े।

    इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, यदि मकान मालिक या किरायेदार में से कोई भी किराए को तय करने के लिए आवेदन करता है, तो रेंट कंट्रोलर (Rent Controller) एक जांच (Inquiry) करता है और उचित किराया निर्धारित करता है।

    यह किराया भवन के निर्माण की लागत (Cost of Construction) और उस समय भूमि के बाजार मूल्य (Market Price of Land) के आधार पर तय किया जाता है। यदि भवन आवासीय (Residential) है, तो मानक किराया कुल निर्माण लागत और भूमि मूल्य का 10% होता है। लेकिन अगर भवन गैर-आवासीय (Non-Residential) है, जैसे कि कोई दुकान या ऑफिस, तो यह दर 15% हो जाती है।

    मान लीजिए कि 2000 में एक घर बनाया गया था और उस समय निर्माण लागत और भूमि का कुल मूल्य ₹50 लाख था। इस आधार पर, आवासीय भवन के लिए मानक किराया 10% होगा, जो कि ₹5 लाख प्रति वर्ष या लगभग ₹41,667 प्रति माह होगा। यदि यही संपत्ति एक दुकान होती, तो मानक किराया 15% होता, जो कि ₹7.5 लाख प्रति वर्ष या ₹62,500 प्रति माह होता।

    एक बार मानक किराया तय हो जाने के बाद, इसे हर वर्ष 10% बढ़ाया जाता है ताकि महंगाई (Inflation) और संपत्ति मूल्य में वृद्धि (Increase in Property Value) को ध्यान में रखा जा सके।

    अगर कोई मकान 2005 में ₹30 लाख की लागत से बनाया गया था और उस समय मानक किराया ₹3 लाख प्रति वर्ष था, तो 2006 में यह किराया 10% बढ़कर ₹3.3 लाख हो जाएगा, 2007 में ₹3.63 लाख और इसी तरह हर साल बढ़ता रहेगा।

    मानक किराए में शामिल अतिरिक्त शुल्क (Additional Charges Included in Standard Rent)

    मानक किराए की गणना करते समय कुछ अन्य खर्चों को भी ध्यान में रखा जाता है।

    रखरखाव शुल्क (Maintenance Charges) मानक किराए के 5% से अधिक नहीं हो सकता। यदि किसी घर का मानक किराया ₹50,000 प्रति वर्ष है, तो इसमें रखरखाव शुल्क ₹2,500 प्रति वर्ष से अधिक नहीं हो सकता।

    नगरपालिका कर (Municipal Taxes) जैसे पानी (Water), बिजली (Electricity) आदि का शुल्क वास्तविक कर राशि (Actual Tax Amount) के अनुसार लिया जाएगा। यदि संपत्ति पर सालाना ₹10,000 का नगरपालिका कर लगता है, तो यह किराए में जोड़ा जाएगा।

    अन्य सुविधाओं (Other Amenities) जैसे पानी और बिजली के शुल्क मकान मालिक और किरायेदार के बीच हुए समझौते (Agreement) के अनुसार तय किए जाएंगे। अगर किरायेदार सहमत होता है कि वह अपना बिजली-पानी का बिल अलग से देगा, तो इसे मानक किराए में शामिल नहीं किया जाएगा।

    एक बार जब रेंट कंट्रोलर मानक किराया तय कर देता है, तो यह उसी तारीख से लागू होगा जिस दिन आवेदन किया गया था। उदाहरण के लिए, अगर जनवरी 2024 में आवेदन किया गया और जून 2024 में किराया तय हुआ, तो जनवरी 2024 से ही यह किराया देय (Payable) होगा।

    मानक किराए की समीक्षा (Revision of Standard Rent) - धारा 5 (Section 5)

    एक बार मानक किराया तय हो जाने के बाद, यह तीन साल तक नहीं बदला जा सकता। धारा 5 के अनुसार, मानक किराए को बढ़ाने या घटाने की अनुमति तभी दी जाएगी जब तीन साल पूरे हो चुके हों।

    तीन साल बाद, मकान मालिक को मानक किराए या सहमत किराए (Agreed Rent) में 10% वृद्धि करने का अधिकार होता है। यह वृद्धि स्वचालित (Automatic) होती है और इसके लिए रेंट कंट्रोलर से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती।

    उदाहरण के लिए, यदि 2024 में किसी मकान का मानक किराया ₹10,000 प्रति माह है, तो 2027 तक यह अपरिवर्तित रहेगा। 2027 में इसे 10% बढ़ाया जा सकता है, जिससे यह ₹11,000 प्रति माह हो जाएगा। 2030 में यह फिर से 10% बढ़कर ₹12,100 प्रति माह हो जाएगा।

    यह वृद्धि केवल उन संपत्तियों पर लागू होती है जो हिमाचल प्रदेश अर्बन रेंट कंट्रोल (संशोधन) अधिनियम, 2009 (Himachal Pradesh Urban Rent Control Amendment Act, 2009) के लागू होने से पहले तीन साल या अधिक समय के लिए किराए पर दी गई थीं।

    अगर किसी मकान को 2010 में किराए पर दिया गया था, तो इसमें 2013, 2016, 2019, 2022, और 2025 में किराया वृद्धि हो सकती है।

    यदि किराया वृद्धि को लेकर मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद (Dispute) होता है, तो इसे रेंट कंट्रोलर द्वारा हल किया जाएगा। यदि किरायेदार बढ़े हुए किराए को देने से इनकार करता है, तो मकान मालिक रेंट कंट्रोलर के पास शिकायत दर्ज कर सकता है। इसी तरह, यदि मकान मालिक 10% से अधिक वृद्धि करने की कोशिश करता है, तो किरायेदार इस निर्णय को चुनौती दे सकता है।

    मानक किराए और उसकी समीक्षा को समझने के लिए उदाहरण (Illustrations to Understand Standard Rent and Its Revision)

    मान लीजिए, राहुल नाम का किरायेदार शिमला में एक मकान में रह रहा है जिसे 2005 में बनाया गया था। उस समय उसकी निर्माण लागत और भूमि का मूल्य ₹30 लाख था। इस आधार पर, 2005 में उसका मानक किराया ₹3 लाख प्रति वर्ष या ₹25,000 प्रति माह था।

    अब, अगर राहुल 2024 में रेंट कंट्रोलर के पास आवेदन करता है, तो किराए की गणना 2005 से 2024 तक हर साल 10% बढ़ोतरी के साथ की जाएगी। इस प्रकार, 2024 में निर्धारित नया किराया काफी अधिक होगा।

    अब, यदि राहुल का मकान मालिक 2025 में किराया बढ़ाना चाहता है, तो वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि धारा 5 के तहत किराया तीन साल तक अपरिवर्तित रहेगा। 2027 में वह इसे 10% बढ़ा सकता है। अगर 2024 में किराया ₹30,000 प्रति माह था, तो 2027 में यह ₹33,000 हो जाएगा।

    अगर राहुल को लगे कि मकान मालिक ने अवैध रूप से किराया बढ़ाया है, तो वह रेंट कंट्रोलर के पास शिकायत दर्ज कर सकता है।

    धारा 4 और 5 मकान मालिक और किरायेदार के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं। यह प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि किराया उचित हो और न तो मकान मालिक को नुकसान हो और न ही किरायेदार को अनुचित किराए का भुगतान करना पड़े। इन प्रावधानों की जानकारी मकान मालिक और किरायेदार दोनों के लिए आवश्यक है ताकि वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझ सकें।

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