जानिए हमारा कानून
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : अधिनियम की संरचना और मुख्य विशेषताएँ
भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क़ानून है वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972। इसे सामान्यत: Wildlife Protection Act (WPA) कहा जाता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की रक्षा करना, शिकार पर रोक लगाना और उनके आवास (Habitat) को बचाने के लिए Sanctuary (अभयारण्य) और National Park (राष्ट्रीय उद्यान) जैसी संरक्षित श्रेणियाँ बनाना। यह अधिनियम 1972 में पारित किया गया था ताकि लगातार हो रहे शिकार, वन विनाश और वन्यजीवों के अवैध व्यापार को रोका...
The Indian Contract Act में अनिश्चितता के कारण करार शून्य होते हैं?
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत धारा 29 में अनिश्चितता का समावेश किया गया है। किसी भी संविदा के लिए अनिश्चितता घातक होती है। किसी भी प्रस्ताव और स्वीकृति में निश्चिता होनी चाहिए उसका प्रतिफल निश्चित होना चाहिए उसका काल और वचन निश्चित होना चाहिए। कोई भी अनिश्चितता को नहीं माना जा सकता यदि कोई निश्चित नहीं है ऐसी परिस्थिति में कोई करार संविदा नहीं बन सकता है इसलिए यह कहा जा सकता है कि कोई भी करार को संविदा होने के लिए उसमें निश्चितता होनी चाहिए उसमें स्थायित्व होना चाहिए यदि किसी करार में...
The Indian Contract Act की धारा 28 के प्रावधान
भारत के संविधान ने किसी भी व्यक्ति को अपने संवैधानिक और सिविल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए कोर्ट का रास्ता दिया है। यदि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के कार्य या लोप द्वारा कोई क्षति होती है तो ऐसी क्षति के परिणामस्वरूप कोर्ट के समक्ष जाकर अनुतोष प्राप्त कर सकता है। कोई भी ऐसा करार जो किसी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों और सिविल अधिकारों में व्यवधान पैदा करता है वह शून्य होता है।भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत धारा 28 में यह प्रावधान किया गया है कि कोई भी ऐसा करार जो किसी वैधानिक...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 54 : नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्ति
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981, का अंतिम अध्याय, विविध (Miscellaneous), केवल केंद्रीय सरकार को ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारों को भी अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए नियम बनाने की महत्वपूर्ण शक्ति प्रदान करता है।धारा 54, विशेष रूप से, राज्य सरकार की इस शक्ति को परिभाषित करती है और उन विशिष्ट क्षेत्रों को सूचीबद्ध करती है जहां नियम बनाए जा सकते हैं। यह प्रावधान अधिनियम के सिद्धांतों को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए आवश्यक प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक विवरणों को भरने का काम...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 45-47: जानकारी और कार्टेल से संबंधित अपराधों के लिए दंड
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Indian Competition Act) की दंड व्यवस्था (penalty system) केवल Competition-विरोधी व्यवहारों तक ही सीमित नहीं है। यह उन प्रक्रियाओं को भी लक्षित करती है जो जांच और प्रवर्तन (enforcement) की अखंडता को कमजोर कर सकती हैं।धारा 45 बेईमानी और धोखे को दंडित करती है, जबकि धारा 46 एक अनूठा और शक्तिशाली तंत्र प्रदान करती है जिसे "कम दंड का प्रावधान" (Lesser Penalty Provision) कहा जाता है। अंत में, धारा 47 यह निर्धारित करती है कि जुर्माने का पैसा कहाँ जाता है, जिससे वित्तीय...
Water Act, 1974 की धारा 3- 4 : जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए केंद्रीय एवं राज्य बोर्ड
भारत में Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974 केवल एक नीति दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह ऐसा अधिनियम है जिसने पर्यावरणीय प्रशासन को नई दिशा दी। इसका दूसरा अध्याय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें Central Pollution Control Board (CPCB) और State Pollution Control Boards (SPCBs) की स्थापना और संरचना का प्रावधान है।यह अध्याय यह समझने की कुंजी है कि भारत में जल प्रदूषण नियंत्रण का संस्थागत ढांचा कैसे काम करता है। इस लेख में हम इन प्रावधानों का विस्तार से अध्ययन करेंगे, उनके...
क्या बिना नोटिस, सुनवाई और कारणयुक्त आदेश के नगर निगम द्वारा किसी व्यक्ति की संपत्ति लेना संविधान के अनुरूप माना जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने Kolkata Municipal Corporation v. Bimal Kumar Shah (2024) के निर्णय में यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि क्या कोलकाता म्युनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट, 1980 की धारा 352 (Section 352) किसी व्यक्ति की भूमि का अनिवार्य अधिग्रहण (Compulsory Acquisition of property) करने की शक्ति देती है।इस मामले में अदालत ने केवल नगर निगम अधिनियम (Municipal Law) की व्याख्या ही नहीं की, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 300A (Article 300A) में निहित Right to Property की संवैधानिक सुरक्षा पर भी विचार किया। न्यायालय ने...
