जानिए हमारा कानून
क्या आपराधिक ट्रायल में गवाहों की क्रॉस एग्ज़ामिनेशन रणनीतिक कारणों से टाली जा सकती है?
राज्य बनाम Rasheed (State of Kerala v. Rasheed) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि क्या आपराधिक ट्रायल (Criminal Trial) में गवाहों की क्रॉस एग्ज़ामिनेशन (Cross-Examination) को रणनीतिक कारणों से टाला जा सकता है, जैसे कि बचाव पक्ष (Defense) यह दावा करे कि अगर क्रॉस एग्ज़ामिनेशन तुरंत की गई, तो उनकी रणनीति उजागर हो जाएगी।अदालत ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला दिया और यह निर्धारित किया कि न्यायिक विवेक (Judicial Discretion) को कैसे और कब उपयोग किया जाना...
झूठी जानकारी, सबूत नष्ट करना और धोखाधड़ी पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 240 - 243
भारतीय न्याय संहिता (Bhartiya Nyaya Sanhita), 2023, जो 1 जुलाई 2024 से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान ले चुकी है, में कई ऐसे प्रावधान (Provisions) शामिल हैं जो झूठी जानकारी देने, सबूत नष्ट करने और धोखाधड़ी (Fraud) के मामलों को रोकने के लिए बनाए गए हैं। धारा 240 से 243 विशेष रूप से इन अपराधों पर केंद्रित हैं। यह लेख इन धाराओं को सरल हिंदी में समझाएगा और हर उदाहरण को विस्तार से बताएगा ताकि आम लोग भी इसे आसानी से समझ सकें और जानें कि कानून के तहत किस प्रकार सजा दी जा सकती है।धारा...
मानहानि के अभियोजन पर कानून: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के धारा 222 की समझ
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई और जिसने पुरानी फौजदारी प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की जगह ली, में मानहानि (Defamation) के अभियोजन से संबंधित कुछ विशेष प्रावधान दिए गए हैं। इनमें से एक मुख्य प्रावधान धारा 222 है, जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bhartiya Nyaya Sanhita, 2023) के तहत मानहानि के मामलों पर विस्तृत दिशा-निर्देश देता है।मानहानि के मामले संवेदनशील होते हैं, खासकर जब इसमें उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों...
डिफॉल्ट जमानत पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले और विधि आयोग की रिपोर्ट
अचपाल @ रामस्वरूप बनाम राजस्थान राज्य के मामले में इस महत्वपूर्ण सवाल पर विचार किया गया कि क्या अगर 90 दिन की निर्धारित अवधि में जांच पूरी नहीं होती है, तो आरोपी को डिफॉल्ट जमानत (Default Bail) मिल सकती है।भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code, CrPC) की धारा 167(2) के अनुसार, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई कानूनी मिसालों (Legal Precedents) पर विचार किया और आरोपी के अधिकारों और राज्य की जांच समय पर पूरी करने की जिम्मेदारी के बीच संतुलन की चर्चा की। इस लेख में उन प्रमुख फैसलों...
BNSS, 2023 और BNS, 2023 के अंतर्गत वैवाहिक अपराधों के लिए कानूनी प्रक्रिया
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (जिसने Criminal Procedure Code को बदल दिया) और भारतीय न्याय संहिता, 2023 (जिसने Indian Penal Code को बदल दिया), दोनों में कुछ वैवाहिक अपराधों के लिए कानूनी प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। ये धाराएं महिलाओं को विवाह में क्रूरता (Cruelty) और बिना सहमति के यौन संबंधों (Non-Consensual Sexual Intercourse) से सुरक्षा प्रदान करती हैं, और यह भी तय करती हैं कि कौन इन मामलों में शिकायत दर्ज कर सकता है।धारा 220: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 के तहत क्रूरता के...
क्या पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट को तकनीकी कारणों से मजिस्ट्रेट द्वारा लौटाया जाता है, तब भी आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार प्राप्त होगा?
अचपाल @ रामस्वरूप और अन्य बनाम राजस्थान राज्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या यदि 90 दिन की निर्धारित अवधि में जांच पूरी नहीं होती है, तो आरोपी को जमानत (Bail) दी जा सकती है। इस लेख में अदालत द्वारा कानून की व्याख्या, प्रमुख न्यायिक फैसले (Judicial Precedents), और इस मामले में आरोपी के जमानत के अधिकार (Right to Bail) के मुद्दे पर चर्चा की जाएगी, खासकर जब जांच कानूनी समय सीमा से अधिक हो जाती है।दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) के प्रावधान (Provisions of Section...
