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The Indian Contract Act में Revocation कैसे किया जाता है?
किसी भी प्रस्ताव या स्वीकृति का प्रतिसंहरण किया जा सकता है। अब अगला प्रश्न यह है कि ऐसा प्रतिसंहरण कैसे किया जा सकता है किस रीती से और किस ढंग से किया जा सकता है! इसके संबंध में भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 6 में उल्लेख किया गया है। इस धारा के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के तरीकों का उल्लेख किया गया, जो निम्न है-प्रतिसंहरण की सूचना देकर-प्रतिग्रहण के लिए समय की समाप्ति पर अथवा उस समय की समाप्ति पर जो युक्तियुक्त हो-प्रतिग्रहण के पूर्व की शर्त को पूर्ण न करने पर-प्रस्थापनाकर्ता की मृत्यु या...
The Indian Contract Act में Revocation के संबंध में प्रावधान
Revocation का मतलब होता है कैंसल करना, अपने प्रस्ताव और स्वीकृति को रद्द करना। प्रश्न उठता है कि कोई भी प्रस्ताव या स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है रद्द करने की समय अवधि क्या है।धारा 5 के अनुसार कोई भी प्रस्थापना उसके प्रतिग्रहण की सूचना प्रस्थापक के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने के पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण की जा सकेगी किंतु उसके पश्चात नहीं।कोई भी प्रतिग्रहण या प्रतिग्रहण की सूचना प्रतिग्रहिता के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने से पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण किया जा सकेगा किंतु उसके पश्चात नहीं।अधिनियम...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 74 -77: रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकरण से इनकार की जाँच और उपचार
पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XII के उन महत्वपूर्ण अनुभागों (sections) को समझते हैं जो रजिस्ट्रार (Registrar) द्वारा पंजीकरण से इनकार की जांच की प्रक्रिया और उसके बाद उपलब्ध कानूनी उपायों से संबंधित हैं। यह भाग एक उच्च स्तरीय न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रिया प्रदान करता है, जो नागरिकों को पंजीकरण अधिकारियों के आदेशों के खिलाफ अंतिम उपाय तक पहुंचने की अनुमति देता है।74. रजिस्ट्रार की ऐसे आवेदन पर प्रक्रिया (Procedure of Registrar on such application)यह धारा रजिस्ट्रार द्वारा...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 35 और धारा 36 : प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की वार्षिक रिपोर्ट और लेखापरीक्षा
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981, के तहत, प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (Pollution Control Boards) को न केवल परिचालन (operational) शक्तियाँ और वित्तीय स्वायत्तता (financial autonomy) दी गई है, बल्कि उन पर अपने कार्यों और वित्त के लिए पूर्ण जवाबदेही (accountability) और पारदर्शिता (transparency) सुनिश्चित करने का दायित्व भी डाला गया है।अध्याय V में, धारा 35 और धारा 36 इन सार्वजनिक निकायों के वित्तीय और कार्यात्मक प्रबंधन (functional management) की निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित...
बच्चों की कस्टडी तय करते समय सुप्रीम कोर्ट ने “वेलफेयर प्रिंसिपल” को कैसे परिभाषित किया?
8 मई 2024 के निर्णय Col. Ramneesh Pal Singh v. Sugandhi Aggarwal में सुप्रीम कोर्ट ने Guardians and Wards Act, 1890 के तहत नाबालिग बच्चों की कस्टडी (Custody) तय करने के मूल सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि बच्चों का “वेलफेयर” (Welfare) ही सर्वोपरि विचार होना चाहिए।साथ ही, Parens Patriae Jurisdiction (अदालत की संरक्षक भूमिका) के दायरे और Parental Alienation Syndrome (PAS) जैसे आरोपों को देखने के तरीके पर भी मार्गदर्शन दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे की पसंद...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 31: आयोग के निर्णय और आदेश की प्रक्रिया
हम भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India - CCI) की जांच प्रक्रिया के अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण पर पहुंच गए हैं। पिछले खंड में, हमने देखा कि कैसे CCI किसी बड़े विलय या अधिग्रहण (Merger or Acquisition) की जांच करता है, जिसे अधिनियम में संयोजन (Combination) कहा जाता है।अब, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 31 (Section 31) उस निष्कर्ष का वर्णन करती है: CCI को जांच के बाद क्या आदेश पारित करने चाहिए। यह धारा CCI की वास्तविक नियामक शक्ति को दर्शाती है, क्योंकि यह न केवल...
The Indian Contract Act की धारा 4 के प्रावधान
किसी भी विधिमान्य संविदा के लिए प्रस्ताव और स्वीकृति की संसूचना का होना महत्वपूर्ण है। प्रश्न यह है कि कोई भी प्रस्ताव स्वीकृति की संसूचना कब संपूर्ण होती है! इस प्रश्न से संबंधित अधिनियम की धारा 4 महत्वपूर्ण धारा है।धारा के अंतर्गत यह समझाने का प्रयास किया गया है कि कोई भी प्रस्तावना की संसूचना और स्वीकृति की संसूचना कब संपूर्ण होती है। प्रस्ताव या प्रस्थापना की संसूचना उस व्यक्ति को दी जानी चाहिए जिस व्यक्ति के साथ संविदा किया जाना है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 4 में यह व्यवस्था की गई है...
