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The Indian Contract Act में कपट के बगैर ही सहमति फ्री मानी जाती है?
अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत स्वतंत्र सहमति की परिभाषा प्रस्तुत की गई है जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि सहमति कब फ्री मानी जाएगी। इस धारा में यह भी उल्लेख है कि किसी भी सहमति में कपट नहीं होना चाहिए। यदि किसी सहमति में कपट नहीं है तब ऐसी परिस्थिति में ही सहमति स्वतंत्र सहमति होती है।किसी भी व्यक्ति द्वारा जब जानबूझकर दुर्व्यपदेशन किया जाता है यह कपट हो जाता है। भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत धारा 17 में कपट की परिभाषा प्रस्तुत की गई है। इस परिभाषा के अंतर्गत मिथ्या कथन जिसका सत्य होने के रूप...
The Indian Contract Act में Free Concern तब बनती है जब उसमें Undue Influence नहीं हो
Undue Influence शब्द थोड़ा कठिन शब्द है परंतु किसी भी स्वतंत्र सहमति के लिए Undue Influence घातक होता है, इसे हिंदी में असम्यक असर कहा जाता है। कोई भी सहमति स्वतंत्र नहीं होती है यदि उसमें असम्यक असर का समावेश होता है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 16 के अंतर्गत असम्यक असर को परिभाषित किया गया है।यदि संविदा असम्यक असर से पीड़ित है तो पीड़ित पक्षकार के विकल्प पर शून्यकरणीय होगी। असम्यक असर की अवधारणा प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को कुछ बातें साबित करना होती।संविदा के पक्षकारों की स्थिति आपसी संबंध...
The Indian Contract Act में कोई Free Concern में Coercion नहीं होना
वैध संविदा के लिए स्वतंत्र सहमति आवश्यक गुण है। स्वतंत्र सहमति की परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत धारा 14 में प्रस्तुत की गई है। धारा 14 के अंतर्गत स्वतंत्र सहमति के गुणों का उल्लेख किया गया है। किसी भी वैध संविदा के लिए स्वतंत्र सहमति आवश्यक है।सम्मति का तात्पर्य वास्तविक सम्मति से है। इसे शुद्ध सम्मती भी कहते हैं। यदि यह स्वतंत्र या शुद्ध नहीं है तो यह संविदा को प्रतिकूल रूप में प्रभावित कर सकती है। इस प्रकार जब भी विधिमान्य संविदा का सृजन किया जाना तात्पर्य हो तो ऐसी स्थिति में...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 85 - 89: अप्रयुक्त दस्तावेजों का विनाश
पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XV को समझते हैं, जिसमें विभिन्न प्रावधान (miscellaneous provisions) शामिल हैं। ये धाराएँ पंजीकरण प्रणाली से संबंधित कई महत्वपूर्ण और विविध मुद्दों को संबोधित करती हैं, जैसे अप्रयुक्त दस्तावेजों को नष्ट करना, अधिकारियों को कानूनी सुरक्षा, और सरकारी अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों के पंजीकरण की विशेष प्रक्रिया।धारा 85. अप्रयुक्त दस्तावेजों का विनाश (Destruction of unclaimed documents)यह धारा अप्रयुक्त दस्तावेजों को नष्ट करने की अनुमति देती है।...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 39: मौद्रिक दंडों के निष्पादन की प्रक्रिया
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहारों पर भारी मौद्रिक दंड (monetary penalties) लगाने की शक्ति प्राप्त है। हालाँकि, केवल जुर्माना लगाना ही पर्याप्त नहीं है; इसे प्रभावी ढंग से वसूल करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 39 (Section 39) इसी प्रक्रिया का विवरण देती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि CCI द्वारा लगाए गए दंडों को सख्ती से लागू किया जाए। यह धारा CCI को जुर्माने की वसूली के लिए लचीले और शक्तिशाली तरीके प्रदान करती है। धारा 39: मौद्रिक दंड...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 43 से 46: अपराधों का संज्ञान और न्यायिक सुरक्षा
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981, के तहत प्रदूषण के मामलों से निपटने के लिए एक विशिष्ट कानूनी प्रक्रिया स्थापित की गई है। अध्याय VII में, धारा 43 से 46 तक के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि अपराधों का संज्ञान (cognizance) सही तरीके से लिया जाए, बोर्ड के सदस्यों को कानूनी सुरक्षा मिले, और उनकी कार्रवाई को नागरिक अदालतों (civil courts) में चुनौती न दी जा सके।धारा 43 - अपराधों का संज्ञान (Cognizance of Offences)यह धारा अदालतों को अधिनियम के तहत अपराधों का संज्ञान लेने की प्रक्रिया...
क्या Advocates को Consumer Protection Act के तहत “Deficiency in Service” के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का विधायी उद्देश्य और दायरा (Legislative Intent and Scope of the Consumer Protection Act)सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले यह देखा कि Consumer Protection Act, 1986 और 2019 के पुनः लागू संस्करण में क्या विधायिका (Legislature) ने कभी यह इरादा जताया था कि इसमें Professions और Professionals द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को शामिल किया जाए। State of Karnataka v. Vishwabharathi House Building Coop. Society, Common Cause v. Union of India और Lucknow Development Authority v. M.K. Gupta...