झूठे बयान, सबूत छिपाना और जानकारी छिपाने के अपराध: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 237 से 239
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को बदल दिया है। इसमें कई प्रावधान (Provisions) हैं जो कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) की शुद्धता बनाए रखने के लिए झूठे बयान (False Declarations), सबूत छिपाने और अपराध की जानकारी छिपाने जैसे मामलों को रोकते हैं।धारा 237 से 239 इसी उद्देश्य पर केंद्रित हैं। यह लेख इन धाराओं का सरल हिंदी में विश्लेषण करेगा, ताकि आम लोग भी समझ सकें कि ये कानून कैसे काम करते हैं और किस प्रकार अपराधियों (Offenders) को...
क्या केवल भारत के चीफ जस्टिस को मामलों का आवंटन करने की शक्ति होनी चाहिए?
शांति भूषण बनाम भारत संघ के मामले में मुख्य प्रश्न यह था कि क्या मामलों (Cases) को विभिन्न पीठों (Benches) को आवंटित करने का अधिकार केवल भारत के चीफ जस्टिस (Chief Justice of India, CJI) के पास होना चाहिए।याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह जिम्मेदारी केवल CJI पर निर्भर नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों को भी शामिल किया जाना चाहिए, ताकि पारदर्शिता (Transparency) और निष्पक्षता (Fairness) सुनिश्चित हो सके। इस लेख में अदालत द्वारा जांचे गए कानूनी प्रावधानों (Legal...
क्या विधायकों को उनके कार्यकाल के दौरान वकील के रूप में प्रैक्टिस करने से रोका जा सकता है?
अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ के मामले में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया कि क्या निर्वाचित प्रतिनिधि, जैसे संसद सदस्य (MPs) और विधान सभा सदस्य (MLAs), अपने पद पर रहते हुए वकालत कर सकते हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह की दोहरी भूमिकाओं से हितों का टकराव (Conflict of Interest) और पेशेवर कदाचार (Professional Misconduct) होता है।इस लेख में अदालत द्वारा जांचे गए प्रावधानों (Provisions), महत्वपूर्ण निर्णयों (Judgments), और मुख्य मुद्दे पर चर्चा की जाएगी—क्या विधायकों को उनके कार्यकाल के...
झूठे प्रमाण और प्रमाणपत्रों का दुरुपयोग: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 233 से 236
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को बदल दिया है। इसकी विभिन्न धाराओं में, धारा 233 से 236 झूठे प्रमाण (False Evidence), प्रमाणपत्रों (Certificates) के दुरुपयोग और झूठी घोषणाओं (False Declarations) पर ध्यान केंद्रित करती हैं।ये धाराएँ उन व्यक्तियों के लिए गंभीर परिणाम निर्धारित करती हैं जो जानबूझकर और भ्रष्ट तरीके से झूठे प्रमाण या प्रमाणपत्रों का उपयोग करते हैं, साथ ही वे लोग जो झूठी घोषणाएँ करते हैं। इस लेख में इन प्रावधानों को...
वैवाहिक अपराधों के लिए अभियोजन और कोर्ट का संज्ञान : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत धारा 219
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जिसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की जगह ली है, वैवाहिक अपराधों के अभियोजन के लिए एक विस्तृत कानूनी प्रक्रिया प्रदान करती है।इसमें यह निर्धारित किया गया है कि ऐसे मामलों में शिकायत कौन कर सकता है और किन परिस्थितियों में। यह संहिता कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त प्रावधान करती है, साथ ही न्याय की प्रक्रिया को सुनिश्चित करती है। धारा 219(1): वैवाहिक अपराधों के लिए संज्ञान (Cognizance) धारा 219(1) के तहत, कोर्ट केवल तभी वैवाहिक अपराधों (जो...
गिरफ्तारी से पहले की जाने वाली आवश्यक प्रक्रियाएं और पुलिस की जवाबदेही: सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश
भारतीय न्याय संहिता, 2023 जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई, ने भारतीय दंड संहिता (IPC) को प्रतिस्थापित किया है। इस संहिता में नागरिकों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने से संबंधित प्रक्रियाओं को संरक्षित करने के लिए कई प्रावधान बनाए गए हैं।अदालत ने प्रमुख मामलों जैसे D.K. Basu बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, Joginder Kumar बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, Nilabati Behera बनाम ओडिशा राज्य, और Lalita Kumari बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए हैं। इन मामलों, साथ ही मध्य प्रदेश राज्य बनाम...
जजों और पब्लिक सर्वेंट के अभियोजन के प्रावधान: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत धारा 218
1 जुलाई, 2024 को लागू हुई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है। इस नए कानून में न्यायाधीशों (Judges), मजिस्ट्रेटों (Magistrates), और पब्लिक सर्वेंट (Public Servants) के अभियोजन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं। इस लेख में हम धारा 218 के प्रावधानों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे, जो कि इन अधिकारियों पर उनके आधिकारिक कर्तव्यों (Official Duties) का निर्वहन करते हुए किए गए अपराधों के लिए अभियोजन (Prosecution) की प्रक्रिया...
