क्या भारत में सच में राजद्रोह कानून समाप्त हो गया? बीएनएस 152 बनाम आईपीसी 124A की तुलना
Himanshu Mishra
12 Feb 2025 12:24 PM

भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita - BNS), 2023 को लागू करने से भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) में एक बड़ा बदलाव आया।
इसने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code - IPC), 1860 को पूरी तरह से बदल दिया। आईपीसी की धारा 124A, जो राजद्रोह (Sedition) से संबंधित थी, सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक थी।
सरकार ने दावा किया कि नए कानून में इसे हटा दिया गया है, लेकिन बीएनएस की धारा 152 को गहराई से देखने पर पता चलता है कि राजद्रोह की मूल अवधारणा अब भी नए रूप में मौजूद है।
यह लेख धारा 124A आईपीसी और धारा 152 बीएनएस की तुलना करेगा और यह समझाएगा कि किस प्रकार नया कानून अब भी राजद्रोह के सिद्धांतों को बनाए रखता है।
दोनों प्रावधानों की संक्षिप्त व्याख्या
आईपीसी की धारा 124A (राजद्रोह - Sedition Law)
आईपीसी की धारा 124A उन कार्यों को अपराध मानती थी जो सरकार के प्रति "घृणा (Hatred), अवमानना (Contempt) या असंतोष (Disaffection)" उत्पन्न करने या उसे बढ़ावा देने का प्रयास करते थे।
यह अपराध बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों (Signs) या दृश्य प्रस्तुति (Visible Representation) के माध्यम से किया जा सकता था। इस प्रावधान की आलोचना अक्सर इसकी अस्पष्टता (Vagueness) और राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ इसके दुरुपयोग को लेकर की जाती थी।
धारा 124A के तहत सजा आजीवन कारावास (Life Imprisonment) से लेकर तीन साल तक की कैद और जुर्माने (Fine) तक हो सकती थी।
उदाहरण 1: यदि कोई पत्रकार सरकारी नीतियों की कड़ी आलोचना करता है और यह सरकार को लगता है कि यह आलोचना लोगों में असंतोष फैला सकती है, तो पत्रकार पर धारा 124A के तहत मुकदमा चलाया जा सकता था।
बीएनएस की धारा 152 (विभाजनकारी और विध्वंसक गतिविधियों का अपराधीकरण - Criminalization of Secessionist and Subversive Activities)
बीएनएस, 2023 के तहत, धारा 152 उन कृत्यों को अपराध घोषित करती है जो "गंभीर रूप से अलगाववाद (Secession), सशस्त्र विद्रोह (Armed Rebellion), विध्वंसक गतिविधियों (Subversive Activities) या अलगाववादी भावनाओं (Separatist Sentiments) को भड़काते हैं या उनका प्रयास करते हैं।"
यह उन कृत्यों को भी दंडनीय बनाती है जो भारत की संप्रभुता (Sovereignty), एकता (Unity) और अखंडता (Integrity) को खतरे में डालते हैं। आईपीसी की धारा 124A जहां सरकार के प्रति असंतोष को दंडित करती थी, वहीं बीएनएस की धारा 152 राष्ट्रीय संप्रभुता की सुरक्षा पर केंद्रित है।
उदाहरण 2: यदि कोई सामाजिक कार्यकर्ता किसी सभा में यह कहता है कि एक विशेष क्षेत्र को अधिक स्वायत्तता (Autonomy) दी जानी चाहिए और सरकार इसे अलगाववादी भावना भड़काने के रूप में देखती है, तो उस व्यक्ति पर धारा 152 के तहत मुकदमा चल सकता है।
आईपीसी की धारा 124A और बीएनएस की धारा 152 के बीच प्रमुख अंतर
1. ध्यान केंद्रित करने का बदलाव (Shift in Focus)
• धारा 124A का उद्देश्य सरकार के प्रति "घृणा, अवमानना या असंतोष" फैलाने वालों को दंडित करना था।
• धारा 152 का उद्देश्य "अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों और राष्ट्र विरोधी भावनाओं" को रोकना है।
