जानिए हमारा कानून
समन मामलों में आरोपी को बरी करने या दोषी ठहराने और सजा की प्रक्रिया : सेक्शन 278, BNSS 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के सेक्शन 278 में समन मामलों (Summons-Cases) के अंतिम चरण की प्रक्रिया को समझाया गया है।इस प्रावधान में आरोपी को दोषी (Guilty) या निर्दोष (Not Guilty) ठहराने और उसके आधार पर उसे बरी (Acquittal) करने या सजा देने का निर्देश दिया गया है। यह प्रावधान पिछले सेक्शन 274 से 277 पर आधारित है और समन मामलों में न्याय प्रक्रिया को तेज और निष्पक्ष (Fair) बनाने का उद्देश्य रखता है। आरोपी को बरी करने की प्रक्रिया (Acquittal of the...
डकैती की परिभाषा और दंड : धारा 310, भारतीय न्याय संहिता, 2023
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 310 (Section 310) डकैती (Dacoity) को संगठित और गंभीर अपराध के रूप में परिभाषित करती है। यह अपराध तब होता है जब पांच या अधिक लोग मिलकर चोरी (Theft) या जबरन वसूली (Extortion) को अंजाम देने का प्रयास करते हैं। यह अपराध न केवल अपराध में शामिल मुख्य लोगों बल्कि सहायता करने वाले सभी व्यक्तियों को भी दोषी मानता है।डकैती (Dacoity) क्या है?धारा 310(1) के अनुसार, जब पांच या अधिक लोग मिलकर चोरी या जबरन वसूली करते हैं या इसका प्रयास करते हैं, तो इसे डकैती माना जाता है।...
क्या न्यायिक नियुक्तियों के लिए समय-सीमा न्यायपालिका की दक्षता सुनिश्चित कर सकती है?
न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया का परिचयभारत में हाईकोर्ट (High Courts) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में न्यायाधीशों की नियुक्ति एक संवैधानिक प्रक्रिया (Constitutional Process) है, जिसका उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करना है। यह प्रक्रिया कई चरणों में होती है, जिसमें हाई कोर्ट कोलेजियम (High Court Collegium) की सिफारिश, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की स्वीकृति, और अंततः कार्यपालिका (Executive) द्वारा नियुक्ति शामिल है। हालांकि, इस प्रक्रिया में देरी के कारण बड़ी संख्या...
किसी भी सजा का एक्जीक्यूशन कैसे करवाया जाता है?
भारतीय न्याय संहिता में मौत की सज़ा, जेल की सज़ा, जुर्माना और सामुदायिक सेवा जैसी सज़ा के प्रावधान हैं। यह भारत में किए गए किसी भी अपराध के संबंध में दी जा रही है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 किसी भी व्यक्ति को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता देता है तथा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के माध्यम से ही किसी व्यक्ति से प्राण और दैहिक स्वतंत्रता को छीना जा सकता है।जब कोई व्यक्ति भारत की सीमा में अपराध करता है तो उस अपराध के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 या फिर कोई विशेष निहित की गयी प्रक्रिया विधि...
क्रिमिनल केस में कब सुनी जाती है रिवीजन?
रिवीजन एक तरह से अपर कोर्ट को प्राप्त अपील की तरह ही एक शक्ति है। BNSS की धारा 438 के अंतर्गत हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट को रिवीजन की शक्तियां दी गयी हैं। इस शक्ति के अधीन हाई कोर्ट या सेशन कोर्ट अपने अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा की गयी कार्यवाही के अभिलेखों को मंगवा सकता है तथा उसका परीक्षण कर सकता है। इस तरह के अभिलेखों को मंगवाने के बाद अधीनस्थ न्यायालय के आदेश के निष्पादन को निलंबित भी रख सकता है। रिवीजन की शक्ति हाई कोर्ट तथा सेशन कोर्ट दोनों को प्राप्त है लेकिन दोनों में से किसी एक को रिवीजन के...
धारा 309 भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत रॉबरी की व्याख्या और उदाहरण
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 309 (Section 309) में रॉबरी (Robbery) को एक गंभीर अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है।यह चोरी (Theft) या जबरन वसूली (Extortion) को हिंसा (Violence), डर (Fear), या शारीरिक चोट (Physical Harm) के साथ जोड़ती है। इस धारा में रॉबरी को समझाने के लिए कई उदाहरण दिए गए हैं, जो बताते हैं कि चोरी या जबरन वसूली किन स्थितियों में रॉबरी बन जाती है। रॉबरी के उदाहरण (Illustrations of Robbery)(a) चोरी और अनुचित प्रतिबंध का मेल (Theft Combined with Wrongful Restraint) उदाहरण...
