जानिए हमारा कानून
क्या सरकार बिना मुआवजा दिए निजी संपत्ति ले सकती है? एक कानूनी विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने Sukh Dutt Ratra बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2022) मामले में यह महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न तय किया कि क्या सरकार किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति (Private Property) को बिना कानूनी प्रक्रिया (Due Process) अपनाए और बिना मुआवजा (Compensation) दिए जबरदस्ती अपने कब्जे में ले सकती है? यह मामला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300-A (Article 300-A) से जुड़ा था, जिसमें यह प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से कानून द्वारा अधिकृत (Authority of Law) किए बिना वंचित नहीं किया जा सकता।सुप्रीम...
भारतीय स्टांप अधिनियम में दंड से संबंधित सभी प्रावधानों की व्याख्या और कानूनी परिणाम : धारा 62 -72
भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) दस्तावेज़ों (Documents) पर स्टांप शुल्क (Stamp Duty) लगाने के नियमों को निर्धारित करता है, ताकि सरकार को उचित राजस्व (Revenue) प्राप्त हो सके।इस अधिनियम (Act) में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति स्टांप शुल्क से बचने की कोशिश करता है, अनुचित तरीके से स्टांप का उपयोग करता है, या धोखाधड़ी (Fraud) करता है, तो उसे दंडित किया जाएगा। इस लेख में उन विभिन्न धाराओं (Sections) को सरल भाषा में समझाया गया है जो भारतीय स्टांप अधिनियम के तहत...
धारा 396, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 –Victim Compensation Scheme की संपूर्ण व्याख्या
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 396 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जिसका उद्देश्य अपराध पीड़ितों (Victims) और उनके आश्रितों (Dependents) को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस प्रावधान के तहत, केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर एक मुआवजा योजना (Compensation Scheme) तैयार करती हैं, ताकि अपराध से पीड़ित व्यक्ति की पुनर्वास (Rehabilitation) में सहायता की जा सके।यह प्रावधान पीड़ितों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है और उनके दर्द और कठिनाइयों को कम करने के लिए एक संरचनात्मक प्रक्रिया प्रदान करता है। ...
ग़ैरक़ानूनी रूप से बेदख़ल किरायेदार को फिर से क़ब्ज़ा दिलाने की प्रक्रिया: धारा 11 और 12 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) राज्य में मकान मालिकों (Landlords) और किरायेदारों (Tenants) के बीच संबंधों को नियंत्रित (Regulate) करने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उन किरायेदारों की सुरक्षा से जुड़ा है जिन्हें ग़ैरक़ानूनी तरीके से उनके किराए के मकान (Rented Premises) से निकाल दिया जाता है।अधिनियम के अध्याय IV (Chapter IV) में विशेष रूप से उन मामलों का समाधान दिया गया है जहां मकान मालिक बिना किसी वैध (Legal) प्रक्रिया के...
NI Act में लेखीवाल और ऊपरवाल की जिम्मेदारी
लेखीवाल-विनिमय पत्र या चेक का लेखीवाल (लेखक) धारक को क्षतिपूर्ति करने के लिए आबद्ध होते हैं यदि विनिमय पत्र की दशा में प्रतिग्रहीता एवं चेक की दशा में ऊपरवाल बैंक क्रमशः विनिमय पत्र या चेक का अनादर कर देते हैं, बशर्ते कि अनादर की सम्यक् सूचना लेखीवाल को की जाती है।चेक की दशा में चेक द्वारा इसका लेखीवाल ऊपरवाल (बैंक) को एक निश्चित धनराशि पाने वाले को संदाय करने का आदेश अपने खाते से करने को देता है। जहाँ बैंक द्वारा चेक का अनादर कर दिया जाता है वहाँ चेक का धारक बैंक के विरुद्ध कोई उपचार नहीं रखता...
NI Act में कौन एजेंट नियुक्त कर सकता है?