The Indian Contract Act धारा 27 के प्रावधान
भारत का संविधान भारत के नागरिकों को स्वतंत्रतापूर्वक व्यापार और वाणिज्य करने की स्वतंत्रता देता है। ऐसे व्यापार और वाणिज्य जिन्हें विधि द्वारा वैध घोषित किया गया है उन्हें कोई भी भारत का नागरिक भारत के किसी भी क्षेत्र में स्वतंत्रतापूर्वक कर सकता है। भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 27 के अंतर्गत व्यापार के अवरोधक करारों को सीधे शून्य करार घोषित किया गया है।व्यापार के संदर्भ में अवरोध उत्पन्न करने वाला हर कोई करार शून्य होता है अब चाहे वह करार के अंतर्गत अवरोध पूर्ण हो या अवरोध आंशिक रूप से हो...
The Indian Contract Act में विवाह अवरोधक एग्रीमेंट Void होते हैं?
समाज और देश को बनाए रखने के लिए जनता के हित के लिए कुछ करार ऐसे हैं जिन्हें विधि द्वारा सीधे ही शून्य घोषित कर दिया गया है। इस प्रकार के कुछ करार हैं जिन्हें क़ानून द्वारा सीधे शून्य घोषित किया गया। उन करार में एक करार विवाह अवरोधक एग्रीमेंट भी है इस एक्ट ने सीधे तौर पर Void घोषित किया है। इस धारा के अनुसार, कोई भी समझौता जो किसी व्यक्ति को विवाह करने से रोकता है या विवाह की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करता है, वह शून्य माना जाता है। इस धारा का उद्देश्य व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा...
Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974 क्या है और यह क्यों बनाया गया?
जल अधिनियम क्या है (What the Water Act is)Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974 भारत का प्रमुख कानून है जो जल प्रदूषण (Water Pollution) को रोकने, नियंत्रित करने और कम करने के लिए बनाया गया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य जल को “स्वच्छ और उपयोग योग्य” बनाए रखना है। इसके लिए इसमें Central Pollution Control Board (CPCB) और State Pollution Control Boards (SPCBs) की स्थापना की गई। ये संस्थाएँ मानक तय करने, अनुमति (Consent) देने और प्रदूषकों के खिलाफ कार्रवाई करने का काम करती हैं। इसे...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 51-53 : राज्य बोर्डों का रजिस्टर और अन्य कानूनों पर अधिनियम का प्रभाव
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981, के अंतिम अध्याय, विविध (Miscellaneous) में, कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं जो प्रदूषण नियंत्रण के प्रशासनिक और कानूनी ढांचे को मजबूत करते हैं। ये धाराएँ सार्वजनिक पारदर्शिता (public transparency) सुनिश्चित करती हैं, अन्य कानूनों पर अधिनियम की प्रधानता (primacy) को परिभाषित करती हैं, और केंद्र सरकार को नियमों को बनाने की शक्ति देती हैं।धारा 51 - रजिस्टर का रखरखाव (Maintenance of Register)यह धारा प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (Pollution Control...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 43-44 : प्रक्रियाओं का पालन न करने पर दंड
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए न केवल Competition-विरोधी व्यवहारों को दंडित करने की शक्ति की आवश्यकता होती है, बल्कि जांच और अनुमोदन (approval) प्रक्रियाओं के दौरान असहयोग और बेईमानी को भी दंडित करने की आवश्यकता होती है।भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 43, धारा 43A और धारा 44 इसी उद्देश्य को पूरा करती हैं, जो CCI की नियामक शक्तियों को मजबूत करती हैं। ये धाराएँ स्पष्ट रूप से उन दंडों को परिभाषित करती हैं जो तब लगाए जाते हैं जब कोई व्यक्ति या कंपनी जांच के...
क्या भारत का सुप्रीम कोर्ट अब जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त रहने के अधिकार को मौलिक अधिकार मानता है?
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने M.K. Ranjitsinh बनाम Union of India (2024) मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसमें यह माना गया कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त रहने का अधिकार भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है।यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जीवन के अधिकार (Right to Life - Article 21) और समानता के अधिकार (Right to Equality - Article 14) की व्याख्या को और व्यापक बनाता है। इस निर्णय ने स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरणीय चिंता नहीं...
क्या केवल गिरफ्तारी का कारण बताना पर्याप्त है या लिखित आधार देना ज़रूरी है?
सुप्रीम कोर्ट ने Prabir Purkayastha v. State (NCT of Delhi) (2024 INSC 414, दिनांक 15 मई 2024) में एक अहम फैसला दिया। यह निर्णय इस बात पर केंद्रित है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय लिखित रूप (Written Form) में उसके गिरफ्तारी के आधार (Grounds of Arrest) बताना ज़रूरी है। यह मामला Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 (UAPA) के तहत दर्ज हुआ था और इसमें संविधान (Constitution) के अनुच्छेद 20, 21 और 22 तथा Section 43B UAPA की व्याख्या की गई।अदालत ने साफ कहा कि “Reason for Arrest” और...