The Indian Contract Act में Proposal का Communication
संविदा अधिनियम 1872 की धारा 3 प्रस्थापनाओं की संसूचना, प्रतिग्रहण कि संसूचना और प्रतिसंहरण के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा का सर्वाधिक महत्व प्रस्ताव की संसूचना को लेकर है। किसी भी करार के होने के लिए पहले एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव किया जाता है दूसरे पक्षकार द्वारा उसकी स्वीकृति की जाती है फिर करार अस्तित्व में आता है। प्रस्ताव होना ही मात्र महत्वपूर्ण नहीं है और स्वीकृति होना ही मात्र महत्वपूर्ण नहीं है अपितु प्रस्तावक को स्वीकृति की सूचना होना भी महत्वपूर्ण है।यदि धारा 3 के अर्थों को समझा...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 71, 72, 73: पंजीकरण से इनकार के कारणों को दर्ज करना
आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XII को समझते हैं, जो पंजीकरण से इनकार (Refusal to Register) के महत्वपूर्ण विषय से संबंधित है।यह भाग उन प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है जिनका पालन तब किया जाता है जब कोई पंजीकरण अधिकारी किसी दस्तावेज़ को पंजीकृत करने से इनकार करता है, और यह भी बताता है कि इनकार से प्रभावित व्यक्ति के पास क्या कानूनी उपाय उपलब्ध हैं। यह पंजीकरण प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। धारा 71. पंजीकरण से इनकार के कारणों को दर्ज करना (Reasons...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 32-34 : Boards का वित्तपोषण, लेखा और लेखापरीक्षा
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981, के तहत, प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (Pollution Control Boards) को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए आवश्यक वित्तीय तंत्र (Financial Mechanisms) प्रदान किए गए हैं। अध्याय V में विशेष रूप से इन बोर्डों के फंड (Fund), उधार लेने की शक्तियों (Borrowing Powers), और बजटीय प्रक्रियाओं (Budgetary Procedures) का विवरण दिया गया है। ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि बोर्डों के पास पर्याप्त संसाधन हों और वे अपने वित्त के प्रबंधन में जवाबदेह...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 29 और 30: संयोजनों की जांच की प्रक्रिया
हमने पिछले अनुभागों में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के गठन, कर्तव्य और जांच की शक्तियों के बारे में सीखा। अब, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 29 और धारा 30 विस्तार से बताती हैं कि CCI बड़े विलय (Mergers) और अधिग्रहणों (Acquisitions) की जांच कैसे करता है।यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि CCI किसी भी संयोजन (Combination) का गहन मूल्यांकन करे और इस बात की पुष्टि करे कि इसका भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा (Competition) पर कोई प्रतिकूल प्रभाव (Appreciable Adverse Effect) नहीं पड़ेगा। धारा...
क्या भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने के लिए 'Self Declaration' प्रणाली उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा का नया कानूनी औज़ार बन सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने Indian Medical Association बनाम Union of India (2024) में एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि भ्रामक और धोखाधड़ीपूर्ण विज्ञापनों पर नियंत्रण केवल मौजूदा कानूनों और नियमों पर निर्भर नहीं रह सकता, बल्कि इसके लिए एक ठोस और पहले से लागू होने वाला तंत्र आवश्यक है।इस निर्णय के तहत अब किसी भी प्रकार का विज्ञापन चाहे वह टीवी पर हो, रेडियो पर, अखबार में या इंटरनेट पर प्रसारित या प्रकाशित करने से पहले विज्ञापनदाता को 'Self Declaration' देना अनिवार्य होगा। अदालत ने इस आदेश को...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 68-70: रजिस्ट्रार और इंस्पेक्टर जनरल की नियंत्रण शक्तियां
आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XI के खंड (E) को समझते हैं, जो पंजीकरण कार्यालयों के कामकाज पर नियंत्रण रखने वाले वरिष्ठ अधिकारियों - रजिस्ट्रार (Registrar) और महानिरीक्षक (Inspector-General) - की शक्तियों को निर्धारित करता है। यह भाग पंजीकरण प्रणाली में पदानुक्रम और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करता है।68. उप-रजिस्ट्रारों का अधीक्षण और नियंत्रण करने की रजिस्ट्रार की शक्ति (Power of Registrar to superintend and control Sub-Registrars)यह धारा रजिस्ट्रार को अपने जिले के...