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 183 उपबन्धित करती है कि कोई भी व्यक्ति जो प्राप्तवय एवं स्वस्थवित हो अभिकर्ता नियोजित कर सकेगा। यह उपबन्ध यह स्पष्ट करता है कि एक अवयस्क प्रधान नहीं हो सकता है, अतः अवयस्क अभिकर्ता नियोजित नहीं कर सकेगा।अभिकर्ता कौन हो सकेगा- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 184 के अनुसार- "जहाँ तक मालिक और पर व्यक्तियों के बीच का सम्बन्ध है कोई भी व्यक्ति अभिकर्ता हो सकेगा, किन्तु कोई भी व्यक्ति, जो प्राप्तवय और स्वस्थचित्त न हो, अभिकर्ता ऐसे न हो सकेगा कि वह अपने प्रधान के...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 395 के तहत मुकदमे की लागत और पीड़ितों की क्षति पूर्ति
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 395 यह तय करती है कि अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने (Fine) की राशि को कैसे उपयोग किया जाएगा और पीड़ितों (Victims) को मुआवजा (Compensation) देने के लिए क्या प्रावधान हैं।यह धारा अपराधियों द्वारा भरे गए जुर्माने को न्यायपूर्ण तरीके से वितरित करने की व्यवस्था करती है ताकि इससे मुकदमे की लागत पूरी हो सके, पीड़ितों को वित्तीय राहत मिल सके और अपराध के कारण हुए नुकसान की भरपाई हो सके। यह प्रावधान न्याय को केवल सजा तक सीमित नहीं रखता, बल्कि अपराध से प्रभावित...
क्या किसी गलत न्यायिक आदेश से मिले लाभ को बनाए रखा जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने Mekha Ram बनाम राजस्थान राज्य (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर निर्णय दिया कि यदि किसी व्यक्ति को न्यायालय के एक अस्थायी (Temporary) आदेश से आर्थिक लाभ मिला हो और बाद में वह आदेश हाईकोर्ट (Higher Court) द्वारा निरस्त (Overturned) कर दिया जाए, तो क्या वह लाभ वापस किया जाना चाहिए?यह मामला सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure - CPC) की धारा 144 के तहत प्रतिपूर्ति (Restitution) के सिद्धांत से संबंधित था। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी...
धारा 73 और 74, भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के अंतर्गत सरकारी दस्तावेजों की जांच और स्टांप बिक्री के नियंत्रण के कानूनी प्रावधान
भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) एक महत्वपूर्ण कानून है, जो विभिन्न कानूनी दस्तावेजों पर स्टांप शुल्क (Stamp Duty) के भुगतान को नियंत्रित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि वे सभी लेनदेन (Transactions) और अनुबंध (Contracts), जिन पर स्टांप शुल्क देय है, उन्हें उचित रूप से दर्ज किया जाए और सरकार को आवश्यक राजस्व (Revenue) प्राप्त हो।अध्याय VIII (Chapter VIII) इस अधिनियम के अंतर्गत कुछ अतिरिक्त प्रावधान (Supplemental Provisions) प्रदान करता है, जो मुख्य रूप से स्टांप शुल्क की...
किरायेदार से तत्काल कब्ज़ा वापस लेने का विशेष अधिकार – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम धारा 10 भाग 2
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के अधिकारों और कर्तव्यों को तय करता है। इसमें धारा 10 एक महत्वपूर्ण प्रावधान (Provision) है, जो कुछ विशेष परिस्थितियों में मकान मालिक को किराए पर दिए गए मकान का कब्ज़ा तुरंत वापस लेने का अधिकार देता है।धारा 10 का पहला भाग कुछ विशेष श्रेणियों के मकान मालिकों को किरायेदार से तत्काल कब्ज़ा वापस लेने की अनुमति देता है। इनमें सेवानिवृत्त सशस्त्र बल कर्मी (Retired Armed Forces...
