धारा 360, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: अभियोजन से हटने की प्रक्रिया, शर्तें और न्यायालय की भूमिका

Himanshu Mishra

12 Feb 2025 6:00 PM IST

  • धारा 360, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: अभियोजन से हटने की प्रक्रिया, शर्तें और न्यायालय की भूमिका

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जो पहले की दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) का स्थान ले चुकी है, इसमें अभियोजन से हटने (Withdrawal from Prosecution) का प्रावधान धारा 360 (Section 360) में दिया गया है।

    यह धारा लोक अभियोजक (Public Prosecutor) या सहायक लोक अभियोजक (Assistant Public Prosecutor) को यह अधिकार देती है कि वे किसी भी आरोपी (Accused) के खिलाफ मुकदमे से हट सकते हैं, लेकिन इसके लिए न्यायालय (Court) की अनुमति आवश्यक होगी।

    यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि अभियोजन की प्रक्रिया न्यायसंगत बनी रहे और इसमें जनहित (Public Interest) एवं न्यायिक नियंत्रण (Judicial Oversight) का संतुलन बना रहे।

    अभियोजन से हटने (Withdrawal from Prosecution) का अर्थ क्या है?

    अभियोजन से हटने का मतलब यह है कि लोक अभियोजक किसी आरोपी के खिलाफ मुकदमा आगे नहीं बढ़ाएंगे। लेकिन यह शक्ति पूरी तरह से अभियोजन पक्ष के हाथों में नहीं होती। न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता इसलिए होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अभियोजन से हटना किसी अनुचित उद्देश्य या राजनीतिक प्रभाव के कारण नहीं किया जा रहा है।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि ऐसे मामलों में मुकदमा न चलाया जाए जहां आगे की कार्यवाही न्यायहित (Interests of Justice) में न हो। यह फैसला साक्ष्यों (Evidence) की कमी, नीति संबंधी विचार (Policy Considerations), पक्षों के बीच समझौते (Settlement) या अन्य कारणों से लिया जा सकता है।

    कब हट सकता है लोक अभियोजक (Public Prosecutor) मुकदमे से?

    धारा 360 के अनुसार, लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक किसी भी समय, जब तक न्यायालय द्वारा निर्णय (Judgment) नहीं सुनाया गया हो, अभियोजन से हटने की अर्जी दे सकते हैं। लेकिन इसके लिए न्यायालय की सहमति (Consent of Court) आवश्यक है।

    न्यायालय की सहमति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियोजन से हटने का निर्णय कानूनी रूप से सही हो और इसका दुरुपयोग न किया जाए।

    अभियोजन से हटने का आरोपी (Accused) पर प्रभाव

    इस प्रावधान में यह स्पष्ट किया गया है कि अभियोजन से हटने पर आरोपी की स्थिति इस पर निर्भर करेगी कि मुकदमे की प्रक्रिया किस चरण (Stage) पर है:

    1. यदि आरोप (Charge) तय होने से पहले अभियोजन हटता है

    यदि अभियोजन आरोप तय होने (Framing of Charge) से पहले वापस लिया जाता है, तो आरोपी को निर्वहन (Discharged) कर दिया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि आरोपी को मामले से मुक्त कर दिया जाएगा, लेकिन यह पूर्णरूप से दोषमुक्ति (Acquittal) नहीं होगी। यदि भविष्य में नए साक्ष्य मिलते हैं, तो आरोपी पर फिर से मुकदमा चल सकता है।

    2. यदि आरोप तय होने के बाद अभियोजन हटता है

    यदि अभियोजन आरोप तय होने के बाद हटता है या उस स्थिति में जहां आरोप तय करना आवश्यक नहीं है, तो आरोपी को दोषमुक्त (Acquitted) कर दिया जाएगा। दोषमुक्ति का अर्थ यह होता है कि आरोपी को पूरी तरह से मामले से मुक्त कर दिया गया है और अब उस पर दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता (Double Jeopardy)।

    विशेष परिस्थितियाँ जहां केंद्र सरकार (Central Government) की अनुमति आवश्यक होगी

    कुछ विशेष मामलों में अभियोजन से हटने के लिए केवल न्यायालय की सहमति ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार की अनुमति भी आवश्यक होगी। यह उन मामलों में लागू होता है जहां केंद्र सरकार के हित (Interests of Central Government) जुड़े होते हैं।