वायु अधिनियम की धाराएं 27 से 31A: नमूनों की जांच, अपील और बोर्ड की शक्तियां
धारा 27 – नमूनों की जाँच की रिपोर्ट (Reports of the Result of Analysis on Samples)जब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board) धारा 26 के तहत किसी स्थान से वायु या उत्सर्जन (Emission) का नमूना लेता है, तो वह नमूना बोर्ड द्वारा स्थापित या मान्यता प्राप्त (Recognised) प्रयोगशाला (Laboratory) में भेजा जाता है। वहाँ नियुक्त बोर्ड विश्लेषक (Board Analyst) उस नमूने की जाँच करता है और निर्धारित प्रारूप (Prescribed Form) में तीन प्रतियों (Triplicate) में रिपोर्ट तैयार करता है। ...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 27 और 28: CCI की जांच के बाद के आदेश और शक्तियां
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को मिली शिकायतों और महानिदेशक की विस्तृत जांच के बाद, यदि आयोग यह निष्कर्ष निकालता है कि किसी कंपनी या कंपनियों के समूह ने प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार किया है, तो वह केवल जुर्माना लगाने तक सीमित नहीं होता।भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 27 और धारा 28 CCI को कई तरह के आदेश जारी करने की शक्ति देती हैं, जिनका उद्देश्य न केवल उल्लंघन को दंडित करना है, बल्कि भविष्य में ऐसे व्यवहार को रोकना और बाजार की संरचना को ठीक करना भी है। इन धाराओं को समझना महत्वपूर्ण है...
क्या हाईकोर्ट न्यायिक भर्ती में Viva Voce के लिए न्यूनतम अंक तय कर सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने Abhimeet Sinha & Ors. v. High Court of Judicature at Patna & Ors. (2024) में यह तय किया कि क्या न्यायिक भर्ती (Judicial Recruitment) के Viva Voce चरण में न्यूनतम अंकों (Minimum Qualifying Marks) का प्रावधान करना संवैधानिक (Constitutional) है और क्या यह All India Judges Association v. Union of India (2002) के फैसले के अनुरूप है।यह मामला बिहार और गुजरात में न्यायिक अधिकारियों की भर्ती से जुड़ा था, जहाँ क्रमशः 20% और 40% न्यूनतम Viva Voce अंक आवश्यक थे। याचिकाकर्ताओं...
रजिस्टर्ड सोसाइटी के खिलाफ 'कंस्ट्रक्टिव ट्रस्ट' के रूप में S. 92 CPC का मुकदमा कब चलाया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धांतों की व्याख्या की
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक फैसले (ऑपरेशन आशा बनाम शैली बत्रा एवं अन्य) में सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 से संबंधित सिद्धांतों का सारांश प्रस्तुत किया और उन परिस्थितियों की व्याख्या की जिनमें किसी पंजीकृत सोसाइटी को 'कंस्ट्रक्टिव ट्रस्ट' माना जा सकता है ताकि उसके खिलाफ धारा 92 के अंतर्गत मुकदमा चलाया जा सके। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ की ओर से दिए गए निर्णय में निष्कर्षों का सारांश इस प्रकार है:i. CPC की धारा 92 के अंतर्गत दायर किया गया मुकदमा एक विशेष...
The Indian Contract Act में Consideration, Agreement और Contract का मलतब
Considerationजबकि वचनदाता की वांछा पर वचनगृहीता या कोई अन्य व्यक्ति कुछ कर चुका है या करने से विरत रहा है या करता है या करने से प्रविरत रहता है या करने का या करने से प्रविरत रहने का वचन देता है तब ऐसा कार्य या प्रविरती या वचन उस वचन के लिए प्रतिफल कहलाता है।भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 2 के खंड (घ) के अंतर्गत यह प्रतिफल की परिभाषा प्रस्तुत की गई है।विद्यमान संविदा के निर्माण के लिए प्रतिफल का होना नितांत आवश्यक है। वह प्रतिफल वैध होना चाहिए क्योंकि प्रतिफल के बिना किया गया है करार शून्य...
The Indian Contract Act में Proposal और Promise का मतलब
Proposalभारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 2 के अंतर्गत निर्वचन खंड या परिभाषा खंड दिया गया है। इस धारा के अंतर्गत सर्वप्रथम (क) खंड के अंतर्गत प्रस्थापना अर्थात प्रपोजल की परिभाषा दी गई है।इस परिभाषा के अनुसार- जबकि एक व्यक्ति किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने की अपनी रजामंदी किसी अन्य को इस दृष्टि से संज्ञापित करता है कि ऐसे कार्य या प्रविरति के प्रति उस अन्य की अनुमति अभिप्राप्त करें तब वह प्रस्थापना करता है यह कहा जाता है।यह परिभाषा प्रस्थापना को बहुत गहरे तक परिभाषित कर रही है।...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 64 - 66: उप-रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रार के विशेष कर्तव्य
आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XI के खंड (C) और (D) को समझते हैं, जो उन विशेष कर्तव्यों से संबंधित हैं जो पंजीकरण अधिकारियों को तब निभाने होते हैं जब एक ही दस्तावेज़ में वर्णित संपत्ति कई उप-जिलों या जिलों में स्थित होती है। यह भाग यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति के रिकॉर्ड सभी संबंधित क्षेत्राधिकारों में सही ढंग से दर्ज हों।64. जब दस्तावेज़ कई उप-जिलों में भूमि से संबंधित हो, तब प्रक्रिया (Procedure where document relates to land in several sub-districts)यह धारा उस...
