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 47-49 : राज्य बोर्डों का पर्यवेक्षण, विघटन और विलय
वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अध्याय VII में ऐसे महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं जो राज्य बोर्डों के कामकाज पर सरकार के नियंत्रण को स्थापित करते हैं, जबकि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास बिना किसी रुकावट के जारी रहें। यह अध्याय राज्य बोर्ड को अधिकार से हटाए जाने (supersession), अन्य कानूनों के तहत गठित बोर्डों के साथ विलय (merger) और शक्तियों के हस्तांतरण (transfer) से संबंधित है।धारा 47 - राज्य बोर्ड को अधिकृत करने की राज्य सरकार की शक्ति (Power of...
पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 90, 91: सरकारी दस्तावेजों की छूट और निरीक्षण
आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के अंतिम भाग को समझते हैं, जो कुछ विशेष सरकारी दस्तावेजों को पंजीकरण की आवश्यकता से छूट देता है और उनके निरीक्षण की प्रक्रिया को निर्धारित करता है। यह धाराएं पंजीकरण प्रणाली के दायरे और सीमाओं को परिभाषित करती हैं।90. सरकार द्वारा या उसके पक्ष में निष्पादित कुछ दस्तावेजों की छूट (Exemption of certain documents executed by or in favour of Government)यह धारा उन विशिष्ट दस्तावेजों या नक्शों को सूचीबद्ध करती है जिन्हें पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती।...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 41-42 : महानिदेशक के कर्तव्य और आयोग के आदेशों का उल्लंघन
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए एक मजबूत और समर्पित जांच टीम की आवश्यकता होती है। यह भूमिका महानिदेशक (Director General - DG) द्वारा निभाई जाती है।भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 41 महानिदेशक की शक्तियों और कर्तव्यों को परिभाषित करती है, जबकि धारा 42 यह सुनिश्चित करती है कि CCI द्वारा दिए गए आदेशों का उल्लंघन करने पर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ें। ये दोनों धाराएं मिलकर CCI को एक शक्तिशाली और प्रभावी नियामक बनाती हैं, जो न केवल उल्लंघन की जांच कर सकता है, बल्कि...
The Indian Contract Act में Consideration के बगैर एग्रीमेंट
प्रतिफल के बिना भी कोई करार शून्य होता है यदि किसी करार में कोई प्रतिफल नहीं है तो ऐसी स्थिति में करार शून्य हो जाता है। इसके संबंध में अधिनियम की धारा 25 में उल्लेख किया गया है परंतु इसके कुछ अपवाद दिए गए। कुछ अपवादों को छोड़कर प्रतिफल के बिना किए गए करार शून्य होते हैं।जैसे ख को किसी प्रतिफल के बिना 1000 रूपये देने का क वचन देता है यह शून्य करार है।कामता प्रसाद बनाम अपर जिला जज द्वितीय मैनपुरी एआईआर 1996 इलाहाबाद 201 के प्रकरण में यह कहा गया है कि यदि कोई करार इस प्रकार का है कि वह प्रतिफल से...
The Indian Contract Act में Lawful Consideration का महत्व
किसी भी करार में विधिपूर्ण प्रतिफल का होना नितांत आवश्यक होता है। विधिपूर्ण प्रतिफल के साथ विधिपूर्ण उद्देश भी होना चाहिए। यदि किसी करार में विधिपूर्ण उद्देश्य नहीं होता है तथा विधिपूर्ण प्रतिफल का अभाव होता है तो उस करार को शून्य करार कहा जाता है अर्थात ऐसे करार का प्रारंभ से ही कोई अस्तित्व नहीं रहता है। यदि किसी करार के सक्षम पक्षकार नहीं होते हैं और किसी करार में स्वतंत्र सहमति नहीं होती है तो इस प्रकार के करार को व्यथित पक्षकार की इच्छा पर शून्यकरणीय कोर्ट द्वारा घोषित कर दिया जाता है परंतु...
The Indian Contract Act की धारा 18 और 20 के प्रावधान
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत दुर्व्यपदेशन को परिभाषित किया गया है। किसी भी सहमति के स्वतंत्र सहमति होने के लिए उसमे दुर्व्यपदेशन नहीं होना चाहिए इसे सुझाव मात्र के रूप में नहीं होना चाहिए। इसे उन परिस्थितियों के अधीन होना चाहिए जहां बोलने का कर्तव्य हो।दुर्व्यपदेशन के अंतर्गत वह पक्ष शामिल है जो उस व्यक्ति की जिसे वह करता है उसकी जानकारी से समर्थित न हो। यदि वह व्यक्ति उसकी सत्यता में विश्वास करता है हालांकि कपट एवं दुर्व्यपदेशन इन दोनों में मिथ्या कथन के परिणामस्वरुप संविदा के...



