झूठे सबूत और गलत साक्ष्य गढ़ने के परिणाम और किसी को झूठी गवाही देने के लिए धमकाना: BNS, 2023 के तहत धारा 230 - धारा 232
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को बदल दिया है। इसमें कई प्रावधान दिए गए हैं जो न्याय प्रणाली की ईमानदारी को बनाए रखने के उद्देश्य से बनाए गए हैं।इसमें धारा 230, धारा 231, और धारा 232 विशेष रूप से उन अपराधों से संबंधित हैं, जिनमें झूठे सबूत दिए जाते हैं या गढ़े जाते हैं, और जिसके परिणामस्वरूप गलत दोषसिद्धि हो सकती है, खासकर उन मामलों में जो गंभीर अपराध हैं। ये प्रावधान झूठी गवाही (Perjury) और...
क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 498A का दुरुपयोग हो रहा है या यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 498A को 1983 में विवाहित महिलाओं के खिलाफ हो रही क्रूरता और उत्पीड़न को रोकने के लिए लागू किया गया था। इस प्रावधान का उद्देश्य उन महिलाओं को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना था, जो अपने पति या ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता का शिकार होती हैं।हालांकि, इस कानून को लेकर सालों से यह बहस चल रही है कि क्या इसका दुरुपयोग हो रहा है। इस लेख में हम धारा 498A से जुड़े कानूनी प्रावधानों, महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों (Judgments), और अदालतों द्वारा उठाए गए बुनियादी...
भीड़ हिंसा और लिंचिंग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण क्या है?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान (Cognizance) और सरकार की स्वीकृति आवश्यकताएँभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है और नए प्रावधानों को लागू किया है। इस संहिता के तहत एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि न्यायालय कब किसी अपराध का संज्ञान (Cognizance) ले सकता है। "संज्ञान" का मतलब है जब न्यायालय को किसी अपराध के बारे में जानकारी मिलती है और वह मामले की सुनवाई शुरू करता है। कुछ विशेष अपराधों के...
क्या भारत में जीवन के अधिकार, बोलने की आज़ादी और विविधता में एकता की रक्षा कोर्ट कर सकता है?
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने Tehseen S. Poonawalla vs Union of India (2018) मामले में भारतीय संविधान के मौलिक मूल्यों की रक्षा पर जोर दिया, विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार (Right to Life), अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression), और "विविधता में एकता" (Unity in Diversity) के विचार को बरकरार रखने पर।इस फ़ैसले में भीड़तंत्र (Mob Lynching) के मुद्दे पर कोर्ट ने गहरी समझ दिखाई और इन मूलभूत अधिकारों की रक्षा के महत्व पर जोर दिया। इस लेख में हम...
न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान और सरकार की स्वीकृति आवश्यकताएँ : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 217
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है और नए प्रावधानों को लागू किया है। इस संहिता के तहत एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि न्यायालय कब किसी अपराध का संज्ञान (Cognizance) ले सकता है।"संज्ञान" का मतलब है जब न्यायालय को किसी अपराध के बारे में जानकारी मिलती है और वह मामले की सुनवाई शुरू करता है। कुछ विशेष अपराधों के लिए न्यायालय को सरकार की पूर्व स्वीकृति (Previous Sanction) की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कानूनी...
झूठे साक्ष्य देने या गढ़ने पर सज़ा: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 229
भारतीय न्याय संहिता, 2023 जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड संहिता (IPC) को प्रतिस्थापित कर दिया है। इस संहिता में धारा 229 झूठे साक्ष्य (false evidence) देने या गढ़ने के लिए सज़ा की व्यवस्था करती है। यह धारा उन मामलों पर लागू होती है जहां व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया (judicial proceeding) में गलत गवाही देता है या गलत साक्ष्य तैयार करता है ताकि इसका इस्तेमाल कानूनी प्रक्रिया में किया जा सके।धारा 227 (झूठे साक्ष्य) और धारा 228 (झूठे साक्ष्य गढ़ना) की जानकारी के लिए आप Live Law Hindi पर...
क्या एक मेमोरी कार्ड या पेन ड्राइव "दस्तावेज़" के रूप में मानी जा सकती है भारतीय साक्ष्य अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत?
टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल के साथ, अदालतों के सामने यह सवाल आ रहा है कि कैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स जैसे मेमोरी कार्ड और पेन ड्राइव को पारंपरिक कानूनी परिभाषाओं में समायोजित किया जाए।एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या मेमोरी कार्ड या पेन ड्राइव के कंटेंट्स को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) की धारा 3 और भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860) की धारा 29 के तहत "दस्तावेज़" (Document) माना जा सकता है। इस लेख में, हम उन प्रावधानों और निर्णयों पर विचार करेंगे...