धारा 361, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: जब मजिस्ट्रेट किसी मामले का निपटारा नहीं कर सकता
Himanshu Mishra
13 Feb 2025 7:07 PM IST

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) को व्यवस्थित और प्रभावी बनाने के लिए, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) लागू की गई है। यह नया कानून दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code - CrPC) का स्थान लेता है और आपराधिक मामलों को सुनने और तय करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
इस कानून की धारा 361 (Section 361) एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो उन परिस्थितियों को स्पष्ट करती है जब एक मजिस्ट्रेट (Magistrate) को यह महसूस होता है कि वह किसी मामले को आगे नहीं बढ़ा सकता या उसका निपटारा नहीं कर सकता। ऐसे में, यह धारा बताती है कि मजिस्ट्रेट को क्या करना चाहिए और मामला किस तरह उचित न्यायिक अधिकारी (Judicial Authority) के पास भेजा जाना चाहिए।
मजिस्ट्रेट के क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) की भूमिका
भारत में विभिन्न स्तरों के मजिस्ट्रेट (Magistrates) होते हैं, जिनके पास अलग-अलग अपराधों की सुनवाई करने की शक्ति होती है। किसी मजिस्ट्रेट का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) यह तय करता है कि वह कौन-से अपराधों की सुनवाई कर सकता है और किस तरह के मामलों का निपटारा कर सकता है।
हालांकि, कई बार ऐसा होता है कि जब किसी मामले की जांच या सुनवाई चल रही होती है, तब मजिस्ट्रेट को लगता है कि वह इस मामले को नहीं निपटा सकता।
इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे:
1. मामला इतना गंभीर है कि इसकी सुनवाई उच्च न्यायालय (Higher Court) में होनी चाहिए।
2. मामला किसी और मजिस्ट्रेट के क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) में आता है।
3. मामला इतना महत्वपूर्ण है कि इसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate - CJM) के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
धारा 361 यह सुनिश्चित करती है कि ऐसे मामलों को उचित अदालत में भेजा जाए ताकि न्याय प्रक्रिया (Justice Process) में कोई गलती न हो और सुनवाई सही तरीके से हो।
धारा 361: मजिस्ट्रेट क्या कर सकता है?
यदि किसी मामले की सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट को लगता है कि मामला उसके अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) से बाहर है, तो धारा 361 के तहत उसे तीन महत्वपूर्ण कदम उठाने होते हैं:
1. कार्रवाई रोकना (Stay Proceedings) – मजिस्ट्रेट को सबसे पहले मामले की आगे की सुनवाई रोकनी होगी।
2. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजना (Send Report to CJM) – उसे मामले की एक संक्षिप्त रिपोर्ट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate - CJM) को भेजनी होगी।
3. मामले को उचित न्यायालय को भेजना (Refer the Case to Competent Court) – यदि आवश्यक हो, तो CJM या अन्य सक्षम मजिस्ट्रेट इस मामले को किसी अन्य मजिस्ट्रेट को सौंप सकते हैं या इसे सत्र न्यायालय (Sessions Court) में भेज सकते हैं।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate - CJM) की भूमिका
जब कोई मजिस्ट्रेट किसी मामले को CJM के पास भेजता है, तो CJM के पास तीन विकल्प होते हैं:
1. स्वयं सुनवाई करना (Try the Case Himself) – यदि CJM के पास इस मामले को सुनने का अधिकार (Jurisdiction) है, तो वह खुद इस मामले की सुनवाई कर सकते हैं।
2. किसी अन्य मजिस्ट्रेट को सौंपना (Refer the Case to Another Magistrate) – यदि CJM को लगता है कि कोई अन्य मजिस्ट्रेट इस मामले को बेहतर तरीके से संभाल सकता है, तो वह इसे उसके पास भेज सकते हैं।
3. मामले को सत्र न्यायालय में भेजना (Commit the Case to Sessions Court) – यदि मामला बहुत गंभीर है और केवल सत्र न्यायालय (Sessions Court) में इसकी सुनवाई हो सकती है, तो CJM इसे वहां भेज सकते हैं।
धारा 361 और धारा 360 का आपस में संबंध
धारा 361 को समझने के लिए धारा 360 को भी देखना महत्वपूर्ण है। धारा 360 अभियोजन से हटने (Withdrawal from Prosecution) के बारे में बताती है, जबकि धारा 361 यह निर्धारित करती है कि यदि किसी मजिस्ट्रेट के पास किसी मामले को निपटाने की शक्ति नहीं है, तो उसे क्या करना चाहिए।
दोनों प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को व्यवस्थित करने और सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं कि कोई मामला गलत अदालत में न सुना जाए और न्यायिक समय बर्बाद न हो।
उदाहरण (Illustrations) से समझें धारा 361
उदाहरण 1: मजिस्ट्रेट के पास अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) नहीं है
मान लीजिए कि जयपुर के एक प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate of First Class - JMFC) के समक्ष गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide Not Amounting to Murder) का मामला आता है। लेकिन सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हो जाता है कि अपराध हत्या (Murder) का है, जो केवल सत्र न्यायालय (Sessions Court) में सुना जा सकता है।
ऐसी स्थिति में, मजिस्ट्रेट को धारा 361 के तहत मामले की सुनवाई रोक देनी होगी और इसे CJM को भेजना होगा। इसके बाद, CJM इस मामले को सत्र न्यायालय (Sessions Court) में भेज सकते हैं, जहां इसकी सही तरीके से सुनवाई हो सके।
उदाहरण 2: CJM के पास भेजा गया मामला
दिल्ली के एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के सामने एक वित्तीय धोखाधड़ी (Financial Fraud) का मामला आता है। सुनवाई के दौरान, यह स्पष्ट होता है कि यह एक बड़ा घोटाला है, जिसमें करोड़ों रुपये की हेरफेर हुई है। चूंकि यह मामला जटिल और गंभीर है, मजिस्ट्रेट इसे धारा 361 के तहत CJM के पास भेज देता है।
CJM मामले की समीक्षा करने के बाद तय करता है कि वह खुद इस मामले की सुनवाई करेगा, ताकि न्यायिक प्रक्रिया सुचारू रूप से आगे बढ़ सके।
उदाहरण 3: दूसरे मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित किया गया मामला
लखनऊ के एक मजिस्ट्रेट के पास एक साइबर अपराध का मामला आता है, लेकिन बाद में पता चलता है कि अपराध कानपुर में हुआ था। इस स्थिति में, लखनऊ के मजिस्ट्रेट को धारा 361 के तहत मामले को CJM को भेजना होगा।
CJM समीक्षा के बाद फैसला ले सकता है कि मामला कानपुर के मजिस्ट्रेट को भेजा जाए, जिससे सुनवाई सही क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) में हो और कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाए।
धारा 361, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि अगर कोई मजिस्ट्रेट किसी मामले को निपटाने में असमर्थ है, तो उसे उचित न्यायालय में भेजा जाए।
यह प्रावधान न्यायिक प्रणाली को सुनिश्चित और प्रभावी बनाता है ताकि किसी मामले की सुनवाई गलत अदालत में न हो। साथ ही, यह बचाव करता है कि न्यायिक समय बर्बाद न हो और न्याय प्रक्रिया में कोई बाधा न आए।
इस धारा के माध्यम से, यह सुनिश्चित किया जाता है कि मामला उसी अदालत में सुना जाए, जहां इसे कानूनी रूप से सुना जाना चाहिए, ताकि न्याय सही तरीके से हो।