    इन मामलों में लोक अभियोजक तभी अभियोजन हटाने के लिए न्यायालय से अनुरोध कर सकते हैं जब केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति (Prior Permission) ली गई हो।

    ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं:

    1. यदि मामला किसी केंद्रीय कानून (Central Law) के तहत आता है

    यदि अपराध ऐसा है जो केंद्र सरकार के अधीन आने वाले किसी कानून के तहत आता है, तो अभियोजन से हटने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।

    2. यदि मामला किसी केंद्रीय अधिनियम (Central Act) के तहत जाँचा गया हो

    यदि मामला किसी केंद्रीय कानून के तहत जाँचा गया हो, जैसे आर्थिक अपराध (Economic Offences), कर चोरी (Tax Evasion) या राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) से जुड़े अपराध, तो अभियोजन हटाने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।

    3. यदि अपराध केंद्र सरकार की संपत्ति (Property) से जुड़ा हो

    यदि अपराध केंद्र सरकार की संपत्ति के दुरुपयोग (Misappropriation), नष्ट करने (Destruction) या क्षति पहुँचाने (Damage) से जुड़ा हो, तो अभियोजन से हटने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होगी।

    4. यदि अपराध किसी केंद्रीय कर्मचारी (Central Government Employee) द्वारा किया गया हो

    यदि अपराध किसी केंद्र सरकार के कर्मचारी द्वारा अपने आधिकारिक कर्तव्यों (Official Duties) का निर्वहन करते समय किया गया हो, तो अभियोजन हटाने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।

    पीड़ित (Victim) को सुनवाई का अधिकार

    इस प्रावधान में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा यह दी गई है कि अभियोजन हटाने से पहले पीड़ित को अपनी बात रखने का अवसर (Opportunity to be Heard) दिया जाएगा।

    यह प्रावधान पीड़ित के न्याय के अधिकार (Right to Justice) को मान्यता देता है और यह सुनिश्चित करता है कि अभियोजन किसी अनुचित कारण से न हटाया जाए।

    अभियोजन से हटने (Withdrawal from Prosecution) के उदाहरण

    इस प्रावधान को कुछ उदाहरणों से समझते हैं:

    उदाहरण 1: आरोप तय होने से पहले अभियोजन हटना

    रवि पर चोरी (Theft) का आरोप है, लेकिन जाँच के दौरान पता चलता है कि यह एक गलतफहमी का मामला था। पुलिस को कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिलता, और लोक अभियोजक न्यायालय से अभियोजन हटाने की अनुमति मांगते हैं।

    न्यायालय अनुमति देता है और रवि को निर्वहन (Discharge) कर दिया जाता है। इसका मतलब यह है कि रवि को वर्तमान में मामले से मुक्त कर दिया गया है, लेकिन भविष्य में यदि नए साक्ष्य मिलते हैं, तो फिर से मुकदमा चल सकता है।

    उदाहरण 2: आरोप तय होने के बाद अभियोजन हटना

    रोहन पर धोखाधड़ी (Fraud) का मामला दर्ज है। जाँच के बाद पता चलता है कि यह केवल एक अकाउंटिंग गलती थी और धोखाधड़ी का कोई प्रमाण नहीं है। लोक अभियोजक केंद्र सरकार से अनुमति लेकर अभियोजन हटाने की अर्जी देते हैं। न्यायालय अनुमति देता है और चूंकि आरोप पहले ही तय हो चुका था, रोहन को दोषमुक्त (Acquitted) कर दिया जाता है। अब उस पर फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

    न्यायालय का नियंत्रण (Judicial Oversight) और सुरक्षा उपाय

    न्यायालय की अनुमति अभियोजन से हटने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सुनिश्चित करता है कि अभियोजन हटाने का निर्णय भ्रष्टाचार (Corruption), अनुचित प्रभाव (Undue Influence) या राजनीतिक दबाव (Political Pressure) के कारण न हो।

    धारा 360 अभियोजन से हटने का एक कानूनी प्रावधान है जो न्यायिक प्रक्रिया को संतुलित बनाता है। यह प्रावधान न्याय के हितों (Interests of Justice) की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि मुकदमों को अनावश्यक रूप से न चलाया जाए।

    लेकिन साथ ही, यह सुरक्षा उपाय भी देता है ताकि इस प्रावधान का दुरुपयोग न हो। न्यायालय की निगरानी, केंद्र सरकार की अनुमति और पीड़ित को सुनवाई का अधिकार इस प्रावधान को निष्पक्ष और न्यायसंगत बनाते हैं।

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