क्या जघन्य अपराध के मामलों में किशोर न्याय बोर्ड द्वारा प्रारंभिक मूल्यांकन की तीन माह की समयसीमा अनिवार्य है?
Child in Conflict with Law Through His Mother v. State of Karnataka (2024 INSC 387) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act, 2015) की कुछ महत्वपूर्ण धाराओं की व्याख्या की।इस मामले का मुख्य विवाद तथ्यों पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि कानून में तय प्रक्रिया और समयसीमा का पालन न होने पर उसके क्या परिणाम होंगे, विशेषकर तब जब किसी बच्चे पर जघन्य अपराध (Heinous Offence) का आरोप हो और यह तय करना हो कि उसे वयस्क (Adult) के रूप में मुकदमे...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 36-38 : आयोग की प्रक्रिया और आदेशों का संशोधन
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) एक विशेष नियामक निकाय (regulatory body) है जिसे भारतीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा (Competition) को बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है।इस कार्य को प्रभावी ढंग से करने के लिए, CCI को न केवल व्यापक शक्तियां दी गई हैं, बल्कि उसे अपनी कार्यवाही (proceedings) को संचालित करने के लिए भी पर्याप्त स्वतंत्रता दी गई है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 36 (Section 36) और धारा 38 (Section 38) इसी प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक ढांचे का वर्णन करती हैं, जो CCI के कामकाज की...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 81 - 84: दस्तावेज़ों का गलत पृष्ठांकन, प्रतिलिपि, अनुवाद या पंजीकरण करने पर दंड
आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XIV को समझते हैं, जो पंजीकरण प्रक्रिया में होने वाले अपराधों और उनके लिए निर्धारित दंडों से संबंधित है। यह भाग पंजीकरण प्रणाली की अखंडता (integrity) की रक्षा करता है और इसमें शामिल सभी पक्षों - अधिकारियों और नागरिकों - की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।81. चोट पहुँचाने के इरादे से दस्तावेज़ों का गलत पृष्ठांकन, प्रतिलिपि, अनुवाद या पंजीकरण करने पर दंड (Penalty for incorrectly endorsing, copying, translating or registering documents with intent...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 40-42 : कंपनियों और सरकारी विभागों द्वारा अपराध, और सद्भाव में की गई कार्रवाई का संरक्षण
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 का यह अध्याय स्पष्ट करता है कि जब कोई अपराध किसी कंपनी, फर्म या सरकारी विभाग द्वारा किया जाता है, तो कौन जवाबदेह होगा। यह व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं को परिभाषित करता है और अधिकारियों को सद्भाव (good faith) में की गई कार्रवाइयों के लिए सुरक्षा भी प्रदान करता है।धारा 40 - कंपनियों द्वारा अपराध (Offences by Companies)यह धारा इस बात को सुनिश्चित करती है कि जब कोई कंपनी या व्यावसायिक संस्था (business entity) अपराध करती है,...
The Indian Contract Act में Contract कौन कर सकता है?
The Indian Contract Act में Contract कौन कर सकता है संविदा करने के लिए सक्षम होने के संबंध में धारा 11 और 12 में प्रावधान दिए गए हैं। धारा 11 में यह बतलाया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो प्राप्तवय हो जो स्वस्थचित्त हो और किसी विधि द्वारा संविदा करने से निर्योग्य न हो। एक्ट की धारा 11 और 12 संविदा करने की सक्षमता और स्वस्थ मस्तिष्क की स्थिति को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह धाराएँ न केवल पक्षकारों को शोषण से बचाती हैं, बल्कि संविदा की कानूनी वैधता को भी बनाए रखती हैं।...