उदाहरण 3: यदि 2018 में कुछ प्रदर्शनकारियों ने किसी सरकारी नीति का विरोध किया और इसकी वापसी की मांग की, तो धारा 124A के तहत उन पर सरकार के प्रति अवमानना फैलाने का आरोप लगाया जा सकता था। धारा 152 के तहत, यदि प्रदर्शन को राष्ट्र-विरोधी गतिविधि के रूप में देखा जाए, तो यह अब भी दंडनीय हो सकता है, भले ही इसमें हिंसा न हो।
2. अपराध के माध्यमों का विस्तार (Expansion of Mediums of Offense)
• धारा 124A बोले गए शब्दों, लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रस्तुति तक सीमित थी।
• धारा 152 में "इलेक्ट्रॉनिक संचार (Electronic Communication)" और "वित्तीय साधनों (Financial Means)" को भी जोड़ा गया है, जिससे डिजिटल प्लेटफॉर्म और फंडिंग गतिविधियों को भी इसके दायरे में लाया गया है।
उदाहरण 4: यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर एक ऑनलाइन याचिका (Online Petition) साझा करता है जिसमें किसी क्षेत्र के लिए जनमत संग्रह (Referendum) की मांग की गई हो, तो इसे धारा 152 के तहत अलगाववाद को भड़काने वाला माना जा सकता है।
3. सजा की गंभीरता (Severity of Punishment)
• धारा 124A में सजा आजीवन कारावास या तीन साल तक की कैद और जुर्माना थी।
• धारा 152 में आजीवन कारावास को बरकरार रखा गया है, लेकिन वैकल्पिक सजा को सात साल तक बढ़ा दिया गया है।
उदाहरण 5: यदि कोई फिल्म निर्माता एक डॉक्यूमेंट्री बनाता है जिसमें क्षेत्रीय स्वतंत्रता आंदोलनों को दिखाया गया हो, तो उसे सात साल तक की सजा हो सकती है, जबकि पुराने कानून में यह तीन साल तक ही सीमित थी।
4. सरकार की आलोचना पर कानूनी सुरक्षा (Legal Justification for Criticism)
• दोनों प्रावधानों में सरकार की आलोचना को वैध माना गया है यदि इसका उद्देश्य संवैधानिक ढांचे के भीतर सुधार लाना हो।
• धारा 152 में इस छूट को अधिक सामान्य रखा गया है, जिससे स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर खतरा बढ़ सकता है।
उदाहरण 6: यदि कोई वकील किसी सरकारी नीति की संवैधानिक आलोचना करता है, तो धारा 124A में विशेष रूप से यह छूट दी गई थी। लेकिन धारा 152 के तहत, अगर इस आलोचना को विध्वंसक गतिविधि माना गया, तो वह मुकदमे का सामना कर सकता है।
नए कानून में राजद्रोह के अवशेष (Traces of Sedition in the New Law)
1. अस्पष्ट और व्यापक भाषा (Ambiguous and Broad Language): "विध्वंसक गतिविधि" और "अलगाववादी भावना" जैसे शब्द स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हैं।
2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध (Criminalization of Speech): सरकार विरोधी विचारों को विद्रोह के रूप में देखा जा सकता है।
3. डिजिटल और वित्तीय गतिविधियों को शामिल करना (Expansion to Digital and Financial Activities): सोशल मीडिया पोस्ट और फंडिंग अभियान (Crowdfunding) भी आपराधिक दायरे में आ सकते हैं।
4. सजा की गंभीरता बढ़ाना (Harsher Punishments): तीन साल की जगह सात साल तक की सजा, एक अधिक कठोर दृष्टिकोण को दर्शाता है।
आईपीसी की धारा 124A को नाममात्र रूप से हटा दिया गया है, लेकिन इसका मूल तत्व बीएनएस की धारा 152 में अब भी मौजूद है। नए कानून में भाषा और दायरा व्यापक हो गया है, जिससे यह पहले की तुलना में और अधिक सख्त हो सकता है। अतः, भले ही "राजद्रोह" शब्द हटा दिया गया हो, लेकिन इसके सिद्धांत अब भी भारत की नई आपराधिक न्याय प्रणाली में मौजूद हैं।