अभिव्यक्ति की आज़ादी और सार्वजनिक व्यवस्था: प्रासंगिक कानूनी प्रावधान
इस फ़ैसले में अभिव्यक्ति की आज़ादी (Freedom of Speech) और सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order) के बीच संतुलन की आवश्यकता को समझाया गया है। यह मामला भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 153A, 505(1)(c), और 500 के तहत दर्ज आरोपों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अधिकारों का विश्लेषण करता है।कोर्ट ने न केवल विधायी प्रावधानों (Legislative Provisions) की व्याख्या की, बल्कि कुछ महत्वपूर्ण फैसलों (Landmark Judgments) के जरिए स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे और नफरत भरे...
समन मामलों में दोष स्वीकार करना भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के सेक्शन 276 और 277
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में समन मामलों (Summons Cases) के लिए सरल और प्रभावी प्रक्रियाएँ निर्धारित की गई हैं। सेक्शन 276 और 277 में यह बताया गया है कि अगर कोई आरोपी अदालत में उपस्थित हुए बिना दोषी (Guilty) मानने की इच्छा जताए या अगर मुकदमा पूरी तरह से सुना जाए, तो न्याय प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ती है।यह प्रावधान पहले के सेक्शन 274 और 275 पर आधारित हैं और न्याय को तेज और सुलभ (Accessible) बनाने का प्रयास करते हैं। अदालत में उपस्थित हुए बिना दोष...
क्या भारत में शरणार्थियों के अधिकार और राज्य की संप्रभुता के बीच संतुलन संभव है?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में शरणार्थियों (Refugees) के अधिकार और राज्य की संप्रभुता (State Sovereignty) के बीच संबंध को समझाया गया है।खासतौर पर, रोहिंग्या शरणार्थियों की भारत से निर्वासन (Deportation) की स्थिति को लेकर संवैधानिक प्रावधानों (Constitutional Provisions), अंतरराष्ट्रीय समझौतों (International Agreements), और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं (National Security Concerns) का विश्लेषण किया गया है। कोर्ट ने यह भी तय किया कि गैर-नागरिकों (Non-Citizens) को भारतीय नागरिकों के समान संरक्षण मिलना...
किसी फैसले को पलटने की अपील और कोर्ट की शक्ति
अपील कोर्ट के पास यह पॉवर होती है कि वह ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट सकती है। परिवादी, अभियोजन पक्ष और अभियुक्त यह तीनों ही अपील कर सकते हैं। परिवाद द्वारा संस्थित मामलों में परिवादी को भी अपील करने का अधिकार उपलब्ध होता है।ऐसी परिस्थिति में BNSS के अंतर्गत अपीलीय कोर्ट की शक्तियों का उल्लेख भी आवश्यक हो जाता है। BNSS की धारा 427 अपील कोर्ट की शक्तियों के संदर्भ में विस्तार पूर्वक प्रावधान करती है। अपील कोर्ट को अपनी यह शक्तियां तीन प्रकार से प्राप्त होती है-दोषसिद्धि के आदेश से की गयी अपील की...
सजा होने पर अपील कब होती है?
क्रिमिनल ट्रॉयल के बाद आए फैसले पर अपील कोर्ट में जाने की व्यवस्था होती है। अपील का मतलब है ट्रॉयल कोर्ट से असंतुष्ट होने पर उससे ऊपर की अदालत में अपना पक्ष रखना। अपील का अधिकार कोई मूल अधिकार या नैसर्गिक अधिकार नहीं है अपितु यह अधिकार एक सांविधिक अधिकार है। यह ऐसा अधिकार जो किसी कानून के अंतर्गत पक्षकारों को उपलब्ध कराया जाता है। यदि किसी विधि में अपील संबंधी किसी प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है तो ऐसी परिस्थिति में अपील का अधिकार प्राप्त नहीं होता है। किसी भी पक्षकार को अपील का अधिकार...
धारा 167(2) राज्य की जांच प्रक्रिया और व्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच संतुलन कैसे करती है?
सुप्रीम कोर्ट ने फखरे आलम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में फिर से यह स्पष्ट किया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 167(2) आरोपी के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की रक्षा में कितनी महत्वपूर्ण है।इस निर्णय ने इस बात को रेखांकित किया कि संवैधानिक गारंटी (Constitutional Guarantees) और वैधानिक प्रावधानों (Statutory Provisions) के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाए। अदालत ने प्रक्रियात्मक सुरक्षा (Procedural Safeguards) और संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत दिए गए...
क्या जमानत शर्तें यौन अपराधों में पीड़िताओं के अधिकारों को प्रभावित करती हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण फैसले में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दी जाने वाली जमानत शर्तों और उनके प्रभाव पर गहराई से विचार किया। यह फैसला उन न्यायिक प्रथाओं की आलोचना करता है, जो यौन हिंसा (Sexual Violence) जैसे गंभीर अपराधों को सामान्य बनाती हैं।कोर्ट ने न्यायिक विवेक (Judicial Discretion), प्रक्रियात्मक सुरक्षा (Procedural Safeguards), और लैंगिक समानता (Gender Equality) को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट किया कि न्यायपालिका (Judiciary) का कर्तव्य है कि वह यौन अपराधों की पीड़िताओं (Survivors)...