The Indian Contract Act धारा 10 के प्रावधान
इस अधिनियम की धारा 10 भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है। यदि इस धारा को गहनता से अध्ययन किया जाए तो यह प्राप्त होता है कि संविदा अधिनियम का संपूर्ण निचोड़ तथा निष्कर्ष इस धारा के अंतर्गत समाहित कर दिया गया है। इस धारा में दी गई परिभाषा को पूर्ण करने के लिए ही अगली 20 धाराएं लिखी गई है क्योंकि अधिनियम की धारा 10 का संबंध सीधे अगली 20 धाराओं से भी है। धारा 10 से धारा 30 तक संविदा अधिनियम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण धाराएं है, यह धाराएं संविदा विधि की आधारभूत...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 32, धारा 33, और धारा 35 : CCI के अधिकार क्षेत्र, अंतरिम आदेश और उपस्थिति का अधिकार
पिछले अनुभागों में हमने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के कर्तव्य, जांच की शक्तियाँ और आदेशों के बारे में सीखा। अब हम उन तीन महत्वपूर्ण धाराओं पर ध्यान देंगे जो CCI की पहुंच, तात्कालिकता और प्रक्रियात्मक स्वतंत्रता को दर्शाती हैं।भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 32, धारा 33, और धारा 35 CCI को वैश्विक स्तर पर कार्रवाई करने, जांच के दौरान संभावित नुकसान को रोकने के लिए तुरंत हस्तक्षेप करने और यह तय करने की स्वतंत्रता देती हैं कि उसके सामने कौन और कैसे उपस्थित हो सकता है। ये धाराएँ आधुनिक,...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 78, 79, 80: पंजीकरण, खोज और प्रतियों के लिए शुल्क
यह धाराएँ पंजीकरण, खोज और प्रतियों के लिए देय शुल्कों के निर्धारण, प्रकाशन और भुगतान के प्रशासनिक पहलुओं को निर्दिष्ट करती हैं।धारा 78. राज्य सरकार द्वारा तय किए जाने वाले शुल्क (Fees to be fixed by State Government) यह धारा राज्य सरकार को विभिन्न सेवाओं के लिए शुल्क की एक तालिका (table) तैयार करने का अधिकार देती है। यह शुल्क पंजीकरण, खोज और प्रतियों की लागत को कवर करता है। • मुख्य शुल्क (Main Fees): यह शुल्क दस्तावेज़ों के पंजीकरण के लिए, रजिस्टरों की खोज के लिए, और पंजीकरण से पहले या बाद में...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 का अध्याय VI की धारा 37-39: दंड और प्रक्रिया
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 का अध्याय VI उन व्यक्तियों के लिए कड़े दंड (penalties) और कानूनी प्रक्रियाओं (legal procedures) का प्रावधान करता है जो अधिनियम के नियमों का पालन करने में विफल रहते हैं या जानबूझकर उसमें बाधा डालते हैं। यह अध्याय अधिनियम के प्रवर्तन (enforcement) का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों को जवाबदेह ठहराने के लिए कानूनी अधिकार प्रदान करता है।धारा 37 - धारा 21 या 22 का पालन करने में विफलता या धारा 31A के तहत जारी निर्देशों का पालन...
क्या समय-सीमा समाप्त होने के बाद भी विशेष कानूनों के तहत कर्ज वसूली हो सकती है?
भारतीय कानून में एक लंबे समय से यह सवाल उठता रहा है कि क्या कोई ऐसा कर्ज, जो Limitation Act, 1963 के तहत समय-सीमा समाप्त होने के कारण अदालत में वसूली योग्य नहीं रह गया है, फिर भी विशेष वसूली कानूनों के तहत वसूला जा सकता है। K.P. Khemka & Anr. v. Haryana State Industrial and Infrastructure Development Corporation Ltd. & Ors. (2024) में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार किया।मामला Haryana Public Moneys (Recovery of Dues) Act, 1979 और State Financial Corporations Act, 1951 के संदर्भ में...
'जेंडर-न्यूट्रल' को अक्सर 'जेंडर समानता' समझ लिया जाता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में पुरुष उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित करने की नीति रद्द की।यह आदेश देते हुए कि नियुक्तियां योग्यता-आधारित होनी चाहिए, न्यायालय ने कहा कि "जेंडर-न्यूट्रल" शब्द को अक्सर "जेंडर समानता" के साथ गलत तरीके से जोड़ दिया जाता है।न्यायालय एक ऐसे मामले पर फैसला सुना रहा था, जिसमें महिला उम्मीदवारों ने सेना की उस नीति को चुनौती दी थी। इसमें महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग मेरिट सूची जारी करने और पुरुषों के लिए आरक्षित रिक्तियों...
The Indian Contract Act में Revocation कैसे किया जाता है?
किसी भी प्रस्ताव या स्वीकृति का प्रतिसंहरण किया जा सकता है। अब अगला प्रश्न यह है कि ऐसा प्रतिसंहरण कैसे किया जा सकता है किस रीती से और किस ढंग से किया जा सकता है! इसके संबंध में भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 6 में उल्लेख किया गया है। इस धारा के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के तरीकों का उल्लेख किया गया, जो निम्न है-प्रतिसंहरण की सूचना देकर-प्रतिग्रहण के लिए समय की समाप्ति पर अथवा उस समय की समाप्ति पर जो युक्तियुक्त हो-प्रतिग्रहण के पूर्व की शर्त को पूर्ण न करने पर-प्रस्थापनाकर्ता की मृत्यु या...
The Indian Contract Act में Revocation के संबंध में प्रावधान
Revocation का मतलब होता है कैंसल करना, अपने प्रस्ताव और स्वीकृति को रद्द करना। प्रश्न उठता है कि कोई भी प्रस्ताव या स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है रद्द करने की समय अवधि क्या है।धारा 5 के अनुसार कोई भी प्रस्थापना उसके प्रतिग्रहण की सूचना प्रस्थापक के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने के पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण की जा सकेगी किंतु उसके पश्चात नहीं।कोई भी प्रतिग्रहण या प्रतिग्रहण की सूचना प्रतिग्रहिता के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने से पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण किया जा सकेगा किंतु उसके पश्चात नहीं।अधिनियम...




