Explainer | क्या किसी मौजूदा जज के खिलाफ़ FIR दर्ज की जा सकती है? जज के खिलाफ़ शिकायत पर इन-हाउस जांच प्रक्रिया क्या है?
गुरसिमरन कौर बख्शीदिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास से कथित रूप से बेहिसाब धन बरामद होने की खबरों ने कानूनी बिरादरी में खलबली मचा दी है।जबकि यह समझा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम जस्टिस वर्मा को स्थानांतरित करने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इस मामले की जांच कर रहे हैं, आम जनता द्वारा कई चिंताएं जताई जा रही हैं, जो बिल्कुल सही है।यदि किसी न्यायाधीश के पास कथित रूप से बेहिसाब नकदी पाई जाती है, तो क्या इस मुद्दे पर पहले एफआईआर दर्ज नहीं की...
NI Act में एजेंसी द्वारा किसी इंस्ट्रूमेंट को लिखना
किसी लिखत के लिखने, प्रतिग्रहीत करने या पृष्ठांकित करने के लिए विधि के अधीन अभिकरण अनुयोज्य है, परन्तु इसे अभिव्यक्तः लिखित अर्थात् पावर ऑफ अटॉर्नी से होना चाहिए यहाँ पर यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या एक अवयस्क प्रधान या अभिकर्ता हो सकता है।इस मुद्दे को विधि के सुसंगत प्रावधानों से स्पष्ट किया जाएगा। परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 27 के अनुसार-"ऐसा हर व्यक्ति जो अपने को आबद्ध करने के लिए या आबद्ध होने के लिए इस प्रकार समर्थ है जैसा कि धारा 26 में वर्णित है, सम्यक रूप से ऐसे प्राधिकृत अभिकर्ता...
NI Act में लिखित के पक्षकारों की कैपेसिटी
पक्षकारों की कैपिसीटीइस अधिनियम की धारा 26 इस संबंध में उल्लेख करती है कि कौन व्यक्ति लिखत के लिए सक्षम पक्षकार हो सकता है।संविदात्मक क्षमता– धारा 26 किसी व्यक्ति के सामर्थ्य के सम्बन्ध में नियम को स्थापित करती है कि किसी वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक केपक्षकार के रूप में दायित्व उपागत करने एवं को रचित करने, लिखने, प्रतिग्रहीत करने, पृष्ठांकन करने, परिदान करने एवं परक्राम्य करने के सम्बन्ध में।उक्त दोनों संविदा सामर्थ्य के समविस्तार में हैं। किसी वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक का पक्षकार होना और...
धारा 394 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: पूर्व में दोषी ठहराए गए अपराधियों के पते की अधिसूचना का आदेश
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 394 उन अपराधियों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जिन्हें पहले किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो और उन्हें तीन वर्ष या उससे अधिक की कैद की सजा हुई हो।यदि ऐसे व्यक्ति को पुनः किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे तीन वर्ष या उससे अधिक की सजा मिलती है, तो न्यायालय उसके निवास स्थान की अधिसूचना (Notification of Residence) से संबंधित आदेश दे सकता है। यह आदेश न्यायालय को यह सुनिश्चित करने की शक्ति देता है कि ऐसे अपराधी की गतिविधियों पर निगरानी रखी...
विशेष मामलों में मकान मालिक का किराएदार से तुरंत कब्जा वापस लेने का अधिकार – धारा 10 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 भाग 1
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) मकान मालिक (Landlord) और किराएदार (Tenant) के बीच संबंधों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम की धारा 10 कुछ विशेष परिस्थितियों में मकान मालिक को उनके किराए पर दिए गए मकान पर तुरंत कब्जा (Immediate Possession) पाने का अधिकार देती है।धारा 9 में सामान्य रूप से किराएदार को मकान खाली करने के कई कारण बताए गए हैं, लेकिन धारा 10 विशेष परिस्थितियों में मकान मालिक को जल्दी न्याय दिलाने के लिए बनाई गई है। यह धारा उन...
भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 की धारा 70, 71 और 72: अभियोजन , क्षेत्राधिकार और मुकदमे की सुनवाई से जुड़े कानूनी प्रावधान
भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) एक महत्वपूर्ण कानून है जो कानूनी दस्तावेजों (Legal Documents) पर स्टांप शुल्क (Stamp Duty) लगाने और सरकार के राजस्व (Revenue) की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इस अधिनियम के अध्याय VII में अपराध (Criminal Offences) और न्यायिक प्रक्रिया (Legal Procedure) से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं।धारा 70, 71 और 72 उन मामलों को नियंत्रित करती हैं जहां स्टांप शुल्क से बचने के लिए कानून का उल्लंघन किया जाता है। ये प्रावधान यह तय करते हैं कि किस अधिकारी की अनुमति...
क्या भारत से बाहर आंशिक रूप से किए गए अपराधों पर भारतीय अदालतों में मुकदमा चल सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने Sartaj Khan बनाम उत्तराखंड राज्य (2022) के मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर फैसला दिया कि क्या कोई अपराध जो आंशिक रूप से भारत के बाहर किया गया हो, भारतीय अदालतों में मुकदमे योग्य (Triable) होगा? यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure - CrPC) की धारा 188 की व्याख्या (Interpretation) से जुड़ा था।इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी अपराध का कोई भी हिस्सा भारत में घटित हुआ हो, तो उसे भारतीय अदालतों में मुकदमे योग्य माना जाएगा और...
NI Act में चुराए गए इंस्ट्रूमेंट के पेमेंट के संबंध में प्रावधान
वाहक लिखत की दशा में अधिनियम की धाराएं 10, 78 एवं 82 (ग) लिखतों के संदाय के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण है कि सभी मामलों में संदाय एक विधिसम्मत धारक को किया जाना चाहिए। यहाँ प्रश्न है कि वाहक की देय लिखत में किसे विधिसम्मत धारक माना जाय। ऐसी दशा में सही धारक वह है जिसने परिदान के द्वारा लिखत को प्राप्त किया है। वाहक को देय लिखत की दशा में यह निर्धारित करना कि किस धारक ने लिखत को परिदान द्वारा या अन्यथा रूप में प्राप्त किया है, कठिन है।यदि यह दिखाने के लिए कुछ नहीं है कि वह संदाय पाने का हकदार नहीं...
NI Act में धारा 10 के प्रावधान
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 10 सम्यक अनुक्रम में संदाय के संबंध में है।किसी भी सम्यक् अनुक्रम संदाय के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए-लिखत के प्रकट शब्दों के अनुसार संदाय,सद्भावना पूर्वकबिना किसी उपेक्षा के,लिखत का कब्जा रखने वाले (धारक) को, एवं उस व्यक्ति को जो संदाय पाने का हकदार है। उक्त परिस्थितियों में की गई संदाय को विधिसम्मत संदाय भी कहेंगे।लिखत के प्रकट शब्दों के अनुसार-लिखत के प्रकट शब्दों से अभिप्रेत है कि पक्षकारों के आशय के अनुसार संदाय किया जाना चाहिए जो...
न्यायालय के निर्णय की भाषा और और दंड निर्धारण की प्रक्रिया – धारा 393, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
न्यायालय (Court) द्वारा दिए गए निर्णय (Judgment) में यह तय किया जाता है कि अभियुक्त (Accused) दोषी है या नहीं। यदि दोषी है, तो उसे क्या दंड (Punishment) दिया जाएगा।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 393 में यह प्रावधान किया गया है कि न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय की भाषा और उसकी सामग्री कैसी होनी चाहिए। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि निर्णय स्पष्ट, न्यायपूर्ण और पारदर्शी हो। निर्णय की भाषा (Language of the Judgment) धारा 393(1)(a) के अनुसार, हर निर्णय न्यायालय की आधिकारिक भाषा...