समन मामलों में सुनवाई की प्रक्रिया: सेक्शन 274 और 275 BNSS, 2023 के तहत छोटे अपराधों के लिए सरल न्याय
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जो अब भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) का स्थान ले चुकी है, में समन मामलों (Summons Cases) की सुनवाई के लिए सरल और प्रभावी प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इस लेख में हम अध्याय 21 के तहत दिए गए सेक्शन 274 और 275 को सरल हिंदी में समझाएंगे ताकि आम जनता इसे आसानी से समझ सके।समन मामला क्या है? (What is a Summons Case?)समन मामले (Summons Case) और वारंट मामले (Warrant Case) के बीच का अंतर समझना जरूरी है। ...
धारा 309, भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत डकैती की परिभाषा और व्याख्या
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में डकैती (Robbery) को विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया है। यह कानून चोरी (Theft) और जबरन वसूली (Extortion) जैसी अपराधों को समझने और उनकी गंभीरता को ध्यान में रखकर उनके उन्नत स्वरूप यानी डकैती को स्पष्ट करता है।डकैती क्या है? Section 309 के तहत, डकैती कोई अलग अपराध नहीं है। यह चोरी या जबरन वसूली का गंभीर रूप है, जिसमें हिंसा (Violence) या डर (Fear) का तत्व जुड़ा होता है। इस धारा को तीन भागों में बांटा गया है, जो बताते हैं कि किन...
झूठे आरोपों के लिए मुआवजे का प्रावधान: धारा 273, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), की धारा 273 उन मामलों पर केंद्रित है जहां किसी व्यक्ति पर बिना किसी उचित कारण (Reasonable Cause) के आरोप लगाए गए हों।यह प्रावधान मजिस्ट्रेट (Magistrate) को यह अधिकार देता है कि वह झूठे या निराधार आरोपों के लिए आरोपी को मुआवजा (Compensation) दिला सके। इस प्रावधान का उद्देश्य झूठे मामलों को रोकना और गलत आरोपों के शिकार लोगों को न्याय दिलाना है। धारा 273 का सार: झूठे आरोपों के लिए मुआवजा मुआवजा कब दिया जा सकता है? ...
क्या सख्त जमानत कानून संविधान के अधिकारों, खासकर जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संतुलित हो सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह तय किया कि विशेष कानूनों जैसे अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1967 (Unlawful Activities (Prevention) Act, UAPA) के सख्त जमानत प्रावधान और संविधान के भाग III के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों, खासकर जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Right to Liberty) के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए।कोर्ट ने UAPA की धारा 43-D(5) का विश्लेषण किया, जो गंभीर अपराधों के आरोपी को तब तक जमानत देने से रोकता है जब तक कोर्ट यह सुनिश्चित न कर ले कि आरोपी प्राथमिक दृष्टि से (Prima...
क्या सख्त जमानत कानून संविधान के अधिकारों, खासकर जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संतुलित हो सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह तय किया कि विशेष कानूनों जैसे अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1967 (Unlawful Activities (Prevention) Act, UAPA) के सख्त जमानत प्रावधान और संविधान के भाग III के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों, खासकर जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Right to Liberty) के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए।कोर्ट ने UAPA की धारा 43-D(5) का विश्लेषण किया, जो गंभीर अपराधों के आरोपी को तब तक जमानत देने से रोकता है जब तक कोर्ट यह सुनिश्चित न कर ले कि आरोपी प्राथमिक दृष्टि से (Prima...
क्या IPC के न्यूनतम सजा के प्रावधानों पर प्रोबेशन लागू हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले लखवीर सिंह बनाम पंजाब राज्य ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code, IPC) के तहत न्यूनतम सजा के प्रावधान और अपराधियों के सुधार (Reformation) के उद्देश्य से बनाए गए प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट, 1958 (Probation of Offenders Act, 1958) के बीच सामंजस्य स्थापित किया है।यह निर्णय विशेष रूप से IPC की धारा 397, जो गंभीर अपराधों के लिए न्यूनतम सात साल की सजा निर्धारित करती है, और प्रोबेशन अधिनियम की धारा 4, जो अच्छे आचरण (Good Conduct) के आधार पर सजा में छूट देती है, के बीच के संबंध...
धारा 195 CrPC से संबंधित सिद्धांत: सुप्रीम कोर्ट ने संक्षेप में बताया
सुप्रीम कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 195 से संबंधित सिद्धांतों का सारांश दिया।यह प्रावधान लोक सेवकों के वैध अधिकार की अवमानना, लोक न्याय के विरुद्ध अपराध और साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों के लिए संज्ञान लेने की शर्तें निर्धारित करता है।जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने विभिन्न उदाहरणों से निम्नलिखित सिद्धांत निकाले:i. धारा 195 CrPC के तहत निर्धारित प्रक्रिया अनिवार्य प्रकृति की है।ii. यह धारा किसी व्यक्ति के सामान्य अधिकार और मजिस्ट्रेट के...